अन्तर-सांस्कृतिक भावना से आपका क्या तात्पर्य है ? भारत में अन्तःसांस्कृतिक भावना को विकसित करने के लिए शिक्षा को एक व्यवहार में लाने योग्य योजना का सुझाव दीजिए।
शिक्षा का एक महत्वपूर्ण कार्य है— सांस्कृतिक विरासत का आगामी पीढ़ी में हस्तान्तरण। इस प्रक्रिया द्वारा हजारों वर्षों का ज्ञान, संस्कृति और दर्शन आज तक सुरक्षित रहा है। संस्कृति शब्द का प्रयोग समाज में प्रचलित मान्यताओं, मूल्यों, विश्वास तथा अवस्थाओं के लिए किया जाता है। शिक्षा में, संस्कृति का अर्थ जीवन की पूर्ण विधि से लिया जाता है।
संस्कृति, मानव जाति के व्यवहार तथा विचार की साधना का प्रतिफल है। मनुष्य की समस्त भौतिक-अभौतिक उपलब्धियों को संस्कृति के अन्तर्गत लिया जा सकता है। प्रायः संस्कृति में जीवन-शैली को लिया जाता है। संस्कृति, शब्द सम-कृति से बना है। सम का अर्थ है अच्छी प्रकार से और कृति का अर्थ है करना, अर्थात् किसी कार्य को अच्छी तरह करना। साहित्य में संस्कृति को संस्कार के रूप में माना जाता है। संस्कार का अर्थ है मान्यताओं, मूल्यों, विश्वासों तथा अवस्थाओं का परिपालन। जब हम खान-पान, रहन-सहन, जीवन शैली एवं भौतिक साधनों के उपयोग की बात करते हैं तो यह संस्कृति का भौतिक रूप हुआ, इसे सभ्यता कहते हैं। समाजशास्त्र में सभ्यता (Civilization) को भौतिक तथा संस्कृति को अभौतिक माना गया है। भाषा, धर्म, मान्यतायें, विचार, दर्शन आदि संस्कृति के तत्व हैं।
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अन्तर-सांस्कृतिक भावना (Inter Cultural Understanding)
डॉ० राधाकृष्णन के शब्दों में “किसी राष्ट्र की श्रेष्ठता का अनुमान उसकी भौतिक शक्ति एवं सम्पत्ति से नहीं, वरन् उसके निवासियों के अन्तर-सांस्कृतिक सम्बन्धों से लगाना चाहिए।” विश्व के हर देश की संस्कृति की अपनी पहचान होती है। उनकी जीवन-शैली, आचार-विचार, विश्वास, आस्था तथा मिथ्या के मानदण्ड होते हैं। देश के भीतर भी अलग-अलग प्रदेशों की अपनी-अपनी संस्कृति होती हैं। ये संस्कृतियाँ मानव समूहों की अपनी पहचान बनाती हैं।
अन्तर-सांस्कृतिक भावना वह दृष्टिकोण है, जो व्यक्ति अन्य संस्कृतियों तथा उनके मानव समूहों का सम्मान करता है। विश्व की सभी संस्कृतियों में समान तत्व विद्यमान होते हैं। उन समान तत्वों के आधार पर विश्व बन्धुत्व तथा विश्व परिवार की कल्पना साकार होती है। एक-दूसरे के रीति-रिवाजों की पहचान होती है। इसीलिए सामान्य शिक्षा परिषद ने अपने प्रतिवेदन में कहा है-“अन्तर-सांस्कृतिक भावना के विकास में पूर्वाग्रहों का विनाश होता है और विभिन्न संस्कृतियों के प्रति ज्ञान और प्रशंसा के दृष्टिकोण का निर्माण होता है।”
Prejudices are dispelled and attitudes of understanding and appreciation of various cultures are built up through Inter-cultured understanding.
