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अध्यापक शिक्षा की आवश्यकताएँ | Teacher Education Requirements in Hindi 

अध्यापक शिक्षा की आवश्यकताएँ | Teacher Education Requirements in Hindi 
अध्यापक शिक्षा की आवश्यकताएँ | Teacher Education Requirements in Hindi 

अध्यापक शिक्षा की मुख्य आवश्यकताएँ

अध्यापक शिक्षा की मुख्य आवश्यकताएँ इस प्रकार है-

  1. उद्यमगत् आवश्यकताएँ
  2. शैक्षिक आवश्कताएँ
  3. मनोवैज्ञानिक आवश्यकता
  4. सामाजिक आवश्यकता
  5. आर्थिक आवश्यकता
  6. दार्शनिक आवश्यकता

राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् के द्वारा कई बातों पर ध्यान देते हुए अध्यापक शिक्षा की आवश्यकता को स्थापित करने के लिए प्रयास किया गया जैसे-

(1) प्रत्येक अध्यापक विद्यार्थी है

शिक्षा एक जीवन पर्यान्त चलने वाली – प्रक्रिया है। अध्यापक को जीवनभर सीखते रहना चाहिये। वास्तव में किसी भी व्यक्ति को तब तक शिक्षण कार्य करने का फैसला नहीं करना चाहिये जब तक वह स्वयं सीखते रहने का निश्चय न कर लें क्योंकि एक सच्चा अध्यापक अपने समूचे जीवन में विद्यार्थी बने रहता है।

(2) शिक्षा गतिशील है

शिक्षा गतिशील होती है अर्थात् उसमें हर समय परिवर्तन होता रहता है। जो सिद्धान्त बीस साल पहले ठीक समझे जाते थे, आज उनका कोई मूल्य नहीं रहा। इसलिये यह स्पष्ट है कि जिस अध्यापक ने बीस वर्ष पहले प्रशिक्षण किया था आज उसे नया प्रशिक्षण लेना चाहिये। उसे शिक्षा की नवीनतम वृत्तियों से अपना सम्बन्ध स्थापित रखना चाहिये। उसे नवीन समस्याओं, नवीन विधियों और शिक्षा की नवीन शैलियों का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए।

( 3 ) आजीवन शिक्षा

हाल ही के अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षा आयोग ने सेवाकालीन प्रशिक्षण को आजीवन शिक्षा का नारा देकर इसकी जरूरत पर बल दिया है।

(4) सुरक्षा की भावना

सेमिनारों और कार्यशालाओं में जब अध्यापक एक – दूसरे के साथ मिलते हैं तो उनमें संरक्षण समवृत्ति, सामूहिक वृत्ति और अपनत्व की भावना पैदा होती है।

(5) व्यावसायिक विकास के लिए आवश्यक

अध्यापकों के व्यावसायिक विकास के लिये सेवाकालीन प्रशिक्षण बहुत ही आवश्यक है। इसे इस बात की आवश्यकता होती है कि वह अपने अनुभव में नवीनता प्राप्त करे, नया ज्ञान हासिल करे, अपने दृष्टिकोण का विस्तार करे, दूसरे के अनुभवों से लाभ उठाए, नई सूचनायें प्राप्त करे। इस प्रकार अपने आप नवीनीकरण करे।

( 6 ) शिक्षा का पुनर्गठन

अन्त में स्वतन्त्र भारत की यह माँग है कि अध्यापकों को परिवर्तनशील भारतवर्ष के नवीनतम विकास कार्यों का पूर्ण ज्ञान होना चाहिये। विशेषकर जब कोठारी आयोग के सुझावों पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 का निर्माण हो चुका है। अतः अध्यापकों के लिये यह आवश्यक हो जाता है कि वे सभी स्तरों पर शिक्षा के पुनर्गठन की ओर ध्यान दें।

