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दूरस्थ शिक्षा की अवधारणा, आवश्यकता, विशेषताएँ, लाभ, एंव सीमाएँ

दूरस्थ शिक्षा की अवधारणा, आवश्यकता, विशेषताएँ, लाभ, एंव सीमाएँ
दूरस्थ शिक्षा की अवधारणा, आवश्यकता, विशेषताएँ, लाभ, एंव सीमाएँ

दूरस्थ शिक्षा की अवधारणा स्पष्ट कीजिए। भारत में दूरस्थ शिक्षा की आवश्यकता और विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। अथवा दूरस्थ शिक्षा से आप क्या समझते हैं ? दूरस्थ शिक्षा के लाभ एवं सीमाओं की विवेचना कीजिए।

दूरस्थ शिक्षा की अवधारणा (Concept of Distance Education)

‘दूरस्थ शिक्षा’ जैसा कि इसके शब्द से स्पष्ट होता है कि ‘दूर’ से ‘स्थान’ पर शिक्षा की व्यवस्था । दूरस्थ शिक्षा से तात्पर्य है कि सुदूर बैठकर शिक्षा प्राप्त करना। दूरस्थ शिक्षा वास्तव में मुक्त शिक्षा का ही एक रूप है। विविध पृष्ठभूमि वाले विविध भौगोलिक क्षेत्रों में बिखरे अधिगमकर्त्ताओं के हेतु दूरस्थ शिक्षा वरदान सिद्ध हुई है। इस शिक्षा में अधिगम प्रक्रिया शिक्षक द्वारा न होकर संचार माध्यमों द्वारा होती है। अधिगमकर्त्ता की स्वेच्छा और स्वक्रिया अधिक महत्त्वपूर्ण होती है। शिक्षार्थी अपनी गति और आवश्यकता के अनुरूप विषयवस्तु को ग्रहण करता है। यह शिक्षण अधिगम की एक सतत् प्रक्रिया है जिसमें संचार माध्यमों का प्रयोग होता है।

विभिन्न विद्वानों ने दूरस्थ शिक्षा की परिभाषा भिन्न-भिन्न प्रकार से की है-

प्रो० होमबर्ग का मत है- “दूरस्थ शिक्षा सभी स्तरों की विविध प्रकार की शिक्षा है जिसमें शिक्षक, विद्यालय की कक्षा में अपने छात्रों के साथ निरन्तर त्वरित निरीक्षण के लिए उपस्थित नहीं रहता परन्तु नियोजन, निर्देशन तथा शिक्षा की शैक्षिक व्यवस्था द्वारा उन्हें कम लाभ नहीं पहुँचता है।”

एफ० रीव एडॉस का विचार है- “दूरस्थ शिक्षा ऐसी शिक्षण पद्धति है जिसमें शिक्षक उन छात्रों को ज्ञान कौशल प्रदान करने की जिम्मेदारी लेता है जो मौखिक रूप से शिक्षा प्राप्त नहीं करते बल्कि ऐसे स्थानों तथा समय पर शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं जो उसकी व्यक्तिगत परिस्थितियों के अनुकूल है।”

डॉ० आर० ए० शर्मा के अनुसार, “मुक्त अधिगम की परिस्थितियाँ लचीली, स्वतंत्र और स्वच्छन्द होती हैं। शिक्षार्थी अपनी इच्छा व आवश्यकता के अनुरूप अपने अध्ययन की व्यवस्था कर सकता है।”

दूरस्थ शिक्षा की आवश्यकता (Needs of Distance Education)

दूरस्थ शिक्षा का आविष्कार शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति के हेतु हुआ है। इसकी आवश्यकता के पक्ष में निम्न बातें उल्लेखनीय हैं-

(1) शैक्षिक माँग की पूर्ति के लिए – आधुनिक युग में समाज के सभी वर्गों में शिक्षा की माँग बढ़ रही है। बढ़ती हुई जनसंख्या एवं शिक्षा के प्रति जनसामान्य के झुकाव के फलस्वरूप सबके लिए औपचारिक शिक्षा की व्यवस्था अत्यन्त कठिन है अतएव दूरस्थ शिक्षा की आवश्यकता है।

(2) जीवनपर्यन्त शिक्षा – शिक्षा जीवनपर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है। औपचारिक शिक्षा केवल कुछ ही वर्षों तक प्राप्त की जाती है। ऐसी स्थिति में दूरस्थ शिक्षा आजीवन प्राप्त की जा सकती है।

