शिक्षा के सिद्धान्त / PRINCIPLES OF EDUCATION

महात्मा गाँधी की शैक्षिक विचारधारा- परिचय, जीवन-दर्शन, शिक्षा-दर्शन, उद्देश्य, पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि

महात्मा गाँधी की शैक्षिक विचारधारा- परिचय,  जीवन-दर्शन, शिक्षा-दर्शन, उद्देश्य,  पाठ्यक्रम,  शिक्षण विधि
महात्मा गाँधी की शैक्षिक विचारधारा- परिचय, जीवन-दर्शन, शिक्षा-दर्शन, उद्देश्य, पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि

महात्मा गाँधी की शैक्षिक विचारधारा का संक्षेप वर्णन कीजिए।

भारतीय गणराज्य के निर्माता के रूप में महात्मा गाँधी का नाम राष्ट्रपिता के रूप में लिया जाता है। हजारों वर्षों की सांस्कृतिक परम्पराओं के प्रतीक मोहनदास करमचन्द गाँधी दार्शनिक पृष्ठभूमि में प्लेटो के समान थे। प्लेटो ने दर्शन के हर पहलू पर अपने विचार प्रकट किए। गाँधी जी ने भी जीवन दर्शन को प्रभावित करने वाले सभी पहलुओं पर चिन्तन, मनन एवं क्रियान्वयन किया। उन्होंने कहने से पहले किया। इसलिए उनका विचार आचार के साथ जुड़ा रहा।

1. परिचय (Introduction)

महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को काठियावाड़ के पोरबन्दर नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता करमचन्द गाँधी उस समय राजकोट एवं बीकानेर रियासतों के दीवान थे। इनके जीवन पर पिता का प्रभाव अधिक पड़ा।

1887 में गाँधी जी बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैण्ड गए। 1891 में ये बैरिस्टर बनकर स्वदेश लौटे। 1893 में एक मुकदमे के सिलसिले में इन्हें दक्षिणी अफ्रीका जाना पड़ा। वहाँ पर भारतीयों की स्थिति अत्यन्त दयनीय थी। गाँधी जी के साथ भी अंग्रेजों द्वारा की गई अभद्रता की कई घटनाएँ घटीं। इससे गाँधी जी ने भारतीयों के संकट दूर करने के लिए वहीं रहने का निश्चय किया। 1903 में उन्होंने टाल्सटाय फार्म की स्थापना की। इस आश्रम में आश्रमवासियों को 8 घण्टे का व्यावसायिक शिक्षण दिया जाता था। 2 घण्टे बौद्धिक कार्य करना पड़ता था। पाकविद्या, सफाई, काष्ठकला, प्रिंटिंग आदि उनके मुख्य व्यवसाय थे।

गाँधी जी को 1915 में भारत आना पड़ा। यहाँ पर पहले वे शान्ति निकेतन गए। वहाँ वे साबरमती एवं सेवाग्राम आश्रमों की स्थापना में लगे ।

गाँधी जी ने जीवन के राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, सभी क्षेत्रों में पूर्ण निष्ठा एवं आ काम किया। 30 जनवरी, 1948 को आपकी हत्या कर दी गई।

2. गाँधी जी का जीवन-दर्शन (Gandhiji’s Philosophy of Life)

“गाँधी जी दार्शनिक क्यों थे ? जब भी यह प्रश्न उठता है तो कई तथ्य सामने आते हैं। इसका उत्तर है-वे दार्शनिक थे, क्योंकि उनके निश्चित विश्वास थे, धारणाएँ थीं, यथार्थ पर उनके तर्क-संगत विचार थे। विश्व, जीवन, व्यक्ति और समाज, व्यक्ति तथा समाज के आपसी सम्बन्धों के बारे में उनका अपना चिन्तन था। उन्होंने स्वयं ही कहा है-“मैं ईश्वर की एकता में विश्वास करता हूँ, और इसीलिए मानवता में भी विश्वास करता हूँ। क्या विचार है-हम अनेक शरीर हैं किन्तु हमारी आत्मा एक है। सूर्य की अनेक किरणें हैं, परन्तु उनका स्रोत एक ही है।”

“I believe in the absolute oneness of God and therefore also of humanity. What thought, we have many bodies, but one soul. The rays on the sun are many through refraction, but they have the same source.”

