शिक्षा के सिद्धान्त / PRINCIPLES OF EDUCATION

रवीन्द्रनाथ टैगोर की शैक्षिक विचारधारा – परिचय, जीवन-दर्शन, शिक्षा दर्शन, शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि, विद्यालय, शिक्षा दर्शन पर आधारित संस्थाएँ, विश्व भारती

रवीन्द्रनाथ टैगोर की शैक्षिक विचारधारा - परिचय, जीवन-दर्शन, शिक्षा दर्शन, शिक्षा के उद्देश्य,  पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि, विद्यालय,  शिक्षा दर्शन पर आधारित संस्थाएँ,  विश्व भारती
रवीन्द्रनाथ टैगोर की शैक्षिक विचारधारा – परिचय, जीवन-दर्शन, शिक्षा दर्शन, शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि, विद्यालय, शिक्षा दर्शन पर आधारित संस्थाएँ, विश्व भारती

श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर की शैक्षिक विचारधारा का संक्षेप में वर्णन कीजिए।

डॉक्टर रवीन्द्रनाथ टैगोर उन महान विभूतियों में से एक थे, जिन्होंने अपनी कलम और काया से विश्व बन्धुत्व की स्थापना में अपना सर्वस्व होम कर दिया। बंगाल की भूमि में जन्म लेकर उन्होंने अपनी आत्मा को अपनी काव्य माधुरी के द्वारा विश्व के कोने-कोने में विकीर्ण किया।

1. परिचय (Introduction)

रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म कलकत्ता में 6 मई, 1861 को हुआ था। उनका आरम्भिक शिक्षण ओरियन्टल सेमीनरी, नॉर्मल स्कूल, बंगाल एकेडमी में हुआ। इसके पश्चात् उन्होंने अपने पिता के साथ हिमालय की यात्रा की, बाद में सेन्ट जेवियर स्कूल में भर्ती हुए, परन्तु अच्छा परिणाम न आने पर वे पर ही व्यक्तिगत रूप से पढ़ने लगे। 16 वर्ष की आयु में वे कानून पढ़ने के लिए इंग्लैण्ड गए, परन्तु एक कवि, वकील कैसे बन सकता था। लन्दन विश्वविद्यालय में अंग्रेज अध्यापकों तथा अंग्रेजी साहित्य के सम्पर्क में आए। इस मध्य वे कवि के रूप में प्रसिद्ध होने लगे थे। 40 वर्ष की उम्र में उन्होंने एक स्कूल खोला। इस विद्यालय का स्थान उनके पिता श्री देवेन्द्र नाथ ठाकुर ने निश्चित किया। यह स्थान बोलपुर गाँव के निकट था और इसका नाम रखा गया शान्ति निकेतन ।

1912 में रवीन्द्र बाबू को नोबल पुरस्कार मिल गया था। 1921 में विश्व भारती की स्थापना हुई थी। इस मध्य कवि पर मुसीबतों का पर्वत टूट पड़ा। उनकी पत्नी, पुत्री और पुत्र की मृत्यु हुई।

स्वयं कवि भी अगस्त 1941 को मृत्यु की गोद में सो गए।

2. जीवन-दर्शन (Philosophy of Life)

रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जीवन-दर्शन अद्वैतवाद से प्रभावित था। वे इस दृष्टि से सौन्दर्यात्मक ब्रह्म का दर्शन करते थे। सौन्दर्य के वे पुजारी थे और प्रकृति के उपासक डॉ० एम० पी० वर्मा के शब्दों में—“वे प्रेम, मैत्री और सहयोग के भविष्य वक्ता थे, उन्होंने मनुष्य को एकता का पाठ पढ़ाया। उन्होंने अनुभव किया कि मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ आनन्द प्रगति करना है। उन्होंने विभाजन करने वाले सिद्धान्त को सन्देह की दृष्टि से देखा और सम्पूर्ण मानव जाति को एक माना। वे ईश्वर में विश्वास करते थे, इसलिए मनुष्य में भी विश्वास करते थे। उनका विश्वास था कि मनुष्य परमात्मा का स्वरूप है। ईश्वर की उपासना न केवल पवित्र नगरों के मन्दिरों और बड़े शहरों के गिरजाघरों में की जा सकती है, वरन् भूमि को जोतकर और पत्थरों को तोड़कर भी की जा सकती है।”

1. टैमोर का जीवन दर्शन व्यक्तिवादी एवं प्रकृतिवादी रहा है।

2. प्रकृति ही सब गुरुओं की गुरु है।

3. मानव एकता में विश्वास होना चाहिए।

4. रवीन्द्रनाथ का आधारभूत सिद्धान्त है-“आध्यात्मिक जीवन के अनुभव, धर्म को जीवन का केन्द्र मानना एवं सत्य विचारों की एकता।

“Experience of the spiritual world, religion as the centre of life’s activities and the unity of thought and truth.”