(3) सार्वभौमिक शिक्षा- की व्यवस्था हेतु आधुनिक युग में शिक्षा किसी वर्ग विशेष तक ही सीमित नहीं है और सार्वभौमिकता के सिद्धान्त को स्वीकार किया गया है। इस आवश्यकता ने ही दूरस्थ शिक्षा के प्रसार को जन्म दिया।

(4) गृह शिक्षा की व्यवस्था हेतु- आज भी समाज में अनेक लोग औपचारिक शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। प्रायः गृहस्थ महिलाएँ औपचारिक शिक्षा से वंचित रह जाती हैं फलस्वरूप यह अनुभव किया गया कि ऐसी शिक्षा प्रणाली विकसित की जाय जो लोगों को घर बैठे ही शिक्षा प्रदान करा सके, इसके परिणामस्परूप दूरस्थ शिक्षा की आवश्यकता का अनुभव किया गया।

(5) प्रौद्योगिकी शिक्षा में लाभ लेने हेतु- शिक्षा में प्रौद्योगिकी के लाभ हेतु भी दूरस्थ शिक्षा आवश्यक है। प्रौद्योगिकी के विकास के फलस्वरूप रेडियो, दूरदर्शन, आडियो, वीडियो, कैसेट्स आदि केवल मनोरंजन के साधन ही नहीं रहे बल्कि इनका उपयोग ज्ञानवर्धन के लिए किया जा रहा है।

दूरस्थ शिक्षा की विशेषताएँ (Characteristics of Distance Education)

  1. दूरस्थ शिक्षा में शैक्षिक तकनीकी के बहुआयामी माध्यमों का प्रयोग किया जाता है।
  2. मुद्रित सामग्रियों, दृश्य-श्रव्य साधन, संगणक आदि का उसमें अनुदेशन तथा अधिगम के लिये प्रयोग किया जाता है।
  3. यह सीखने तथा सिखाने की ऐसी प्रणाली है, जो निश्चित तथा स्थिर पाठ्य-वस्तु, समय शिक्षण विधियों और आमने-सामने बैठकर पढ़ने-पढ़ाने के बन्धन से मुक्त रखती है।
  4. इस प्रणाली में छात्र अपनी योग्यता और आवश्यकतानुसार वैयक्तिक ढंग से अध्ययन करते हैं।
  5. इसमें ज्ञान ऊपर से नहीं थोपा जाता है वरन् छात्र अपनी इच्छानुसार आन्तरिक प्रेरणा से अध्ययन करते हैं।
  6. इसमें सम्पर्क सत्र आयोजित करके विद्यार्थियों की कठिनाइयों को दूर किया जाता है।
  7. इसमें पाठ्यक्रम का संगठित स्वरूप होता है।
  8. यह शिक्षा नमनीय, सुलभ, सरल और कम खर्चीली होती है।
  9. यह प्रणाली विशिष्ट उद्देश्यों को पूरा करती है।
  10. इस प्रणाली का लाभ घर में बैठी महिलाओं, श्रमिकों, उपेक्षित छात्रों के लोगों द्वारा किसी प्रकार की शिक्षा से वंचित लोगों के लिये उपयोगी है।

दूरस्थ शिक्षा के लाभ (Advantage of Distance Education)

दूरस्थ शिक्षा के अनेकानेक लाभ हैं। यहाँ इनका उल्लेख संक्षेप में किया जा सकता है-

  1. यह शिक्षा सीमित संसाधनों के अन्तर्गत सभी के हेतु शिक्षण सुविधाएँ उपलब्ध कराती हैं।
  2. जनसंख्या वृद्धि के फलस्वरूप औपचारिक शिक्षा संस्थाओं पर बढ़ रहे दबाव को दूरस्थ शिक्षा कम करती है।
  3. शैक्षिक विस्तार करने और शिक्षा की सर्वसुलभता को सुनिश्चित करने की दृष्टि से भी यह शिक्षा लाभदायक है।
  4. दूरस्थ शिक्षा उन लोगों को सुनहरा अवसर प्रदान करती है जो औपचारिक शिक्षा से वंचित रह गये हैं अथवा जो सेवारत होते हुए भी अपने ज्ञान में वृद्धि करना चाहते हैं।
  5. दूरस्थ शिक्षा स्वनिर्देशित है जो अधिगमकर्ता को अपनी रुचि और गति के अनुसार स्वाध्ययन करने हेतु प्रेरित करती है।
  6. यह शिक्षा आवश्यकता और सामाजिक माँग के अनुरूप नूतन ज्ञान प्रदान करती है।
  7. यह शिक्षा का एक ऐसा उपागम है जिसमें सीखने वाले को सिखाने वाले के पास नहीं जाना होता बल्कि वह अपने घर पर ही शिक्षा प्राप्त करता है।
  8. यह शिक्षा कम खर्चीली है और इसमें समय सीमा पर विशेष बन्धन नहीं रहता।

