शिक्षाशास्त्र / Education

प्रशिक्षण (अधिगम) के स्थानान्तरण का अर्थ एवं परिभाषा | स्थानान्तरण की दशायें 

प्रशिक्षण के स्थानान्तरण का अर्थ एवं परिभाषा लिखिए तथा इसकी प्रमुख दशाओं का वर्णन कीजिए।

प्रशिक्षण (अधिगम) के स्थानान्तरण का अर्थ- प्रशिक्षण के स्थानान्तरण का अर्थ है जो कुछ सीखा जाए, अनुभव किया जाए उसका स्थान बदल दिया जाये अर्थात् एक स्थान से, एक क्षेत्र से दूसरे में प्रयोग किया जाये। उदाहरण के लिए हम भाषा सीखते हैं तो उसकी योग्यता को गणित सीखने में काम में लाते हैं। इस प्रकार से स्थानान्तरण परिस्थिति बदलकर योग्यता के प्रयोग करने की प्रक्रिया है। इस संबंध में सोरेन्सन महोदय ने लिखा है- “स्थानान्तरण एक परिस्थिति में अर्जित ज्ञानं प्रशिक्षण और आदतों को दूसरी परिस्थिति में स्थानान्तरित किये जाने का संकेत करती है।” वास्तव में प्रशिक्षण का स्थानान्तरण मस्तिष्क की क्रिया शक्ति और समर्थता का विभिन्न क्षेत्रों में समान रूप से प्रयोग करना ही है। ऐसा विचार हमें सी० वी० गुड के शब्दों में मिलता है। अपनी पुस्तकं ‘डिक्शनरी ऑफ एजूकेशन’ में गुड महोदय लिखते हैं कि “प्रशिक्षण का स्थानान्तरण या संशोधन, किसी अधिगम या अभ्यास द्वारा बिना सीधे प्रशिक्षण के किसी एक सम्बन्धित क्रिया में अधिगम या अभ्यास, अधिगम में आदान प्रदानात्मक संशोधन के द्वारा सीखने में एक निश्चित सुधार, सरल क्रियापन या संशोधन।” अब स्पष्ट हो जाता है कि प्रशिक्षण का स्थानान्तरण तब होता है। जब कोई व्यक्ति एक बार सीखे हुए ज्ञान, अनुभव, अभ्यास आदि को दूसरे क्षेत्र में बिना किसी प्रशिक्षण के स्वाभाविक तौर पर दूसरी सम्बन्धित क्रियाओं में प्रयोग करता है। इससे प्रशिक्षण के स्थानान्तरण का अर्थ सूक्ष्म रूप में एक क्षेत्र के ज्ञान अनुभव कौशल को दूसरे क्षेत्र में लगाना होता है।

प्रशिक्षण के स्थानान्तरण की परिभाषा –

(1) “जब कोई व्यक्ति किसी विशिष्ट उद्दीपक के प्रति अनुक्रिया करता है तो सीखना होता है। जब एक विशेष प्रकार के सीखने का अनुभव प्रभावकारी रूप से अनुक्रिया करने की व्यक्ति की योग्यता को उससे भिन्न तरीके पर प्रभावित भी करता है तब प्रशिक्षण का हस्तान्तरण होता है।” – मेनरो

इससे स्पष्ट है कि सीखना और प्रशिक्षण का स्थानान्तरण दोनो भिन्न क्रियाएं हैं। एक में परिस्थिति के अनुकूल प्रतिक्रिया होती है तो दूसरे में उस अनुक्रिया को फिर से दूसरी स्थिति में प्रयोग किया जाना संभव होता है ।

(2) “स्थानान्तरण आरम्भि स्थिति में प्राप्त ज्ञान, कौशलों, आदतों, अभिवृत्तियों या अन्य अनुक्रियाओं को दूसरी स्थिति में प्रयोग करना होता है।” – कालसनिक

इस परिभाषा में भी पूर्व अर्जित ज्ञान, कौशल और अभिवृत्ति को कालसनिक ने पुनः प्रयोग करना बताया है। अत एवं स्थानान्तरण में प्रयोग पर बल देते हैं, जबकि सीखने में अर्जन पर बल दिया जाता है।

(3) “चिन्तन्, अनुभूति या काम करने की आदतों, ज्ञान या कौशलों को सीखने के एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में ले जाने (प्रयोग करने) को प्रायः प्रशिक्षण के स्थानान्तरण के रूप में संकेत किया जाना चाहिए।” – क्रो एवं क्रो

