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जवाहरलाल नेहरू (Jawahar Lal Nehru)
जवाहरलाल नेहरू का जन्म उत्तर प्रदेश की प्रसिद्ध धार्मिक नगरी प्रयागराज में 14 नवम्बर, 1889 को हुआ। घर पर उन्हें एक अंग्रेज अभिभावक द्वारा शिक्षा दिलायी गयी। यह वर्ष के हुए तो एफ. टी. बुक्स ने, जो थियोसोफिस्ट थे, उन्हें शिक्षा दी। 13 वर्ष की अल्पायु में ही थियोसोफीकल सोसाइटी के सदस्य बन गये। सन् 1905 में वह प्रसिद्ध हैरो विश्वविद्यालय में भर्ती हुए। सन् 1907 में उन्होंने ट्रिनिटी कॉलेज में प्रवेश लिया। प्राकृतिक विज्ञान के साथ-साथ उन्होंने साहित्य, इतिहास और अर्थशास्त्र का भी अध्ययन किया। सन् 1910 में उन्होंने कानून की पढ़ाई शुरू की और सन् 1912 में बैरिस्टर बन कर भारत लौटे। सन् 1916 में उनका विवाह हुआ। इन्हीं दिनों वे गांधीजी के घनिष्ठ सम्पर्क में आये और उनके भक्त बन गये।
अब उनका जीवन-लक्ष्य देश को आजाद कराना हो गया। कितनी ही बार जेल गये और कठोर यातनाएँ सहीं। अन्त में सन् 1947 में भारत स्वतन्त्र हुआ और वह पहली लोकप्रिय सरकार के प्रधानमन्त्री बने, जिस पद पर मृत्यु पर्यन्त कार्य करते रहे। उनकी मृत्यु 27 मई, 1964 को हुई।
नेहरू एक महान् अध्ययनशील राजनीति-लेखक, दार्शनिक, पथ-प्रदर्शक, वक्ता और राष्ट्रनायक थे। उन्होंने अनेक पुस्तके लिखी हैं। गांधीजी के पथ-प्रदर्शन में वह देश की लाखों करोड़ों निर्धन जनता के सम्पर्क में आये और उनकी आर्थिक समस्याओं का निकट से समझा। तब ही तो अपने राजनीतिक जीवन में प्रवेश करते ही उन्होंने वह घोषित किया कि मैं देश की निर्धन जनता की दुर्भाग्यपूर्ण दुर्दशा को दूर करना चाहता हूँ। इसी घोषणा को उन्होंने सन् 1936 में फैजपुर कांग्रेस के अधिवेशन के अध्यक्षीय पद से दोहराया। नेहरूजी ने रूस की यात्रा की थी। वहाँ चले रहे विकास कार्यों ने उन्हें बहुत प्रभावित किया।
जवाहरलाल नेहरू के प्रमुख आर्थिक विचार
नेहरूजी कोई अर्थशास्त्री नहीं थे, किन्तु उनके आर्थिक विचारों ने इस देश की अर्थनीति पर गहरा प्रभाव डाला। नीचे कुछ प्रमुख विचारों की चर्चा की गयी है :
(1) आर्थिक नियोजन- नेहरूजी रूस की प्रथम पंचवर्षीय योजना से बहुत प्रभावित हुए और इनके द्वारा उसका कांग्रेस की नीतियों पर भी प्रभाव पड़ा। सन् 1935 में कांग्रेस राष्ट्रीय नियोजन समिति के अध्यक्ष पद से भाषण करते हुए उन्होंने कहा, “राष्ट्र के आर्थिक नियोजन के लिए एक परमावश्यक शर्त यह है कि देश को पूर्ण स्वाधीनता मिले और वह समस्त बाह्रा नियन्त्रण से मुक्त हो जाय।”
(2) औद्योगीकरण- नेहरूजी तेज औद्योगीकरण चाहते थे। उनका कहना था कि उद्योग लघु ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी संख्या में स्थापित किये जायें ताकि उत्पादन बढ़ जाय और बेकारी में कमी आये, | किन्तु बड़े उद्योगों को तो वे अनिवार्य समझते थे। उनकी धारणा थी कि इनके बिना देश में कोई आर्थिक नियोजन सम्भव नहीं है। महत्वपूर्ण और बुनियादी उद्योगों पर राज्य का नियन्त्रण होना चाहिए। औद्योगीकरण के लिए वह वैज्ञानिक और तकनीकी विकास को बहुत आवश्यक समझते थे। उनका विश्वास था कि शक्ति (Power) ही प्रत्येक प्रकार की उन्नति का आधार है, किन्तु वह केवल विज्ञान और टेकान्लॉजी के द्वारा ही प्राप्त हो सकती है।