दूरस्थ शिक्षा की सीमाएँ (Limitations of Distance Education)

आधुनिक परिवेश में दूरस्थ शिक्षा की उपयोगिता एवं आवश्यकता बहुत अधिक है परन्तु फिर भी इसकी कुछ सीमाएँ होती हैं यहाँ इनका उल्लेख संक्षेप में किया जा रहा है-

(1) दूरस्थ शिक्षा एकमार्गीय होती है। निर्देशन अथवा परामर्शदाता अपनी योजनानुसार उसकी व्यवस्था करता है और शिक्षार्थी अनुसरण करता है। इस व्यवस्था में शिक्षर्थी की भावना को ध्यान में नहीं रखा जाता।

(2) औपचारिक शिक्षा की भाँति इस शिक्षा में शिक्षक की सहभागिता नहीं होती। शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का महत्त्वपूर्ण पक्ष शिक्षक शिक्षार्थी के मध्य अन्तः क्रिया है परन्तु दूरस्थ शिक्षा में इसका अभाव रहता है। शिक्षक शिक्षार्थी से काफी दूर रहकर परोक्ष रूप से ही कार्य करता है।

(3) दूरस्थ शिक्षा में यद्यपि सभी को अपनी रुचि, योग्यता और गति के अनुसार सीखने की स्वतन्त्रता होती है किन्तु अधिगम सामग्री सभी के हेतु एक ही प्रकार की होती है और इसमें वैयक्तिक भिन्नता को ध्यान में नहीं रखा जाता है।

(4) दूरस्थ शिक्षा के द्वारा सैद्धान्तिक ज्ञान में तो आवश्यक वृद्धि हो जाती है परन्तु व्यावहारिक ज्ञान के विकास की बहुत कम सम्भावना रहती है क्योंकि यह शिक्षण पद्धति मात्र सूचनाओं पर आधारित होती है।

(5) समय के अन्तराल में दूरस्थ शिक्षा की धाराएँ दृढ़ हो जाती हैं और उनमें लोच अथवा नम्यता नहीं रहती।

(6) पाठ्य सामग्री की उपादेयता के सम्बन्ध में शिक्षार्थियों से कोई राय नहीं ली जाती।

(7) कभी-कभी मुद्रित पाठ्य सामग्री समय पर शिक्षार्थियों को नहीं भेजी जाती।

(8) सम्पर्क कार्यक्रमों में परामर्शदाता शिक्षार्थियों की समस्याओं का निराकरण करने में बहुत कम प्रयास करता है।

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About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

1 Comment

  • नमस्कार Anjali,
    आपने अपने पोस्ट के माध्यम से डिस्टेंस एजुकेशन के फायदे और नुकसान के बारे में बहुत ही अच्छा पोस्ट लिखा है , आपके पोस्ट के माध्यम से बहुत से छात्रों का सपना पूरा होगा।
    मैंने अपना कोर्स डिस्टेंस एजुकेशन के माध्यम से पूरा किया है , आज अगर IGNOU university न होता तो शायद मै अपना पढाई पूरा नहीं कर पाता।
    जब भी हम डिस्टेंस यूनिवर्सिटी के बारे में बात करते है तो हमारे मन में सबसे पहले IGNOU यूनिवर्सिटी का नाम आता है.
    जिन छात्रों का पढाई किसी कारण पूरा नहीं हो पाया है अर्थात काम के चलते वो पढाई में पूरा समय नहीं दे सकते है उनके लिए सबसे बेहतर उपाय है
    आप अपने पोस्ट में डिस्टेंस एजुकेशन के एक और फायदे को जोड़ सकते है , (उम्र की सिमा)
    क्यूंकि डिस्टेंस लर्निंग में किसी भी प्रकार का अधिकतम उम्र का सिमा नहीं होता , मेरे खुद के एक रिश्तेदार है जिन्होंने 51 वर्ष में अपना ग्रेजुएशन कम्पलीट किया है

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