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प्रकृतिवादी दर्शन तथा रूसो की प्रकृतिवादी दर्शन की प्रमुख विशेषताएँ

प्रकृतिवादी दर्शन तथा रूसो की प्रकृतिवादी दर्शन की प्रमुख विशेषताएँ
प्रकृतिवादी दर्शन तथा रूसो की प्रकृतिवादी दर्शन की प्रमुख विशेषताएँ

प्रकृतिवादी दर्शन से आप क्या समझते हैं ? रूसो की प्रकृतिवादी दर्शन की प्रमुख विशेषताओं की व्याख्या कीजिए। अथवा रूसो के शैक्षिक विचारों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।  रूसो द्वारा प्रतिपादित शिक्षा के उद्देश्य, उसके पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधि बतलाइए। अथवा रूसो की प्रकृतिवादी दर्शन की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं ? शिक्षक, विद्यार्थी एवं अनुशासन पर रूसो के प्रकृतिवाद के प्रभाव की विवेचना कीजिए।

प्रकृतिवादी दर्शन (Naturalistic Philosophy)

प्रकृतिवाद के दार्शनिक स्वरूप को हम निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत जान सकते हैं-

प्रकृतिवाद की तत्त्व मीमांसा (Metaphysics of Naturalism)

प्रकृतिवाद की तत्त्व मीमांसा का हम निम्न प्रकार से वर्णन सकते हैं-

  1. पदार्थ ही जगत का आधार है।
  2. पदार्थ, मनस् अथवा जीवन की व्याख्या यह दर्शन भौतिक व रासायनिक नियमों से करता है।
  3. प्रकृति ही सब कुछ है, इसके परे कुछ भी नहीं।
  4. प्रकृतिवादियों के अनुसार, “आत्मा पदार्थजन्य चेतन तत्त्व है।”
  5. प्रकृतिवाद आत्मा को पदार्थ का ही अंग मानते हैं।
  6. प्रकृतिवाद आध्यात्मिकता के विपरीत है।
  7. सम्पूर्ण सृष्टि में नियम विद्यमान हैं। सब कार्य नियमानुसार होते हैं। ये नियम प्रकृति के स्वयं के नियम हैं।
  8. मनुष्य भी प्रकृति का अंग है।

प्रकृतिवाद की ज्ञान मीमांसा (Epistemology of Naturalism)

  1. प्रकृति का ज्ञान ही वास्तविक ज्ञान है।
  2. प्रकृति का ज्ञान प्राप्त करना ही मनुष्य जीवन का लक्ष्य है।
  3. प्राकृतिक ज्ञान प्राप्ति का साधन इन्द्रियाँ हैं।
  4. प्रकृतिवादी ज्ञान प्राप्ति के लिए निरीक्षण, वैज्ञानिक विधि या आगमन विधि को महत्त्वपूर्ण मानते हैं।
  5. रूसो ने शिक्षा के सब स्तरों पर प्रत्यक्ष ज्ञान को महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान करने के लिए कहा है।
  6. सत्य को अनुभव से प्राप्त करने के समर्थक हैं।

प्रकृतिवाद की मूल्य मीमांसा (Axiology of Naturalism)

  1. प्रकृतिवादियों के अनुसार मूल्य प्रकृति में ही विद्यमान है।
  2. समाज द्वारा निर्धारित मूल्यों को ये स्वीकार नहीं करते।
  3. प्रकृतिवादियों ने सुख को सर्वोच्च स्थान दिया है।
  4. यह वाद कोई आध्यात्मिक व नैतिक बन्धन स्वीकार नहीं करता।
  5. मनुष्य को अपनी प्रकृति के अनुकूल ही आचरण करना चाहिए।

रूसो का जीवन तथा शिक्षा (Life Sketch and Education of Rousseau)

रूसो का नाम जीन जैक्स रूसो था। इनका जन्म 1712 ई० में जेनेवा में हुआ था। रूसो की माता का देहान्त शीघ्र ही हो गया था, जिससे उनके पालन-पोषण का उत्तरदायित्त्व उनकी चाची ने सँभाला था। उसका पिता एक घड़ी साज था, उसने भी रूसो के पालन-पोषण पर कोई ध्यान नहीं दिया था। वह आवारागर्दी में इधर-उधर घूमा करता था। किशोरावस्था में वह प्रकृति से प्रेम करने लगा था। विद्यालयों में अनुशासन स्थापित करने के लिए कठोर दण्ड दिया जाता था इसलिए वह विद्यालयों की ओर आकर्षित नहीं हुआ था। युवावस्था में समाज ने उनके ऊपर अनेक आरोप लगाकर उसे दण्डित किया। वह इस कठोर व्यवहार को सहन न कर सका और स्वदेश छोड़कर वह फ्रांस चला गया था। फ्रांस में रूसो ने प्लेटो, हॉब्स, लॉक, वाल्टेयर आदि की रचनाओं का अध्ययन किया। आपका स्वर्गवास 1778 ई० में हो गया था।

