मातृ मृत्यु क्या है ? मातृ मृत्यु के कारणों पर प्रकाश डालिए।
मातृ मृत्यु (Maternal Mortality)
चिकित्सा विज्ञान के अनुसार यदि किसी स्त्री की गर्भावस्था के दौरान, बच्चे के जन्म के दौरान अथवा बच्चे के जन्म के 6 सप्ताह के अन्दर मृत्यु होती है, तो उसे मातृ मृत्यु कहा जाता है। इसका सीधा अर्थ है कि महिला की मृत्यु प्रजनन सम्बन्धी कारणों से हुई है। इसका आंकलन प्रति हजार जीवित जन्म से किया जाता है। भारत में मातृ मृत्यु की दर लगभग 3-5 प्रति हजार जीवित जन्म है अर्थात् 1000 बच्चों को जन्म देने के प्रक्रिया में 3-5 औरतों की मृत्यु हो जाती है। विश्व स्तर पर यह दर बहुत अधिक है तथा कुछ ही अविकसित देश ऐसे हैं, जहाँ यह दर इतनी या इससे अधिक है। भारत के सभी राज्यों में यह दर उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक है, जहाँ यह लगभग 5 प्रति हजार जीवित जन्म है। विश्व लक्ष्य के अनुसार सन् 2000 ई० तक भारत को इस दर को 1.5 प्रति हजार जीवित जन्म से नीचे लाना है। इसी चुनौतीपूर्ण कार्य को सफल बनाने के लिए भारत सरकार के स्वास्थ्य विभाग नये-नये कार्यक्रम लागू कर रहे हैं तथा इस दिशा में अग्रसरित हैं।
प्रजनन स्वास्थ्य सम्बन्धी कुछ अन्य लक्ष्य (Other Factors About Reproductive Health)- सन् 1990 में ग्रामीण क्षेत्रों में कराये गये एक सरकारी सर्वेक्षण के अनुसार उत्तर प्रदेश में लगभग 35% महिलायें 5 या उससे अधिक बार गर्भ धारण करती हैं। इसके अनुसार 40 वर्ष से ऊपर की उम्र की लगभग 45% महिलायें दस या उससे भी अधिक बार गर्भवती हुई हैं। इस तथ्य की अहमियत इसलिये और अधिक है क्योंकि लगभग 35% महिलायें गम्भीर रक्त अल्पता से ग्रसित हैं, तथा लगभग 90% महिलाओं में साधारण रक्त अल्पता पायी जाती है। इसके साथ-साथ ये महिलायें कई अन्य प्रकार के प्रजनन मार्ग संक्रमण (Reproductive Tract Infections) को भी शिकार रहती हैं। बारबार गर्भधारण तथा जन्म देने की प्रक्रिया में महिलाओं की शारीरिक क्षमता का इतना ह्रास होता है कि फिर जीवन भर इसकी पूर्ति नहीं हो पाती। अत्यधिक गर्भधारण से गर्भपात होने की सम्भावनायें भी बढ़ जाती हैं, जो भी स्तर पर जानलेवा सिद्ध हो सकती हैं।
उत्तर प्रदेश की महिलाओं के स्वास्थ्य की स्थिति
(i) 15 वर्ष की होने तक एक-तिहाई लड़कियों का विवाह हो चुका होता है।
(ii) प्रजनन आयु (Reproductive age) की एक-चौथाई महिलाओं का वजन 35 किलों से भी कम होता है।
(iii) लगभग 20% महिलायें कम से कम एक प्रकार की स्त्री/प्रसूती रोग से पीड़ित हैं।
(iv) लगभग आधी महिलायें विवाह के पहला वर्ष पूरा होने से पहले बच्चे को जन्म दे देती हैं।
(v) एक चौथाई महिलायें न चाहते हुये भी गर्भवती हो जाती हैं। (vi) प्रति 1000 पुरुषों के मुकाबले केवल 882 महिलायें हैं। यह स्तर न्यूनतम है।
(vii) लगभग 7% गर्भवती महिलाओं को या तो गर्भपात हो जाता है या फिर वह मृत बच्चे को जन्म देती हैं। (viii) हर चौबीसवें मिनट में एक मातृ मृत्यु होती है।
(ix) जबकि लगभग हर महिला रक्त अल्पता (Anacmia) का शिकार है, केवल 27% को ही इसका इलाज मिलता
(x) प्रजनन-आयु की 75% महिलाओं को गर्भावस्था में जटिलतायें होने की सम्भावनायें रहती हैं।
