महिलाओं की असमानताओं को दूर करने के क्या प्रयास किये जा रहे हैं? संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
महिलाओं की असमानता दूर करने के उपाय (Measures to Remove Enequality of Women)
आधुनिक युग में विशेषकर स्वतन्त्रता के बाद स्त्रियों की स्थिति में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए। स्वतन्त्रता से पूर्व ही काफी समय से स्त्रियों की स्थिति में सुधार हेतु प्रयत्न किए जा रहे थे, परन्तु स्वतन्त्रता के बाद तो ऐसा प्रतीत हुआ कि जैसे मान्यताएँ बिल्कुल टूटती जा रही हैं। स्त्री जाति की पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति में जो महान परिवर्तन हुए उनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। इन परिवर्तनों के कारण कुछ स्त्रियों को आर्थिक जीवन में प्रवेश करने का अवसर प्राप्त हुआ। स्त्रियों की पुरुषों के ऊपर आर्थिक निर्भरता कम होने लगी। स्त्रियों को स्वतन्त्र रूप से अपने व्यक्तित्व के विकास का अवसर मिला। फलस्वरूप स्त्रियों की स्थिति में जो परिवर्तन हुए उसकी चर्चा संक्षेप में की जा सकती है|
(1) पारिवारिक स्थिति में सुधार- आधुनिक युग में स्त्रियों की पारिवारिक स्थिति में सुधार हुआ। आज स्त्री, पुरुष की दासी न होकर उसकी सहयोगिनी एवं मित्र । परिवार में उसकी स्थिति एक याचिका की नहीं बल्कि प्रबन्धक की है। वह अपने समस्त अधिकारों से वंचित एक नारी अबला न होकर अपनी स्थिति के प्रति पूर्णरूप से जागरूक है। वह संयुक्त परिवार के अपने समस्त जंजालों को काटकर अपने शोषण को रोकने के लिए तैयार है। साथ वह अपने मूल परिवार की स्थापना करके अपने अधिकारों का पूर्ण उपयोग करने लिए भी प्रयत्नशील है। बच्चों की शिक्षा, पारिवारिक आय का उपयोग, संस्कारों का प्रबन्ध एवं पारिवारिक योजनाओं के रूप का निर्धारण करने के फलस्वरूप उसके महत्त्व में बहुत अधिक परिवर्तन आ चुका है। देर से विवाह करना स्त्रियों में लोकप्रिय होता जा रहा है।
(2) शिक्षा में सुधार- शिक्षा के क्षेत्र में भी भारतीय नारी ने काफी प्रगति की है। सरकार भी इस विषय में पूरी तरह से प्रयत्नशील है। प्रत्येक स्थान पर स्त्रियों के लिए शिक्षण संस्थाएँ, विद्यालय आदि खोले गये हैं। व्यावसायिक एवं औद्योगिक संस्थाएँ भी खोली गयी हैं। निःशुल्क शिक्षा, अन्य शुल्कों में रियायत, परीक्षाओं में बैठने की सुविधा, छात्रवृत्तियाँ इत्यादि की भी व्यवस्था है। स्त्रियों के लिए प्रत्येक विश्वविद्यालय, महाविद्यालय में इंजीनियरिंग, टेक्नालॉजी, कृषि, कानून, मेडिकल आदि प्रकार की शिक्षा का प्रबन्ध किया जा रहा है। शिक्षा के प्रसार के फलस्वरूप, स्त्रियों को पर्याप्त स्वतन्त्रता मिली। बाल विवाह और पर्दा-प्रथा जैसी रूढ़ियों से उन्हें छुटकारा मिला। समाज कल्याण और महिला कल्याण में स्त्रियों ने पर्याप्त रुचि दिखायी है। उच्च स्तर की परीक्षाओं में सबसे अधिक अंक प्राप्त करके स्त्रियों ने यह सिद्ध कर दिया कि उनका मानसिक स्तर पुरुषों से किन्हीं मानों में नीचा नहीं है। स्त्री शिक्षा की इस प्रगति को देखते हुए पाणिक्कर ने लिखा है, स्त्री शिक्षा ने विद्रोह की उस कुल्हाड़ी की धार तेज कर दी है, जिससे हिन्दू सामाजिक जीवनरूपी जंगल की झाड़ियों का साफ करना सम्भव हो सका है।
(3) राजनीतिक क्षेत्र में पदार्पण- सन् 1926 ई० में भी स्त्रियों को किसी प्रकार का राजनीतिक अधिकार प्राप्त न था। 1926 ई० में भी स्त्रियाँ केवल सरकार की ओर से सम्मानित की गयी थीं। सन् 1933 का विधान बना जिसमें महिलाओं के संगठनों ने प्रौढ़ मतदान-प्रणाली द्वारा मतदान का अधिकार माँगा, परन्तु यह माँग अव्यावहारिक कहकर सरकार ने ठुकरा दिया। मतदान का अधिकार मिला भी तो वह पत्नी की स्थिति, सम्पत्ति एवं शिक्षा के आधार पर निश्चित था। इस प्रकार की स्त्रियाँ केवल 8 व 9 प्रतिशत थीं। इसके पश्चात् 1950 ई० में गणतन्त्र भारत का संविधान बना जिसके अन्तर्गत धर्म, लिंग, जाति, वंश, जन्म स्थान आदि का भेदभाव दूर किया गया और प्रत्येक भारतीय को बराबर के राजनीतिक अधिकार प्रदान किए गये। आज के भारत में स्त्रियाँ भी पुरुषों के बराबर हैं और उन्हें भी बराबर के राजनीतिक अधिकार प्राप्त हैं।