5. ईश्वर की प्राप्ति के प्रयत्न करने आवश्यक हैं। रवीन्द्रनाथ टैगोर के अनुसार-“अब हमें अपने ईश्वर को प्राप्त करना होगा, अब हमें उस पूर्ण सत्य के लिए जीना होगा, जो हमें भूल भरे बन्धनों से मुक्त करता है, जो हमें भौतिक धन के प्रभाव की अपेक्षा आन्तरिक प्रकाश तथा प्रेम देता है।”

“Let us find our God, let us live for the ultimate truth which emancipate us from the bandage of the dust and gives us the wealth, not of things but of inner light, not of power but of love.”

3. रवीन्द्रनाथ का शिक्षा दर्शन (Educational Philosophy of Rabindra Nath Tagore)

रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपना विद्यालय 1901 में स्थापित किया था। इसमें बालक थे। उस समय उन्होंने शिक्षण सम्बन्धी “विचारधाराओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। सुनील चन्द्र सरकार के अनुसार-टैगोर रूसो तथा फ्रोबेल के विचारों से अवश्य प्रभावित थे, यह प्रभाव उन पर अपना विद्यालय चलाने से पूर्व था और उस समय तक जब तक कि उन्होंने अपने प्रयोग किए। वे डीवी के शिक्षाशास्त्र के प्रभाव क्षेत्र में आ चुके थे।

“Tagore must have had some acquaintance with Rousseau’s ideas and Froebel’s Kindergarten system even before he started his school, and by the time he founded his new experiment, the Sikshashastra he was fairly conversant with Dewey’s schools of thought and manner of experiment.”

शिक्षा के बारे में टैगोर की धारणा इस प्रकार है- “शिक्षा जीवन का स्थायी साहस है। यह अस्पताल की पीड़ायुक्त चिकित्सा की नीति नहीं है, जिससे उनका (छात्रों का इलाज हो सके, उनकी अज्ञानता का विरोध हो सके, अपितु यह तो स्वास्थ्य की एक क्रिया है, जो स्वाभाविक रूप में मस्तिष्क को उपयोगी बनाती है। “

टैगोर के शिक्षा दर्शन में- (1) स्वतन्त्रता, (2) रचनात्मक आत्माभिव्यक्ति (3) प्रकृति तथा मनुष्य के रचनात्मक सम्बन्ध पाए जाते हैं।

तन्त्रता के विषय में टैगोर ने कहा है-“शिक्षा का अर्थ एवं उद्देश्य स्वतन्त्रता में है। यह स्वतन्त्रता विश्व के नियमों की अज्ञानता के प्रति होनी चाहिए, यह स्वतन्त्रता पूर्वाग्रहों एवं हठधर्मी के प्रति हो, जो कि हमारे मानव समाज में हैं।” मनुष्य आमने-सामने अपनी एकान्त प्रकृति के कारण प्रकृति के साथ सहयोग करता है। प्रकृति के रहस्यों का शोषण करता और उसकी सहायता प्राप्त करने के लिए सभी सुविधाओं का उपयोग करता है।

“Man is face to face with solitary nature, coaxing her, co-operating with her, exploiting her secrets using all his faculties to win her help.”

उन्होंने कहा भी है प्रकृति का जानना ही पर्याप्त नहीं है, अपितु उसमें रहना भी आवश्यक है। उनके शिक्षा दर्शन में मानवता तथा अन्तर्राष्ट्रीयता दोनों ही पाए जाते हैं। उनका विचार है कि विश्व में मानव ही ईश्वर की श्रेष्ठ कृति है। हर व्यक्ति रचनात्मक एवं विद्वान् होना चाहिए। टैगोर मानव मात्र की एकता में विश्वास करते थे। उन्होंने कहा भी है-“मानव मात्र के उदाहरण में एकता अनुभव करनी चाहिए, जो संवेदनाओं में गहन हो, सत्ता में पहले की अपेक्षा शक्तिशाली हो। “

“Mankind must realize a unity wider in range, deeper in sentiments, stronger in power than before.”