रूसो के शैक्षिक विचार- रूसो के शैक्षिक विचारों को प्रकृतिवाद का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है। रूसो एक महान प्रकृतिवादी है। उसके दार्शनिक विचारों का शिक्षा के प्रत्येक अंग पर प्रभाव पड़ा है। यहाँ हम रूसो के शैक्षिक विचारों का वर्णन करेंगे।

रूसो की प्रकृतिवादी दर्शन की प्रमुख विशेषताएँ (Various Features of Rousseau’s Naturalistic Education)

रूसो के प्रकृतिवादी दर्शन की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं-

शिक्षा का अर्थ (Meaning of Education )

वास्तविक शिक्षा में ज्ञान को बाहर से बालक के अन्दर नहीं दूंसा जाता है वरन् उसकी अन्तर्निहित शक्तियों का विकास किया जाता है। रूसों के शब्दों में, “सच्ची शिक्षा वह शिक्षा है जो व्यक्ति के अन्दर से प्रस्फुटित होती है। यह व्यक्ति की अन्तर्निहित शक्तियों का विकास है।”

शिक्षा के उद्देश्य (Aims of Education)

रूसो ने शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य बताये हैं-

1. वर्तमान सुख की प्राप्ति करना- रूसो शिक्षा का उद्देश्य बालक को वर्तमान सुख की प्राप्ति मानता हैं। उसके अनुसार बालक की शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिससे उसका वर्तमान जीवन सुखी हो सके। वह बालकों के अभिभावकों को चेतावनी देते हुए कहता है- रूसो का कहना है कि “हे पिताओ ! क्यों इन निर्दोष बालकों के आनन्द को छीनते हो जो क्षण भर में मिट जायेगा।”

2. बालक की आन्तरिक शक्तियों का विकास करना- रूसो बालक की आन्तरिक शक्तियों का विकास शिक्षा के द्वारा करना चाहता है। रूसो बालक को पूर्ण स्वतन्त्रता देने के पक्ष में है जिससे बालक की आन्तरिक शक्तियों का पूर्ण तथा स्वाभाविक विकास हो सके जब बालक पूर्ण रूप से विकसित होगा तभी वह अपने जीवन का आनन्द ले सकेगा। रूसो के अनुसार मैं बालक को जीवित रहने की कला सिखाता हूँ।”

3. मानव गुणों का विकास करना- रूसो बालक में मानव गुणों का विकास करना चाहता है। वह बालकों को ऐसी शिक्षा देना चाहता है जिससे वह मनुष्य बन सके। वह अपने वास्तविक जीवन में किसी भी व्यवसाय को चुन सकता है परन्तु उसमें मानव के गुण अवश्य होने चाहिये। रूसो ने लिखा है, “मुझे इस बात का कोई प्रयोजन नहीं कि मेरा शिष्य सेना, चर्च या न्यायालय में काम करेगा। इससे पहले कि वह अपने माता-पिता के व्यवसाय को करने का विचार करे। प्रकृति चाहती है कि वह मनुष्य बने।”

पाठ्यक्रम (Curriculum )

रूसो ने शिक्षा के पाठ्यक्रम को बालक के विकास की विभिन्न अवस्थाओं के अनुसार निर्धारित किया है। रूसो द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम की रूपरेखा यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं-

1. शैशवावस्था के लिए पाठ्यक्रम- रूसो शैशवावस्था में बालक का शारीरिक विकास करना चाहता है। इस दृष्टि से वह पाठ्यक्रम में खेल-कूद, घूमना-फिरना आदि शारीरिक क्रियाओं को स्थान देना चाहता है।

2. बाल्यावस्था के लिए पाठ्यक्रम- रूसो बाल्यावस्था में बालकों को केन्द्रीय प्रशिक्षण देना चाहता है। इन्द्रियों के प्रशिक्षण के लिये पाठ्यक्रम में नृत्य, संगीत, खेलकूद, नापना, तौलना, गिनना, निरीक्षण आदि क्रियाओं का स्थान दिया जाना चाहिए। इस अवस्था में वह निषेधात्मक शिक्षा (Negative Education) देना चाहता है।

3. लड़कपन के लिए पाठ्यक्रम- रूसो लड़कपन में बालक का ‘बौद्धिक विकास’ करना चाहता है। इस अवस्था के लिए पाठ्यक्रम में गणित, भाषा, प्राकृतिक विज्ञान, भूगोल, कला, दस्तकारी आदि विषयों को स्थान देना चाहता है।

4. किशोरावस्था के लिए पाठ्यक्रम- किशोरावस्था में रूसो बालक का धार्मिक, नैतिक और सामाजिक विकास करना चाहता है। इस दृष्टि से पाठ्यक्रम भाषा, साहित्य, इतिहास, अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, दर्शन, धर्म आदि विषयों को स्थान देना चाहता है।

5. स्त्री शिक्षा का पाठ्यक्रम- रूसो स्त्री शिक्षा का उद्देश्य पुरुष के साधनों में वृद्धि करना मानता है। वह स्त्रियों की शिक्षा को पुरुष की शिक्षा से भिन्न करने के पक्ष में है। उनके पाठ्यक्रम में वह शारीरिक शिक्षा, गृह शिक्षा, संगीत, नृत्य कला, सिलाई, बुनाई आदि विषयों को स्थान देना चाहता है।

