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अध्यापक शिक्षा में गुणवत्ता का विकास कैसे किया जा सकता है? लिखिए।
शिक्षा व्यक्ति के ज्ञानात्मक व भावात्मक योग्यताओं के विकास में सहायता प्रदान करती है। परीक्षण पर आधारित व्यक्ति के सम्पादन का वर्तमान स्तर व्यक्ति की योग्यता का इंगित करती है। अध्यापक शिक्षा उन सभी सैद्धान्तिक पक्षों को समाहित करती है जिसके द्वारा ज्ञान, विशिष्ट विषयों के सन्दर्भों में तथा जो विद्यार्थियों एवं शिक्षकों को दिया गया है, ज्ञान आज शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता पर विशेष बल दिया जा रहा है। इसी प्रकरण पर विचार-गोष्ठियों का आयोजन किया जा रहा है। ‘अध्यापक शिक्षा की गुणवत्ता’ पर विचार-विमर्श में विषय विशेषज्ञ तथा अध्यापक शिक्षा के प्रवक्ताओं की भागीदारी रहती है।
अध्यापक शिक्षा की गुणवत्ता का विवेचन कक्षा से बाहरी पक्षों पर किया जाता है। कक्षा के आन्तरिक पक्षों को महत्व नहीं दिया जाता है, जबकि कोठारी आयोग ने आरम्भ में ही कथन दिया है कि भारत के भाग्य का निर्माण उसकी कक्षाओं में हो रहा है। स्वतन्त्रता के बाद से अध्यापक शिक्षा संस्थाओं का विकास अधिक हुआ है, परन्तु प्रभावशाली अध्यापक तैयार नहीं हो पा रहे हैं। इसलिये अध्यापक शिक्षा परिषद् की स्थापना इसी उद्देश्य से ही गई राष्ट्रीय स्तर पर अध्यापक शिक्षा में गुणवत्ता का विकास किया जाये, परन्तु यह परिषद् इस दिशा में कोई सकारात्मक कार्य नहीं कर पा रही है।
अध्यापक शिक्षा = अध्यापक + शिक्षा = अध्यापक के लिए शिक्षा
वे सभी क्रियाएं, कार्य-कलाप एवं घटनाएँ आती हैं जिनके द्वारा भावी अध्यापकों को जागरुक बनाया जाता है-अग्रलिखित हैं- विषय एवं शिक्षण की सबसे नवीन प्रवृतियों के साथ-साथ सीखने व व्यवहारात्मक परिवर्तन से सम्बन्धित व्यवस्था के साथ उनको स्थिति का बोध कराएँ, वार्तालाप शिक्षण कौशल को विकसित करने के लिए (औपचारिक एवं अनौपचारिक रुप से) अन्ततः अध्यापक शिक्षा उन भावी अध्यापकों को प्रदान की जाती हैं, जिससे कि वे शिक्षण के प्रति रुचि उत्पन्न कर सकें।
शिक्षा का उद्देश्य मात्र उनमें निश्चित कौशल एवं योग्यताओं का विकास करना नहीं है वरन् शिक्षण में रुचि उत्पन्न करें यह आवश्यक है, क्योंकि यदि एक अध्यापक शिक्षण में रुचि रखता है तो वह नवीन ज्ञान को प्राप्त करने का प्रयास करेगा व निरन्तर आगे बढ़ते हुए अच्छे से अच्छे प्रयास करेगा।
