शिक्षा के सिद्धान्त / PRINCIPLES OF EDUCATION

भावात्मक एकता से आपका क्या अभिप्राय है ? भावात्मक एकता की आवश्यकता एंव बाधायें

भावात्मक एकता से आपका क्या अभिप्राय है ? भावात्मक एकता की आवश्यकता एंव बाधायें
भावात्मक एकता से आपका क्या अभिप्राय है ? भावात्मक एकता की आवश्यकता एंव बाधायें

भावात्मक एकता से आपका क्या अभिप्राय है ? वे कौन-कौन से तत्व हैं, जिन्होंने हमें उसके बारे में सतर्क रहने के लिए मजबूर किया है ? वर्तमान समय में इसमें सुधार लाने के लिए शिक्षा किस प्रकार सहायता कर सकती है ?

भावात्मक एकता का विचार भारत-चीन युद्ध के उपरान्त जन्मा। इस युद्ध के परिणामस्वरूप यह धारणा विकसित हुई कि देश में विभिन्न जातियों, धर्मो समुदायों, विचार तथा आस्थाओं में एकीकरण भावना के स्तर पर होना आवश्यक है। राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय एकता की कल्पना भावात्मक एकता के अभाव में पूर्ण नहीं है। भावात्मक एकता के विषय में जवाहरलाल नेहरू ने कहा है- “भावात्मक एकता से अभिप्राय, अलगाव की भावना का दमन तथा मस्तिष्क एवं हृदय की एकता से है। “

“By Emotional integration, I mean the integration of our minds and hearts, the suppression of the feelings of separation.”

के० जी० सैयदेन ने भावात्मक एकता को अन्तः साम्प्रदायिक सद्भावना माना है, जिसमें विभिन्न सम्प्रदायों के लोग एक मूलभूत भावना से जुड़े रहते हैं। के० जी० सैयदेन (K. G. Saiyidain) के शब्दों में- “भावात्मक एकता का अर्थ विभिन्नताओं की समाप्ति नहीं है। इसका अर्थ तो यह है कि व्यक्तियों को मतभेद का अधिकार है और अपनी इस भिन्नता को वे बिना किसी भय के, तर्क के आधार पर राष्ट्रीय एकता और आधारभूत निष्ठाओं को दृष्टि में रखते हुए अभिव्यक्त कर सकते हैं।”

“Emotional Integration does not mean a levelling down of differences. It means that the people have the right to differ and express their differences reasonably and fearlessly within the large frame work of National unit and basic loyalties.”

भावात्मक एकता : आधार (Emotional Integration : Basis)

भावात्मक एकता के मूल में वसुधैव कुटुम्बकम् (World is family) की भावना निहित है। मनुष्य मात्र समान है। मानव, आधारभूत गुणों के कारण एक-दूसरे से पृथक् नहीं किए जा सकते। साथ ही यह भी सच है-राष्ट्र की निष्ठा से मनुष्यों में भेदभाव होते हैं। जाति, धर्म, सम्प्रदाय, भाषा आदि एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य को काटते हैं। यह कटान या अलगाव जहाँ एक और मनुष्य को एक दूसरे से अलग करता है, बल्कि मानव समूहों, समाज, राष्ट्र से भी काटते हैं। अलगाव की यह स्थिति मनुष्य के लिए घातक हैं

भावात्मक एकता के आधार हैं— रक्त, जाति, स्थान, रहन-सहन, खानपान, जीवन यापन की विधियों, आर्थिक-सामाजिक स्तर तथा राजनैतिक दृष्टिकोण। इनके कारण ही व्यक्ति एक-दूसरे से जुड़ता है तथा अलग होता है।

भावात्मक एकता आवश्यकता (Emotional Integration : Need)

भावात्मक एकता, आज केवल भारत की ही नहीं, सम्पूर्ण विश्व की आवश्यकता है। भावात्मक एकता की आवश्यकता इस प्रकार है-

1. मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है- मनुष्य सामाजिक प्राणी है। समाज उसकी प्रत्येक आवश्यकता की पूर्ति करता. है। परिवार, जाति तथा धर्म के कारण व्यक्ति एक-दूसरे से जुड़ा रहता है। उसी प्रकार समाज में भी विभिन्न वर्गों में आपसी सद्भाव की आवश्यकता है। एकता के अभाव में भावात्मकता विकसित नहीं हो सकती।

2. निस्वार्थ भावना- समाज में अनेक व्यक्ति तथा वर्ग अपने निजी स्वार्थों को पूरा करने के लिए समाज हितों को बलि चढ़ाते हैं। समाज हितों को बलि चढ़ाने से समाज की एकता को खतरा होता है और इस खतरे से कोई बच नहीं सकता।

3. संकीर्णता को दूर करना- व्यक्ति पहले छोटे दायरों में विकास करता है। फिर उसके दायरे बड़े होते जाते हैं। प्रायः देखा गया है कि बड़े दायरों में पहुँचने के बाद भी व्यक्ति छोटे दायरों में बँधा रहता है। इससे उसमें संकीर्णता का विकास होता है। संकीर्णता को दूर करने के लिए भावात्मक एकता आवश्यक है।

भावात्मक एकता : बाधायें (Emotional Integration: Obstacles)

