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मापन एवं मूल्यांकन के उपकरण | Measurement and Evaluation Instruments in Hindi

मापन एवं मूल्यांकन के उपकरण | Measurement and Evaluation Instruments in Hindi
मापन एवं मूल्यांकन के उपकरण | Measurement and Evaluation Instruments in Hindi
मापन एवं मूल्यांकन के उपकरणों का वर्णन कीजिए।

मापन तथा मूल्यांकन के द्वारा छात्रों के विभिन्न व्यवहारों, योग्यताओं, क्षमताओं, गुणों आदि का तथा उनके शैक्षिक विकास का गुणात्मक व मात्रात्मक वर्णन करने के साथ-साथ छात्रों के शैक्षिक विकास की वांछनीयता को सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाता है। छात्रों के व्यवहारों, योग्यताओं, क्षमताओं, गुणों आदि का मापन करने तथा शैक्षिक विकास का आँकलन करने के लिए विभिन्न प्रकार की तकनीकों तथा उपकरणों की आवश्यकता होती है। जिन उपकरणों व तकनीकों का उपयोग छात्रों के व्यवहार के मापन के लिए किया जाता है उन्हें मापन तथा मूल्यांकन के उपकरणों व तकनीकों के नाम से सम्बोधित किया जाता है। विभिन्न प्रकार के व्यवहारों का मापन करने हेतु विभिन्न प्रकार की तकनीकों व उपकरणों का उपयोग किया जाता है। ज्ञानात्मक व्यवहार के मापन के लिए अवलोकन, मौखिक परीक्षण, लिखित परीक्षण, साक्षात्कार आदि का, भावात्मक व्यवहार के मापन के लिए अवलोकन, रूचि परीक्षण, व्यक्तित्व परीक्षण, अभिवृत्ति मापनी, समाजमिति आदि का तथा क्रियात्मक व्यवहार के मापन के लिए अवलोकन, प्रयोगात्मक परीक्षण आदि का प्रयोग किया जाता है। स्पष्ट है कि एक ही प्रकार की तकनीक अथवा उपकरण का प्रयोग करके एक से अधिक प्रकार के व्यवहार को मापा जा सकता है। जैसे अवलोकन के प्रयोग से ज्ञानात्मक, भावात्मक व क्रियात्मक, तीनों ही प्रकार के व्यवहारों का मापन करना सम्भव हो सकता है। इसी तरह से परीक्षण तकनीक से ज्ञानात्मक व भावात्मक दोनों ही प्रकार व्यवहारों को मापा जा सकता है।

मापन व मूल्यांकन के उपकरण

1. अवलोकन- अवलोकन व्यक्ति के व्यवहार के मापन की अत्यन्त प्राचीन विधि है। व्यक्ति अपने आस-पास घटित होने वाली क्रियाओं तथा घटनाओं का अवलोकन करते रहते हैं। मापन के एक उदाहरण के रूप में अवलोकन का सम्बन्ध किसी व्यक्ति अथवा छात्र के बाह्य व्यवहार को देखकर उसके व्यवहार का वर्णन करने से है। अवलोकन को मापन की एक वस्तुनिष्ठ विधि के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता, फिर भी क प्रकार की परिस्थितियों में तथा अनेक प्रकार के व्यवहार के मापन में इस विधि का काफी प्रयोग किया जाता है। छोटे बच्चों के व्यवहार का मापन करने के लिए यह विधि अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होती है। छोटे बच्चे मौखिक तथा लिखित परीक्षाओं के प्रति जागरूक नहीं होते हैं। जिसकी वजह से मौखिक तथा लिखित परीक्षणों के द्वारा उनका मापन करना कठिन हो जाता है। व्यक्तित्व के गुणों का मापन करने के लिए भी अवलोकन का प्रयोग किया जा सकता है। छोटे बच्चों, अनपढ़ व्यक्तियों, मानसिक रोगियों, विकलांगों तथा अन्य भाषा भाषी लोगों के लिए व्यवहार के मापन के लिए अवलोकन एक मात्र विधि है। अवलोकन की सहायता से ज्ञानात्मक, भावात्मक तथा क्रियात्मक तीनों ही प्रकार के व्यवहार का मापन किया जा सकता है।

