जल का परीक्षण (Water Testing)
वर्तमान में पर्यावरणीय व सामाजिक परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य की दृष्टि से जल का परीक्षण अत्यन्त आवश्यक होता है। इसके लिए निम्नलिखित परीक्षण किये जाते हैं-
- भौतिक परीक्षण (Physical Examination),
- रासायनिक परीक्षण (Chemical Examination),
- जीवाणु सम्बन्धी परीक्षण (Bacteriological Examination) |
1. भौतिक परीक्षण- इस परीक्षण के अन्तर्गत जल की गन्दगी, रंग, स्वाद और दुर्गन्ध का ज्ञान किया जा सकता है स्वाद के लिए चखकर, दुर्गन्ध सूंघकर तथा रंग व गन्दगी देखकर पता लगाया जा सकता है, परन्तु भौतिक परीक्षण से यह ज्ञात नहीं कर सकते कि जल स्वास्थ्य की दृष्टि से उपयुक्त है अथवा नहीं।
2. रासायनिक परीक्षण- इस परीक्षण से जल का मीठा या खारा होने का ज्ञान होता है। इस परीक्षण की मदद से जल में उपस्थित क्लोराइड, नाइट्रेट, अमोनिया, व अन्य मिश्रित खनिजों तथा कार्बनिक पदार्थों का भी पता चल जाता है स्वास्थ्य की दृष्टि से जल सेवन करने योग्य है अथवा नहीं, ज्ञात किया जा सकता है
3. जीवाणु सम्बन्धी परीक्षण- इस परीक्षण द्वारा जल में उपस्थित जीवाणुओं का पता चलता है। अगर जल में मल-मूत्र सम्बन्धी गन्दगी मिलावट हो तो इससे ज्ञात होता है। साधारण परीक्षणों से जीवाणुओं की उपस्थिति ज्ञात नहीं हो पाती है।
विद्यालय में जल का संग्रह तथा सम्भरण-विद्यालयों में शुद्ध जल-व्यवस्था की नितान्त आवश्यकता है। यदि इसमें जरा भी असावधानी हुई तो जल दूषित होने की सम्भावना हो जाएगी। विद्यालयों में लोहे या सीमेंट की टंकियों और पीतल या ताँबे के कलशों जल रखा जाता है, जस्तेदार लोहे या ताँबे की टंकियाँ जल रखने के लिए उपयुक्त हैं। धातु के बर्तनों में जल गर्म हो जाता है, इस कारण गमियों में मटकों में जल रखा जाता है। जिन पात्रों में भी जल भरा जाए, उनको सुरक्षित स्थान में उत्तम प्रकार से रखने का प्रबन्ध होना चाहिए। पीने के जल को रखने के लिए स्वच्छ हवादार स्थान होना. चाहिए जहाँ पर धूल व गन्दगी न पहुँच सके। पात्र ढककर रखने चाहिए। इन बर्तनों से जल को निकालने के लिए पृथक् ही पात्र होना चाहिए जिससे जल को निकालकर पीने के पात्र में दे दिया जाए। अगर टंकी या मटके में नल लगवा दिए जाएँ तो सबसे उचित है। इन बर्तनों को नित्यप्रति स्वच्छ रखना चाहिए। बर्तनों में प्रतिदिन ताजा व स्वच्छ जल भरना चाहिए।
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