प्लेटो के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य का वर्णन कीजिए। प्लेटो के अनुसार शिक्षा, पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि तथा शिक्षालय तथा शिक्षण कैसा होना चाहिए ? वर्णन कीजिए।
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प्लेटो के शिक्षा सम्बन्धी विचार (Educational View of Plato)
प्लेटो के अनुसार- “शिक्षा वह सर्वप्रथम तथा सर्व सुन्दर वस्तु है जो सर्वोत्तम व्यक्ति प्राप्त कर सकते हैं।”
शिक्षा का अर्थ (Meaning of Education)
प्लेटो के अनुसार शिक्षा एक प्रकार का प्रयत्न है जो प्रौढ़ व्यक्ति बालकों की उन्नति के लिए कहते हैं। प्लेटो के विचार से शिक्षा सत्यम् शिवम्, सुन्दरम् की प्राप्ति का साधन है। प्लेटो का वास्तविक विचार है कि, “शिक्षा से मेरा तात्पर्य उस प्रशिक्षण से है जो बालकों में सद्गुणों की आरम्भिक मूल प्रवृत्तियों के विकास हेतु दिया जाता है। शिक्षा बालकों को घृणा करने वाली वस्तुओं से घृणा करना सिखाती है तथा प्रिय से प्रेम करना सिखाती है।”
एक अन्य जगह प्लेटो ने लिखा है कि “शिक्षा शरीर और आत्मा की सभी पूर्णता जिसके लिए वह उपयुक्त है, देने में पाई जाती है।”
प्लेटो ने शिक्षा को सामाजिक तथा वैयक्तिक दोनों प्रकार की प्रक्रिया माना है। वह शिक्षा द्वारा व्यक्तियों में पूर्णता लाना चाहता था ।
प्लेटो के विचार से न्याय आदर्श का एक आवश्यक गुण है। न्याय रक्षा करना व्यक्तियों का कर्त्तव्य है। ये तभी सम्भव है जब तीनों वर्गों को उचित शिक्षा दी जाए। अतएव उसने तीन वर्गों की शिक्षा पर बल दिया जिससे कि वे अपने कर्त्तव्यों को समझ सके और उन्हें पूर्ण कर सके। प्लेटो ने अपनी शिक्षा योजना में संरक्षक एवं सैनिक वर्ग की शिक्षा को अति आवश्यक बतलाया और व्यवसायी वर्गों की शिक्षा पर अधिक विचार नहीं दिये हैं।
शिक्षा की अनिवार्यता पर बल
प्लेटो के विचार से व्यक्ति तथा समाज की उन्नति शिक्षा द्वारा होती है। इसलिए शिक्षा सबके लिए आवश्यक है। समाज को चाहिए कि वह सभी बालकों की शिक्षा की उचित व्यवस्था करे। प्लेटो ने इस तथ्य को स्पष्ट करते हुए लिखा है, “बालक शिक्षालय में केवल माता-पिता की प्रसन्नता के लिए ही नहीं जायेंगे बल्कि वे भी प्रसन्न हो तो भी उनकी अनिवार्य शिक्षा होगी। शिक्षार्थी राज्य के समझे जायेंगे न कि अपने माता-पिता के ।”
स्त्रियों की शिक्षा पर विचार- प्लेटो ने स्त्री और पुरुषों की प्रकृतियों में किसी प्रकार का भेद नहीं माना है। वह स्त्रियों को भी पुरुषों के समान ही कठोर शिक्षा देना चाहता था। इसलिए उसने वर्ग विभाजन के समय महिलाओं को अलग नहीं किया और उन्हें भी श्रमिक, सैनिक और दार्शनिक तथा शासन वर्ग में विभाजित किया है। वह स्त्रियों को गृहस्थी, बच्चों का लालन-पालन आदि के संकुचित क्षेत्र में नहीं बाँधना चाहता था। प्लेटो आजीवन अविवाहित ही रहा था अतः स्त्रियों को पुरुष के समान समझता था। वह उनकी आवश्यकताओं, आदतों और इच्छाओं से अपरिचित था।
प्लेटो के अनुसार जो स्त्रियाँ दर्शन या युद्ध में दक्ष प्रमाणित थीं उनको संरक्षक या सैनिक वर्ग में स्थान मिले। इस तथ्य पर प्रकाश डालते हुए प्लेटो ने लिखा है कि तुम्हें यह धारणा न बना लेनी चाहिए कि जो कुछ मैं कहता हूँ केवल पुरुषों पर लागू होता है एवं स्त्रियों के लिए नहीं जहाँ तक उनके स्वभाव ग्रहण कर सकते हैं।