(3) समाजवाद के विषय में विचार- नेहरूजी की पुस्तक ‘Wither India’ में हमें भारत के राजनीतिक क्षेत्र में सर्वप्रथम समाजवाद के विचार उपलब्ध होते हैं। उनकी दृष्टि में समाजवाद का आशय समानता से था। इनका कहना था कि राज्य को उत्पत्ति-साधनों पर नियन्त्रण करना चाहिए ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपना हिस्सा आवश्यकताओं के अनुसार पा सके। किन्तु उनकी यह भावना कभी नहीं थी व्यक्ति की स्वतन्त्रता अथवा सम्पत्ति को खत्म कर दिया जाय। वह तो प्रजातन्त्रात्मक समाजवाद के समर्थक थे। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उन्होंने व्यक्ति की स्वतन्त्रता को प्राथमिकता दी। सन् 1945 और 1956 के औद्योगिक नीति प्रस्तावों से यह साफ पता चलता है कि कल्याण के लिए वे महत्वपूर्ण साधनों को ही नियन्त्रण में रखना चाहते थे।
(4) अर्थव्यवस्था – नेहरू जी का कहना था कि देश में अर्थव्यवस्था चाहे जो भी हो, किन्तु उससे सर्वसाधारण का कल्याण होना चाहिए न कि वर्ग विशेष का। वह इस बात पर निर्भर है कि अर्थव्यवस्था का नियन्त्रण कैसे होता है। यह मिश्रित अर्थव्यवस्था के समर्थक थे।
(5) भूमि सुधार – उनका विचार था कि भारत एक विशाल एवं कृषि प्रधान देश है। यहाँ पहला काम भूमि सुधारों का है। कृषि को गुणवान और उन्नत बनाने हेतु उन्होंने मशीनों के प्रयोग का सुझाव दिया। छोटे-छोटे खेतों में सहकारिता के महत्व पर भी प्रकाश डाला। उनको यह दृढ़ विश्वास था कि यदि सहकारी कृषि प्रशिक्षित व्यक्तियों के निरीक्षण में करायी जाय, तो उत्पादन बहुत बढ़ सकता है। वह सामूहिक कृषि के पक्ष में न थे। वह चाहते थे कि प्रत्येक किसान का अपनी भूमि पर पूरा और मौलिक अधिकार रहे, किन्तु कृषि कार्य संयुक्त रूप से करे और यह सब इच्छापूर्ण ढंग से होना चाहिए। उन्होंने ग्रामीण जनता के उत्थान के लिए सेवा सहकारों की स्थापना पर बहुत बल दिया।
महात्मा गांधी और नेहरूजी के आर्थिक विचारों में तुलना
(1) गांधीजी उत्पत्ति-साधनों पर राज्य के नियन्त्रण को अच्छा नहीं समझते थे, किन्तु नेहरू की आवश्यकतानुरूप उत्पत्ति-साधनों पर राज्य नियन्त्रण के समर्थक थे।
(2) गांधीजी ने लघु एवं कुटीर उद्योगों पर बहुत बल दिया, नेहरूजी ने बड़े पैमाने के उद्योगों को।
(3) महात्मा गांधी मशीनों के प्रयोग के पक्ष में नहीं थे, किन्तु नेहरूजी उत्पादन बढ़ाने के लिए इन्हें आवश्यक बताते थे।
(4) शोषण को समाप्त करने के लिए गांधीजी ने ट्रस्टीशिप का सिद्धान्त रखा. किन्तु नेहरूजी ने धनिक वर्ग की आय एवं सम्पत्ति को सीमित करने का सुझाव दिया।
(5) गांधी जी अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे, किन्तु नेहरूजी अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक सम्बन्धों के विकास को जरूरी मानते थे।
(6) गांधी पर भारतीय दर्शन का गहरा प्रभाव था, किन्तु नेहरूजी आधुनिक एवं व्यावहारिक थे।
किन्तु यह स्वीकार करना होगा कि गांधीजी की ही भांति नेहरूजी भी लोकतांत्रिक ढंग से देश का आर्थिक विकास चाहते थे।
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