(7) गुणवत्ता सम्पन्न अध्यापक की तैयारी-

सफल अध्यापक के लिए आवश्यक गुण और विशेषताओं में शिक्षित प्रशिक्षित करते हुए अध्यापकों की भावी पीढ़ी को तैयार करना किसी भी स्तर पर अध्यापक शिक्षा कार्यक्रम की मूलभूत आवश्यकता को प्रकट करता है। माध्यमिक शिक्षा आयोग (1952-53) के द्वारा माना गया था कि शैक्षिक पुनर्निर्माण के लिए माध्यमिक स्तर पर अध्यापकों का उद्यमगत प्रशिक्षण ही प्रमुख उत्तरदायी कारक है। शिक्षा आयोग (1964-66) के द्वारा भी इसी सन्दर्भ में कहा गया है कि विज्ञान और तकनीकी आधारित विश्व में शिक्षा ही उन्नति, कल्याण और सुरक्षा को लोगों के लिए निर्धारित कर सकती है और अध्यापकों के लिए एक दृढ़ कार्यक्रम शिक्षा में गुणात्मक सुधार के लिए अनिवार्य है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के परिप्रेक्ष्य में 1997-98 तक 430 डाइट और शिक्षा महाविद्यालय एवं अनेक शिक्षा में उच्च अध्ययन संस्थानों (आई.ए.एस.ई.) की स्थापना के माध्यम से इस दिशा में सार्थक प्रयत्न किये गये हैं। नवाचार का उपयोग माध्यमिक, उच्च माध्यमिक तथा व्यवसाय परक शिक्षा के क्षेत्र में किया गया ताकि स्तरोन्नयन को सुनिश्चित करना सम्भव हो सके, यद्यपि अभी निर्दिष्ट लक्ष्य अनेकांशत: दूर ही रह गया है।

(8) संविधानगत लक्ष्यों की उपलब्धि-

भारतीय संविधान में प्रत्येक भारतीय नागरिक को न्याय-सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक, स्वतन्त्रता चिन्तन अभिव्यक्ति, विश्वास, मान्यता एवं उपासना, समानता-प्रस्थिति, अवसर आदि प्रदान करने एवं उन सभी में भ्रातृत्व को विकसित करने, व्यक्ति की प्रतिष्ठा को महत्व देने तथा राष्ट्रीय अखण्डता को सुनिश्चत करने की जो बातें की गई हैं, वे राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली के माध्यम से प्राप्त हो सकें, यह लक्ष्य ही आवश्यक है। अध्यापक के द्वारा ही इन आयामों में शिक्षा को संचालित कर पाना सम्भव हो सकता है। अतः अनुरूप अध्यापक शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता देश के लिए अवश्य ही है। प्रजातान्त्रिक समाजवाद तथा धर्मनिरपेक्षता के लिए उच्च नैतिकता, कर्तव्यनिष्ठता एवं सामाजिक सम्बद्धता की आवश्यकता होती है जिसे अनुकूल अध्यापक शिक्षा प्रणाली के माध्यम से ही प्रथम स्तर पर भावी अध्यापक वर्ग में और तत्पश्चात् भावी नागरिक वर्ग में प्रतिस्थापित एवं प्रतिष्ठित किया जा सकता है। मूल अधिकार के साथ जिन मूल कर्तव्यों की स्थापना भारतीय संविधान में की गई है, आज उनके अनुपालन में व्यवधान स्पष्ट है।