शिक्षा के उद्देश्य (Aims of Education)
प्लेटो आदर्शवादी दार्शनिक था अतः शिक्षा के उद्देश्य के सम्बन्ध में उसके विचार अन्य आदर्शवादी दार्शनिकों की ही भाँति हैं।
(अ) शाश्वत मूल्यों की उन्नति- प्लेटो के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को शाश्वत मूल्यों सत्यं, शिवम्, सुन्दरम् की प्राप्ति करना है क्योंकि उनकी प्राप्ति ईश्वर की प्राप्ति है। उसका कथन है, “शिक्षा का अर्थ मैं बालक की नैसर्गिक प्रवृत्तियों को अच्छी आदतों में लगा देने से समझता हूँ जब तक कि उसे दुःख, सुख, मित्रता और घृणा भाव का भली-भाँति ज्ञान न हो। शिक्षा के फलस्वरूप विवेक की प्राप्ति पर बालकों को संसार के विभिन्न वस्तुओं और आत्मा में सामंजस्य का अनुभव करना है।” प्लेटो का विचार था, “शिक्षा का उद्देश्य एक ऐसा जीवन निर्माण होना चाहिए जो सौन्दर्य का जीवन हो, न्याय का जीवन हो, प्रेम का जीवन हो।”
अस्तु, उसके अनुसार शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति का समविकास करना है। तृष्णा, इच्छा, शक्ति तथा विवेक, आत्मतत्त्वों तथा उसके गुण संयम, धैर्य, ज्ञान या ज्ञान का सम्यक् विकास उसने आवश्यक माना है।
(ब) योग्य नागरिकों का निर्माण- प्लेटो शिक्षा के द्वारा योग्य नागरिक बनाना चाहता था। वह उनमें सभी मानवीय गुणों का विकास करना चाहता था। प्लेटो के अनुसार, “आदर्श व्यक्तित्व का निर्माण तथा विकास शिक्षा का उद्देश्य था।”
(स) नैतिक विकास का उद्देश्य- प्लेटो यह मानता है कि नैसर्गिक गुण मनुष्यों में उसकी आत्मा के अंग के रूप में पहले से विद्यमान रहते हैं- शिक्षा व्यक्ति के विवेक शक्ति का विकास करती है। व्यक्ति अपनी विकसित तर्कशक्ति या विवेक द्वारा उचित अनुचित का निर्णय कर लेता है। प्लेटो ने Republic में लिखा है, “जैसे अन्धी आँख में प्रकाश नहीं भरा जा सकता उसी तरह ज्ञान आत्मा में नहीं डाला जाता बल्कि पहले से विद्यमान रहता है।”
आदर्श व्यक्तित्व का निर्माण तथा विकास प्लेटो के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य था। आदर्श व्यक्तित्व के निर्माण में सद्गुणों को विकसित करना अनिवार्य था।
(द) सामाजिक उद्देश्य- “राज्य की एकता स्थापित करना” प्लेटो ने राज्य को एक व्यक्तित्व प्रदान किया है। वह राज्य को सार्वभौम सत्ता मानता था। राज्य के ऊपर ही शिक्षा का उत्तरदायित्व सौंपा था। उसने समाज का वर्गीकरण करके शिक्षा की व्यवस्था बनायी। व्यक्ति में ऊँचे विचार पैदा करने के लिए वह घरेलू शिक्षा का विरोध करता था और माता-पिता तथा परिवार को कोई महत्त्व नहीं देता था।
(य) शारीरिक तथा मानसिक विकास का उद्देश्य- प्लेटो का विचार था कि व्यक्ति मनः शारीरिक प्राणी है। प्लेटो ने शिक्षा का यह उद्देश्य रखा है कि राज्य के प्रत्येक नागरिक में सत्यं, शिवम्, सुन्दरम् के गुण हों। प्रेम सहयोग सहकारिता, सामूहिकता की भावना, त्याग, आत्मनिग्रह, साहस, वीरता आदि गुण भी हों। साथ ही ज्ञान विवेक हो जिससे वह भौतिक इच्छाओं का दास न बने तभी वह शारीरिक एवं मानसिक विकास कर सकता है। प्लेटो ने लिखा है कि “क्या मैं इस सत्य के प्रतिपादन में सही नहीं कि सही शिक्षा वह है जो शरीर एवं मस्तिष्क की सबसे अधिक उन्नति करने की प्रवृत्ति रखती है। इससे अधिक स्पष्ट और कुछ नहीं हो सकता कि सबसे सुन्दर शरीर वे हैं जो बालकपन से सर्वोत्तम तथा सही प्रकार विकसित होते हैं।”