4. शिक्षा के उद्देश्य (Alms of Education)

रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने शिक्षा के निम्न उद्देश्य निर्धारित किए हैं-

1. मानव की पूर्णता (Completeness of Man)- रवीन्द्र नाथ ठाकुर के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य मानव को पूर्णता प्रदान करना है। अज्ञान के अन्धकार से ज्ञान के प्रकाश में लाने का कार्य शिक्षा का है। पूर्णता के सम्बन्ध में रवीन्द्र बाबू ने कहा है-

प्रेम + कार्य = पूर्णता

2. सच्ची स्वतन्त्रता (True Freedom) – शिक्षा का उद्देश्य मानव को प्राचीन निम्नतम बन्धनों से छुटकारा दिलाना है। ये ऐसे अन्यविश्वास हैं, जिनसे मानव जकड़ा रहता है। ऐसे अन्धविश्वासों से ही छुटकारा दिलाने का कार्य शिक्षा करती है। सच यह है कि यह स्वतन्त्रता मानव को आन्तरिक बन्धनों से मुक्त करने के लिए है। रवीन्द्र बाबू ने कहा भी है-“अच्छी शिक्षा की विशेषता यह है कि वह मनुष्य को अपना दास न बनाकर स्वतन्त्र बनाती है। “

3. मानव एकता एवं सत्यता (Unity of Man and Truth)- रवीन्द्र दर्शन मानव की एकता में बिना किसी जाति, धर्म, एकता एवं अन्धविश्वास के आधार में विश्वास करता है। शिक्षा का कार्य मनुष्य को प्रत्यक्ष रूप से जानने का प्रयास करना है। मानव में एकता तभी बनी रह सकती है, जब उनमें सामंजस्य होगा। उनके अनुसार इस समय हमारा ध्यान चाहने वाली पहली और महत्वपूर्ण समस्या जीवन और शिक्षा के मध्य सामंजस्य उत्पन्न करने की है।”

4. तर्क शक्ति का विकास (Reasoning Faculties should be nourished)- शिक्षा का उद्देश्य बालकों की तर्क शक्ति का विकास करना है। तर्क शक्ति के विकास से मानव का मानसिक विकास होता है।

5. पश्चिम से विज्ञान प्राप्ति (To get Science from the West) – भारत, दर्शन के क्षेत्र में चाहे जितना विकसित हो, परन्तु विज्ञान के क्षेत्र में उसे विदेशों से सहायता लेनी पड़ती है। पाश्चात्य देशों में विज्ञान का प्रकाश अधिकाधिक है।

6. आदर्शवाद का अनुकरण (To follow the Idealism) – शिक्षा का उद्देश्य वैज्ञानिक विकास की प्रगति के साथ-साथ आदर्शवाद की प्राप्ति करना है।

5. पाठ्यक्रम (Curriculum )

रवीन्द्र ने अपने शिक्षा दर्शन में ऐसा पाठ्यक्रम लिया है, जो जीवन के भी पक्षों का विकास करे। उन्होंने इतिहास, विज्ञान, प्रकृति अध्ययन, भूगोल, साहित्य आदि को पाठ्य-विषय बनाया और नाटक, भ्रमण, बागवानी, क्षेत्रीय अध्ययन, प्रयोग शाला कार्य, ड्राईंग, मौलिक रचनाएँ, संग्रहालय आदि क्रियाओं के साथ लिया। खेलकूद, समाज सेवा आदि पर पर्याप्त बल दिया है।

6. शिक्षण विधि (Teaching Method)

टैगोर ने शिक्षण विधि में दण्ड व्यवस्था समाप्त की और पाठन विधि को दबा देने वाली प्रथा का अन्त करके सहज स्वाभाविक रूप से क्रिया को शिक्षण का माध्यम बनाया। बालक के स्वाभाविक विकास पर बल दिया और कृत्रिम ज्ञान का बहिष्कार किया। इसमें उन्होंने निम्न पद्धतियाँ विशेष रूप से अपनाई-