महात्मा गाँधी के जीवन में सत्य, अहिंसा तथा प्रेम प्रमुख हैं। इन तीनों के आधार पर ही उनका सम्पूर्ण चिन्तन क्रियाशील था।

1. सत्य ( Truth) – महात्मा जी का पहला आधार था सत्य। वे सत्य को ही ईश्वर मानते थे। उनका पहले विचार था— ईश्वर ही सत्य है (God is Truth), परन्तु चिन्तन मनन की प्रक्रिया स्वरूप नया मार्ग प्रशस्त हुआ, सत्य ही ईश्वर है ( Truth is God) । उन्होंने स्वयं कहा है- “ईश्वर सत्य है, सत्य ईश्वर है। “

“God is Truth, truth is God. What the voice within us tells.”

गाँधी जी सत्य के आचरण पर सदैव जोर देते थे। उनका कहना था- “हमारे विचारों में सत्य होना चाहिए, भाषण में सत्य होना चाहिए, कार्य में सत्य होना चाहिए।”

“There should be truth in thought, truth in speech, and truth in action.”

2. अहिंसा (Non-violence) – महात्मा जी के दत्तक पुत्र महादेव भाई के अनुसार-गाँधी जी ने सत्य के सिद्धांन्त से एक स्वाभाविक परिणाम निकाला। वह यह कि सत्य और अहिंसा को एक-दूसरे से अलग करना प्रायः असम्भव है। ये एक सिक्के के दो पहलू हैं।

अहिंसा और सत्य एक-दूसरे से गुंथे हुए हैं। वे तो किसी धातु की दश्तरी के दो पहलुओं की तरह हैं, स्वयं गाँधी जी ने कहा है- “अहिंसा में समस्त जीवधारियों के प्रति बुरी भावना का अभाव है। अपनी गतिशील अवस्था में इसका अर्थ है-जान-बूझ कर कष्ट सहन करना-अपने क्रियाशील रूप में यह समस्त जीवधारियों के प्रति अच्छी भावना है। यह शुद्ध प्रेम है।

अहिंसा का स्पष्टीकरण करते हुए गाँधी जी ने कहा है- “यह बुराई के प्रति अवरोध नहीं है। यह तो प्रेम के साथ प्रतिरोध है। सत्याग्रह आत्मा की शक्ति का विश्वास है, सत्य की शक्ति है, प्रेम की शक्ति है जिसके द्वारा बलिदान तथा आत्मपीड़न के माध्यम से हम बुराइयों पर विजय प्राप्त करते हैं।”

“It is not non-resistance or submission to evil. It is resistance to it through love. Satyagrah is the belief in the power of the spirit, the power of truth, the power of love by which we can overcome evil through self-suffering and self-sacrifice.”

3. प्रेम (Love) – महात्मा गाँधी सत्य और अहिंसा के मूल में मानव मात्र को अधिक महत्व देते थे। वे इसे संजीवनी मानते थे। अपने दुश्मनों से भी प्यार करो, ऐसा उनका मानना था। मानव सेवा का आधार ही मानव प्रेम है।

इस प्रकार उनके जीवन दर्शन से तीन निष्कर्ष निकलते हैं—(1) पूर्ण एकत्व, (2) अहिंसा और सत्य, (3) मानव सेवा ।

3. गाँधी जी के शिक्षा दर्शन को प्रभावित करने वाले तत्व (Factors Influencing Gandhian Philosophy)

महात्मा गाँधी जिस किसी भी सिद्धान्त की बात करते थे, उसे पहले करके देखते थे। गाँधी जी का शिक्षा दर्शन तथा” पद्धति समय-समय पर किए गए प्रयोगों का परिणाम थी।

