बाल मनोविज्ञान / CHILD PSYCHOLOGY

अध्यापक में असंतोष पैदा करने वाले तत्व कौन-कौन से हैं?

अध्यापक में असंतोष पैदा करने वाले तत्व कौन-कौन से हैं?
अध्यापक में असंतोष पैदा करने वाले तत्व कौन-कौन से हैं?

शिक्षकों में असंतोष पैदा करने वाले तत्व कौन-कौन से हैं? शिक्षकों में मानसिक अस्वस्थता रोकने के उपायों का वर्णन कीजिए।

अध्यापक में असंतोष पैदा करने वाले तत्व

अध्यापक में असंतोष पैदा करने वाले तत्व भिन्न होते हैं, फिर भी कुछ ऐसी समस्याएँ हैं, जो प्रत्येक अध्यापक के जीवन में पाई जाती हैं। जैसे-

1. घर (Home) – भारत में संयुक्त परिवार प्रणाली है। अधिकांश अध्यापक संयुक्त परिवार के सदस्य हैं, जिसके कारण उनको घर पर अलग कमरा, खाने-पीने का अलग प्रबन्ध तथा स्वतन्त्रता इत्यादि नहीं मिल पाती है। विशेषतः बड़े शहरों में घर की समस्या निरन्तर चिन्ता का विषय बनी रहती है। घरेलू तथा आर्थिक परिस्थितियाँ आदि भी मानसिक चिन्ताओं को जन्म देती हैं।

संयुक्त परिवार में प्रतिदिन ऐसी घटनाएँ घटती रहती हैं, जिनसे परिवार के सदस्यों में कलह को जन्म मिलता है। इसके अतिरिक्त अध्यापकों का विवाहित जीवन अच्छा नहीं बीतता है, क्योंकि वे अर्थाभाव के कारण अपने परिवार का पालन-पोषण ठीक ढंग से नहीं कर पाते हैं।

संयुक्त परिवार के सदस्यों में महिला अध्यापकों को इन चिन्ताओं का शिकार बनना पड़ता है। भारत में अध्यापक को मानसिक रीति-रिवाजों के कारण अपनी बहुत-सी इच्छाओं को व्यक्त करने का अवसर नहीं मिलता है। दमित इच्छाएँ मानसिक स्वास्थ्य को खराब कर देती हैं।

2. विद्यालय (School) – अध्यापक का दिन भर का कार्य क्षेत्र विद्यालय भवन है, जिसकी व्यवस्था का अध्यापक के मानसिक स्वास्थ्य पर इस प्रकार प्रभाव पड़ता है-

(i) जातीयता की भावना (Caste Feelings) – यह दुर्भाग्य की बात है कि भारत में अधिकांश विद्यालय विशेष जातियों द्वारा संचालित किए जाते हैं, जिनमें दूसरी जाति के अध्यापक अपने आपको बेसहारा पाते हैं। इस जातीयता की ओट में कभी-कभी अनुचित बातें भी की जाती हैं और गैर-जाति वाले अध्यापकों के साथ पक्षपातपूर्ण व्यवहार किया जाता है।

(ii) कम वेतन (Inadequate Salary) – भारत में अध्यापकों को इतना कम वेतन मिलता है कि वे उससे अपना निर्वाह भी नहीं कर पाते हैं। उत्तर प्रदेश में प्राथमिक विद्यालयों के अध्यापकों को डेढ़ सौ रुपये मिलते हैं, जो केन्द्रीय सरकार के चपरासी से कम हैं। कुछ तो अध्यापकों का वेतन कम है, फिर यह कम वेतन भी ठीक समय पर नहीं मिल पाता है। अनेक ऐसे विद्यालय हैं, जहाँ पर प्रशिक्षित स्नातकों को (Trained graduates) 70 रुपये दिए जाते हैं। आर्थिक समस्या जीवन भर उनके जीवन में निरन्तर चिन्ता का विषय बनी रहती है।

(iii) तानाशाही प्रबन्ध (Dictatorship) – कुछ विद्यालय ऐसे होते हैं, जहाँ पर अध्यापकों को विचार व्यक्त करने का अवसर नहीं दिया जाता है। प्रधान अध्यापक तानाशाह बन जाता है। अध्यापकों को छोटी-छोटी बातों के लिए तंग करता है। कुछ अध्यापकों के प्रति विशेष सहानुभूति दिखाई जाती है। यह सब बातें दूसरे अध्यापकों के लिए चिन्ता का विषय बनी रहती हैं।

(iv) अध्यापकों में संघर्ष (Conflicts among Teachers) – यदि स्कूल में अध्यापकों, अध्यापिकाओं या अध्यापकों प्रधानाचार्य प्रबन्धक में किसी प्रकार का संघर्ष हो तो उस संघर्ष का अध्यापक के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रत्यक्ष रूप में प्रभाव पड़ता है। मस्तिष्क में भय व चिन्ता को जन्म मिलता है।

(v) कार्य का भार (Work load) – भारतीय विद्यालयों में कम से कम अध्यापकों से अधिक से अधिक काम लिया जाता है। अध्यापकों को उचित सुविधाओं की व्यवस्था नहीं होती है। विद्यालय के कामों के अतिरिक्त प्रबन्धक समिति के काम, चुनाव कार्य इत्यादि में अध्यापक पूरे दिन व्यस्त रहते हैं, जिसके कारण उनको मानसिक आराम नहीं मिल पाता है।

