बाल मनोविज्ञान / CHILD PSYCHOLOGY

बाल्यावस्था की प्रमुख रुचियाँ | major childhood interests in Hindi

बाल्यावस्था की प्रमुख रुचियाँ | major childhood interests in Hindi
बाल्यावस्था की प्रमुख रुचियाँ | major childhood interests in Hindi

बाल्यावस्था की प्रमुख रुचियों का वर्णन कीजिए।

बाल्यावस्था की प्रमुख रुचियाँ

1. शरीर में रुचि (Interest in Body)

छ-सात माह का बालक जब बैठना सीख जाता है, तब उसकी रुचि उसके स्वयं के शरीर के प्रति विकसित होने लगती है। इस अवस्था से वह अपने शरीर के विभिन्न अंगों को देखना और उन्हें ढूँढना या जानना प्रारम्भ करता है। लगभग वर्ष की अवस्था में वह दर्पण में जब अपनी मुखाकृति देखता है तो वह विभिन्न प्रकार से मुँह बनाता और हँसता है। हरलॉक (1974) का विचार है कि बालक जब साढ़े तीन वर्ष का हो जाता है, तब वह इस बात में रुचि लेने लगता है कि उसके शरीर के विभिन्न अंग किस प्रकार से क्रिया करते हैं। वह शीशे में अपने शरीर के विभिन्न अंगों को देखता है, उनके बारे में प्रश्न पूछता है। लार, पसीना और आँसू कहाँ से आते हैं, इनके बारे में वह प्रश्न पूछकर जानकारी प्राप्त करता है।

प्रारम्भ में बालक अपने शरीर के बाह्य अंगों के सम्बन्ध में रुचि रखता है, परन्तु बाद में उसमें आन्तरिक अंगों के बारे में रुचि विकसित होने लग जाती है। बालक में शरीर के प्रति रुचि जितनी ही अधिक होती है, वह शरीर के बारे में उतनी ही जानकारी प्राप्त करने का प्रयास करता है। वह किन स्रोतों और किन माध्यमों से अपने शरीर के सम्बन्ध में ज्ञान प्राप्त करेगा, यह बहुधा इस बात पर निर्भर करता है कि उसकी आयु क्या है। अध्ययनों में यह देखा गया है कि जिन बच्चों का समायोजन उपयुक्त प्रकार से होता है, उनमें अपने शरीर और स्वास्थ्य के सम्बन्ध में रुचि अपेक्षाकृत देर से विकसित होती है। इन अध्ययनों में यह भी देखा गया है कि बालक अपनी शैश्विक और सामाजिक असफलताओं का कारण कई बार अपने स्वास्थ्य और शरीर को भी बताता है।

2. वस्त्र सम्बन्धी रुचि ( Interest in Clothes)-

वस्त्रों में बालक की रुचि उतनी ही अधिक होती है, जितनी अधिक वस्त्रों से बालकों की आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। वस्त्रों से बालकों की जिन प्रमुख आवश्यकताओं की सन्तुष्टि होती है, वे निम्न प्रकार से हैं—

(1) स्वतन्त्रता  (Autonomy) की आवश्यकता की पूर्ति होती है।

(2) वह दूसरे लोगों के ध्यान (Attention) को वस्त्रों की सहायता से शीघ्र आकर्षित कर लेता है। नए, चमकीले-भड़कीले और कढ़े हुए कपड़े दूसरों का ध्यान शीघ्र आकर्षित करते हैं।

(3) वह अपनी वैयक्तिकता (Individuality) को वस्त्रों की सहायता से सरलता से बनाए रखता है।

(4) वस्त्रों की सहायता से वह अपने साथी समूह के साथ तादात्मीकरण (Identification) सरलता से स्थापित कर लेता है।

(5) लगभग दस वर्ष की अवस्था से अपनी यौन-उपयुक्तता (Sex Appropriateness) को बनाए रखने में वस्त्रों की आवश्यकता अनुभव करने लग जाता है।