शिक्षा के प्रकार (Types of Education)
प्लेटो ने आत्मा के निर्माण के तीन तत्त्वों-तृष्णा, इच्छा शक्ति तथा विवेक के आधार पर समाज को तीन वर्गों में विभाजित किया-
- उद्यमी वर्ग ।
- सैनिक वर्ग।
- दार्शनिक एवं शासक वर्ग
वर्गों के आधार पर तीन प्रकार की शिक्षा प्लेटो द्वारा बतायी गयी-
- औद्योगिक कलाओं की शिक्षा।
- सैनिक शिक्षा
- प्रशासकीय एवं दार्शनिक शिक्षा
औद्योगिक शिक्षा के प्रति प्लेटो ने अधिक रुचि नहीं दिखलाई है। लाज में प्लेटो ने लिखा है कि “उपयोगी कलाओं की गणना हम निम्न कोटि में करते हैं।” दार्शनिक एवं प्रशासनिक वर्ग को सर्वोच्च माना। प्लेटो ने राज्य की कल्पना में तीनों वर्गों का समन्वित रूप रखा है।
प्लेटो के अनुसार पाठ्यक्रम (Curriculum according to Plato)
प्लेटो ने शिक्षा का विस्तृत अर्थ स्वीकार किया है जिसके अनुसार शिक्षा आजीवन चलती है। उसका पाठ्यक्रम कुछ निश्चित सिद्धान्तों पर आधारित था।
(अ) समानता का सिद्धान्त- उसने समान बालक समान शिक्षा के सिद्धान्त को स्वीकार किया है। वह स्त्री पुरुषों में कोई भेद नहीं करता है।
(ब) योग्यता तथा अभिरुचि का सिद्धान्त- योग्यता के अनुसार ही समाज के तीन वर्ग और उनके लिए अलग-अलग प्रकार की शिक्षा बतलाई।
(स) आवश्यकता का सिद्धान्त- राज्य की आवश्यकताओं के अनुसार पाठ्यक्रम का निर्धारण होना चाहिए। इस सिद्धान्त के अनुसार जीवन के कई वर्गों में विभाजित कर पाठ्यक्रम निर्धारित किया।
- आरम्भ से 3 वर्ष तक की शिक्षा।
- 3 वर्ष से 6 वर्ष तक की शिक्षा ।
- 6 वर्ष से 13 वर्ष तक की शिक्षा ।
- 13 वर्ष से 16 वर्ष तक की शिक्षा।
- 16 वर्ष से 20 वर्ष तक की शिक्षा।
- 20 से 30 वर्ष तक की शिक्षा ।
- 30 से 35 वर्ष तक की शिक्षा ।
- 35 से 50 वर्ष तक की शिक्षा
- 50 से ऊपर की शिक्षा ।
प्लेटो के अनुसार शिक्षण विधि (Teaching Method according to Plato)
प्लेटो व्यक्ति में सभी नैसर्गिक तत्त्वों का विकास करना चाहता था अतः इसके लिए कई विधियों का प्रयोग आवश्यक समझा।
(अ) तर्क या वाद- विवाद विधि- ज्ञान की खोज शिक्षा का उद्देश्य था। यह उद्देश्य तर्क विधि से ही प्राप्त किया जा सकता है। उसने डाइलेक्टिक विधि को बहुत महत्त्व दिया। ऊँची कक्षाओं के लिए यह सही विधि है क्योंकि गूढ़ विषयों पर वाद-विवाद किया जाता है।
(ब) प्रश्नोत्तर विधि- इसे सुकराती विधि भी कहा जाता है। इसके तीन सोपान हैं-
- उदाहरण,
- परिभाषा,
- निष्कर्ष ।
इसका प्रत्यक्ष उदाहरण प्लेटो के Meno नामक वार्तालाप से मिलता है। उदाहरण में वार्तालाप, परिभाषा में आवश्यक व्याख्या और सामान्य गुणों का निर्धारण, अन्त में परिणाम प्रश्न करने वाला विद्यार्थी होता है, जिससे समस्या या रहस्य का उद्घाटन होता है। शिक्षक भी बालक के प्रति प्रश्न किया करता है।
(स) वार्तालाप विधि- प्रश्नोत्तर विधि का ही अंग है। यही विधि आगे चलकर व्याख्यान विधि के रूप में प्रसिद्ध हुई। ऊँची कक्षाओं में आज भी इसका प्रयोग है।
(द) प्रयोग विधि- कला कौशल और विज्ञान के अध्ययन में इस विधि का प्रयोग प्लेटो ने किया है। सैनिक व्यायाम और संगीत शिक्षा में भी इस विधि का प्रयोग है।