इस परिभाषा में भी प्रयोग पर बल दिया गया है। अतएवं स्पष्ट है कि प्रशिक्षण के स्थानान्तरण में भी पूर्व ज्ञान कौशल को फिर से काम में लाना पाया जाता है और उससे प्रगति होती है। उपरोक्त विचारों से स्पष्ट है कि प्रशिक्षण का स्थानान्तरण एवं मानसिक प्रक्रिया है जो मानसिक अनुशासन पर निर्भर करती है।

स्थानान्तरण की दशायें 

स्थानान्तरण की प्रमुख दशाएं निम्नलिखित हैं-

(1) स्थानान्तरण की निश्चित मात्रा- इसका तात्पर्य यह है कि स्थानान्तरण एक निश्चित समय में एक निश्चित मात्रा में हुआ करता हैं न कि पूरी तौर पर इसके लिए परिस्थितियाँ भी निश्चित होती है। यह निश्चित पर्यावरण में ही संभव हो पाता है ऐसा शिक्षा शास्त्रियों का विचार है। इस सम्बन्ध में रायबर्न ने बताया है कि “स्थानान्तरण निश्चित परिस्थिति में निश्चित मात्रा में हो सकता है। “

( 2 ) स्थानान्तरण सीखने वाले के संकल्प पर निर्भर- दूसरी शर्त यह है कि सीखने वाला जैसा निश्चय करता है उसी ढंग से स्थानान्तरण भी होता है। मरसेल नामक मनोविज्ञानी एवं शिक्षा शास्त्रियों ने संकेत किया है कि “किसी नई परिस्थिति में सीखने का स्थानान्तरण की एक अनिवार्य दशा यह है कि सीखने वाले के मन में उसे स्थानान्तरित करने का संकल्प होना चाहिए, अन्यथा स्थानान्तरण सफल नहीं होगा।

( 3 ) स्थानान्तरण सीखने वाले की योग्यता पर निर्भर- इस सम्बन्ध में मरसेल के शब्द विचारणीय हैं, उन्होंने लिखा है कि जब हम किसी बात को अच्छी तरह सीख लेते हैं तभी हम उसे स्थानान्तरित कर सकते हैं। सीखने की मात्रा सीखने वाले की योग्यता पर निर्भर करती है। अतएव सीखने वाले में यह योग्यता जितनी अधिक होगी उतनी ही अधिक मात्रा में स्थानान्तरण सम्भव होगा। उदाहरण के लिए कोई छात्र गणित में अधिक योग्यता रखता है तो उसकी योग्यता उसे अन्य विषय को सीखने में भी सहायता करेगी। इसमें सीखने की विधि भी योगदान देती है। रटी-रटाई चीज स्थानान्तरित नहीं होती हैं। ऐसा शिक्षाविदों ने कहा है।

( 4 ) स्थानान्तरण सामान्य बुद्धि पर निर्भर— पीछे हमने देखा है कि स्थानान्तरण सामान्य बुद्धि के अनुरूप होता है। सीखने वाले में जितनी अधिक सामान्य बुद्धि होगी उतना ही अधिक सफल वह स्थानान्तरण में होगा। गैरेट ने अपने अध्ययन के फलस्वरूप यह निष्कर्ष निकाला है कि हाईस्कूल में पढ़ने वाले सामान्य बुद्धि में श्रेष्ठ बालकों में निम्नतर सामान्य बुद्धि वाले बालकों की अपेक्षा बीस गुने अधिक स्थनान्तरण की योग्यता पायी जाती है। यह तो एक साधारण तथ्य होता है कि तेज बुद्धि वाले अपने किसी विषय के ज्ञान अनुभव को एक अन्य क्षेत्र में शीघ्र प्रयोग कर लेते हैं।

(5) सामान्यीकरण की योग्यता का प्रभाव- यह निश्चित है कि जो जितना अधिक बुद्धिवाला होगा वह उतनी ही जल्दी सामान्यीकरण भी करता है। अतएवं सामान्यीकरण की योग्यता का प्रभाव स्थानान्तरण पर पड़ता है। इसकी पुष्टि हमें रायबर्न के शब्दों से होती है “स्थानान्तरण उसी सीमा तक होता है जिस सीमा तक सामान्यीकरण किया जाता है तात्पर्य यह है कि जिसमें सूक्ष्म बुद्धि अधिक पायी जाती है वह तुरन्त सामान्यीकरण कर लेगा और तुरन्त अपने ज्ञान-अनुभव का स्थानान्तरण भी कर लेगा, वह बहुत ही स्वाभाविक है।