इनकी शिक्षा आदर्श स्थापन और आचरण के माध्यम से ही अधिक प्रभावकारी ढंग से प्रदान करना सम्भव हो सकता है और इस कार्य के लिए अध्यापक को तैयार करना होगा। राष्ट्रीय अस्मिता की रक्षा के लिए बलिदान हेतु तत्पर भावी नागरिक का निर्माण न तो कोई व्यवसायी कर सकता है और न राष्ट्रनेता, यद्यपि उनके पास अरबो खरबों की सम्पत्ति हो सकती है। इस प्रतिबद्धता के अभाव में देश की सुरक्षा ही खतरे में पड़ सकती है। सहनशीलता की भावना के विकास के द्वारा ही इस बहुजटिल भारतीय समाज में धर्म, भाषा, जाति, समुदाय, सम्प्रदाय एवं आकार आकृतिगत पार्थक्य एवं विभेद को महत्वहीन बनाया जा सकता है। वातावरण संरक्षण एवं उन्नयन, मानवाधिकार की रक्षा तथा भारतीय संस्कृति के गौरव की प्रतिष्ठा को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए जिस शिक्षागत एवं गुणगत वैशिष्टय की अपेक्षा आज है, उसे मात्र उचित एवं उपयुक्त अध्यापक शिक्षा के माध्यम से ही प्रदान करना सम्भव है। अतः अध्यापक शिक्षा की आवश्यकता स्वतः स्थापित है।

( 9 ) राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान –

आज भारतीय समाज के सम्मुख अनेक समस्याएँ एवं कठिनाइयाँ विद्यमान है जिनका समाधान मात्र उपयुक्त ढंग से शिक्षित भावी पीढ़ी के द्वारा ही कर पाना सम्भव हो सकता है। भावी पीढ़ी में इस समस्या समाधान सम्बन्धी विशेष योग्यता को विकसित करना अध्यापक के द्वारा ही सम्भव है जिसके लिए उचित अध्यापक शिक्षा की आवश्यकता को हम अस्वीकृत नहीं कर सकते हैं।

परिषद् के अनुसर किसी उद्यम के लिए क्रमबद्ध सिद्धान्त, निश्चित अवधि के लिए कठोर प्रशिक्षण की प्राप्ति, अधिकार, सामुदायिक मान्यता, नीतिगत आदर्श एवं संस्कृति के साथ शोध तथा विशेषीकरण के माध्यम से ज्ञान को उत्पन्न करने की क्षमता जैसी विशेषताएँ आवश्यक हो जाती हैं और अध्यापक उद्यम के लिए भी यह यथार्थ ही है। अतः उत्तम शिक्षक बनने के लिए व्यक्तित्व के विकास, सम्प्रेषण कौशल में कुशलता तथा नीतिगत आचरण के प्रति प्रतिबद्धता का होना परमावश्यक है और अध्यापक शिक्षा के माध्यम से ही इस दिशा में अपेक्षित विकास सम्भव है। आर्थिक समस्याओं के सन्दर्भ में कहा गया कि गरीबी, बेरोजगारी, निम्न वृद्धि एवं उत्पादकता दर आदि देश की प्रमुख आर्थिक कठिनाइयाँ हैं जिनके फलतः अविकसित आर्थिक स्थिति उत्पन्न होती है। आर्थिक और मानव संसाधन नियोजन के मध्य समन्वयन इसके निराकरण के लिए आवश्यक है। कार्य-संस्कृति के प्रति अभिवृत्ति को इसके लिए बदलना होगा ताकि कार्य-प्रतिष्ठा, आत्म निर्भरता और वैज्ञानिक प्रकृति या स्वभाव का विकास छात्रों में करना सम्भव हो सके। आधुनिकता और विकास के गुण धर्मों को ठीक से समझने के लिए अध्यापक शिक्षा के कोर्स को बदलना होगा ताकि भावी अध्यापकों में भ्रामक अवधारणा न पनप सके।

( 10 ) प्रतिबद्धता एवं श्रेष्ठ प्रदर्शन के सन्दर्भ में अध्यापक शिक्षा की आवश्यकता-

