अभिप्ररेणा के प्रमुख सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए ।
अभिप्रेरणा के सिद्धान्त
1. सांस्कृतिक प्रतिमान का सिद्धान्त- प्रेरणा का यह सिद्धान्त मानव शास्त्रीय, समाज शास्त्रीय और समाज मनौवैज्ञानिक शास्त्रीय धारणाओं पर आधारित है। इस सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक बालक अपने समूह की संस्कृतिक से प्रेरणा लेता है। प्रत्येक मानव प्राणी चाहे वह स्त्री हो अथवा पुरुष, बच्चा हो या प्रौढ़, अमीर हो या गरीब किसी न किसी समाज अथवा समूह में रहता है। इस समूह और समाज की अपनी एक सांस्कृतिक विरासत होती है। जिस समाज या समूह में मानव रहता है उससे वह प्रेरित होता है और उसी के अनुरूप व्यवहार करता है। समाज में रहते हुए अपनी सांस्कृतिक विचारधाराओं के अनुकूल कार्य करने की प्रेरणा उसे समाज अथवा समूह से ही मिलती है। इनका मानना है कि बालक बालिकाओं के व्यक्तित्व में जो कुछ भी भेद देखने को मिलते हैं वह इन समाजों की सांस्कृतिक धारणाओं से प्रेरित होते हो। समाज की भिन्न-भिन्न मान्यताएं व आदर्श बालक बालिकाओं को किसी भी कार्य को करने के लिए प्रेरणा प्रदान करते हो। सांस्कृतिक प्रतिमानों का यह सिद्धान्त यद्यपि महत्वपूर्ण है किन्तु इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।
2. उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धान्त- अभिप्रेरणा का यह सिद्धान्त अपने ही ढंग से अभिप्रेरणा की व्याख्या प्रस्तुत करता है। इस सिद्धान्त का प्रतिपादन व्यवहारवादियों द्वारा किया गया है। इस सिद्धान्त के अनुसार मानव का समस्त व्यवहार शरीर के उत्तेजकों के परिणाम स्वरूप होने वाली प्रतिक्रियाओं का परिणाम है। इस मत में चेतन एवं अचेतन किसी भी प्रकार की अभिप्रेरणा पर कोई बल नहीं दिया गया है। इस सिद्धान्त के आलोचकों का कहना है कि अभिप्रेरणा का यह सिद्धान्त बहुत संकुचित है क्योंकि इसमें अनुभवों तथा तथ्यों की अवहेलना की गयी है। यह ठीक है कि उत्तेजकों के कारण ही समस्त क्रियाएँ एवं प्रतिक्रियाएँ होती हैं किन्तु अभिप्रेरणा का यह सिद्धान्त इन प्रतिक्रियाओं के बारे में कुछ नही बताता। यह केवल शरीर के द्वारा उत्तेजकों के परिणाम स्वरूप होने वाली प्रतिक्रियाओं को ही अभिप्रेरणा मानता है। मानव की आन्तरिक शक्तियों पर इस सिद्धान्त का कोई विश्वास नही है। विद्वानों ने इस सिद्धान्त की कड़ी आलोचना प्रस्तुत की है।
3. मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त- अभिप्रेरणा का यह सिद्धान्त प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक फ्रायड द्वारा प्रतिपादित किया गया। इस सिद्धान्त के अनुसार मनुष्य की अचेतन व अर्धचेतन शक्तियाँ, मनुष्य के चेतन व अचेतन में व्याप्त इच्छाएं ही मानव व्यवहार को प्रभावित करती है। उसका मानना है कि मूल प्रवृत्तियाँ इसमें महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। वास्तव में फ्रायड का यह सिद्धान्त यौन इच्छा पर आधारित है। फ्रायड ने इसी यौन इच्छा को लिविडो के नाम से पुकारा है। उसका मानना है कि काम इच्छा ही मानव व्यवहारों का संचालन करती है। इस सिद्धान्त की प्रमुख मान्यता यही है कि व्यक्ति वही कार्य करता है जिससे उसे सन्तोष मिलता है। फ्रायड का मानना है कि व्यक्ति काम इच्छाओं का दास है और वह वही कार्य करता है जिससे उसकी काम इच्छाओं की सन्तुष्टि हो । फ्रायड ने मानव के सभी क्रिया कलापों के लिए काम इच्छा को उत्तरदायी माना है। मानव के सभी कार्य एवं व्यवहार उसकी काम इच्छाओं की सन्तुष्टि पर निर्भर करते हो। उसने कहा कि काम इच्छाओं की सन्तुष्टि होने पर ही मानव एक सन्तुलित व्यक्तित्व पा सकता है और जीवन में आगे बढ़ सकता है। इस प्रकार फ्रायड के इस सिद्धान्त के आधार पर यह कहा जा सकता है कि मानव की अभिप्रेरणा का प्रमुख