प्राथमिक चिकित्सा का क्या अभिप्राय है ? प्राथमिक चिकित्सा के महत्त्व तथा उद्देश्य क्या है ? प्राथमिक चिकित्सक के आवश्यक गुणों का वर्णन कीजिए।
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प्राथमिक चिकित्सा का अभिप्राय एवं महत्त्व
मानव शरीर तन्त्र में कब और क्या खराबी आ जाये, कब कौन-सी दुर्घटना शरीर के अंगों को क्षति पहुँचाये, यह ज्ञात नहीं रहता। बच्चों के साथ तो दुर्घटना होने की अधिक सम्भावनाएँ रहती हैं। कभी वे ब्लेड, चाकू या छुरी से हाथ काटते हैं तो कभी सीढ़ियों या अन्य ऊँचे स्थानों से गिरकर सिर, हाथ, पैरों को तोड़ लेते हैं। कभी पानी में डूबकर मूच्छित हो जाते हैं या शरीर के अन्य अंगों को घायल कर लेते हैं, तो कभी गरम चीजों से हाथ-पैरों को जला लेते हैं। ऐसी दुर्घटनाओं के अवसरों पर प्राथमिक चिकित्सा की तुरन्त आवश्यकता होती है। यदि उस समय कुछ औपचारिक व्यवस्था न हो तो वह दुर्घटना अत्यधिक गम्भीर रूप धारण कर सकती है। अधिकांशतः यह सम्भव नहीं होता कि दुर्घटना स्थल पर ही तुरन्त डॉक्टर उपलब्ध हो जाये। ऐसी दशा में प्राथमिक चिकित्सा (First Aid) नितान्त आवश्यक होती है। अतः प्राथमिक चिकित्सा से अभिप्राय परिवार में दुर्घटना के समय गृहिणी द्वारा प्रदान की जाने वाली तात्कालिक चिकित्सीय सुविधा है, जिससे चिकित्सक के आने तक दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को विषम संकटपूर्ण स्थिति से बचाया जा सके। कुशलता एवं सावधानी से की गयी प्राथमिक चिकित्सा व्यक्ति की जीवन-रक्षा में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है।
प्राथमिक चिकित्सक बनने के लिए विशिष्ट प्रकार के दीर्घकालीन प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती। साधारण गृहिणी भी इस सम्बन्ध में सरलता से प्राथमिक ज्ञान प्राप्त कर दुर्घटना को गम्भीर होने से रोकती है। गृहकार्य को भली प्रकार से चलाने के लिए अन्य योग्यताओं के समान इस सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करना गृहिणी की प्रथम आवश्यकता है। इसका तात्पर्य यह कदापि नहीं कि वह चिकित्सा विज्ञान में विशेषज्ञ हो तथा चिकित्सक के रूप में वह कार्य कर सके वरन् चिकित्सा विशेषज्ञों की सेवाएँ उपलब्ध होने तक दुर्घटनाग्रस्त रोगी या घायल की रक्षा करना, रोग-निवृत्ति में सहायता देना अथवा घाव की दशा को गम्भीर होने से रोकने के लिए उपयुक्त चिकित्सा या अन्य प्रकार की सहायता प्रदान करना ही उसका प्रधान कर्त्तव्य है। प्राथमिक चिकित्सक में क्या गुण होने चाहिएँ, उसके क्या कर्त्तव्य हैं, प्राथमिक चिकित्सा के क्या सिद्धान्त हैं तथा प्राथमिक चिकित्सा हेतु कौन-कौन सी वस्तुएँ आवश्यक हैं, आदि का विवरण आगामी पृष्ठों में दिया गया है
प्राथमिक चिकित्सा के उद्देश्य
प्राथमिक चिकित्सा दुर्घटना स्थल पर चिकित्सक के आने से पूर्व की जाने वाली सेवा है। इसके प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1. घायल की तात्कालिक सहायता करना- घायल की वास्तविक चिकित्सा तो चिकित्सक ही करता है, परन्तु घायल को चिकित्सक तक पहुँचने के पूर्व कुछ ऐसी सहायता तत्काल पहुँचायी जाये कि उसकी दशा अधिक बिगड़ने न पाये। यथासम्भव तुरन्त ही उपलब्ध साधनों के अनुसार उसकी सुरक्षा की व्यवस्था करना प्राथमिक चिकित्सा का प्रथम उद्देश्य है।