किसी भी उद्यमगत नैपुण्य की प्राप्ति के लिए दक्षता की प्राप्ति, प्रतिबद्धता का उन्मेषण एवं श्रेष्ठ प्रदर्शन हेतु इच्छा का होना आवश्यक है। संकल्पनात्मक-विषयगत, सन्दर्भ-निर्भर, सम्प्रेषणात्मक एवं मूल्यांकन प्रबन्धन तथा सहयोगात्मक दक्षता की प्राप्ति के साथ ही प्रतिबद्धता को विकसित करना अध्यापक शिक्षा का ही दायित्व हो जाता है। ताकि सफल अध्यापकीय तैयारी सम्भव हो सके।

अधिगमकर्ता, समाज-शिक्षण-उद्यम मूल्य और श्रेष्ठतार्जन के प्रति प्रतिबद्धता की अपेक्षा एक अध्यापक या अध्यापिका से अवश्य की जा सकती है। कक्षागत प्रदर्शन, विद्यालयगत प्रदर्शन, विद्यालयेत्तर शैक्षिक क्रियाकलापों में प्रदर्शन आदि के साथ ही अभिभावक सम्बन्धित एवं समुदाय सन्दर्भित प्रदर्शन अध्यापक के लिए जरूरी माना जाता है। अतः इन तीनों ही निपुणताओं की सम्प्राप्ति के लिए उपयुक्त अध्यापक शिक्षा की आवश्यकता को अस्वीकृत करना सम्भव नहीं है। बदलते सन्दर्भ में राष्ट्रीय मूल्य एवं लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए तथा सामाजिक-सांस्कृतिक विकास के परिप्रेक्ष्य में आधुनिक अध्यापक की तैयारी और निरन्तर दिशा-निर्देशन हेतु जो कि आधुनिक अध्यापक / अध्यापिकाओं की वांछनीयता है, आज जिस अध्यापक शिक्षा कार्यक्रम की हमें अपेक्षा है वह निश्चित ही एक एकीकृत व्यापक स्वरूप में होगी। सामान्य के साथ ही विशिष्ट अध्यापक शिक्षा के अनेकानेक आयाम तथा शारीरिक एवं व्यावसायिक शिक्षा जैसे पक्ष की समाकलित होकर आगामी अध्यापक शिक्षा को यह व्यापक स्वरूप प्रदान करेंगे।

(11) अध्यापकीय सामान्य शिक्षा का स्थान

आगामी अध्यापक शिक्षा के क्षेत्र में न केवल सम्प्रेषण कुशलता और ज्ञान हस्तान्तरण योग्यता को ही महत्व दिया जायेगा बल्कि व्यापक सैद्धान्तिक आधार को भी अनिवार्य माना जायेगा। ऐसा इसलिए होगा क्योंकि ज्ञान के क्षेत्र में विस्तार ही नहीं, बल्कि जो विस्फोट होता रहेगा, उसके साथ समायोजित अध्यापक / अध्यापिका ही सफलता की ओर अग्रसर हो सकते हैं। शायद यही कारण है कि बी.एससी, बी.एड. जैसे कोर्स अधिक व्यावहारिक माने जा रहे हैं। वर्तमान अध्यापक शिक्षा प्रणाली में यह मान लिया जाता है कि छात्राध्यापक अपने विषयज्ञात ज्ञान के क्षेत्र में पूर्णतया दक्ष और अभिज्ञ हैं और उन्हें मात्र उस ज्ञान को छात्रों तक सम्प्रेषित करने में यदि कुशल बना दिया जाता है जो अध्यापक शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति में कोई व्यवधान नहीं रह जाता है। लेकिन यह एक भ्रामक अवधारणा है क्योंकि जो भी छात्र स्नातक या स्नातकोत्तर उपाधि विषयज्ञत ज्ञान के क्षेद्ध में ग्रहण करते हुए अध्यापक शिक्षा के क्षेत्र में प्रवेश करना चाहते हैं वे सभी समान रूप से ज्ञानार्जन कर पाये हों या संकल्पनात्मक अवधारणा उनमें इतनी स्पष्ट हो कि वे दूसरों को समझा सकें यह आवश्यक नहीं है।

राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् के पाठ्यक्रम प्रारूप में स्पष्ट किया गया है कि एक अध्यापक के लिए उद्यमगत भूमिका को स्वीकार करने तथा अन्य विषयों से सिद्धांतों की संकल्पना ग्रहण करने की क्षमता के विकास हेतु और साथ ही उन्हें प्रयोग में लाने के व्यूह रचनाओं को विकसित करने के लिए व्यापक सैद्धान्तिक आधार की आवश्यकता अनिवार्य है।

सामाजिक जटिलताओं एवं अनिश्चितताओं को दूर करने के लिए अध्यापन व्यवसाय में कुशलता की अपेक्षा होती है क्योंकि अध्यापक मात्र छात्रों को विषयगत ज्ञान हस्तान्तरण की मशीन नहीं होता है, वह समाज के लिए एक उपयोगी एवं महत्वपूर्ण अंग होता है। उनमें तथ्यों को आलोचनात्मक दृष्टि से विश्लेषित करते हुए निदानात्मक उपाय खोजने की शक्ति होती है, जिसका उपयोग प्रत्येक सामाजिक एवं सामुदायिक कठिनाई को हल करने के लिए करना समाज की उअपेक्षा होती है। सही निर्णय लेने की क्षमता किसी भी अध्यापक या अध्यापिका के लिए परमावश्यक है। उचित ढंग से निर्णय ग्रहण के साथ ही उसका अनुप्रयोग करने का साहस एवं क्षमता को प्राप्त करने के लिए अध्यापक शिक्षा को प्राप्त करना जरूरी हो जाता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि अध्यापक शिक्षा यदि उद्यमगत कौशल क्षमताओं एवं योग्यताओं को विकसित करने में उपयोगी साबित हो तो उसका आधार संकल्पनात्मक सम्प्राप्ति और अवबोध की गहनता में ही निहित है।

जे.ई. ग्रीन ने अपनी पुस्तक “स्केल परसनल एडमिनिस्ट्रेशन” में विभिन्न कारणों का उल्लेख किया है, जिनके कारण सेवारत अध्यापक शिक्षा की आवश्यकता का पता लगता है, यह निम्नलिखित पर आधारित है-

  1. ज्ञान के क्षेत्र में पुनः अर्थापन की प्रवृत्ति का विकास तीव्र गति से हो रहा है  जिससे कि अध्यापक प्रशिक्षण के समय दी गई शिक्षा की निरपेक्षता का मूल्यांकन किया जा सकें।
  2. देश में अयोग्य तथा असाधारण अध्यापकों की एक बड़ी संख्या है जिसका लाभ देश एंव समाज को नही हो पा रहा है।
  3. बहुत सी ऐसी शिक्षण प्रविधियों का विकास हो रहा है, जिसका उपयोग पुराने अध्यापक नहीं कर पा रहे है।
  4. विद्यालयी शिक्षण में नये एवं उपयोगी अनुदेशन माध्यमों की खोज की जा रही है। भाषा, प्रयोगशाला, शिक्षण मशीन, कम्प्यूटर और दूरदर्शन का उपयोग नये ढंग से शिक्षण एवं अधिगम के लिए हो रहा है।
  5. शोध द्वारा शिक्षण की प्रकृति में नयी चेतना का विकास किया जा रहा है, जिसमें कक्षागत शिक्षण की व्यवस्था में सुधार हो रहा है।
  6. दिन-प्रतिदिन अध्यापक को शिक्षार्थी की अनेक समस्याओं को हल करना पड़ता है।
  7. अध्यापक को विभिन्न परिस्थितियों में विभिन्न भूमिकाओं का निर्वाह करना होता है, जिसके लिए विभिन्न प्रकार के ज्ञान, अभिवृत्ति और कौशल की आवश्यकता होती हैं।

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Anjali Yadav

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