  1. महात्मा गाँधी ने टाल्सटाय आश्रम में एक अखबार निकाला। आश्रम के प्रेस में वह छपता था। प्रेस की मानकर उन्होंने शिक्षा के प्रयोग स्वयं अपने एवं आश्रम के बच्चों पर किए।
  2. महात्मा गाँधी जी का शिक्षा दर्शन उनके जीवन दर्शन से प्रभावित था।
  3. महात्मा गाँधी जी को विद्यमान शिक्षा प्रणाली के प्रति असन्तोष था।
  4. महात्मा गाँधी यह मानकर चलते थे कि भारत का सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक एवं आर्थिक कल्याण शिक्षा की पुनर्रचना से भी सम्भव है।
4. गाँधी जी के शिक्षा दर्शन के प्रमुख आधार (Basis of Gandhiji’s Educational Philosophy)

महात्मा गाँधी के शिक्षा दर्शन की विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं –

1. शिक्षा दर्शन में आदर्शवाद (Idealism in Educational Philosophy)- महात्मा गाँधी का संम्पूर्ण शिक्षा दर्शन आदर्शवाद की प्राप्ति के लिए है। वे स्वयं आध्यात्मिकता में विश्वास रखते थे। उनका कहना है “जीवन का अन्तिम लक्ष्य ईश्वरोपलब्धि है। मानव की सभी क्रियाएँ-सामाजिक, राजनीतिक एवं धार्मिक ईश्वर-दर्शन से निर्देशित होती हैं।”

2. व्यावहारिक शिक्षा-दार्शनिक (Practical Education Philosopher)- महात्मा गाँधी जी की यह विशेषता थी कि वे आचार तथा विचार में सदैव सन्तुलन रखते थे। वह पहले प्रयोग करते थे। उसी के आधार पर अपने विचारों को व्यक्त करते थे।

3. गतिशील शिक्षा दर्शन (Dynamic Educational Philosophy) – महात्मा गाँधी का शिक्षा दर्शन उनके सम्पूर्ण जीवन-दर्शन का गतिशील पहलू था। उन्होंने अपने शिक्षा दर्शन में जीवन के सभी पहलुओं को लिया है। उद्देश्य से लेकर परिणाम तक पर उन्होंने अपने विचार व्यक्त किए हैं।

4. बालक महत्वपूर्ण (Child is Important ) – बापू के शिक्षा दर्शन में बालक को साधन से महत्वपूर्ण माना गया। सारी शिक्षा ही बालक को दी जाती है। साधन तो साधन ठहरे।

5. सच्ची शिक्षा (True Education)- महात्मा गाँधी ने बालक को सच्ची शिक्षा देने का प्रस्ताव रखा है। उनके विचार में शिक्षा से मेरा तात्पर्य, बालक तथा मनुष्य के सर्वांगीण विकास– शरीर, मस्तिष्क तथा आत्मा से है।

6. उद्योग केन्द्रित (Craft Centred) – गाँधी जी ने करके सीखने की विधि का अनुकरण करते हुए शिक्षा को उद्योग-केन्द्रित किया है। बालक जो भी सीखे, वह उद्योग-केन्द्रित हो। उद्योग-केन्द्रित प्रशिक्षण का आर्थिक तथा शैक्षिक, दोनों प्रकार का महत्व होता है। शिक्षा का मूल्य (Value) मानव के सम्पूर्ण विकास में निहित होता है। यह उद्योग के द्वारा आत्म-निर्भरता की ओर ले जाने का संकेत है।

7. क्रिया तथा अनुभव (Activity and Experience) – गाँधी जी के शिक्षा दर्शन में क्रिया तथा अनुभव का स्थान बहुत है। विद्यालय कार्य, प्रयोग तथा खोज का केन्द्र स्थल होता है। इसका पाठ्यक्रम क्रिया-प्रधान होता है।

8. आत्म-निर्भरता (Self-Supporting Aspect) – गाँधी जी चाहते थे कि शिक्षा ऐसी हो-जिससे शिक्षण, विद्यालय तथा छात्र सभी अपना-अपना खर्च निकालें।

