असमानताओं को दूर करने के प्रमुख उपायों का वर्णन कीजिए।
असमानताओं को कम अथवा दूर करने के उपाय (Measures to remove Social Inequality)
भारतीय समाज में व्याप्त असमानताओं को कम करने की दिशा में निम्नलिखित अपेक्षित कदम उठाना आवश्यक है-
(1) निजी सम्पत्ति के स्वामित्व पर प्रतिबन्ध- निजी सम्पत्ति की सीमा निर्धारित कर देनी चाहिए। ऐसे कानून बना देने चाहिए कि भूमि, नकद, पूँजी, मकान आदि के रूप में एक सीमा से अधिक सम्पत्ति कोई नहीं रख सके। विषमता का मूल आधार ही निजी सम्पत्ति का स्वामित्व है, अतः इसकी सीमा रेखा निर्धारित करना अनिवार्य है। भारत में जमींदारी प्रथा का उन्मूलन और यह निर्धारण कि अमुक क्षेत्रफल से अधिक भूमि कोई नहीं रख सकेगा, निजी सम्पत्ति को सीमित करने के लिए प्रभावशाली उपाय हैं। उद्योगों के राष्ट्रीयकरण से भी औद्योगिक पूँजी के स्वामित्व पर प्रतिबन्ध लगता है।
(2) उत्तराधिकार एवं सम्पत्ति अन्तरण पर प्रतिबन्ध- इस प्रकार वैधानिक उपाय करने चाहिए जिनसे सम्पत्ति के उत्तराधिकार और सम्पत्ति-अन्तरण की प्रथा हो जाय या वांछित रूप से सीमित हो जाय। यह उपयुक्त है कि उत्तराधिकार में सम्पत्ति प्राप्त करने वालों पर ‘भारी उत्तराधिकार कर लगा दिया जाय। इसके अतिरिक्त धनिकों पर मृत्यु कर भी लगाया जाय ताकि उनकी मृत्यु होने पर उनकी सम्पत्ति का कुछ भाग सरकार के पास पहुँच जाये। सम्पत्ति अन्तरण पर भेंट कर दिया जाये ताकि किसी भी धनिक द्वारा अपनी सम्पत्ति दूसरे के नाम अन्तरण करते समय उसे कुछ भाग सरकार को भी समर्पित करना पड़े।
3) एकाधिकारी प्रवृत्ति पर नियन्त्रण- एकाधिकार से उत्पन्न असमानताएँ बहुत होती हैं जिन्हें दूर करने के लिए एकाधिकार कानून लागू किये जाने चाहिए और मूल्य सम्बन्धों को रोका जाना चाहिए। एक उपाय यह भी है कि सरकार एकाधिकारी द्वारा उत्पादित वस्तु की अधिकतम कीमत निर्धारित कर दे। यदि विभिन्न उपायों में से कोई फल न निकले तो निजी उद्योगों का राष्ट्रीयकरण कर देना चाहिए।
(4) उत्पादन के साधनों के न्यूनतम और अधिकतम मूल्य- विभिन्न साधनों के अधिकतम और न्यूनतम मूल्य निर्धारण की नीति द्वारा आय की असमानताएँ कम की जा सकती हैं। जैसे-सरकार मजदूरों के लिए कम-से-कम मजदूरी और विशेषज्ञों के लिए अधिकतम वेतन का निर्धारण कर सकती है।
(5) अनार्जित आयों पर भारी कर- आय और सम्पत्ति की असमानता को कम करने के लिए अनार्जित आयों पर बहुत उच्च दर से प्रगतिशील कर-रोपण आवश्यक है। भूमियों पर कीमतों में वृद्धि अथवा लगान से प्राप्त आय, आकस्मिक व्यावसायिक लाभ, सट्टे और काला बाजार से प्राप्त आय, एकाधिकारी लाभ आदि पर बहुत ऊँची दर से कर लगाया जाना चाहिए।
(6) पिछड़े वर्गों की आर्थिक सहायता- सरकार से अपेक्षित है कि वह पिछड़े वर्गों को अधिक सहायता और अनुदान प्रदान करे लेकिन साथ ही समुचित निरीक्षण की व्यवस्था भी होनी चाहिए।