स्वअवलोकन तथा बाह्य अवलोकन – अवलोकन दो प्रकार का हो सकता है। स्वअवलोकन तथा बाह्य अवलोकन। स्वअवलोकन में व्यक्ति अपने स्वयं के व्यवहार का अवलोकन करता है जबकि बाह्य अवलोकन में अवलोकनकर्ता अन्य व्यक्तियों के व्यवहार का अध्ययन करता है। निःसन्देह स्वयं के व्यवहार का ठीक-ठीक अवलोकन करना एक कठिन कार्य होता है जबकि अन्य व्यक्तियों के व्यवहार को देखना सरल होता है। वर्तमान समय में प्रायः अवलोकन से अभिप्राय दूसरे व्यक्तियों के व्यवहार के अवलोकन को माना जाता है ।

व्यवस्थित तथा अव्यवस्थित अवलोकन – अवलोकन व्यवस्थित भी हो सकता है तथा अव्यवस्थित भी हो सकता है। व्यवस्थित अवलोकन किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाता है। इसके विपरीत अव्यवस्थित अवलोकन किसी सामान्य उद्देश्य की दृष्टि से किया जाता है।

प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष अवलोकन – अवलोकन को प्रत्यक्ष अवलोकन तथा अप्रत्यक्ष अवलोकन में भी बाँटा जा सकता है प्रत्यक्ष अवलोकन से अभिप्राय किसी व्यवहार को उसी रूप में देखना है जैसा कि वह व्यवहार हो रहा है। इसमें मापनकर्ता व्यवहार का अवलोकन स्वयं करता है। परोक्ष अवलोकन में किसी व्यक्ति के व्यवहार के सम्बन्ध में अन्य व्यक्तियों से पूछा जाता है।

सहभागिक तथा असहभागिक अवलोकन – प्रत्यक्ष अवलोकन दो प्रकार का हो सकता है – सहभागिक अवलोकन तथा असहभागिक अवलोकन सहभागिक अवलोकन में अवलोकनकर्ता उस समूह का एक अंग होता है जिसका वह अवलोकन कर रहा होता है। जबकि असहभागिक अवलोकन में अवलोकनकर्ता समूह के क्रिया कलापों में कोई भाग नहीं लेता है।

नियन्त्रित तथा अनियन्त्रित अवलोकन – अवलोकन को नियन्त्रित अवलोकन तथा अनियन्त्रित अवलोकन के रूप में भी बांटा जा सकता है। नियन्त्रित अवलोकन में अवलोकनकर्ता परिस्थितियाँ निर्मित करके अवलोकन करता है। जबकि अनियन्त्रित अवलोकन में वास्तविक स्वाभाविक परिस्थितियों में अवलोकन कार्य किया जाता है। नियन्त्रित अवलोकन में व्यवहार के अस्वाभाविक हो जाने की सम्भावना रहती है क्योंकि अवलोकित किया जाने वाला व्यक्ति सजग हो जाता है। अनियन्त्रित अवलोकन में अवलोकित किये जाने वाले व्यक्ति को कोई जानकारी नहीं होती जिससे वह स्वाभाविक व्यवहार का प्रदर्शन करता है।

2. परीक्षण – परीक्षण वे उपकरण है जो किसी व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के किसी समूह के व्यवहार का क्रमबद्ध ज्ञान प्रदान करते हैं। परीक्षण से तात्पर्य किसी व्यक्ति को ऐसी परिस्थितियों में रखने से है जो उसके वास्तविक गुणों को प्रकट कर दे । विभिन्न प्रकार के गुणों को मापने के लिए विभिन्न परीक्षणों का प्रयोग किया जाता है। छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि ज्ञात करने के लिए उपलब्धि परीक्षणों का प्रयोग किया जाता है। व्यक्तित्व को जानने के लिए व्यक्तित्व परीक्षण का प्रयोग किया जाता है। अभिक्षमता ज्ञात करने के लिए अभिक्षमता परीक्षण का प्रयोग किया जाता है। छात्रों की कठिनाइयों को जानने के लिये निदानात्मक परीक्षण का प्रयोग किया जाता है आदि-आदि। परीक्षणों को अनेक ढंग से वर्गीकृत किया जा सकता है।

मौखिक, लिखित तथा प्रयोगात्मक परीक्षण- परीक्षण की प्रकृति के आधार पर उन्हें मौखिक परीक्षण, लिखित परीक्षण तथा प्रयोगात्मक परीक्षण में बांटा जा सकता है। मौखिक परीक्षण में मौखिक प्रश्नोत्तर के द्वारा छात्रों के व्यवहार का मापन किया जाता है। परीक्षक मौखिक प्रश्न ही करता है तथा परीक्षार्थी मौखिक रूप से ही उत्तर प्रदान करता है। स्पष्ट है कि मौखिक परीक्षण में एक समय में एक ही छात्र के गुणों को मापा जा सकता है। लिखित परीक्षण में प्रश्न लिखित रूप में पूछे जाते हैं तथा छात्र उनका उत्तर लिख कर देता है। प्रयोगात्मक परीक्षणों में छात्रों को कोई प्रयोगात्मक कार्य करना होता है तथा इस प्रयोगात्मक कार्य के आधार पर उनका मापन किया जाता है।