बालकों की वस्त्रों में रुचि उनकी आयु बढ़ने के साथ-साथ परिवर्तित होती रहती है। बालकों की वस्त्रों में रुचि उतनी ही अधिक होती है, जितना अधिक वस्त्र उनकी आवश्यकताओं को पूर्ण करते हैं। बहुधा देखा गया है कि दुबले-पतले बच्चे स्वस्थ दिखाई देने के लिए मोटे और कलफदार कपड़ों को पहिनने में अधिक रुचि प्रदर्शित करते हैं। बच्चे नए-नए कपड़े पहिनने में अधिक रुचि लेते हैं। चूँकि नई वस्तुओं और कपड़ों में आकर्षण मूल्य (Attention Value) अधिक होता है, अतः बच्चे नए कपड़े पहनने को अधिक जिज्ञासु होते हैं। अध्ययनों में देखा गया है कि बच्चे हल्के और चमकीले रंगों वाले वस्त्र पहिनना अधिक पसन्द करते हैं, क्योंकि इस प्रकार के कपड़ों का आकर्षण मूल्य अधिक होता है। अधिकांश छोटे बच्चे कढ़े हुए वस्त्रों के प्रति अधिक रुचि प्रदर्शित करते हैं, परन्तु आयु बढ़ने के साथ-साथ उनकी इस प्रकार की रुचि कम होती जाती है। आयु बढ़ने के साथ-साथ बच्चा यह समझने लग जाता है कि किस अवसर पर किस प्रकार के वस्त्र पहनने चाहिए।

3. नामों में रुचि (Interest in Names)

बालक अपने नाम में तब तक रुचि नहीं लेता है, जब तक कि दूसरे व्यक्ति उसके नाम की प्रशंसा करते हैं अथवा आलोचना नहीं करते हैं। एक अध्ययन (J. W. McDavid & H. Harari, 1966) के अनुसार, बच्चे को जब इस बात हैं का ज्ञान हो जाता है कि जैसे वस्तुओं को उनके नामों से पहिचाना जाता है, ठीक उसी प्रकार से व्यक्तियों को भी उनके नामों से पहिचाना जाता है, तब वह अपने नाम में रुचि लेने लग जाते हैं। कई बार बच्चे अपने नाम में रुचि उस समय लेना प्रारम्भ करते हैं, जब उनके नाम का उच्चारण करने में अन्य लोगों को कठिनाई होती है। अपनी संस्कृति के बच्चों के दो या अधिक नाम हुआ करते हैं। इन दो नामों में एक उसके घर का नाम होता है और दूसरे उसके स्कूल का नाम होता है अथवा एक उसका प्यार का नाम होता है जो अस्थायी होता है तथा दूसरा वास्तविक नाम होता है जो स्थायी होता है। अधिकांश बच्चों के नाम एक, दो या तीन शब्दों के होते हैं।

अधिकांश बच्चे अपने पहले नाम में या नाम के पहले शब्द में अधिक रुचि रखते हैं। बच्चे अपने वास्तविक नाम की अपेक्षा घरेलू नाम में अधिक रुचि रखते हैं। एक बालक की उसकी नाम में रुचि उसके व्यवहार और व्यक्तित्व को महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करती है। उदाहरण के लिए, यह देखा गया है कि जो बालक अपने नाम को पसन्द नहीं करते हैं, वे स्वभाव से अधिक शर्मीले और संवेदनशील होते हैं। इस प्रकार के बच्चे सामाजिक उत्सवों में भाग लेना पसन्द नहीं करते हैं। बच्चों के अपने नाम न पसन्द करने के अनेक कारण हो सकते हैं—(1) पुराने टाइप का नाम हो, (2) उच्चारणमें कठिनाई हो, (3) बहुत नया या अनोखा नाम हो, (4) बहुत लम्बा नाम हो, (5) लिंग के अनुसार न हो, (6) बहुत छोटा नाम हो, (7) ऐसा नाम हो, जो लड़के और लड़कियों में कॉमन हो, आदि ।

4. धर्म में रुचि ( Interest in Religion )

बाल्यावस्था में ही बालकों में धर्म के प्रति रुचि उत्पन्न हो जाती है। धर्म में बालकों की जिज्ञासा उस समय बढ़ती है, जब वह अपने से बड़ों को पूजा-पाठ करते देखते हैं। धार्मिक रुचि में दो तत्व हैं-प्रथम, धर्म के प्रति विश्वास तथा द्वितीय, धर्म के नियमों, सिद्धान्तों और आदर्शों का पालन करना। बालकों की धार्मिक रुचि को यदि देखा जाय तो बालकों में धार्मिक रुचि का द्वितीय पक्ष पहले विकसित होता है। बालकों में धार्मिक रुचि का विकास बहुत कुछ उनकी बौद्धिक योग्यताओं, प्रशिक्षण और परिवार के धार्मिक वातावरण पर निर्भर करता है। अधिकांश प्राथमिक पाठशालाओं में कक्षा में जाने और पढ़ाई से पूर्व प्रार्थना होती है। इस प्रकार का प्रशिक्षण बालक में धर्म के प्रति रुचि के विकसित होने में सहायक है। चार-पाँच वर्ष का बालक जन्म-मृत्यु, स्वर्ग-नर्क और ईश्वर आदि के सम्बन्ध में रुचि प्रदर्शित करने लगता है। लगभग पाँच-छ: वर्ष का बालक धार्मिक कहानियों में रुचि प्रदर्शित करने लग जाता है। लगभग दस-बारह वर्ष के बालकों में धर्म के सम्बन्ध में सन्देह उत्पन्न होने लग सकते हैं।