(7) अवसरों की समानता- समाज के सदस्यों को जीविकोपार्जन के अवसर समान रूप से सुलभ होने चाहिए। व्यक्ति की सम्पन्नता या निर्धनता को नौकरी प्राप्ति के लिए प्रमाण-पत्र नहीं मानना चाहिए। योग्यता के आधार पर नौकरियों के द्वार खुले होने चाहिए। अवसरों की समानता को प्रभावी बनाने के लिए शिक्षा का अधिकाधिक विस्तार होना चाहिए।
(8) काम की गारण्टी- सरकार को निर्धन वर्ग को आय की गारण्टी देने के वनिस्बत काम की गारण्टी देनी चाहिए। सरकार को रोजगार वृद्धि की प्रभावशाली योजना अपनाकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बेकारों को रोजगार उपलब्ध हो।
(9) अधिक सन्तानोत्पत्ति पर नियन्त्रण- समाज के बहुसंख्यक निर्धन और कम आय वाले वर्ग में सन्तानोत्पत्ति अधिक पाई जाती है। अतः सरकार यह सुनिश्चित कर दे कि 2 या 3 बच्चों से अधिक बच्चे पैदा करना कानूनी अपराध होगा।
(10) जातिवाद का निराकरण- जातिवाद से छुटकारा प्राप्त करने के लिए आर्थिक विकास अत्यन्त आवश्यक है। इससे लोगों को रोजगार प्राप्त करने की सुविधा उपलब्ध होगी तथा बेरोजगारी समाप्त हो सकेगी। इसका परिणाम यह होगा कि नौकरियाँ आदि प्राप्त करने के लिए लोगों को अपनी जाति वालों के पास नहीं दौड़ना पड़ेगा, अतः देश के आर्थिक विकास पर अधिक ध्यान देना होगा। स्वतन्त्र भारत में साक्षरता के प्रसार हेतु अनेक प्रयत्न किये गये उदाहरण के रूप में, साक्षरता के प्रसार, वैकल्पिक समूहों के निर्माण, जाति तथा धर्म के आधार पर सबके साथ समानता के व्यवहार को प्रोत्साहन देने और आर्थिक एवं सांस्कृतिक समानता लाने हेतु अनेक प्रयत्न किये गये। यहाँ पिछड़ी जातियों, अछूतों एवं जनजातियों की निर्योग्यताओं को समाप्त कर उन्हें उच्च जातियों के समकक्ष लाने का प्रयत्न किया गया। अस्पृश्यता निवारण अधिनियम, 1955 के द्वारा, अस्पृश्यता को कानून के द्वारा समाप्त कर दिया गया। जैसे-जैसे साक्षरता बढ़ती है, स्कूलों एवं कॉलेजों के विभिन्न जातियों के बालक-बालिकाओं के एक-दूसरे के साथ अध्ययन एवं सम्पर्क स्थापित करने के अवसर बढ़ते हैं। अन्तर्जातीय विवाहों की संख्या में वृद्धि होती है। औद्योगीकरण और नगरीकरण की गति तीव्र होती है, उसके साथ ही साथ जातिविहीन वातावरण की सृष्टि और जातिवाद की संकुचित भावना का अन्त हो सकेगा।
(11) अस्पृश्यता का व्यावहारिक रूप से निराकरण- वैज्ञानिक रूप से ही अस्पृश्यता को समाप्त कर देना पर्याप्त नहीं है, इस बुराई को व्यावहारिक रूप से समाप्त किया जाना आवश्यक है। समाज के प्रत्येक वर्ग को चाहिए कि वह अस्पृश्यता को समाप्त करने में सहयोग दे। हमें ऐसा धार्मिक और सामाजिक वातावरण बनाना होगा कि हम अस्पृश्यों को अपने गले लगाएँ, उनके सम्पर्क से बचने का प्रयत्न न करें।
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