(vi) मनोरंजन की कमी (Lack of Recreational Facilities) – अध्यापक को बहुत मानसिक कार्य करना पड़ता है, जिसके कारण यह आवश्यक हो जाता है कि उसको मनोरंजन की सुविधाएँ दी जायें, लेकिन हमारे अधिकांश विद्यालयों में मनोरंजन का कोई साधन नहीं है। फलतः अध्यापकों की इच्छाएँ दमित हो जाती हैं।

(vii) नौकरी में असुरक्षा की भावना (Insecurity of the job) – उत्तर प्रदेश में राजकीय विद्यालयों के अध्यापकों को छोड़कर अन्य सभी प्राइवेट विद्यालयों के अध्यापकों को नौकरी छूट जाने का भय बना रहता है, क्योंकि उनकी नौकरी अधिकांशतः ऐसे लोगों के हाथ में होती है जो जी-हजूरी चाहते हैं। यदि किसी अध्यापक ने उनके जायज या नाजायज हुक्म को न माना तो बस उसकी नौकरी खतरे में पड़ जाती है।

(viii) शिक्षण की सामग्री का अभाव (Lack of Teaching Material) – विद्यालय में शिक्षण सामग्री का पर्याप्त न होना ही अध्यापक के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है। देश में अनेक ऐसे विद्यालय हैं, जिनमें न पुस्तकालय है न वाचनालय और न ही पर्याप्त सहायक सामग्री।

अध्यापकों में मानसिक अस्वस्थता रोकने के उपाय (How to Reduce Mental health Among Teachers)

अध्यापकों में मानसिक तनाव कम करने के लिए कुछ सुझाव प्रस्तुत है-

1. नौकरी सुरक्षा (Security of the job) – अध्यापकों को नौकरी की सुरक्षा होनी चाहिए, जिससे वह किसी भी विद्यालय में निश्चिन्त रूप से काम कर सकें। सर्विस के नियमों में सुधार हो तथा उनका पालन अनिवार्य रूप से किया जाय ।

2. अध्यापकों को प्रशिक्षण (Teacher’s Training) – अध्यापकों को समय-समय पर प्रशिक्षण के लिए भेजते रहना चाहिए, जिससे वह नई अध्यापन विधियों से परिचित हो जायें। इससे अध्यापक लकीर का फकीर नहीं रहता और उसका दृष्टिकोण विस्तृत होता है।

3. जनतांत्रिक विचारधारा (Democratic Ideas) – प्रत्येक अध्यापक को अपने विचार व्यक्त करने का अवसर देना चाहिए। प्रधानाध्यापक का अध्यापकों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार होना चाहिए। समय-समय पर अध्यापकों की सभाओं का आयोजन करना चाहिए, जिनमें व्यक्तिगत और सामूहिक समस्याओं को सुलझाने का प्रयत्न करना चाहिए।

4. मनोरंजन के साधन (Means of Recreation) – प्रत्येक विद्यालय में अध्यापकों के लिए मनोरंजन के विभिन्न साधनों का प्रबन्ध किया जाय। इससे अध्यापकों में तनाव कम होगा।

5. रुचिकर कार्य (Hobbies) – प्रत्येक अध्यापक को विद्यालय के समय के पश्चात् किसी रुचिकर कार्य में अपना समय व्यतीत करना चाहिएं। इसमें उसे अपनी शक्तियों के विकास का पर्याप्त अवसर मिलेगा।

6. वेतन वृद्धि (Increase in salary) – वर्तमान समय में अध्यापकों को इतना कम वेतन मिलता है कि वह उससे अपना ठीक प्रकार से जीवन निर्वाह भी नहीं कर पाते हैं, जिसके कारण उनके मस्तिष्क में कई प्रकार की आर्थिक समस्याएँ बनी रहती हैं। यदि उनके वेतन में वृद्धि कर दी जाय तो दैनिक जीवन की बहुत सी समस्याएँ हल हो जायेंगी और इस प्रकार भविष्य में होने वाली मानसिक अस्वस्थता को रोका जा सकता है। अधिक वेतन मिलने से अध्यापक अपने आपको समाज के अन्य वर्गों से समान समझने लगता है और उसकी सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति अच्छी हो जाती है।

7. विद्यालय का वातावरण (School climate) – विद्यालय का वातावरण अध्यापक के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रत्यक्ष रूप से प्रभाव डालता है। वातावरण सहयोग और सहानुभूतिपूर्ण हो। पक्षपात तथा जातीयता की भावनाओं को कोई स्थान न दिया जाय।

8. सामाजिक कार्यों में रुचि (Interest in social work) – अध्यापकों को समय-समय पर सामाजिक कार्यों में रुचि लेनी चाहिए। समाज की विभिन्न क्रियाओं में हाथ बँटाना चाहिए।

9. कार्य के भार में कमी (Less work load) – आजकल अध्यापकों को इतना अधिक काम करना पड़ता है कि वे हर समय व्यस्त रहते हैं, जिसके कारण उनके मन में कई प्रकार की चिन्ताएँ बनी रहती हैं। अध्यापकों को अध्यापन में अधिक मानसिक कार्य करना पड़ता है। इसलिए उन पर काम का भार कम होना चाहिए। 10. अन्य सुविधाएँ (Other Facilities) – अध्यापकों को दूसरे व्यवसाय की भाँति चिकित्सा, बच्चों की शिक्षा, घर तथा पेंशन इत्यादि की सुविधाएँ मिलनी चाहिएँ।

11. अध्यापन की सुविधाएँ (Facilities of teaching) – विद्यालय में स्थान तथा अध्यापन सामग्री की सुविधाएँ दी जायें, जिससे शिक्षक उचित रूप में पढ़ा सकें।

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Anjali Yadav

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