व्यक्तिगत तथा सामूहिक परीक्षण – परीक्षण के प्रशासन के आधार पर परीक्षणों – को दो भागों में बाँटा जा सकता है – व्यक्तिगत परीक्षण तथा सामूहिक परीक्षण। व्यक्तिगत परीक्षण वे परीक्षण हैं जिनके द्वारा एक समय में केवल एक ही व्यक्ति की योग्यता का मापन किया जा सकता है। इसके विपरीत सामूहिक परीक्षण वे परीक्षण है जिनके द्वारा एक ही समय में अनेक व्यक्तियों की किसी योग्यता का मापन किया जा सकता है।

शाब्दिक तथा अशाब्दिक परीक्षण – परीक्षण में प्रयुक्त सामग्री के प्रस्तुतिकरण 1 के आधार पर भी परीक्षण को दो भागों में बांटा जा सकता है शाब्दिक परीक्षण तथा अशाब्दिक परीक्षण शाब्दिक परीक्षण वे परीक्षण हैं जिनमें प्रश्न तथा उत्तर किसी भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त किये जाते हैं जबकि अशाब्दिक परीक्षण वे परीक्षण हैं जिनमें प्रश्न तथा उत्तर दोनों ही (अथवा उत्तर) संकेतों या चित्रों आदि भाषा रहित माध्यमों से प्रस्तुत किये जाते हैं।

मानकीकृत तथा अमानकीकृत परीक्षण – परीक्षणों की रचना के आधार पर परीक्षणों को मानकीकृत परीक्षण तथा अमानकीकृत या अध्यापक निर्मित परीक्षण में बांटा जा सकता है। मानकीकृत परीक्षण वे परीक्षण हैं जिनके प्रश्नों का चयन पद-विश्लेषण के आधार पर करते हैं और जिनकी विश्वसनीयता, वैधता तथा मानक उपलब्ध रहते हैं। अध्यापक निर्मित परीक्षण वे परीक्षण है जिन्हें कोई अध्यापक अपनी आवश्यकतानुसार तात्कालिक रूप से तैयार कर लेता है।

निबन्धात्मक तथा वस्तुनिष्ठ परीक्षण – प्रश्नों के उत्तर के फलांकन के आधार पर भी परीक्षणों को दो भागों में बांटा जा सकता है-निबन्धात्मक परीक्षण तथा वस्तुनिष्ठ परीक्षण। निबन्धात्मक परीक्षण वे परीक्षण हैं जिनमें परीक्षार्थी प्रश्नों का उत्तर देने के लिए स्वतन्त्र होता है जबकि वस्तुनिष्ठ परीक्षणों में परीक्षार्थी कुछ निश्चित शब्दों या वाक्यांशों की सहायता से प्रश्नों के उत्तर प्रदान करता है।

सम्प्राप्ति, निदानात्मक, अभिक्षमता आदि परीक्षण – परीक्षण के द्वारा मापे जा रहे गुण के आधार पर भी परीक्षणों को अनेक भागों में बांटा जा सकता है जैसे सम्प्राप्ति परीक्षण, निदानात्मक परीक्षण, अभिक्षमता परीक्षण, बुद्धि परीक्षण, रूचि परीक्षण, व्यक्तित्व परीक्षण आदि। सम्प्राप्ति परीक्षणों की सहायता से विभिन्न विषयों में छात्रों के द्वारा अर्जित योग्यता का मापन किया जाता है। निदानात्मक परीक्षणों की सहायता से विभिन्न विषयों। में छात्रों की कठिनाइयों को जानकार उन्हें दूर करने का प्रयास किया जाता है। अभिक्षमता परीक्षण विशिष्ट क्षेत्रों में व्यक्ति की योग्यता का मापन करते हैं। बुद्धि परीक्षण व्यक्ति की मानसिक योग्यताओं के मापन में प्रयुक्त किये जाते हैं। रूचि परीक्षणों के द्वारा छात्रों की शैक्षिक तथा व्यावसायिक रूचियों को मापा जाता है। व्यक्तित्व परीक्षण की सहायता से व्यक्ति की व्यक्तित्व विशेषताओं को जाना जाता है।