9. यथार्थ परिस्थिति (Concrete Life Situation)- महात्मा गाँधी जीवन की यथार्थ परिस्थितियों के मध्य शिक्षा देना चाहते थे। उनका ऐसा विचार था कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली का प्रमुख दोष यही है कि वह जीवन के यथार्थ से परे है। उनके विचार में, “प्रत्येक शिक्षा शास्त्री एवं वह व्यक्ति जो छात्रों के लिए कुछ भी करता है, उसने यह महसूस किया कि हमारी शिक्षा प्रणाली दोषपूर्ण है। यह विधि भारत की आवश्यकता की पूर्ति नहीं करती। ग्राम एवं गृह के मध्य यह शिक्षा सम्पर्क स्थापित नहीं करती।”

“Every educationist, every one who has anything to do with the students, has realized that our educational system is faulty. It has not correspond to the requirements of India there is no correspondence between the education that is given between the home life and the village life.”

5. शिक्षा के उद्देश्य (Aims of Education)

‘महात्मा गाँधी द्वारा प्रस्तावित शिक्षा के उद्देश्यों को दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-

  1. वास्तविक उद्देश्य (Ultimate Aim )
  2. तात्कालिक उद्देश्य ( Immediate Aim )

1. वास्तविक उद्देश्य (Ultimate Aim) – गाँधी जी के शिक्षा दर्शन में वास्तविक अथवा सर्वोच्च उद्देश्य निम्न प्रकार है—

आत्म बोध का उद्देश्य (Self-Realization Aim)- शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य मनुष्य का आत्मबोध होना है। शिक्षा का उद्देश्य है— अन्तिम वास्तविकता का अनुभव ईश्वर और आत्मानुभूति का ज्ञान।

उन्होंने इस सन्दर्भ में लिखा है- “टाल्सटाय फार्म पर बालकों को शिक्षा देने का कार्य करने से पहले मुझे इस बात का ज्ञान हो गया था कि आत्मा का प्रशिक्षण स्वयं एक महान् कार्य है। आत्मा का विकास करना चरित्र का निर्माण करना है और व्यक्ति को ईश्वरानुभूति तथा आत्मानुभूति के योग्य बनाना है।”

(2) तात्कालिक उद्देश्य (Immediate Aim) – गाँधी जी के अनुसार तात्कालिक उद्देश्य निम्न प्रकार हैं-

(i) जीविकोपार्जन उद्देश्य (Bread and Butter Aim) – शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को इस योग्य बनाना चाहिए कि वह आगे चलकर बेकारी व बेरोजगारी का सामना न करे। गाँधी जी के अनुसार- शिक्षा को बालकों की बेरोजगारी के प्रति एक प्रकार की सुरक्षा देनी चाहिए। 7 वर्ष का पाठ्यक्रम समाप्त करने के बाद 14 वर्ष की आयु में बालक को कमाने वाले व्यक्ति के रूप में विद्यालय के बाहर भेजना चाहिए। उन्होंने आगे कहा है- “यह शिक्षा एक प्रकार से बेरोजगारी के खिलाफ बीमे के रूप में होनी चाहिए। यहीं तक कि राज्य को सात वर्ष की आयु में ही बालक का दायित्व ले लेना चाहिए और परिवार की कमाने वाली इकाई के रूप में लौटाना चाहिए। आप इसके माध्यम से एक ओर शिक्षा देते हैं तो दूसरी ओर बेकारी दूर कर कुठाराघात करते हैं।”

“This education ought to be for them a kind of insurance against unemployment…..even so the state takes the charge of the child at seven and returns to the family as an earning unit. You impart education and simultaneously cut at the road of unemployment.”

(ii) सांस्कृतिक उद्देश्य (Cultural Aim) – गाँधी जी सांस्कृतिक उद्देश्य की भी शिक्षा में अपेक्षा करते थे। उनके अनुसार- “मैं शिक्षा के साहित्यिक पक्ष के बजाय सांस्कृतिक पक्ष को अधिक महत्व देता हूँ। संस्कृति बालिकाओं की मुख्य वस्तु है। उन्हें अपने बोलने, बैठने, चलने, कपड़े पहनने और छोटे-छोटे कार्य और व्यवहार में संस्कृति को व्यक्त करना चाहिए।”

“I attach more importance to the cultural aspect of education than to the literacy. Culture is the primary thing for girls which the girls ought to get from hire. It should show itself in the smallest detail of their conduct and personal behaviour, how they sit, how they walk, how they dress etc.”