(य) अनुकरण विधि- दासों की शिक्षा के लिए इस विधि का प्रयोग है। छोटी कक्षा में भी इसका प्रयोग है परन्तु हर समय अनुकरण के पक्ष में नहीं केवल आवश्यक अनुकरण है।
(र) स्वाध्याय विधि- इस विधि का प्रयोग 50 वर्ष से ऊपर के लोगों के लिए है। दर्शन, मनोविज्ञान, तर्कशास्त्र का अध्ययन कर उसका चिन्तन तथा अनुसंधान करने पर बल दिया।
प्लेटो के अनुसार अनुशासन (Discipline according to Plato)
प्लेटो बालक को अनुशासन में रखने के पक्षपाती हैं किन्तु वे दमनवादी अनुशासन की अपेक्षा प्रभाववादी अनुशासन को अधिक उत्तम समझता था। उसका विचार था कि बालक पर विविध दशाओं से प्रभाव डालने चाहिए जिससे उसमें अनुशासन की भावना अपने आप विकसित हो जाय। बालक का आध्यात्मिक विकास बहुत कुछ बालक के अनुशासित जीवन पर निर्भर है। अनुशासन में रहकर ही बालक का पूर्ण विकास हो सकता है और वह आत्मानुभूति को प्राप्त कर सकता है। यदि बालक में अनुशासन की भावना का अभाव है तो वह उन “आदर्शों तथा मूल्यों से कदापि प्रभावित नहीं हो सकता है जिनकी प्राप्ति से आध्यात्मिक विकास सम्भव हो जाता है।”
अतः शिक्षक का कर्त्तव्य है कि बालक को उच्च आदर्श से प्रभावित करके उसमें अनुशासन की भावना जागृत करे। उनकी अभिरुचियों का ज्ञान प्राप्त करके प्रेम और सहानुभूति से उस पर नियन्त्रण रखें। प्रभाव द्वारा स्थापित किया हुआ अनुशासन स्थायी होता है। दण्ड और भय द्वारा स्थापित किया हुआ अनुशासन स्थायी नहीं होता अतः वह व्यर्थ है। ‘स्वतन्त्र अनुशासन’ बालक के समुचित विकास में बाधक हो सकता है। इस प्रकार प्लेटो दण्ड और भय द्वारा स्थापित अनुशासन तथा स्वतन्त्र अनुशासन दोनों के विरोधी हैं। अतः उसने सहानुभूति, बालक की आत्मक्रिया और आत्म नियन्त्रण आदि को ही अनुशासन स्थापना के लिए अधिक उपयोगी समझा है।
प्लेटो के अनुसार शिक्षक तथा शिक्षालय (Teacher and School according to Plato)
प्लेटो ने अपने गुरु सुकरात की भाँति घूमकर शिक्षा देना ठीक नहीं समझा। उसने Academy की स्थापना की जो गुरुकुल या आश्रम के समान था। वह एक निश्चित स्थान पर शिक्षा देने के पक्ष में था। Academy एक सुव्यवस्थित तथा सुसज्जित संस्था थी। प्लेटो के अनुसार विद्यालय ऐसे स्थल हैं जहाँ उपयुक्त ढंग से मनुष्य की आत्मा का विकास होता है। उसने जन्म से लेकर मृत्यु तक विभिन्न प्रकार के विद्यालय की कल्पना की ।
सुपरिण्टेण्डेण्ट 50 वर्ष से अधिक आयु का व्यक्ति तथा 5 वर्ष के लिए नियुक्ति, शिक्षक के लिए प्लेटो ने अलग से कुछ नहीं लिखा परन्तु स्वयं के गुणों और आदर्शों के आधार पर शिक्षक के गुणों को माना है तथा समाज में उसे उच्च स्थान दिया है तथा दार्शनिक को ही शिक्षक का स्थान दिया है। प्लेटो ने प्रकृतिवादियों की भाँति शिक्षक की आवश्यकता का विरोध नहीं किया बल्कि शिक्षा में शिक्षक का स्थान महत्त्वपूर्ण मानते हैं क्योंकि शिक्षक अपने आदशों से बालक को प्रभावित करता है तथा उसका पथ प्रदर्शन करता है। जीवन के लक्ष्यों, शाश्वत सत्यों तथा मूल्यों को प्राप्त कराने के लिए उसे स्फूर्ति तथा प्रेरणा प्रदान करता है। बालक के लिए एक आध्यात्मिक वातावरण की रचना करता है जिससे उसका आध्यात्मिक विकास हो सके और वह अपनी आदर्श अवस्था को प्राप्त कर सके।
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