सार्विक तथा एकांकी परीक्षण – परीक्षण की प्रकृति के आधार पर परीक्षणों को दो भागों में बाँटा जा सकता है-सार्विक परीक्षण तथा एकाकी परीक्षण सार्विक परीक्षण एक साथ उनके गुणों का मापन करता है जबकि एकांकी परीक्षण एक बार में केवल एक ही गुण या योग्यता का मापन करता है।

गति तथा सामर्थ्य परीक्षण – परीक्षण की प्रकृति के आधार पर परीक्षणों को गति परीक्षण तथा सामर्थ्य परीक्षण में भी बांटा जा सकता है। गति परीक्षणों में सरल प्रश्न अधिक संख्या में दिये होते है तथा प्रश्न हल करने की गति का मापन किया जाता है। सामर्थ्य परीक्षण में कुछ कठिन प्रश्न दिये होते हैं तथा छात्रों के प्रश्नों को हल करने की सामर्थ्य का पता लगाया जाता है।

3. साक्षात्कार – साक्षात्कार व्यक्तियों से सूचना संकलित करने का सर्वाधिक प्रचलित साधन है। विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों में इसका प्रयोग किया जाता रहा है। साक्षात्कार में किसी व्यक्ति से आमने-सामने बैठकर विभिन्न प्रश्न पूछे जाते हैं तथा उसके द्वारा दिये गये उत्तर के आधार पर उसकी योग्यताओं का मापन किया जाता है।

मानकीकृत तथा अमानकीकृत साक्षात्कार – साक्षात्कार दो प्रकार के हो सकते हैं- मानकीकृत साक्षात्कार तथा अमानकीकृत साक्षात्कार मानकीकृत साक्षात्कार को संरचित साक्षात्कार भी कहते हैं। इस प्रकार के साक्षात्कार में पूछे जाने वाले प्रश्नों, उनके क्रम तथा उनकी भाषा को पहले से ही निश्चित कर लिया जाता है, साक्षात्कारकर्त्ता को प्रश्नों के सम्बन्ध में कुछ (परन्तु अत्यधिक कम) स्वतंत्रता दी जा सकती है। परन्तु यह स्वतंत्रता भी पहले से ही स्पष्ट की जाती है। मानकीकृत साक्षात्कार के लिए साक्षात्कार प्रश्नावली को पहले से ही सावधानी के साथ तैयार कर लिया जाता है। स्पष्टतः मानकीकृत साक्षात्कार में सभी छात्रों से एक से प्रश्न, एक ही क्रम में तथा एक ही भाषा में पूछे जाते हैं। अमानकीकृत साक्षात्कार को असंरचित साक्षात्कार भी कहते हैं। इस प्रकार साक्षात्कार लोचनीय तथा मुक्त होते हैं। यद्यपि इस प्रकार के साक्षात्कार में पूछे जाने वाले प्रश्न काफी सीमा तक मापन के उद्देश्यों के ऊपर निर्भर करते हैं। फिर भी प्रश्नों की पाठ्यवस्तु, उनका क्रम, उनकी भाषा साक्षात्कारकर्त्ता के ऊपर निर्भर करती है। इनमें किसी भी प्रकार की साक्षात्कार प्रश्नावली का प्रयोग नहीं किया जाता। स्पष्टतः अमानकीकृत साक्षात्कार में विभिन्न छात्रों से पूछे गये प्रश्न भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। कभी-कभी परिस्थितियों के अनुसार साक्षात्कार का एक मिश्रित रूप अपनाना पड़ता है जिसे अर्द्धमानकीकृत साक्षात्कार कहते हैं। इनमें साक्षात्कारकर्त्ता तात्कालिक परिस्थितियों के अनुरूप निर्णय लेकर विकल्पात्मक प्रश्नों का प्रयोग कर सकता है।

उद्देश्य के अनुरूप साक्षात्कार कई प्रकार के हो सकते हैं। जैसे सूचनात्मक साक्षात्कार, परामर्श साक्षात्कार, निदानात्मक साक्षात्कार, उपचारात्मक साक्षात्कार, चयन साक्षात्कार तथा अनुसंधान साक्षात्कार आदि। कुछ विद्वान साक्षात्कार को औपचारिक साक्षात्कार में बांटते हैं जबकि कुछ विद्वान साक्षात्कार को व्यक्तिगत साक्षात्कार तथा सामूहिक साक्षात्कार में बांटते हैं।