(iii) सर्वागीण विकास का उद्देश्य (The Complete Development Aim) – महात्मा गाँधी शिक्षा के द्वारा 3H’s का विकास चाहते थे, उससे तात्पर्य हाथ (Hand), हृदय (Heart) एवं सिर (Head) से है। इसीलिए उन्होंने मस्तिष्क, .\ शरीर तथा आत्मा के विकास की बात कही है।

(iv) नैतिक उद्देश्य (Moral Aim) – गाँधी जी नैतिक शिक्षा को प्राथमिकता देना चाहते थे। उनसे एक बार प्रश्न पूछा गया। स्वाधीन भारत में शिक्षा का क्या उद्देश्य होना चाहिए ? उत्तर दिया- “चरित्र-निर्माण। इससे साहस का विकास होगा इससे शक्ति गुण एकता योग्यता के उद्देश्यों की प्राप्ति होगी। यह साक्षरता से अधिक महत्व का है। बौद्धिक प्रशिक्षण तो इस महान् कार्य का एक भाग है…. शिक्षा का समापन चरित्र निर्माण से होना चाहिए।”

6. पाठ्यक्रम (Curriculum )

गाँधी जी ने शिक्षा का पाठ्यक्रम इस प्रकार व्यक्त किया है-

  1. बुनियादी उद्योग (Basic Craft)
  2. मातृभाषा (Mother Tongue),
  3. गणित (Mathematics),
  4. सामान्य विज्ञान (General Sciences),
  5. ड्राइंग (Drawing),
  6. संगीत (Music),
  7. गृह कला तथा विज्ञान (Domestic Art and Science) ।

मातृभाषा के विषय में गाँधी जी के विचार इस प्रकार हैं— “आज हम अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा के लिए संकल्पबद्ध हैं हम किस प्रकार अंग्रेजी की व्यवस्था कर सकते हैं ? रूस ने अपनी तमाम वैज्ञानिक उपलब्धियाँ अंग्रेजी के बिना ही प्राप्त की हैं। यह तो हमारी मानसिक दासता है, जो हमें हमारे विश्वासों को प्राप्त नहीं करने देती।”

“Today when we have not the means to introduce even free compulsory education, how can we make provision for teaching English? Russia have achieved all her scientific progress without English. It is our mental slavery that makes useful that we can never subscribe to the defeatist creed.”

7. शिक्षण विधि (Teaching Method)

गाँधी जी की शिक्षण पद्धति का आधार है क्रिया। बालक कार्य करके सीखे, ऐसा करने से बालक में आत्मविश्वास होता है। उनके अनुसार शिक्षण पद्धति निम्न प्रकार होनी चाहिए-

  1. करके सीखना (Learning by doing),
  2. अनुभव द्वारा सीखना ( Learning by experience),
  3. सीखने की प्रक्रिया में समन्वय (Correlation in the process of the learning),
  4. श्रवण, मनन और स्मरण (Hearing, Thinking and Remembering),
  5. विचार और कर्म (Reading, Thinking and Action)

डॉ० जाकिर हुसैन के अनुसार- “इसमें सहकारी क्रियाओं, नियोजन, पूर्णता प्रोत्साहन एवं अधिगम में वैयक्तिक उत्तरदायित्वों को प्रोत्साहन देने वाले सिद्धान्त होने चाहिएँ।”

“Stress should be laid on the principles of co-operative activity-planning, accuracy, initiative and individual responsibility in learning.”