अध्यापक कक्षा में इस उद्देश्य से प्रवेश करता है कि विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करेंगे। इस उद्देश्य के लिए योजना की आवश्यकता होती है, इसमें छात्र के मस्तिष्क की सहायता से की जाती है। योजना कुछ निश्चित नियमों पर आधारित होती है जैसे-योजना का उद्देश्य, विषय वस्तु विश्लेषण अधिगम क्रिया एवं मूल्यांकन अध्यापक प्रारूप तैयार करता है, जिसे शिक्षा में क्रियान्वित करता है। प्रेरणात्मक क्रियाएं कक्षा में की जाती हैं। अब शिष्य का व्यवहार परिवर्तित हो जाता है, अब यदि विद्यार्थी ने सीख लिया है तो वहाँ उसे पुनर्बलन मिलना चाहिए।
अध्यापक शिक्षा के सभी के सिद्धान्तों के पाठ्यक्रमों के साथ-साथ प्रयोगात्मक पाठ्यक्रम का उद्देश्य है। इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कुछ निश्चित कार्यक्रम हैं।
अध्यापक को कुछ पाठ्यक्रम पढ़ाने के लिए दिया जाता है, गतिविधियों के लिए सूची तैयार की जाती है। योजना में विद्यार्थी अध्यापकों अपने पाठ्य-योजना बनाने में सहायता प्रदान करना ही नहीं अपितु उन्हें इस प्रकार से शिक्षित किया जाये कि वे एक अच्छे शिक्षक बन सकें। निश्चित अनुभवों के द्वारा छात्र अध्यापक को कार्य को समझाने में सहायता प्रदान करनी चाहिए।
गुणवत्ता का अर्थ
गुणवत्ता शब्द उद्योग से लिया गया है, इसका अर्थ उत्पादन से होता है गुणवत्ता उद्योग में लाई जाती है, उसका आंकलन उपभोक्ता द्वारा किया जाता है। इसी प्रकार प्रभावशाली अध्यापक प्रशिक्षण संस्थायें तैयार करती है तथा विद्यालय उनकी प्रभावशीलता का आंकलन करते हैं।
अध्यापक शब्द उद्योग से लिया गया है, इसका अर्थ प्रभावशाली अध्यापक तैयार करना है। प्रभावशाली सापेक्ष शब्द है इसका आंकलन है, इसलिये अध्यापक प्रभावशीलता का मानदण्ड बदलता रहता है। अध्यापक प्रभावशीलता के तीन मापदण्ड-योग्यता, प्रक्रिया तथा उत्पादन प्रयुक्त किये गये हैं। अध्यापक- शिक्षा का प्रत्यक्ष व सीधा सम्बन्ध प्रक्रिया (शिक्षण) की प्रभावशीलता से है। छात्राध्यापकों में शिक्षण की क्षमताओं का आपेक्षित विकास करना, जिससे वे शिक्षण से सक्षम हो।
गुणवत्ता को इस प्रकार समझा जा सकता है
किसी वस्तु को कोई कितना महत्व देता है यह उस वस्तु की गुणवत्ता मानी जाती है। अर्थशास्त्री व्यक्ति आवश्यकता से वस्तु का महत्व निर्धारित करते हैं। व्यक्ति को आवश्यकतानुसार वस्तु का महत्व भी बदलता रहता है। इस प्रकार ‘अध्यापक शिक्षा की गुणवत्ता का सीधा अर्थ होता है शिक्षण को प्रभावशाली बनाना। यहाँ शिक्षण का अर्थ कक्षा- शिक्षण से है। कक्षा शिक्षण से बाहर गुणवत्ता की चर्चा करना सार्थक नहीं हो सकता। अध्यापक प्रध्यापकों ने बहुत कुछ अध्ययन किया है तथा विचार गोष्ठियों में चर्चा भी सुनी है, परन्तु अधिकांश चर्चा कक्षा से बाहरी सन्दर्भ में की जाती है। यदि अनुभवी अध्यापक प्रध्यापक से ज्ञात किया जाये कि कक्षा निरीक्षण अथवा छात्र शिक्षण में आप क्या देखते हैं?