प्रत्यक्ष सम्पर्क स्थापित करके सूचनायें संकलित करने की दृष्टि से साक्षात्कार अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होता है। साक्षात्कार के द्वारा अनेक ऐसी गुप्त तथा व्यक्तिगत सूचनायें प्राप्त हो सकती हैं जो मापन के अन्य उपकरणों से प्राप्त नहीं हो पाती हैं। किसी व्यक्ति के अतीत को जानने अथवा उसके गोपनीय अनुभवों की झलक प्राप्त करने के कार्य में साक्षात्कार एक उपयोगी भूमिका अदा करता है। बहुपक्षीय तथा गहन अध्ययन हेतु साक्षात्कार बहुत उपयोगी सिद्ध होता है। इसके अतिरिक्त अशिक्षितों तथा बालकों से सूचना प्राप्त करने की दृष्टि से भी साक्षात्कार अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होता है। साक्षात्कार में साक्षात्कारकर्त्ता आवश्यकतानुसार लोचनीयता कर सकता है जो अन्य मापन उपकरण में सम्भव नहीं होती है।

साक्षात्कार की सम्पूर्ण प्रक्रिया को तीन भागों में बाँटा जा सकता है – (i) साक्षात्कार का प्रारम्भ, (ii) साक्षात्कार का मुख्य भाग तथा (iii) साक्षात्कार का समापन। साक्षात्कार के प्रारम्भ में साक्षात्कार लेने वाले व्यक्ति साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति से आत्मीयता स्थापित करता है। इसके लिए साक्षात्कारकर्ता को साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति का स्वागत करते हुए परिचय प्राप्त करना होता है तथा यह विश्वास दिलाना होता है कि उसके द्वारा दी गई सूचनायें पूर्णतया गोपनीय रहेंगी। आत्मीयता स्थापित हो जाने के उपरान्त साक्षात्कार का मुख्य भाग आता है जिसमें वांछित सूचनाओं का संकलन किया जाता है। प्रश्न करते समय साक्षात्कारकर्ता को ध्यान रखना चाहिए कि (i) प्रश्न क्रमबद्ध हों, (ii) प्रश्न सरल व स्पष्ट हों, (iii) प्रश्न साक्षात्कार देने वाले की भावनाओं पर आघात न पहुँचाते हों, (iv) साक्षात्कार देने वाले को अपनी अभिव्यक्ति का उचित अवसर मिल सकें तथा (v) साक्षात्कार देने वाले के द्वारा दिये गये उत्तरों को धैर्य व सहानुभूति के साथ सुना जाये। वांछित सूचनाओं की प्राप्ति के उपरान्त साक्षात्कार को इस प्रकार से समाप्त किया जाना चाहिए कि साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति को सन्तोष का अनुभव हो साक्षात्कार की समाप्ति मधुर वातावरण में धन्यवाद ज्ञापन के साथ होनी चाहिए। किन्हीं बातों के विस्मरण की सम्भावना से बचने के लिए साक्षात्कार के उपरान्त साक्षात्कारकर्ता को अपना प्रतिवेदन तुरन्त तैयार कर लेना चाहिए।

4. अनुसूची – अनुसूची समंक संकलन हेतु बहुतायत: ये प्रयुक्त होने वाला एक मापन उपकरण है। इसका उपयोग विभिन्न प्रकार की सूचनाओं को प्राप्त करने के लिए किया जाता है। सामान्यत: अनुसूची की पूर्ति समंक संकलन करने वाला व्यक्ति स्वयं करता है। अनुसंधानकर्ता/मापनकर्ता उत्तरदाता से प्रश्न पूछता है, आवश्यकता होने पर प्रश्न को स्पष्ट करता है तथा प्राप्त उत्तर को अनुसूची में अंकित करता जाता है। परन्तु कभी-कभी अनुसूची की पूर्ति उत्तरदाता से भी कराई जाती है। वेबस्टर के अनुसार, अनुसूची एक औपचारिक सूची, केटालॉग अथवा सूचनाओं की सूची होती है। अनुसूची को औपचारिक तथा प्रमापीकृत जाँच कार्यों में प्रयुक्त होने वाली गणनात्मक प्राविधि के रूप में स्पष्ट किया जा सकता है जिसका उद्देश्य मात्रात्मक समंकों के संकलन को व्यवस्थित एवं सुविधाजनक बनाना होता है।

