चेचक रोग के कारण, लक्षण तथा रोग से बचने के उपायों का वर्णन कीजिए।
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चेचक (Small Pox )
यह एक संक्रामक रोग है और वायु के द्वारा फैलता है। हमारे देश में इस रोग को राष्ट्रीय स्तर पर समाप्त करने के लिये एक अभियान चलाया गया। एक समय था जब चेचक महामारी के रूप में हजारों लोगों को प्रभावित करती थी, बच्चों के लिये यह रोग जानलेवा सिद्ध होता है।
रोग का कारण यह रोग एक विषाणु के द्वारा फैलता है। सांस के साथ इस रोग के रोगाणु गले, नाक तथा कान में प्रविष्ट होते हैं। रोग के विषाणु चमड़े पर होते हैं। धीरे-धीरे पूरे शरीर में फैल जाते हैं। व्यक्ति को बुखार होने लगता है। शरीर में फफोले पड़ जाते हैं। इनमें मवाद पड़ जाती है। धीरे-धीरे ये फफोले सूखने लगते हैं। फफोलों की पपड़ी सूख जाती है तथा झड़ जाती है।
चेचक रोग के कारण
चेचक फैलने के कुछ कारण निम्न प्रकार हैं-
- दूषित पदार्थों के सेवन से भी चेचक के विषाणु फैलते हैं।
- हवा तथा धूल के द्वारा भी चेचक के विषाणु अथवा वायरस फैलते हैं।
- मौसम बदलने के समय अर्थात् फरवरी, मार्च में यह रोग अधिक फैलता है।
चेचक रोग के लक्षण
चेचक के विषाणुओं के शरीर में प्रवेश करने के बाद रोगी में ये लक्षण प्रकट होने लगते हैं-
- नाक बहने लगती है।
- रोगी के शरीर में दर्द होता है।
- तीन दिन के बाद शरीर पर दाने निकल आते हैं। शुरू में ये दाने चेहरे पर प्रकट होते हैं। बाद में ये पूरे शरीर पर फैल जाते हैं। ये दाने लाल होते हैं, बाद में इनमें मवाद पड़ जाती है।
- 103°-104° फारेनहाइट तक बुखार हो जाता है।
- दानों में जलन होने लगती है। जैसे-जैसे दानों में जलन कम होती जाती है, रोगी अच्छा होने लगता है।
चेचक का उपचार – चेचक का कोई विशेष इलाज नहीं है। चिकित्सकों की औषधि से थोड़े समय के लिये आराम मिल सकता है। चेचक के रोग के लक्षण प्रकट होते ही रोगी को छूत के अस्पताल में ले जाना चाहिये। यदि यह सम्भव न हो तो कमरे में अलग से रोगी की व्यवस्था की जानी चाहिये। साथ ही रोगी के शरीर की सफाई भी सावधानीपूर्वक करनी चाहिये, जिससे उसके शरीर के फफोले की पपड़ी इधर-उधर न पड़े। जीवाणुनाशक घोल पानी में मिलाकर रूई के फोये को उसमें भिगोकर, उससे रोगी के घावों की सफाई करनी चाहिये। यदि आँख अथवा कान में दाना निकला है तो चिकित्सक से बड़ी कुशलता से इलाज करवाना चाहिये ।
रोग से बचने के उपाय
चेचक का रोग एक सामाजिक रोग है, जो संसर्ग द्वारा फैलता है। यह संसर्ग चाहे वायु द्वारा हो अथवा मनुष्य द्वारा चेचक एक भयंकर रोग है।
इस रोग से बचाव के लिये निम्न उपाय किये जाने चाहिये-
(i) यह पता लगने पर कि घर में किसी व्यक्ति या बालक को चेचक निकल रही है, उस व्यक्ति को अन्य व्यक्तियों के सम्पर्क में आने से बचाना चाहिये।
(ii) चेचक की कोई औषधि नहीं होती, अतः उत्तम से उत्तम परिचर्या तथा देखभाल ही इसका एकमात्र इलाज है।
(iii) रोगी को हल्का भोजन मिलना चाहिये।
(iv) रोगी के बर्तन तथा उसके उपयोग की सभी वस्तुओं को कीटनाशक घोल से धोकर निसंक्रमित कर लेना चाहिये ।
(v) रोगी की व्यवस्था अलग कमरे में करनी चाहिये।
(vi) रोगी के वस्त्रों का निसंक्रमण होना चाहिये।
(vii) जब रोगी के दानों की पपड़ी सूखकर गिरने लगे तो उन्हें सावधानी से एकत्र कर जला देना चाहिये।
प्रतिबन्धक उपाय- चेचक का रोग एक महामारी के रूप में फैलता है। इससे बचाव के लिये जन्म से ही टीका लगाना चाहिये। चेचक का वैक्सीन टीके द्वारा शरीर में प्रवेश करा देने से पूरे शरीर में चेचक का प्रतिरक्षण हो जाता है। हाथ में उस स्थान पर जहाँ टीका लगा है, फफोले उठकर मवाद से भरकर धीरे-धीरे सूख जाते हैं। एक बार के टीके से 5 से 10 वर्ष तक के लिये प्रतिरक्षण हो जाता है।
- शिशु को पहले तीन महीने के भीतर ही टीका लगवा देना चाहिये।
- दूसरा टीका बच्चे की तीन वर्ष की आयु पूरी कर लेने पर लगवा देना चाहिये।
- चेचक फैलने की दशा में इस टीके को प्रत्येक व्यक्ति को लगवा लेना चाहिये।
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