8. अनुशासन (Discipline)

गाँधी जी के अनुसार अनुशासन निम्न प्रकार का होना चाहिए-

  1. आत्म अनुशासन (Self Discipline),
  2. ऐच्छिक अनुशासन (Voluntary Discipline)

यह अनुशासन जीवन से ही उत्पन्न होता है। इससे सहनशीलता, निर्भयता, लाभ, आत्म-त्याग आदि के गुणों का विकास होता है।

9. शिक्षक (Teacher)

शिक्षक, बालक के गुणों का विकास करने वाला निर्देशक होता है। वह छात्र को हर सम्भव उपायों से योग्य बनाने का कार्य करता है।

विद्यालय (School) – गाँधी जी के अनुसार विद्यालय कार्य, प्रयोग तथा पाठ्यक्रम के संचालन का केन्द्र है।

10. मूल्यांकन (Evaluation)

गाँधी जी के सम्पूर्ण शिक्षा दर्शन का परिचय प्राप्त करने के पश्चात् हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि-

1. गाँधी जी का शिक्षा दर्शन मनोवैज्ञानिक, समाजशास्त्रीय एवं जीवशास्त्रीय दृष्टि से पूर्ण एवं स्वस्थ है।

2. उद्देश्यपूर्ण उपयोगी क्रियाओं के माध्यम से बौद्धिक विकास में विश्वास रखती है।

3. शारीरिक विकास पर पर्याप्त बल देती है।

4. कल्पना के विकास में सहायक होती है।

5. भाषा एवं विषयों की दृष्टि से स्वस्थ है।

6. समाजशास्त्रीय रूप में यह शिक्षा दर्शन अहिंसक व्यवस्था का लाभदायक सूत्र है, अनुशासन की कला, स्वायत्त सरकार, विस्तृत दृष्टिकोण, सहनशीलता और अच्छे पड़ोसीपन का विकास करती है। स्वयं गाँधी जी के अनुसार- “यह ग्राम तथा नगर के मध्य अच्छे सम्बन्ध प्रदान करती है और इस प्रकार यह विद्यमान सामाजिक असुरक्षा को दूर करने का प्रयत्न करती है एवं जनता में विषमतापूर्ण सम्बन्धों को परिष्कृत करती है।”

“It will provide a healthy and moral basis of relationship between the city and the village and thus go a long way towards eradicating some of worst evils of the present social in-security and poisoned relationship between the masses.”

7. गाँधी जी के शिक्षा दर्शन में सभी दार्शनिक प्रवृत्तियाँ पाई जाती हैं।

1. आदर्शवाद – मानव की श्रेष्ठता, आध्यात्मिक मूल्यों का महत्व, धार्मिक शिक्षा का महत्व, मानवीय मूल्यों का संरक्षण, सर्वांगीण व्यक्तित्व का विकास।

2. प्रकृतिवाद- स्वतन्त्र वातावरण में बालक का क्रियाशीलता में विकास ।

3. प्रयोगवाद – निरन्तर प्रयोगों से ही पूर्ण सत्य की प्राप्ति हो सकती है।

11. निष्कर्ष (Conclusion)

गाँधी जी का सम्पूर्ण जीवन दर्शन प्रगतिशील रहा है। आदर्शवाद के साथ प्रकृति और प्रयोजन को मिलाकर दर्शन का पूर्णत्व को प्राप्त होना है। इसीलिए एम० एस० पटेल ने ठीक ही कहा है कि “उनका शिक्षा दर्शन अपनी योजना में प्रकृतिवादी, अपने उद्देश्य में आदर्शवादी और अपने कार्यक्रम और कार्य विधि में प्रयोजनवादी है। शिक्षा दार्शनिक के रूप में गाँधी जी की वास्तविक महानता इस बात में है कि उनके दर्शन में प्रकृतिवाद आदर्शवाद और प्रयोजनवाद की मुख्य प्रवृत्तियाँ स्वतन्त्र नहीं हैं, वरनु मिलकर एक हो गई हैं। इस प्रकार ऐसे सिद्धान्त को जन्म दिया है जो आज़ की आवश्यकताओं के लिए उपयुक्त होगा और मानव आत्मा की सर्वोच्च आकांक्षाओं को सन्तुष्ट करेगा।”

इस प्रकार गाँधी जी का शिक्षा-दर्शन युग की आवश्यकताओं की पूर्ति करने का सबसे बड़ा महत्वपूर्ण दर्शन रहा।

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Anjali Yadav

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