(4) सामाजिक जागरूकता- भारतीय स्त्रियों का सामाजिक जीवन आज पहले के सामाजिक जीवन से बिल्कुल भिन्न है। जिन परिवारों में कुछ ही वर्षों पूर्व स्त्रियों को पर्दे में रहना अनिवार्य था उन्हीं परिवारों की स्त्रियाँ आज खुली हवा में साँस ले रही हैं। जिन रूढ़ियों को अपनी अज्ञानता के फलस्वरूप स्त्रियों ने अपना जीवन आदर्श बना लिया था, उन्हीं रूढ़ियों को वह निरन्तर छोड़ती जा रही हैं। आज भारतीय स्त्रियाँ अनेक महिला मण्डलों और मनोरंजन क्लबों का निर्माण कर रही हैं और इस प्रकार के संगठनों की सदस्यता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।
(5) आर्थिक निर्भरता में कमी- स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद औद्योगीकरण और नवीन विचारधारा के परिणामस्वरूप स्त्रियों की पुरुषों के प्रति आर्थिक निर्भरता निरन्तर कम होती जा रही है। स्वतन्त्रता से पहले यद्यपि निम्न वर्ग की स्त्रियाँ कार्य करके जीविका उपार्जित करती थीं। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् निम्न वर्ग की स्त्रियों को वह वेतन और मान प्राप्त हुआ जो किं पुरुषों को प्राप्त होता था, परिणाम यह हुआ कि विभिन्न उद्योगों में स्त्रियों की संख्या बड़ी तेजी से बढ़ी। माध्यम वर्ग की स्त्रियों ने भी शिक्षा प्राप्त करके आर्थिक क्षेत्र में निरन्तर आगे बढ़ने का प्रयास किया और इस समय शिक्षा, स्वास्थ्य, चिकित्सा, समाजकल्याण, उद्योग एवं कार्यालयों में स्त्री कर्मचारियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
(6) पृथक निवास भरण-पोषण का अधिकार- स्वाधीनता से पूर्व पुरुष अपनी पत्नी के पृथक निवास तथा भरण-पोषण के दायित्व से मुक्त था किन्तु अब पत्नी अपने पति से अलग रहकर भरण-पोषण की माँग कर सकती है।
(7) वैवाहिक तथा दाम्पत्य अधिकारों में समानता- देश की स्वाधीनता से पूर्व पति-पत्नी के वैवाहिक और दाम्पत्य अधिकार समान नहीं थे, किन्तु अब हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 द्वारा पुरुष स्त्रियों में वैवाहिक तथा दाम्पत्य अधिकारों (Marital Conjugal Rights ) में पूरी समानता ला दी गई है। पति बहु-विवाह नहीं कर सकता जब तक पहली पत्नी की मृत्यु न हो गई हो। इस कानून की सबसे महत्त्वपूर्ण व्यवस्था दूसरा विवाह (Bigamy) अथवा बहु-विवाह (Polygamy) को समाप्त कर एक विवाह (Monogamy) के नियम की व्यवस्था है।
(8) समान उत्तराधिकार- हिन्दू उत्तराधिकार कानून 1956 द्वारा पुत्र-पुत्री के अधिकारों को समान माना गया है और उसके बीच की विषमता को समाप्त कर दिया गया है। पहले पुत्रियों को अपने पिता की सम्पत्ति से वंचित रखा जाता था, परन्तु अब पुत्री हो अथवा पुत्र, सभी का पैतृक सम्पत्ति में समान अधिकार है। दूसरे स्थान पर विधवाओं का सम्पत्ति पर सीमित समान अधिकार होता था। वह अपनी सम्पत्ति को अपनी इच्छा के अनुसार न तो बेच सकती थी और न गिरवीं रख सकती थी, और न दान में ही दे सकती थी, परन्तु उसे इस अधिनियम के द्वारा अपनी सम्पत्ति का पूर्ण अधिकार मिल गया है।
(9) दत्तक ग्रहण का अधिकार- गोद लेने की प्रथा प्राचीन है हिन्दुओं का विश्वास है कि बिना पुत्र के सद्गति प्राप्ति नहीं हो सकती। पुत्रहीन मृतक को पिण्डदान नहीं प्राप्त हो सकता है। अतः पुत्रहीन व्यक्ति किसी सम्बन्धी के पुत्र को अपना दत्तक पुत्र बना लेते हैं। इस प्रथा में पहले अनेक बुराइयाँ थीं, पति अपनी पत्नी की इच्छा के बिना ही गोद ले लिया करते थे, परन्तु अब कानूनी दृष्टि से पत्नी की सहमति अनिवार्य है। अब पत्नी भी गोद ले सकती है।
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