उपरोक्त सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुये यह अत्यधिक आवश्यक है कि प्रजनन प्रक्रिया के दौरान महिलाओं की पूर्ण देखभाल की जाय, जिससे कि वह स्वस्थ रहें और एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दें। इसके बाद महिला के शरीर को भरपूर समय मिलना चाहिये, जिससे वह दुबारा इस प्रक्रिया के लिए तैयार हो सके। वैज्ञानिक तथ्यों के अनुसार महिला के जीवन में दो से अधिक जितनी बार इस प्रक्रिया को दोहराया जायेगा, उतना ही विपरीत प्रभाव उसके तथा होने वाले बच्चे पर पड़ेगा। विश्व स्तर पर मातृ मृत्यु के आँकड़ों को सारणी 1 में दर्शाया गया है, जिससे सही स्थिति स्पष्ट होती है।
सारणी 1 : विश्व स्तर पर मातृ मृत्यु की दर (1998)
मातृ मृत्यु प्रति 1,00,000 जीवित जन्म
विकासशील देश विकसित देश औशीनिया अफ्रीका लेटिन अमेरिका एशिया यूरोप उत्तरी अमेरिका विश्व |
370 26 600 630 200 380 23 12 370 |
मातृ मृत्यु के कारण (Causes of Maternal Mortality)
मातृ मृत्यु के कई कारण होते हैं, जिनका विश्लेषण आवश्यक है, क्योंकि इसी से भावी कल्याणकारी योजनायें बनाई जा सकती हैं।
मातृ मृत्यु के कारणों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-
- चिकित्सीय कारण (Medical Causes),
- सामाजिक कारण (Social Causes) |
1. चिकित्सीय कारण (Medical Causes) – चिकित्सीय कारण वे कारण हैं, जिनका समय रहते पता चलने से सम्भावित मृत्यु को रोका जा सकता है। इन कारणों में वे कारण सम्मिलित हैं, जो शरीर पर विपरीत प्रभाव डालते हैं। उत्तर प्रदेश में होने वाली मातृ मृत्यु में मुख्यतः निम्न चिकित्सीय कारण पाये गये हैं-
चिकित्सीय कारण | मातृ मृत्यु का प्रतिशत |
सीधे कारण (Direct Causes) | |
अत्यधिक रक्तस्राव (hemorrhage) | 18.6 |
सेप्सिस ( Sepsis) | 12.0 |
अत्यधिक प्रसव पीड़ा / प्रसव में रुकावट(Prolonged/Obstructed Labour) | 05.0 |
गर्भावस्था की विषमता (Toxaemia) | 12.0 |
गर्भाशय का फटना (Ruptured Uterus) | 02.5 |
नाल बाहर न आना (Retained Placenta) | 06.0 |
अन्य प्रभावित करने वाले कारण | |
गम्भीर रक्त अल्पता ( Severe Anaemia) | 8.70 |
अत्यधिक उल्टी-दस्त (Dehydration) | 5.00 |
पीलिया (Jaundice) | 8.70 |
तपैदिक (T.B.) | 5.00 |
टिटनेस (Tetanus) | 4.20 |
अन्य कारण | 13.0 |
2. सामाजिक कारण (Social Causes)- ऊपर दिये गये अधिकांश कारणों को रोका जा सकता है, परन्तु समय रहते सही कदम न उठा पाने के कारण अधिकतर ऐसी परिस्थितियाँ पैदा हो जाती हैं। इन्हीं परिस्थितियों को हम सामाजिक कारणों में विश्लेषित करते हैं-
- गर्भावस्था के समय आयु (बहुत कम या बहुत अधिक),
- चिकित्सीय सुविधाओं का अभाव,
- गरीबी,
- अनुचित देखभाल,
- निरक्षरता तथा अज्ञानता ।
एक सर्वेक्षण के दौरान जब घर के सदस्यों से पूछा गया कि मरने वाली महिला को चिकित्सीय सुविधा क्यों नहीं उपलब्ध कराई गई, तो निम्न कारण सामने आये-
कारण | मातृ मृत्यु का प्रतिशत |
1. महिला की पीड़ा को गम्भीरता से नहीं लिया गया | 15.0 |
2. घर की देखभाल को कोई नहीं था | 06.3 |
3. पैसा उपलब्ध नहीं था | 16.0 |
4. अचानक मृत्यु | 41.0 |
5. महिला ने जाने से इन्कार किया | 08.5 |
6. महिला गम्भीर रूप से पीड़ित नहीं थी | 22.0 |
7. यातायात का साधन उपलब्ध नहीं था | 23.0 |
8. अन्य | 20.0 |
उपर्युक्त सभी कारण हैं, जिनकी वजह से एक महिला या तो मौत के मुँह में चली जाती है या फिर धकेल दी जाती है। इन बिन्दुओं पर गम्भीरता से विचार की आवश्यकता है।
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