अल्पाधिकार से क्या आशय है?
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अल्पाधिकार (Oligopoly)
अल्पाधिकार अपूर्ण प्रतियोगिता का ही एक रूप है। अल्पाधिकार से आशय बाजार की एक ऐसी अवस्था से है जिसमें किसी वस्तु के बहुत कम विक्रेता होते हैं और प्रत्येक विक्रेता पूर्ति एवं मूल्य पर समुचित प्रभाव रखता है।
जार्ज जे० स्टिगलर के अनुसार, “अल्पाधिकार वह स्थिति होती है जिसमें कोई फर्म अपनी बाजार-नीति कुछ निकट प्रतियोगियों के प्रत्याशित व्यवहार पर स्थापित करती है।”
श्रीमती जॉन रोबिन्सन के अनुसार, “अल्पाधिकार एकाधिकार तथा पूर्ण प्रतियोगिता की मध्यवर्ती स्थिति है, जिसमें विक्रेताओं की संख्या एक से अधिक होती है परन्तु इतनी अधिक नहीं होती कि बाजार कीमत पर किसी एक के प्रभाव को नगण्य बना दे।”
अल्पाधिकार की विशेषतायें या लक्षण (Characteristics of Oligopoly)
(1) विक्रेताओं की सीमित संख्या (Limited Number of Sellers) – अल्पाधिकार में विक्रेताओ की संख्या बहुत कम होती है।
(2) प्रमापित व विभेदित वस्तुयें (Standardized or Differentiated Products) – इस स्थिति में बाजार में विक्रेताओं की वस्तुएँ समरूप भी हो सकती हैं और अलग-अलग भी हो सकती हैं।
(3) परस्पर निर्भरता (Interdependence ) — इस स्थिति में जो भी फर्मों बाजार में कार्य करती हैं सभी आपस में निर्भर रहती हैं।
(4) फर्मों के प्रवेश एवं बहिर्गमन में कठिनाई (Difficult in Entry & Exit of Firms)— इन स्थिति में न तो नयी फर्में आसानी से बाजार में प्रवेश कर सकती हैं और न ही पुरानी फर्मे बाजार से जा सकती हैं ।
(5) गैर-मूल्य प्रतियोगिता (Non-price Competition ) – अल्पाधिकार की स्थिति में सभी फर्म गैर-मूल्य प्रतियोगिता को अपनाकर अधिकाधिक लाभ कमाने के प्रयास में लगी रहती हैं।
(6) विज्ञापन का प्रभाव (Effect of Advertisement) – इस स्थिति में कार्यरत फर्मों अपने विक्रय एवं बाजार भाग को अधिकतम करने के उद्देश्य से विज्ञापन एवं विक्रय संवर्द्धन का सहारा लेती है।
(7) कीमत स्थिरता (Price Stability) – अल्पाधिकार में कीमत एक स्तर पर बनी रहती है, भले ही माँग पूर्ति की परिस्थितियों में कितने भी परिवर्तन आयें।
(8) माँग की अनिश्चितता (Uncertain Demand ) – इसमें कोई फर्म माँग का सही अनुमान नहीं लगा पाती है, क्योंकि प्रतियोगी फर्मों का व्यवहार निश्चित नहीं होता है।
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