अवलोकन तथा साक्षात्कार को वस्तुनिष्ठ व प्रमाणिक बनाने में अनुसूचियाँ सहायक सिद्ध होती है। ये एक समय में किसी एक बात का अवलोकन या जानकारी प्राप्त करने पर बल देती है जिसके फलस्वरूप अवलोकन से प्राप्त जानकारी अधिक सटीक होती है। अनुसूची काफी सीमा तक प्रश्नावली के समान होती है तथा इन दोनों में विभेद करना एक कठिन कार्य होता है। अनुसूचियाँ अनेक प्रकार की होती हैं जैसे अवलोकन अनुसूची, साक्षात्कार अनुसूची, दस्तावेज अनुसूची, मूल्यांकन अनुसूची, निर्धारण अनुसूची आदि। परन्तु यहाँ यह स्पष्ट करना उचित ही होगा कि ये अनुसूचियों परस्पर एक दूसरे से पूर्णतया अपवर्जित नहीं है। जैसे साक्षात्कार अनुसूची में अवलोकन के आधार पर पूर्ति किये जाने वाले पद हो सकते हैं। अवलोकन अनुसूची व्यक्तियों अथवा समूहों की क्रियाओं तथा सामाजिक परिस्थितियों को जानने के लिए एक समान आधार प्रदान करती है। इस प्रकार की अनुसूचियों को सहायता से एक साथ अनेक अवलोकनकर्ता एकरूपता के साथ क संकलित कर सकते हैं।

साक्षात्कार अनुसूचियों का प्रयोग अर्द्ध-प्रमापीकृत तथा प्रमापीकृत साक्षात्कारों में किया जाता है। ये साक्षात्कार को प्रमापीकृत बनाने में सहायक होती है। अर्द्ध-प्रमापीकृत तथा प्रमापीकृत साक्षात्कार की चर्चा पीछे की जा चुकी है, इसलिए उनकी पुनरावृत्ति करने की आवश्यकता प्रतीत नहीं होती है।

दस्तावेज अनुसूची का प्रयोग व्यक्ति इतिहासों से सम्बन्धित दस्तावेजों तथा अन्य सामग्री से समंक संकलित करने हेतु किया जाता है। इस प्रकार की अनुसूचियों में उन्हीं बिन्दुओं/पदों को सम्मिलित किया जाता है जिनके सम्बन्ध में सूचनायें विभिन्न व्यक्ति इतिहासों के समान रूप से प्राप्त हो सके। अतः अपराधी बच्चों के व्यक्ति-इतिहासों का अध्ययन करने के लिए बनाई अनुसूची में उन्हीं बातों को सम्मिलित किया जायेगा जो अध्ययन में सम्मिलित सभी बच्चों के व्यक्ति-इतिहासों से ज्ञात हो सकती हैं। जैसे अपराध शुरू करने की आयु, माता-पिता का शिक्षा स्तर, परिवार का सामाजिक आर्थिक स्तर, अपराधों की प्रकृति व आवृत्ति आदि ।

मूल्यांकन अनुसूची का प्रयोग एक साथ अनेक स्थानों पर संचालित समान प्रकार के कार्यक्रमों का मूल्यांकन करने के लिए आवश्यक सूचनायें संकलित करने के लिए किया जाता है। जैसे यू.जी.सी. द्वारा अनेक विश्वविद्यालयों में एक साथ संचालित एकेडेमिक स्टाफ कॉलेज योजना का मूल्यांकन करने के लिए विभिन्न एकेडेमिक स्टाफ कॉलेजों से सूचनायें संकलित करने के लिए मूल्यांकन अनुसूची का प्रयोग होगा।

निर्धारित अनुसूची का प्रयोग किसी गुण की मात्रा का निर्धारण करने अथवा अनेक गुणों की तुलनात्मक उपस्थिति को निर्धारित करने के लिए किया जाता है। निर्धारण अनुसूची वास्तव में निर्धारण मापनी का ही एक रूप है।

5. प्रश्नावली – प्रश्नावली प्रश्नों का एक समूह है जिसे उत्तरदाता के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता है तथा वह उनका उत्तर देता है। प्रश्नावली साक्षात्कार का लिखित रूप है। साक्षात्कार में एक-एक करके प्रश्न मौखिक रूप में पूछे जाते हैं तथा उनका उत्तर भी मौखिक रूप में प्राप्त होता है जबकि प्रश्नावली प्रश्नों का एक व्यवस्थित संचयन है। प्रश्नावली एक साथ अनेक व्यक्तियों को दी जा सकती है जिससे कम समय, कम व्यय तथा कम श्रम में प्रश्नों का उत्तर अनेक व्यक्तियों से प्राप्त हो जाता है।