वास्तव में पाठ्यवस्तु प्रस्तुतीकरण और कक्षा की अनुदेशनात्मक प्रक्रिया पर विरला प्रध्यापक ही सुझाव देता है, जबकि अध्यापक-प्रध्यापक को कक्षा शिक्षण अवलोकन के साथ चिन्तन की आवश्यकता अधिक है। यदि अध्यापक-प्राध्यापक अपने विषय के कक्षा- शिक्षण के अवलोकन के चिन्तन भी करें तब निश्चित ही अपने छात्राध्यापकों में शिक्षण कुशलता व दक्षता विकसित कर सकता है। अध्यापक शिक्षा की गुणवत्ता के लिये प्रध्यापकों को शिक्षण तथा कक्षा प्रस्तुतीकरण की अनुदेशनात्मक प्रक्रिया का बोध होना आवश्यक है। इसके साथ ही प्रध्यापकों को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि उसे किस प्रकार के अध्यापक तैयार करने हैं, एक आदर्श प्रतिमान अध्यापक का होना भी अपेक्षित है।
आचरण की नियमावली से कार्य करने की सूक्ष्मताओं का अनुपालन करना है। क्या करना है? तथा कैसे करना तथा क्या नहीं करना है? उस प्रणाली के संचालन की प्रक्रिया का व्यवहारिक पक्ष होता है, जबकि आचार संहिता में उसके व्यापक अधिनियम होते हैं जिनका निर्माण मूल्यों के आधार पर किया जाता है। जो उस वृति का दार्शनिक तथा सैद्धान्तिक पक्ष की गहनता प्रगट करता है। जिससे वृति की भूमिकाओं का मानव कल्याण में योगदान से सम्बन्धित करता है। कुछ वृतियों में स्वतन्त्र रुप में भूमिकाओं को मानव कल्याण में योगदान से सम्बन्धित करता है। कुछ वृतियों में स्वतन्त्र रुप में भूमिकाओं का निर्वाह करना होता है, परन्तु उनकी आचार संहिता राष्ट्रीय स्तर पर परिषदों द्वारा बनाई जाती है। परिषदें वृतियों के मानक तथा आचरण की नियमावली तैयार करती है, जिनका व्यक्तियों को उनका निर्वाह करना होता है। स्वतन्त्र वृतियों के स्तर, प्रक्रियाओं, अभ्यास प्रवेश तथा अनुपालन हेतु नियमावली भी तैयार करता है। अयोग्य व्यक्ति को उस वृति में प्रवेश की अनुमति दी जाती है।
परिषद् के मानकों और आचरण की नियमावली का अनुपालन न करने पर उन्हें अयोग्य घोषित कर देती है। जैसे ‘मेडिकल परिषद्’ तथा बार परिषद् डाक्टरों तथा वकीलों को वृत्ति में कार्य करने के लिए मानक तथा आचरण नियमावली का निर्माण किया है। यह परिषदें ही उस वृत्ति में प्रवेश की अनुमति देती है। प्रवेश से पूर्व व्यक्ति को मानक तथा नियमावली के अनुपालन का शपथ पत्र भी देना होता है। मेडिकल तथा परिषद् की स्थापना राष्ट्रीय स्तर पर की गई है। इनका सीधा सम्बन्ध मानवीय जीवन से है। इसी प्रकार राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय अध्यापक कार्य परिषद् की स्थापना में की गई थी।
शिक्षण वृत्ति का धीरे-धीरे आचरण नियमावली का विकास किया जा रहा है। शिक्षण आचरण संहिता का भी विकास किया जा रहा है। परन्तु भारतीय परिपेक्ष्य में शिक्षण की आचार संहिता वैदिक शिक्षा काल में निर्मित की गई थी। भारतीय गुरुओं की आचार संहिता विश्व के लिए आदर्श है। भारत में मात्र अध्यापकों को आचार संहिता का अनुपालन करना है। विकसित करने की आवश्यकता नहीं है। आज शिक्षण आचार संहिता अन्य वृत्तियों से पिछड़ रही है क्योंकि इस पर कोई नियन्त्रण नहीं है सबसे अधिक स्वतन्त्रता है। जबकि अध्यापक शिक्षा में शिक्षा दर्शन पाठ्यक्रम का अनिवार्य रुप में पढ़ाया जाता है। भारतीय शिक्षाविदों के सम्बन्ध में शिक्षण किया जाता है। शिक्षण वृत्ति को अन्य वृत्तियों का आचार संहिता में मार्गदर्शन करना चाहिए, परन्तु अध्यापक शिक्षा का दर्शन पढ़ाया जाता है।
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