शिक्षण विधि (Teaching Method)

रूसो शिक्षण विधि का निर्धारण करने के लिए निम्न सिद्धान्तों का समर्थन करता है-

1. करके सीखना, 2. निरीक्षण द्वारा सीखना, 3. अनुभव द्वारा सीखना, 4. अन्वेषण द्वारा सीखना, 5. खेल द्वारा सीखना।

इन सिद्धान्तों को शिक्षण विधियों को अपनाकर निम्नलिखित विधियों का निर्माण किया गया- 1. निरीक्षण विधि, 2. अन्वेषण विधि, 3. किण्डरगार्टन विधि, 4. खेल विधि।

शिक्षक (Teacher)

रूसो ने शिक्षक का स्थान प्रकृतिवादी दर्शन के अनुसार निर्धारित किया है। वह शिक्षक को बालकों का ‘मित्र’, ‘पथ प्रदर्शक’ और ‘सहयोगी’ मानता है। शिक्षक को चाहिए कि वह बालकों की क्रियाओं में बाधक सिद्ध न हो। बालक का स्वतन्त्र विकास होना चाहिए। शिक्षक को बालकों को स्वाभाविक विकास के लिए प्राकृतिक वातावरण की रचना करनी चाहिए। शिक्षा में अध्यापक का स्थान गौण है।

शिक्षार्थी (Student)

रूसो शिक्षार्थी को शिक्षा प्रक्रिया में केन्द्रीय ध्यान देता है। बालक को वह जन्म से ही पवित्र मानता है। उसके शब्दों में- “रचनाकार के हाथों में प्रत्येक वस्तु सुन्दर होती है किन्तु मानव के हाथों में आकर दूषित हो जाती है।”

‘‘बालक का समाज अपने आप में पूर्ण है। समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाने के लिए उसकी पवित्रता को नष्ट नहीं करना चाहिए।”       -रूसो

विद्यालय ( School)

रूसो विद्यालय के वातावरण से सन्तुष्ट नहीं था। समाज की कृत्रिमता की छाप विद्यालय पर स्पष्ट देखने को मिलती है। इसलिए उसने कहा था- प्रकृति की ओर लौटो । विद्यालय की स्थापना समाज से दूर होनी चाहिए। वह विद्यालय में ‘प्राकृतिक वातावरण’ रखना चाहता है। बालक को विद्यालय में पूर्ण स्वतन्त्रता दी जानी चाहिए। विद्यालय में कोई समय सारिणी या नियन्त्रण नहीं होना चाहिए।

अनुशासन (Discipline )

रूसो ने दमनात्मक अनुशासन का घोर विरोध किया है। रूसो ने अनुशासन का एक नवीन रूप प्रस्तुत किया जिसे “प्राकृतिक परिणामों द्वारा अनुशासन” कहते हैं। इसका यह अर्थ है कि बालक को मनुष्य द्वारा दण्ड नहीं दिया जाना चाहिए। यदि बालक कोई गलत काम करेगा तो प्रकृति उसे स्वयं दण्ड देगी। रूसो ने स्वयं कहा- “बालक को कभी दण्ड नहीं देना चाहिए। दण्ड तो उनकी मूल प्राकृतिक परिणाम के रूप में होना चाहिए।” वह मुक्तयात्मक अनुशासन का भी समर्थन करता है। इनमें बालक को पूर्ण स्वतन्त्रता दी जानी चाहिए तभी उनका स्वाभाविक विकास हो सकेगा।

रूसो के शैक्षिक विचारों का मूल्यांकन (Evaluation of Rousseaus Educational View)

1. शिक्षा का नवीन अर्थ- रूसो ने शिक्षा के प्राचीन अर्थ का विरोध किया और शिक्षा का नवीन अर्थ प्रस्तुत किया। उनके अनुसार शिक्षा आन्तरिक विकास की प्रक्रिया है। वह शिक्षा को जीवन की तैयारी ही न मानकर उसे स्वयं जीवन मानता है। रूसो की शिक्षा धारण को जान डीवी ने 20वीं शताब्दी में और अधिक स्पष्ट किया था।

2. शिक्षा में मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति- रूसो ने शिक्षा में मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति को जन्म दिया। इस प्रवृत्ति को पेस्टोलाजी, हरबर्ट तथा फ्रॉबेल ने और अधिक विकसित किया है।

3. शिक्षा में वैज्ञानिक प्रवृत्ति- रूसो ने शिक्षा में वैज्ञानिक प्रवृत्ति का सूत्रपात किया। इसके बाद इस प्रवृत्ति को हरबर्ट ने और विकसित किया था। रूसो ने विज्ञान के अध्ययन परे विशेष बल दिया है।

4. शिक्षा में सामाजिक प्रवृत्ति- रूसो ने ‘एमील’ में सामाजिक कुशलता, सहकारिता, सहयोग, सहानुभूति आदि को शिक्षा में स्थान दिया है। वह बालक में मानव गुणों का विकास करना चाहता है। रूसो के इन विचारों से सामाजिक प्रवृत्ति का जन्म हुआ है।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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