प्रत्यक्ष तथा डाक प्रश्नावली – प्रश्नावली प्रत्यक्ष सम्पर्क के द्वारा भी प्रकाशित की जा सकती है तथा डाक द्वारा भेज कर भी आवश्यक सूचनाएँ प्राप्त की जा सकती हैं।

प्रतिबन्धित तथा मुक्त प्रश्नावली- प्रश्नावली दो प्रकार की हो सकती हैं प्रतिबन्धित प्रश्नावली तथा मुक्त प्रश्नावली। प्रतिबन्धित प्रश्नावली में दिये गये कुछ उत्तरों में से किसी एक उत्तर का चयन करना होता है। जबकि मुक्त प्रश्नावली में उत्तरदाता को अपने शब्दों में तथा अपने विचारानुकूल उत्तर देने की स्वतंत्रता होती है। जब प्रश्नावली में दोनों ही प्रकार के प्रश्न होते हैं तब उसे मिश्रित प्रश्नावली कहते हैं।

प्रश्नावली तैयार करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए-

  1. प्रश्नावली के साथ मुखपत्र अवश्य संलग्न करना चाहिए जिससे प्रश्नावली को प्रशासित करने के उद्देश्य का स्पष्ट उल्लेख किया गया है।
  2. प्रश्नावली के प्रारम्भ में आवश्यक निर्देश अवश्य देने चाहिए जिनमें उत्तर को अंकित करने की विधि स्पष्ट की गई हो।
  3. प्रश्नावली में सम्मिलित प्रश्न आकार की दृष्टि से छोटे तथा बोधगम्य होने चाहिए।
  4. प्रत्येक प्रश्न में केवल एक ही विचार को प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
  5. प्रश्नावली में प्रयुक्त तकनीकी/जटिल शब्दों के अर्थ को स्पष्ट कर देना चाहिए।
  6. प्रश्नों में एक साथ दोहरी नकारात्मकता का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

6. निर्धारण मापनी – निर्धारण मापनी किसी व्यक्ति के गुणों का गुणात्मक विवरण प्रस्तुत करती है। निर्धारण मापनी की सहायता से व्यक्ति में उपस्थित गुणों की सीमा अथवा गहनता या आवृत्ति को मापने का प्रयास किया जाता है। निर्धारण मापनी में कुछ संकेत (अथवा अंक) होते हैं। ये संकेत (अथवा अंक) कम से अधिक के सातत्य में क्रमबद्ध रहते हैं। उत्तरकर्त्ता को मापे जाने वाले गुण के आधार पर इन संकेतों (अथवा अंकों) में से किसी एक ऐसे संकेत का चयन करना होता है जो छात्र में उपस्थित उस गुण की सीमा को अभिव्यक्त कर सके। निर्धारण मापनी अनेक प्रकार की हो सकती है।

चैकलिस्ट, आंकिक मापनी, ग्राफिक मापनी, क्रमिक मापनी, स्थानिक मापनी तथा ब्राह्य चयन मापनी।

चेकलिस्ट – जब किसी व्यक्ति में गुण की उपस्थिति या अनुपस्थिति का ज्ञान करना होता है तब चैक लिस्ट का प्रयोग किया जाता है। चैकलिस्ट में कुछ कथन दिये होते हैं जो गुण की उपस्थिति/अनुपस्थिति को इंगित करते हैं। निर्णायक को कथनों के सही या गलत होने को सही या गलत का चिह्न लगाकर बताना होता है। निर्णायक के उत्तरों के आधार पर व्यक्ति में मौजूद गुण की मात्रा का पता लगाया जाता है।

आंकिक मापनी – आंकिक मापनी में दिये गये कथनों के हाँ या नहीं के रूप में उत्तर नहीं होते हैं बल्कि कुछ बिन्दुओं (जैसे 3, 5 या 7 आदि) पर कथन के प्रति सहमति या असहमति की सीमा ज्ञात की जाती है। इस प्रकार से निर्णयकर्त्ता से प्रत्येक कथन के प्रति उसकी सहमति/असहमति की सीमा को जान लिया जाता है तथा इस सबके योग से गुण की मात्रा का ज्ञान कर लिया जाता है।