भारतवर्ष विविधताओं का देश है। इसके प्रत्येक भाग में भिन्न संस्कृति, धर्म, भाषा, आचार-विचार तथा व्यवहार पाए जाते हैं। इनके कारण भावात्मक एकता के मार्ग में बाधायें आती हैं। भावात्मक एकता के मार्ग में ये बाधायें हैं-

1. सांस्कृतिक उथल-पुथल भावात्मक एकता पैदा नहीं होने देती। प्राचीन काल में आर्य तथा द्रविड़ों में, सांस्कृतिक संघर्ष के कारण भावात्मक रूप से एकता नहीं आ सकी। इसी प्रकार हिन्दू तथा मुस्लिम, हिन्दू-मुस्लिम-ईसाई संस्कृतियों की भिन्नता ने अलगाववाद को बढ़ावा दिया है।

2. अंग्रेजी शिक्षा के कारण भी भावात्मक एकता के मार्ग में बाधा आई है। अंग्रेजी जानने वालों का पृथक् वर्ग बन गया है। भारत आज भले ही स्वतन्त्र है, परन्तु मानसिक रूप से वह अंग्रेजी का गुलाम है

3. भारत की भावात्मक एकता का आधार अध्यात्म है। भौतिक प्रगति ने स्वार्थों की होड़ पैदा की है। इससे भावात्मक एकता को खतरा हो गया है।

4. आर्थिक विषमता के कारण भी भावात्मक एकता का विकास नहीं हो पाता ।

5. वसुधैव कुटुम्बकम की भावना का विकास करने के लिए आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक सद्भाव की शिक्षा की आवश्यकता होती है।

भावात्मक एकता समिति (Committee on Emotional Integration)

1961 में डॉ० सम्पूर्णानन्द की अध्यक्षता में भावात्मक एकता समिति का गठन हुआ था। इस समिति ने 1962 में अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। इस समिति ने जातिवाद, साम्प्रदायिकता, क्षेत्रीयता, प्रान्तीयता, भाषावाद, आदर्शों का अभाव तथा युवकों में दिशा हीनता भावात्मक एकता के मार्ग में  प्रमुख, कारण हैं। इस समिति ने भावात्मक एकता के विकास के लिए शिक्षा को आवश्यक माना है। ये कार्यक्रम इस प्रकार हैं-

1. पाठ्यक्रम – भावात्मक एकता समिति ने वर्तमान पाठ्यक्रम की पुनर्रचना भावात्मक एकता की दृष्टि से करने पर बल दिया है। प्राथमिक स्तर पर कहानी, कविता, राष्ट्रगान तथा राष्ट्रीय गीतों को स्थान देना चाहिए। माध्यमिक स्तर पर अन्य विषयों के साथ-साथ अतिरिक्त भाषा तथा साहित्य, सामाजिक अध्ययन, नैतिक तथा आध्यात्मिक शिक्षा, उच्च स्तर पर सामाजिक विज्ञान, भाषा, साहित्य, तुलनात्मक धर्मो का अध्ययन आवश्यक है।

2. पाठ्य सहगामी क्रियायें – भावात्मक एकता के विकास में पाठ्य सहगामी क्रियायें विशेष योग देती हैं। राष्ट्रीय सेवायोजना, स्काउटिंग, गाइडिंग, राष्ट्रीय अनुशासन योजना, सामूहिक खेलकूद तथा कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए।

3. भाषा तथा लिपि – हिन्दी मानव के लिए कुछ क्षेत्रों में रोमन लिपि का प्रयोग किया जाए। अन्तर्राष्ट्रीय अंकों का प्रयोग हो । क्षेत्रीय भाषा सिखाई जाए। क्षेत्रीय भाषा तथा हिन्दी कोश बनाए जाएँ। अल्पसंख्यकों की भाषा का ध्यान रखा जाए।

4. पाठ्य-पुस्तकें — पाठ्य-पुस्तकों में ऐसे प्रकरण रखे जाएँ, जो भावात्मक विकास में सहायक हो

5.अन्य –

  1. विभाषा सूत्र अपनाया जाए
  2. हिन्दी भाषा को लोकप्रिय बनाना जाए।
  3. हिन्दी तथा अंग्रेजी का स्तर समान रखा जाए।
  4. पाठ्य-पुस्तकों में संशोधन हो।
  5. राष्ट्रीय कार्यक्रम एवं सांस्कृतिक त्यौहार मनाये जाएँ।
  6. स्कूल में वेशभूषा निर्धारित की जाए।
  7. राष्ट्रीय युग परिषद् की स्थापना की जाए।
  8. शिक्षकों तथा छात्रों का सांस्कृतिक आदान-प्रदान हो
  9. अन्तक्षेत्रीय कार्यक्रम आयोजित किए जाएँ
  10. दृश्य-श्रव्य साधनों का उपयोग हो।

भावात्मक एकता का विकास केवल शिक्षा के माध्यम से ही नहीं हो सकता। इसके लिए आवश्यक है कि विद्यालय के साथ-साथ परिवार, समुदाय, समाज, समाचार पत्र, रेडियो, टेलीविजन आदि को अपनी भूमिका सार्थक रूप से निभानी होगी। तभी मानव मात्र में आपसी सद्भाव उत्पन्न होगा।

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Anjali Yadav

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