5. सेक्स में रुचि (Interest in Sex)

छोटे बच्चे जब अपने खेल के साथियों के सम्पर्क में आते हैं. तब उनमें सेक्स के सम्बन्ध में रुचि का विकास प्रारम्भ हो जाता है। वयःसन्धि अवस्था (Puberty Stage) में विपरीत लिंग के लोगों के प्रति आकर्षण और रुचि बढ़ जाती है। हरलॉक (1974) का विचार है कि लगभग छः वर्ष के बालक में सेक्स के मामलों में क्रियात्मक रुचि पाई जाती है। इस अवस्था के बालक लड़के और लड़कियों के यौन सम्बन्धी अन्तरों को पहिचानने लग जाते हैं। सेक्स के प्रति जिज्ञासा को शान्त करने के लिए बालक कई विधियाँ अपनाते हैं—

1. प्रथम यह कि बालक अपनी इस जिज्ञासा को प्रश्न पूछ कर शान्त करते हैं, लगभग पाँच-छ: वर्ष तक के बालक अक्सर शारीरिक सेक्स सम्बन्धी अन्तरों के सम्बन्ध में प्रश्न पूछते हैं। कुछ अधिक बड़े बच्चे बालक के उत्पन्न होने में माता-पिता का क्या कार्य है; यह सीख जाते हैं।

2. बालक अपनी सेक्स के प्रति रुचि को अपने गुप्तांगों को प्रदर्शित करके भी व्यक्त करता है। लगभग छः वर्ष का बालक इस प्रकार की अभिव्यक्ति करने लग जाता है।

3. समलैंगिक खेल (Homosexual Play) और हस्तमैथुन (Masturbation) के द्वारा भी अपनी सेक्स के प्रति रुचि को व्यक्त करता है। छ:-सात साल के बच्चों में इस प्रकार की अभिव्यक्ति अक्सर देखी जाती है।

6. स्कूल में रुचि ( Interest in School)

बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है, स्कूल में उसकी रुचि में परिवर्तन होता जाता है। आयु बढ़ने के साथ-साथ विद्यालय में उसकी रुचि चयनात्मक (Selective) होती जाती है। विद्यालय में कुछ बच्चे तो पढ़ने-लिखने में अधिक रुचि रखते हैं तो कुछ खेलकूद में अधिक रुचि रखते हैं। एक अध्ययन (M. D. Simon, 1969) में यह देखा गया है कि यदि प्रारम्भ में बालक विद्यालय में अपने आपको भली-भाँति समायोजित कर लेता है तो विद्यालय में उसकी रुचि बढ़ती जाती है। माता-पिता की अध्यापकों और स्कूल आदि के प्रति अभिवृत्तियाँ भी बालक की इस प्रकार की रुचियों के विकास को महत्त्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करती हैं (L. J. Stone & J. Church, 1968)।

स्कूल के प्रति रुचि के विकास को अनेक कारक प्रभावित करते हैं; जैसे—साथ के भाई-बहिनों का प्रभाव, साथी समूह का प्रभाव, विद्यालय के वातावरण का प्रभाव, विद्यार्थी शिक्षक सम्बन्धों का प्रभाव, कार्य के प्रति अभिवृत्ति (Attitude towards Work) का प्रभाव आदि। इसके अतिरिक्त विद्यालय में बालक की सफलता और असफलता का प्रभाव भी बालक की इस प्रकार की रुचि के विकास पर पड़ता है। उदाहरण के लिए, कुछ अध्ययनों (N. A. Flanders, et al., 1968; T. Poffenberger & D. Norton, 1953) में यह देखा गया है कि जिन बालकों के विद्यालय परीक्षाओं में प्राप्तांक अच्छे नहीं होते हैं, उनमें विद्यालय के प्रति रुचि विपरीत प्रकार की होती है. इसी प्रकार से जो विद्यार्थी पढ़ने में तेज होते हैं, उनका समायोजन अच्छा होता है और उनमें विद्यालय के प्रति धनात्मक रुचि का विकास होता है (D. B. Waters, 1968)।

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Anjali Yadav

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