2. जीवन रक्षा करना- प्राथमिक चिकित्सा का दूसरा प्रमुख उद्देश्य घायल व्यक्ति की जीवन रक्षा करना है। इसके लिए प्राथमिक चिकित्सक को अपनी सूझ-बूझ व विवेक से काम लेना होगा। उसे उसकी जीवन रक्षा के लिए डॉक्टरी सहायता उपलब्ध होने तक सभी सम्भव उपाय करने चाहिएँ।
प्राथमिक चिकित्सक के आवश्यक गुण
प्राथमिक चिकित्सा करने वालों का कार्य अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण एवं कुशलता का है। यह कार्य प्रत्येक व्यक्ति साधारण रूप में नहीं कर सकता। इस कार्य को करने वालों में निम्नलिखित गुण होने आवश्यक हैं-
1. प्राथमिक चिकित्सक को मृदुभाषी, सरल एवं प्रसन्नचित होना चाहिए।
2. प्राथमिक चिकित्सक को शरीर विज्ञान, प्राथमिक चिकित्सा एवं पट्टियों आदि के सम्बन्ध में पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए।
3. प्राथमिक चिकित्सक को इतना कुशल होना चाहिए कि आसपास के लोगों से पूछे बिना ही रोग के इतिहास और चिन्हों को समझ ले।
4. प्राथमिक चिकित्सक को स्वस्थ व शक्तिशाली होना चाहिए, जिससे पीड़ा पहुँचाये बिना वह घायल को उठा सके, उसके दवा लगा सके तथा उसे आवश्यकतानुसार कृत्रिम श्वास दे सके।
5. प्राथमिक चिकित्सक में निर्णयात्मक बुद्धि होना भी आवश्यक है ताकि वह निर्णय कर सके कि उसे पहले किन चोटों के उपचार को प्राथमिकता देनी चाहिए। उसमें आवश्यकतानुसार कार्य करने व निर्णय लेने की क्षमता होनी चाहिए।
6. प्राथमिक चिकित्सक को सहनशील होना चाहिए ताकि यदि उसकी प्राथमिक असफलताओं पर पास खड़े हुए व्यक्ति उसकी हँसी उड़ायें, तब भी वह अपना कार्य नहीं छोड़े। घायल के रोने, चिड़चिड़ाने, चिल्लाने से उसे क्रोधित नहीं होना चाहिए, सब कुछ सहन करते हुए अपना कर्त्तव्य करना चाहिए।
7. स्थिति का सामना करने के लिए उसमें पर्याप्त धैर्य तथा साहस का होना आवश्यक है।
8. प्राथमिक चिकित्सक की निरीक्षण शक्ति तीव्र होनी चाहिए, जिससे वह चोट कहाँ लगी है, क्या कारण है तथा चोट किस प्रकार की है, आदि बातों को भली प्रकार समझ सके ।
9. प्राथमिक चिकित्सक को इतना साधन-कुशल होना चाहिए कि घटना स्थल पर प्राप्त साधनों के द्वारा ही वह घायल का भली-भाँति उपचार कर रोगी की दशा बिगड़ने से बचा ले।
10. प्राथमिक चिकित्सक में यह योग्यता होनी चाहिए कि वह पास खड़े हुए व्यक्तियों को स्पष्ट रूप से बता सके कि उस समय उनका क्या कर्त्तव्य है।
11. प्राथमिक चिकित्सक को दूरदर्शी होना आवश्यक है। उसमें दुर्घटना व घायल से सम्बन्धित आगे की परिस्थितियों से व उनके परिणामों का आकलन करने की क्षमता होनी चाहिए ताकि घायल की सुरक्षा हो सके।
12. अन्य व्यक्तियों का विश्वास एवं सहयोग प्राप्त करने के लिए प्राथमिक चिकित्सक में सामाजिकता का गुण होना अत्यन्त आवश्यक है। उसमें मानवता, सेवाभाव का गुण होना चाहिए, उसे तन-मन-धन से समर्पित होना चाहिए।
13. दयालुता एवं प्रेमपूर्वक व्यवहार ही घायल को सन्तोष एवं ढाढस दे सकता है, अतः उसे दयालु होना चाहिए।
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