पैमाने के प्रतिफल के निर्धारक तत्व (Determining Elements of Returns to Scale)
पैमाने के तीनों प्रतिफल के लागू होने के भिन्न-भिन्न कारण हैं :
(A) पैमाने के वर्द्धमान प्रतिफल के लागू होने के कारणों में निम्नलिखित तत्व सम्मिलित हैं :
(1) साधनों की अविभाज्यताएँ (Indivisibility of Factors) – कुछ उत्पत्ति के साधन निश्चित आकार के होते हैं जिसके कारण उनको विभाजित करके प्रयोग नहीं किया जा सकता। साधनों की अविभाज्यता के कारण प्रारम्भ में इन साधनों का पूर्ण विदोहन (Optimum Utilization) सम्भव नहीं हो पाता। पैमाने में वृद्धि होने पर इन अविभाज्य साधनों का पूर्ण प्रयोग होने से पैमाने के वर्द्धमान प्रतिफल प्राप्त होते हैं।
(2) श्रम विभाजन (Division of Labour ) – प्रो० चैम्बरलिन श्रम विभाजन को वर्द्धमान प्रतिफल का मुख्य कारण मानते हैं। श्रम विभाजन से कार्यक्षमता में वृद्धि होती है जिसके कारण पैमाने के वर्द्धमान प्रतिफल प्राप्त होते हैं।
(3) विशिष्टीकरण (Specialization) – श्रम विभाजन विशिष्टीकरण को जन्म देता है जिससे अधिक क्षमता वाले साधन प्रयोग में लाए जा सकते हैं, फलतः उत्पादन में वृद्धि होती है और पैमाने के वर्द्धमान प्रतिफल मिलते हैं।
(B) पैमाने के स्थिर प्रतिफल प्राप्त होते हैं क्योंकि — पैमाने के वर्द्धमान प्रतिफल सदैव उपस्थित नहीं रहते । अविभाज्य साधनों के पूर्ण विदोहन की दशा में पैमाने के प्रतिफल प्राप्त होते हैं। इस दशा में फर्म के उत्पादन पैमाने में परिवर्तनों का साधनों के प्रयोग की कुशलता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता पैमाने के स्थिर प्रतिफल केवल अल्पकाल के लिए उपस्थित होते हैं जिसके बाद पैमाने के ह्रासमान प्रतिफल उत्पन्न होते हैं।
(C) पैमाने के ह्रासमान प्रतिफल मुख्यतः बढ़ते संगठन एवं प्रबन्ध (Increasing Organization and Management) की समस्याओं के कारण उत्पन्न होते हैं । निम्नलिखित बिन्दुओं को पैमाने के ह्रासमान प्रतिफल का कारण कहा जा सकता हैं-
(1) यद्यपि उत्पत्ति के साधनों को आनुपातिक रूप से बढ़ाया जाता है फिर भी संगठन एवं प्रबन्ध को उसी अनुपात में नहीं बढ़ाया जा सकता, फलतः पैमाने के ह्रासमान प्रतिफल उत्पन्न होते हैं।
(2) बड़े पैमाने पर कार्य जोखिमपूर्ण होता है।
(3) पैमाने को एक सीमा के बाद बढ़ाने पर हानियाँ (Diseconomies) उत्पन्न होती हैं। पैमाने के ह्रासमान प्रतिफल का यह मुख्य कारण है।
(4) उत्पत्ति के साधन पूर्ण स्थानापन्न (Perfect Substitutes) नहीं होते जिसके कारण सीमान्त उत्पादन में कमी होती है।
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