आधार उसकी यौन सम्बन्धित इच्छाएं ही हैं। विभिन्न विद्वानों ने फ्रायड के इस सिद्धान्त की आलोचना की है। आलोचकों का मानना है कि यह आवश्यक नहीं कि व्यक्ति वही कार्य करे जिससे उसे सुख की प्राप्ति हो। अपने चारों ओर के वातावरण से तथा नैतिक व्यवहारों से प्रभावित होकर भी व्यक्ति प्रतिक्रियाएँ करता है तो क्या इसका अर्थ यह ले लिया जाना चाहिए कि इन कार्यों से उसे किसी सुख की प्राप्ति नही होती ? यद्यपि नैतिक पूर्ण व्यवहारों को करने से कोई शारीरिक सुख नहीं मिलता फिर भी ऐसे आचरणों से मानव को मानसिक सुख अवश्य ही प्राप्त होता है और यह मानसिक सुख उसे क्रियाएँ एवं प्रति क्रियाएँ करने के लिए प्रेरित करता है।
4. शारीरिक सिद्धान्त- अभिप्रेरणा के सिद्धान्त का प्रमुख आधार मानव के शरीर में होने वाले परिवर्तन है। इस सिद्धान्त के समर्थकों का मानना है कि मानव जो भी क्रियाएँ या प्रतिक्रियाएँ करता है उसका कारण उसके शरीर में होने वाले परिवर्तन हो । किसी भी प्रतिक्रिया के मूल में अभिप्रेरणा विद्यमान रहती है। शारीरिक परिवर्तनों के कारण ही मानव अभिप्रेरित होता हुआ सभी प्रकार की क्रियाएँ एवं प्रतिक्रियाएँ करता है ।
5. मूल प्रवृत्ति का सिद्धान्त – अभिप्रेरणा के इस सिद्धान्त के प्रतिपादक विलियम मैक्डूगल थे। मैक्डूगल का मानना था कि बालक कुछ मूल प्रवृत्तियों के साथ ही जन्म लेता है। उसका मानना था कि बालक 14 मूल प्रवृत्तियों के साथ जन्म लेता है और प्रत्येक मूल प्रवृत्ति के साथ एक संवेग जुड़ा रहता है। इन मूल प्रवृत्तियों में प्रमुख है- पलायन, जिज्ञासा, आत्म-गौरव, सामूहिकता, संग्रह, रचना आदि। प्रत्येक मूल प्रवृत्ति संवेग के साथ प्रकट होती है, जैसे पलायन का संवेग है भय, जिज्ञासा का संवेग हैं आश्चर्य, आत्म गौरव का संवेग है स्वाभिमान, सामूहिकता का संवेग है एकाकीपन, संग्रह का संवेग हैं स्वामित्व तथा रचना का संवेग है कृतिभाव आदि। मैक्डूगल के अनुसार हमारे जीवन की प्रत्येक क्रिया इन्ह मूल प्रवृत्तियों तथा संवेगों द्वारा निर्धारित होती है और मानव क्रियाओं में गति प्रदान करती मैक्डूगल के अनुसार मानव का व्यवहार इन्ह मूल प्रवृत्तियों से अभिप्रेरित होता है।
6. ऐच्छिक सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के समर्थकों का मानना है कि व्यक्ति के व्यवहार एवं क्रियाओं को उसकी व्यक्तिगत इच्छा अभिप्रेरित करती है। यह सिद्धान्त मानव की इच्छा शक्ति पर विशेष बल देता है। बौद्धिक मूल्यांकन के माध्यम से अभिप्रेरणा दी जा सकती हैं। संकल्प शक्ति को विकसित किया जा सकता है।
7. लेविन का सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के प्रतिपादक कुर्ट लेविन थे। कुर्ट लेविन ने सीखने की प्रक्रिया में अभिप्रेरणा को बहुत ही महत्वपूर्ण माना है। लेविन का मानना है कि अभिप्रेरणा में सीखने के संयोग, गतिशीलता, जैविक आवश्यकताएं, क्षमताएं, लक्ष्य प्राप्त करने में बाधाएं, जीवन चक्र आदि कारण महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हो।
अतः यह कहा जा सकता है कि अभिप्रेरणा मानव के सामाजिक, संवेगात्मक और मानसिक विकास में बहुत महत्वपूर्ण है। यह अभिप्रेरणा ही है जो मानव को किसी निश्चित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती है और वह निरन्तर प्रयास कर इस लक्ष्य को प्राप्त करने की ओर बढ़ता रहता है। अभिप्रेरणा के सिद्धान्तों में मैक्डूगल द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त और फ्रायड द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त प्रमुख माने जा सकते हो । मानव जीवन में यदि कोई प्रेरणा नहीं होगी तो निश्चित ही वह आलसी हो जायेगा और अपने जीवन के लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर पायेंगा।
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