( 6 ) समान अध्ययन विधियों से स्थानान्तरण सम्भव- इस सम्बन्ध में प्रो. भाटिया लिखते हैं कि “जिन विषयों की अध्ययन विधियाँ समान होती हैं उनमें थोड़ा पर वास्तविक स्थानान्तरण होता है।” इसका आशय यह है कि छात्र को समान विषयों में स्थानान्तरण करने में सुविधा होती है। उदाहरण के लिए विज्ञान के विषय हैं- भौतिक, रसायन, समाज विज्ञान, अर्थ विज्ञान, राजनीति विज्ञान। इनमें वैज्ञानिक पद्धति से अध्ययन होता है अतएवं इन विषयों में स्थानान्तरण करना सरल होता है।

(7) स्थानान्तरण समान विषय वस्तु पर आधारित- प्रो. भाटिया ने कहा है कि “यदि दो विषय पूर्ण रू से समान हैं तो शत-प्रतिशत स्थानान्तरण हो सकता है। यदि विषय बिल्कुल भिन्न है तो तनिक भी स्थानान्तरण सम्भव नहीं है।” भौतिक विज्ञान एवं गणित की विषय वस्तु में समानता पायी जाती है इससे दोनों में स्थानान्तरण सम्भव होता है। इंजीनियरिंग के विषय तथा चिकित्सा के विषय में काफी अंतर होता है अतएवं दोनों में स्थानान्तरण नहीं हो सकता है। इसी प्रकार दर्शन शास्त्र एवं मनोविज्ञान तथा शिक्षा शास्त्र के विषयों में परस्पर स्थानान्तरण सम्भव होता है क्योंकि इनकी विषय-वस्तु में समानता पायी जाती है।

( 8 ) स्थानान्तरण विषयों के मूल्य पर निर्भर- हरेक विषय का अध्ययन मूल्य अलग-अलग होता है। इसलिए इनके स्थानान्तरण में भी भिन्नता पायी जाती है। अतएवं यह कहा जाता है कि हरेक विषय का स्थानान्तरण मूल्य भी भिन्न मात्रा में होता है। ऐसी दशा में एक विषय का अध्ययन करने वाला उस विषय के ज्ञान का स्थानान्तरण दूसरे विषय में नहीं कर सकता, जैसे- विज्ञान और भाषा साहित्य के स्थानान्तरण मूल्य अलग-अलग होते हैं अर्थात् विज्ञान का ज्ञान भाषा-साहित्य के अध्ययन के लिए कोई लाभ नहीं दे सकता। दूसरी और अर्थशास्त्र तथा गणित के विषयों में स्थानान्तरण के गुण अधिक पाये जाते हैं।

( 9 ) स्थानान्तरण पर प्रशिक्षण का प्रभाव- गैरेट ने लिखा है कि “विद्यालय कार्य में स्थानान्तरण की सर्वोत्तम विधि होती है – स्थानान्तरण की शिक्षा देना।” इससे साफ . मालूम होता है कि निश्चयात्मक शिक्षा या नैतिक शिक्षा या प्रशिक्षण क्यों दिया जाता है। क्योंकि इनके प्रभाव स्वरूप छात्र अपने कार्यों में भी विभागीय गुणों को लाता है।

(10) शिक्षा के उद्देश्य का प्रभाव- अध्यापक को जिन विषयों का ज्ञान होता है या देना चाहता है। यदि उसका उद्देश्य वह स्पष्ट कर देता है तो निश्चय ही उसका प्रभाव स्थानान्तरण पर पड़ेगा। उदाहरण के लिए कक्षा शिक्षण में जो पाठ संकेत छात्राध्यापक बनाते हैं उनमें वे कुछ उद्देश्य निर्धारित करते हैं और ‘उद्देश्य कथन’ भी करते हैं। ऐसा क्यों होता है? इसीलिए कि छात्र जो ज्ञान-अनुभव ग्रहण करें वे अन्यत्र भी स्थानान्तरित कर सकें। उदाहरण के लिए इतिहास के अध्ययन का उद्देश्य जीवन की घटनाओं में भूतकाल के अनुभवों से लाभ उठाया जाये। इस प्रकार इतिहास अध्यापक के उद्देश्य का प्रभाव जीवन पर पड़ेगा और इतिहास के ज्ञान का उद्देश्य स्थानान्तरण को प्रभावित करेगा।

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Anjali Yadav

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