पाठ्चर्या के महत्त्व को स्पष्ट कीजियें ।
पाठ्यचर्या के महत्त्व को निम्नलिखित विचारों से प्रस्तुत किया जा सकता है-
1. छात्रों की मनौवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति – मानव एक सामाजिक प्राणी होने के नाते मुख्य रूप से समायोजन की क्रियाओं में रूचि रखता है और ऐसे कार्यों को करना चाहता है जिनसे उसकी वर्तमान आवश्यकताएँ पूरी होती है। और साथ ही भावी आवश्यकताओं की पूर्ति की सम्भावना बढ़ती है। पाठ्यचर्या निर्माण में यही बातें सहायक होती है। इसलिये बच्चे ऐसी पाठ्यचर्या पूरी करने में रूचि लेते हैं और सक्रिय रूप से भाग लेकर उस कार्य को निश्चित समय में पूरा कर लेते हैं। कार्य में सफल होने पर उन्हें प्रसन्नता होती है और आगे करने के लिए उनका उत्साह और भी बढ़ जाता है।
2. समय और शक्ति का सदुपयोग- पाठ्यचर्या यह निश्चित कर देती है कि शिक्षक को क्या करना है। इसलिए उन छात्रों को सीखने में सहायता प्रदान करना सरल हो जाता है। और छात्रों को भी यह ज्ञात रहता है उन्हें क्या सीखना है। इस प्रकार शिक्षण अधिगम प्रक्रिया सुचारू रूप से चलती है और साथ ही शक्ति और समय की बचत होती क्योंकि अध्यापक एवं छात्र दोनों ही निरन्तर सही दिशा में अग्रसर रहते है।
3. शिक्षा का स्तर समान होना- पाठ्यचर्या समाज की शिक्षा का स्तर समान बनाने में एक निश्चित भूमिका निभाती है। साथ ही प्राप्त परिणामों से शिक्षा में सुधार के लिए दिशा मिलती है।
4. शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति- शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए नए-नए आयाम तथा नए-नए परिवर्तनों एवं विषयों का ज्ञान पाठ्यचर्या के माध्यम से ही प्राप्त होता है। यदि पाठ्यचर्या उपयुक्त नहीं होगी तो उद्देश्य प्राप्त नहीं होगें।
5. शिक्षा प्रक्रिया व्यवस्थित होती है- पाठ्यचर्या बनाते समय यह ध्यान रखा जाता है कि श्रेणी विशेष के छात्रों को कितना ज्ञान देना है और उन्हें किन-किन क्रियाओं (कौशलों) में दक्षता प्रदान करनी है। यह सब कार्य पाठ्यचर्या द्वारा ही सम्भव हो पाती है। इस प्रकार निश्चित पाठ्यचर्या ही शिक्षक की प्रक्रिया को व्यवस्थित करने में सहायता देती है।
6. पाठ्यपुस्तकों के निर्माण में सहायक- निश्चित् पाठ्यचर्या लेखकों के लिए मार्गदर्शन का कार्य करती है। जिससे सही और अच्छी पाठ्य पुस्तकें तैयार होती है और ये पाठ्य पुस्तकें शिक्षा को व्यवस्थित बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है।
7. मूल्यांकन में सहायक- छात्रों की सफलता और असफलता का ज्ञान मूल्यांकन होता है। मूल्यांकन की विधि और उपकरणों के चयन में पाठ्यचर्या बहुत सहायक सिद्ध होती है। इस प्रकार छात्रों को सही या सफलता का ज्ञान पाठ्यचर्या द्वारा नियोजित किया जा सकता है।
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