इस विचार के अनुसार अन्तर सांस्कृतिक भावना की आवश्यकता इस प्रकार है-
1. अन्तर-सांस्कृतिक भावना का विकास करने से वर्ग-भेद, धार्मिक तथा सांस्कृतिक भेद समाप्त होते हैं और एक दूसरे को समझने के अवसर मिलते हैं।
2. प्रत्येक देश में अल्पसंख्यक वर्गों की पृथक् संस्कृति होती है। साथ ही प्रत्येक संस्कृति की अनेक उपसंस्कृतियाँ होती हैं। राष्ट्रीय एकता की दृष्टि से भी अन्तःसांस्कृतिक सद्भाव विकसित किया जाना आवश्यक है।
3. जाति, धर्म, वर्ण, भाषा तथा सम्प्रदाय के आधार पर अलगाव विकसित होता है। अन्तःसांस्कृतिक भावना से उक्त अलगाव दूर किया जा सकता है।
सांस्कृतिक एकता (Cultural Unity)
सांस्कृतिक एकता, देश की एकता तथा विश्व की समरूपता के लिए आवश्यक है। संस्कृति के तत्वों ने देश को जोड़ने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए हैं। सांस्कृतिक एकता बनाए रखने के कारण इस प्रकार हैं-
- हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई तथा सभी धर्मों में समन्वयवादी दृष्टिकोण विकसित करना।
- समाज की मर्यादा तथा नियमों का पालन करना ।
- एक-दूसरे के प्रति सहिष्णुता उत्पन्न करना ।
- महान् सिद्धान्तों को सार्वभौम रूप से मानना
- धार्मिक एकता के सूत्र में बाँधना
- आस्तिकता, आशा, त्याग, तप, संयम आदि गुणों को विकसित करना।
- समाज की विभिन्न भाषाओं में रचे जाने वाले साहित्य में सांस्कृतिक भावना विकसित करना ।
- सादा जीवन, उच्च-विचार तथा उत्तम चरित्र को विकसित करना।
- वसुधैव कुटुम्बकम का सिद्धान्त प्रसारित करना ।
- सामाजिक जीवन में गति एवं क्रिया विकसित करना ।
अन्तःसांस्कृतिक भावना और शिक्षा (Inter-cultural Understanding & Education)
शिक्षा, सामाजिक तथा सांस्कृतिक सम्बन्धों एवं परिवर्तन का सशक्त साधन है। व्यवहार परिवर्तन करके यह छात्रों में मानव एकता तथा सद्भाव के गुण विकसित करती है। इसलिए इस भावना को विकसित करने के लिए ये शैक्षिक कार्यक्रम अपनाए जाने चाहिएँ-
- विशाल दृष्टिकोण को विकसित करना।
- विद्यालय के वातावरण में परिवर्तन करना। बिना किसी भेदभाव के सभी छात्रों के लिए शिक्षा की व्यवस्था करना।
- अन्तःसांस्कृतिक भावना विकसित करने के लिए पाठ्यक्रम में परिवर्तन करना चाहिए। पाठ्यक्रम में सांस्कृतिक एकता को मूल तत्व बनाना चाहिए।
- पाठ्यवस्तु में सामाजिक, राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक पक्षों का स्पष्टीकरण होना चाहिए।
- अध्यापकों, कलाकारों, लेखकों आदि को अन्य प्रदेशों तथा विदेशों में भ्रमणार्थ भेजा जाए।
- दृश्य-श्रव्य साधनों द्वारा अन्तःसांस्कृतिक कार्यक्रम विकसित किए जाने चाहिएँ ।
- शिक्षकों की भूमिका अन्तःसांस्कृतिक भावना विकसित करने के लिए महत्वपूर्ण होनी चाहिए।
यदि कार्यक्रमों को अपनाया जाता है तो-
- शिक्षा के द्वारा संस्कृति आगामी पीढ़ी में हस्तान्तरित होगी,
- संस्कृति का संरक्षण होगा,
- संस्कृति का विकास होगा और
- उदार दृष्टिकोण का निर्माण होगा। यो अन्तःसांस्कृतिक भावना के द्वारा एक नये मनुष्य का निर्माण होगा।
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