  1. वाद-विवाद तथा प्रश्नोत्तर विधि ।
  2. भ्रमण तथा अध्ययन।
  3. करके सीखना।
7. विद्यालय (School)

रवीन्द्र बाबूं के शिक्षा दर्शन के अनुसार विद्यालय एक पावन स्थल है, जहाँ बालकों में पावन गुणों का विकास होता है। उन्होंने विद्यालय के सम्बन्ध में कहा है-“मैंने विद्यालय की स्थापना का उद्गम स्वतन्त्रता की इच्छा का मेरी स्मृति में होना है, जो आकाश, समय तथा जन्म से भी परे जाना चाहता है।”

“The foundation of my school had its origin in the memory of that longing for the freedom, which seems to go back beyond the sky, time and birth.”

रवीन्द्र बाबू ने शिक्षा का अपना कार्य क्षेत्र इसीलिए भी बनाया कि उन दिनों जब वे बंगाल एकेडेमी में पढ़ते थे तो विद्यालय की हालत बहुत खस्ता थी। उन्होंने खुद ही लिखा है-“कमरे बहुत खराब थे और उनकी दीवारें पुलिस की तरह पहरा देती थीं, वह मकान एक कबूतरखाने की तरह था, जिसमें मानव नहीं रह सकता था।”

“The rooms were cruely dismal with their walls on the guards likes a policeman. The house was more like a pigeonbox than a human habitation.”

विद्यालय को उन्होंने तपोवन सदृश माना है। इसे आत्म-बोध का आधार मानते हैं। उन्होंने लिखा है-“यह भूमि तपोवन कहलाती थी। तपोवन संस्कृति के केन्द्र थे, सत्य की खोज करने वालों के स्थल थे, पवित्र वातावरण में रहने वालों के लिए थे। ये स्थल प्रमाद के नहीं, आत्म-बोध एवं सरल जीवन के लिए थे।”

This land was called Tapovan. Tapovan was a centre of culture, a place for seekers of truth, for the sake of which they lived on atmosphere of purity but not of puritanism, of the simple life but not of the life of self mortification.”

8. शिक्षा दर्शन पर आधारित संस्थाएँ (Institutions based on Educational Philosophy)

शान्ति निकेतन (Shanti Niketan) शान्ति निकेतन की स्थापना 1901 में हुई थी। इस संस्था के निर्माण में रवीन्द्र बाबू के पिता ने बहुत सहायता की। नोलपुर के तपोवन में जहाँ पिता श्री देवेन्द्र नाथ रहते थे, यह विद्यालय चलाया गया। इसके सम्बन्ध में रवीन्द्र का विचार है- “इस प्रकार मेरे अनुभव व्यक्तित्व के दमन, विषयों का जीवन से सम्बन्धित न होने से प्रभावित हैं, ये छात्रों को जीवन के प्रति सहनशील नहीं बनाते। अतः जब पुकार हुई, मैं आश्रम जीवन के मध्य विद्यालय की स्थापना हेतु चला गया।”

“Thus, my experiences had impressed on me suffering owing to the repression of personality, the dissociation of life from the subjects of their study, which boys endure from the school system in vogue in our country. Therefore, when the call came, I went to Shanti Niketan in order to found a school in the midst of the Ashram life.”

शान्ति निकेतन में प्रकृति की गोद में वृक्षों के नीचे कक्षाएँ लगती हैं। प्रातः 4 बजे से लेकर रात के 9-30 बजे तक कार्यक्रम चलता रहता है। इसमें स्वास्थ्य से लेकर स्वाध्याय तक का सारा कार्यक्रम निहित होता है।

शान्ति निकेतन की विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  1. शान्ति निकेतन हर जगह से अच्छाई ग्रहण करने में विश्वास रखता है।
  2. शान्ति निकेतन साधना स्थल है।
  3. यहाँ पर बालक को विकास के लिए पूरी स्वाधीनता दी जाती है।
  4. सम्पूर्ण वातावरण प्राकृतिक है, काव्यमय है।
  5. आश्रम प्रणाली पर संचालित है।
  6. गहन आध्यात्मिक भावनाओं का विकास होता है।
  7. क्रिया प्रधान है।
  8. बेजोड़ है। इसकी बेजोड़ता का संदर्भ देते हुए रवीन्द्र बाबू ने कहा है-कवि होने की कुख्याति लेकर मुझे विद्यालय चलाने में बहुत कठिनाई हुई और मैं अपने देशवासियों का विश्वास, नौकरशाही के शक जीतने में कामयाब हो सका।
9. विश्व भारती (Vishwa Bharti)

