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गोपाल कृष्ण गोखले (Gopal Krishna Gokhale)
गोखले का जन्म कोतलक, जिला रत्नागिरि में 9 मई, 1866 को हुआ था। महात्मा गांधी उनको अपना गुरु मानते थे। गोखले एक महान् देशभक्त, विचारक, अर्थशास्त्री तथा समाज सुधारक थे। इनकी शिक्षा बड़ी कठिन परिस्थितियों में हुई थी। उन्होंने देश की निर्धनता को निकट से देखा था।
इनके जीवनी लेखक का कथन है कि कभी-कभी इनको भूखों रहने की नौबत भी आ जाती थी इन्होंने एलफिन्सटन कॉलेज बम्बई से बी. ए. तक शिक्षा पायी और अध्यापक हो गये। यहाँ से इनका सामाजिक और राजनीतिक जीवन प्रारम्भ हुआ। यह लोकमान तिलक, जी. जी. आगरकर और महादेव गोविन्द रानाडे के विचारों से प्रभावित थे। रानाडे को वे अपना गुरु मानते थे, राजनीति के क्षेत्र में वे नरमदली एवं सुधारवादी थे, वे देशभक्त थे, परन्तु ब्रिटिश शासन भी इनका सम्मान करता था। लॉर्ड कर्जन ने इनके बारे में कहा था, “ईश्वर ने आपको असाधारण योग्यताएँ दी हैं और आपने उन्हें देश की सेवा में समर्पित कर दिया है।” 1905 में उन्होंने प्रसिद्ध Servant of Indian Society की स्थापना की थी। 1908 में उन्होंने Ranade Economic Institute स्थापित किया।
गोखले के आर्थिक विचार
गोखले के आर्थिक विचारों पर रानाडे तथा दादाभाई नौरोजी की स्पष्ट छाप है। वे कोई सिद्धान्त वाले अर्थशास्त्री नही थे बल्कि देश की आर्थिक उन्नति के लिए व्यावहारिक सुझाव देने वाले व्यक्ति थे। उनके आर्थिक विचार उनके लेखों भाषणों, आदि से स्पष्ट होते हैं। उनका प्रधान क्षेत्र लोकवित्त था। 1896 में लॉर्ड वैल्बी (Welby) की अध्यक्षता में एक आयोग नियुक्त किया गया था जिसका कार्य भारत में एवं इंग्लैण्ड के आर्थिक सम्बन्धों की जांच करना था। इसके लिए गोखले ने इंग्लैण्ड जाकर अपना बयान दिया था। “इस बयान ने उनको तत्काल भारत के प्रमुख आर्थिक विचारकों की पंक्ति में खड़ा कर दिया।” उन्होंने कहा था, “एक तरफ तो देश की आर्थिक क्षमता घटती जा रही है दूसरी तरफ शासन का व्यय बढ़ता जा रहा है।” उनका कथन था कि भूमि कर लोच विहीन है अतः सरकार को अपना खर्च घटाना चाहिए। भारत के लोकवित्तीय ढांचे का उनका बयान सुन्दर विवेचन करता है।
गोखले ने भारत के दुर्भिक्षों और निर्धनता का भी विश्लेषण किया है। गोखले के प्रधान आर्थिक विचारों को इस प्रकार लिखा जा सकता है :
(1) सरकार को प्रशासन का व्यय कम करना चाहिए। सेना के ऊपर जो उत्पादक व्यय हो रहा है। वह आवश्यक है।
(2) भारतीय जनता के ऊपर करों का बहुत अधिक बोझ है। इसे कम करना आवश्यक है। उदाहरण के लिए नमक कर तथा सूती कपड़े पर उत्पादन कर समाप्त होना चाहिए।
(3) सरकार को शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं और उद्योगों के विकास पर अधिक व्यय करना चाहिए।
(4) उनका विश्वास था कि भारत की निर्धनता निरन्तर बढ़ रही है। उन्नीसवीं सदीं में कई अकाल इसका प्रत्यक्ष प्रमाण थे। गोखले के अनुसार भारत का यह समय इतिहास का सबसे दयनीय एवं कष्टदायक युग था।
(5) उन्होंने भूमि सुधार और भू-राजस्व के सुधार की भी मांग की। जिस समय गोखले बम्बई विधान परिषद के सदस्य थे उसी समय Land Alienation Bill नामक कानून का प्रस्ताव सरकार ने प्रस्तुत किया। ग्रामीण ऋणाग्रस्तता का एक कारण यह था कि किसान अपनी जमीन को गिरवीं रख सकते थे। परिणाम यह था कि जमीन महाजनों के पास पहुँच रही थी। सरकारी कानून में व्यवस्था यह रखी गयी कि किसान जमीन को गिरवी रखकर ऋण न ले सकें। केवल फसल को गिरवी रखने के अधिकार उनके पास रहे। गोखले ने इस बिल का विरोध किया और इसे किसानों के अधिकार पर कुठाराघात बताया। परन्तु उन्होंने महाजनों का समर्थन नहीं किया। वे साहूकारों के शोषण के विरोधी थे और उनका नियन्त्रण आवश्यक समझते थे।
(6) गोखले ने देश में सरकारी साख समितियों के प्रारम्भ करने की सलाह दी। उल्लेखनीय है कि उस समय तक देश में सहकारी आन्दोलन का प्रारम्भ नहीं हुआ था। एक प्रकार से गोखले को भारत में सहकारिता प्रारम्भ करने वाले विचारकों में गिना जा सकता है।
गोखले कोई सैद्धान्तिक अर्थशास्त्री नहीं थे, परन्तु देश की तत्कालीन आर्थिक समस्याओं का उनका ज्ञान असाधारण था और वाइसराय की परिषद (Council) में उनके विरोधी भी इस बात को मानते थे। 1906 में उन्होंने बजट के अवसर पर जो भाषण दिया था उस आधार पर लॉर्ड मिण्टो ने कहा था इस प्रकार का भाषण देने वाले शायद इंग्लैण्ड में भी न मिलें तत्कालीन वित्तमन्त्री सर एडवर्ड देकर ने तो यहाँ तक कहा था कि उन्हें प्रसन्नता होगी यदि उनके बाद गोखले को वित्त मन्त्री बनाया जाय।
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