उपलब्धि परीक्षण की क्यों आवश्यकता है? इसके कारण स्पष्ट कीजिए।
उपलब्धि परीक्षण की आवश्यकता के कारण उपलब्धि परीक्षण जिन ‘कारणों से ली जाती है, वे इस प्रकार हैं-
- परीक्षा/परीक्षण के द्वारा विद्यार्थियों की क्षमताओं, योग्यताओं और सीमाओं का पता चल सकता है।
- परीक्षण के द्वारा हमें छात्र-छात्राओं से सम्बन्धित जो आँकड़े प्राप्त होते हैं, उन्हें सामने रखकर पाठ्य-चर्चाओं में परिवर्तन व संशोधन किया जा सकता है।
- शिक्षा प्रणालियों की उपयोगिता और त्रुटियों का ज्ञान भी परीक्षण के आधार पर किया जा सकता है।
- परीक्षण के द्वारा हम इस तथ्य की जाँच करते हैं कि शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति किस रूप से हो रही हैं।
- छात्र-छात्राओं के बौद्धिक विकास की परिकल्पना परीक्षाओं के द्वारा ही ठीक प्रकार से हो सकती है।
ज्ञान लब्धि सम्बन्ध सूत्र एवं गणना- ज्ञान-आयु- जिस प्रकार बुद्धिमापक परीक्षा में हम मानसिक आयु मालूम करते हैं, उसी प्रकार ज्ञानार्जन की परीक्षा में हम ज्ञान-आयु की जानकारी प्राप्त करते हैं। बुद्धिमापक परीक्षाओं में यदि 9 वर्ष का बालक 11 वर्ष की आयु के लिए निर्धारित प्रश्नों को हल कर लेता है तो उसकी मानसिक आयु 11 वर्ष मान ली जाती है और यदि वह बालक 7 वर्ष की आयु के लिए निर्धारित प्रश्नों को हल कर सकता है, आगे के नहीं तो उसकी मानसिक आयु 7 वर्ष ही होगी। इसी प्रकार ज्ञानार्जन परीक्षा में भी यदि कोई 10 वर्ष का बालक 12 वर्ष के लिए निर्धारित ज्ञान-परीक्षा के प्रश्नों को हल कर लेता है तो उसकी ज्ञान-आयु 12 वर्ष मानी जाती है। इससे पता चल जाता है कि बालक प्रगति कर रहा है। परन्तु यदि 10 वर्ष का बालक 9 वर्ष के लिए निर्धारित प्रश्नों का ही हल कर पाता है तो उसकी ज्ञान आयु 9 वर्ष की होगी। इससे पता चलता है कि बालक ज्ञानार्जन में सामान्य बालकों से पिछड़ा हुआ है
ज्ञान लब्धि- ज्ञान-लब्धि निकालने के लिए बालक की ज्ञान-आयु में मानसिक आयु का भाग दे दिया जाता है। उदाहरण- यदि एक बालक की ज्ञान-आयु 11 वर्ष और मानसिक आयु 10 वर्ष है, तो उसकी ज्ञान-लब्धि 1.1 होगी (ज्ञान – आयु ÷ मानसिक आयु = 11 ÷ 10 = 1.1) परन्तु दशमलव को हटाने के लिए बुद्धि-लब्धि के समान ज्ञान-लब्धि में भी हम 100 से अधिक गुणा कर देते हैं। इस दृष्टि से बालक की ज्ञान लब्धि 1.1 x 100 = 110 होगी।
इसी तथ्य को हम निम्न प्रकार भी प्रकट कर सकते हैं-
ज्ञान लब्धि = ज्ञान-आयु / मानसिक आयु x 100
इस उदाहरण से स्पष्ट हो जाता है कि बालक धीमी गति से प्रगति कर रहा है। यदि किसी बालक की ज्ञान-लब्धि 100 से कम होती है तो उसका यह निष्कर्ष निकलता है कि या तो विद्यार्थी ने अध्ययन-कार्य में परिश्रम नहीं किया या अध्यापक ने उसे परिश्रम से पढ़ाया नहीं। ज्ञान-लब्धि से छात्र-छात्राओं की प्रगति का पता चलता है।
शिक्षा-लब्धि सम्बन्धी सूत्र एवं गणना कई बार विद्यालय में यह जानना आवश्यक हो जाता है कि एक सामान्य बुद्धि वाले बालक को कितना ज्ञान होना आवश्यक है और वह विद्यालय में कितना ज्ञान अर्जित कर पाया है। इस प्रकार के अध्ययन से यह ज्ञात हो जाता है कि समान शारीरिक आयु वाले बालकों में कौन-सा बालक प्रगति पथ पर है और कौन पिछड़ रहा है। इस तथ्य की जानकारी के लिए ही ‘शिक्षा-लब्धि’ निकाली जाती है।
शिक्षा-लब्धि- निकालने के लिए किसी बालक की ज्ञान आयु में वास्तविक आयु का भाग दिया जाता है और फिर दशमलव को हटाने के लिए 100 गुणा कर लिया जाता है; उदाहरणस्वरूप, यदि किसी बालक की ज्ञान आयु 13 वर्ष है और वास्तविक आयु 11 वर्ष है, तब उसकी शिक्षा लब्धि 130 होगी। (ज्ञान आयु ÷ वास्तविक आयु x 100 = 13 ÷10 x 100 = 130) I
इस तथ्य को हम निम्नलिखित सूत्र द्वारा भी प्रस्तुत कर सकते हैं-
शिक्षा-लब्धि = ज्ञान-आयु /मानसिक आयु x 100
उपर्युक्त उदाहरण से स्पष्ट हो जाता है कि बालक ने खूब परिश्रमपूर्वक और मन लगाकर ज्ञानार्जन किया है क्योंकि उसकी ज्ञान-लब्धि 100 से अधिक है।
यदि शिक्षा-लब्धि 100 से कम निकले तो इसका यह तात्पर्य है कि वह बालक पिछड़ा हुआ है। ऐसी स्थिति में उसके पिछड़ेपन के कारणों की खोजबीन करके निदानात्मक उपायों को काम में लाना होगा।
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