विश्व भारती की स्थापना रवीन्द्र बाबू के पिता ने 1863 में की थी। यह विश्वविद्यालय का रूप धारण कर गई। इसकी मुख्य विशेषदाएँ इस प्रकार है-

उद्देश्य (Aims) –
  1. मानव मस्तिष्क का अध्ययन विभिन्न दृष्टिकोणों से सत्य के उद्घाटन के लिए करना।
  2. एक-दूसरे मानव के आपसी सम्बन्धों को धैर्यपूर्ण अध्ययन, अनुसंधान, विभिन्न संस्कृतियों के एकता के तत्वों के आधार पर दृढ़ करना।
  3. पश्चिम खण्ड, एशिया के जीवन एवं विचार पद्धति के आधार पर एकता के लिए अपनाया।
  4. सामान्य मैत्री अध्ययन को बनाना जिससे प्राची और प्रतीची मिल सकें और दोनों छोरों को एक करने वाले आधारों को और भी मजबूत किया जा सके।
विश्व भारती के विभाग-

विश्व भारती में इस समय निम्नलिखित विभाग है-

  1. विद्या भवन (अनुसंधान केन्द्र) ।
  2. शिक्षा भवन (महाविद्यालय) ।
  3. पाठ भवन (स्कूल)।
  4. कला भवन (कला, संगीत, नृत्य विद्यालय)।
  5. श्री निकेतन (ग्राम निर्माण संस्थान) ।
  6. शिल्प भवन (उद्योग विद्यालय)।
  7. विनय भवन (प्रशिक्षण महाविद्यालय) ।
  8. चीन भवन (चीन सम्बन्धी अध्ययन हेतु)।
  9. हिन्दी भवन (हिन्दी के लिए)।
  10. इस्लाम अनुसंधान केन्द्र ।
निष्कर्ष (Conclusion)

रवीन्द्र बाबू ने शिक्षा के सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक पहलुओं पर कवि के रूप में विचार किया। कवि होने के नाते वे सौन्दर्य, शिव और सत्य के उपासक थे। इसीलिए वे प्रकृतिवादी कहलाए। प्रकृति उनके रोम-रोम में बसी थी। प्रकृति ने उन्हें जीवन का हर रहस्य समझाया। उन्होंने लिखा है-“संगीत एवं सुमनों से प्रातःकाल का आना, सुन्दरतम सूर्यास्त बच्चों के मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ती है।”

“The coming of morning, heralded by music and flowers and the beautiful sunset leaving a deep marks on the children’s mind.”

रवीन्द्र शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन इस प्रकार किया जा सकता है-

  1. रवीन्द्र शिक्षा दर्शन का आधार प्रकृतिवादी है और उद्देश्य आदर्शवादी ।
  2. मानव एकता में विश्वास करता है।
  3. जीवन के लिए शिक्षा की व्यवस्था है और शिक्षा का उद्देश्य है जीवन को पूर्णता प्रदान करना।
  4. सभी पूर्वाग्रहों से विमुक्ति।
  5. सांस्कृतिक विकास पर बल।
  6. पूर्व तथा पश्चिम का समन्वय
  7. आदर्श पाठ्यक्रम का निर्माण एवं संचालन।
  8. जीवन पद्धति से मिलती-जुलती शिक्षण विधि

आज रवीन्द्र ठाकुर की संस्थाएँ विश्व शिक्षण पद्धति में अपना विशिष्ट स्थान रखती हैं। उनका शिक्षा के क्षेत्र में यह योगदान उनके काव्य की भाँति ही अपूर्व है। उनकी मृत्यु के समय कलकत्ता विश्वविद्यालय की सीनेट ने कहा था- “उनके द्वारा भारत ने मानव मात्र को, उनके साहित्य दर्शन, शिक्षा तथा कला के माध्यम से संदेश दिया है। उनके द्वारा अमर कीर्ति प्राप्त की है और भारत के स्तर को विश्व में ऊँचा उठाया है।”

“Through him India has given her message to mankind and his unique achievements in the fields of literature, philosophy, education and art, have won imperishable fame for himself and have raised the status of India in the estimation of world.”

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About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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