ग्राफिक मापनी ग्राफिक मापनी मूलतः आंकिक मापनी के समान होती है। – इसमें सहमति/असहमति की सीमाओं को कुछ बिन्दुओं से प्रकट न करके एक क्षैतिज रेखा, जिसे सातत्य कहते हैं तथा जो सहमति/असहमति के दो छोरों को बताती है, पर निशान लगाकर अभिव्यक्त किया जाता है। इन क्षैतिज रेखाओं पर निर्णयकर्त्ता के द्वारा लगाये निशानों की स्थिति (अर्थात् किसी एक छोर से दूरी) के आधार पर गुण की मात्रा का ज्ञान हो जाता है।

क्रमिक मापनी – क्रमिक मापनी में निर्णयकर्त्ता से किसी गुण की मात्रा के विषय में जानकारी न लेकर अनेक उपगुणों को क्रमबद्ध कराया जाता है। व्यक्ति में उपस्थित गुणों की मात्रा के आधार पर इन गुणों को क्रमबद्ध किया जाता है। कभी-कभी इस मापनी की सहायता से विभिन्न वस्तुओं, या गुणों के सापेक्षिक महत्त्व को जाना जाता है।

स्थानिक मापनी- स्थानिक मापनी की सहायता से विभिन्न वस्तुओं व्यक्तियों या कथनों को किसी समूह के सन्दर्भ में स्थानसूचक मान जैसे दशांक या शतांक (Percentiles) प्रदान किये जाते हैं।

बाह्य चयन मापनी – बाह्य चयन मापनी में प्रत्येक प्रश्न के लिए दो या दो से अधिक उत्तर होते हैं तथा व्यक्ति को इनमें से किसी एक का चयन अवश्य करना पड़ता है।

7. प्रक्षेपीय तकनीक – प्रक्षेपीय तकनीक की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विशेषता व्यक्ति के अचेतन पक्ष का मापन है। प्रक्षेपण से अभिप्राय उस अचेतन प्रक्रिया से है जिसमें व्यक्ति अपने मूल्यों, दृष्टिकोणों, आवश्यकताओं, इच्छाओं, संवेगों आदि को अन्य वस्तुओं अथवा अन्य व्यक्तियों के माध्यम से अपरोक्ष ढंग से व्यक्त करता है। प्रक्षेपीय तकनीक में व्यक्ति के सम्मुख किसी ऐसी उद्दीपक परिस्थिति को प्रस्तुत किया जाता है जिसमें वह अपने विचारों, दृष्टिकोणों, संवेगों, गुणों, आवश्यकताओं आदि को उस परिस्थिति में आरोपित कर दे। प्रक्षेपीय तकनीक में प्रस्तुत किए जाने वाले उद्दीपन असंरचित होते हैं तथा इन पर व्यक्ति के द्वारा की गई क्रियायें सही या गलत न होकर व्यक्ति की सहज व्याख्याएँ होती हैं। प्रक्षेपीय तकनीकों में व्यक्ति द्वारा दी जाने वाली प्रतिक्रिया के आधार पर इन्हें पाँच भागों में बांटा जा सकता है-साहचर्य तकनीकें, रचना तकनीकें, पूर्ति तकनीकें, क्रम तकनीकें, तथा अभिव्यक्ति तकनीकें ।

साहचर्य तकनीक- साहचर्य तकनीक में व्यक्ति के सम्मुख कोई उद्दीपक प्रस्तुत किया जाता है तथा व्यक्ति को उस उद्दीपक से सम्बन्धित प्रतिक्रिया देनी होती है। व्यक्ति के द्वारा इस प्रकार से प्रस्तुत की गई प्रतिक्रियाओं के विश्लेषण से उसके व्यक्तित्व को जाना जा सकता है। साहचर्य तकनीकें उद्दीपकों के आधार पर कई प्रकार की हो सकती हैं, जैसे शब्द साहचर्य तकनीक, चित्र साहचर्य तकनीक, वाक्य साहचर्य तकनीक। इनमें क्रमश: शब्दों, चित्रों या वाक्यों को प्रस्तुत किया जाता है तथा उन पर व्यक्ति की प्रतिक्रिया प्राप्त की जाती है। कैन्ट व रोजनेफ का मुक्त साहचर्य परीक्षण इसका उदाहरण है।

रचना तकनीक – रचना तकनीक में व्यक्ति के सामने कोई उद्दीपन प्रस्तुत कर दिया जाता है तथा उससे कोई रचना बनाने के लिए कहा जाता है। व्यक्ति के द्वारा तैयार की गई रचना का विश्लेषण करके उसके व्यक्तित्व को जाना जाता है। प्रायः उद्दीपन के आधार पर कहानी लिखवा कर या चित्र बनवाकर इस तकनीक का प्रयोग किया जाता है। मरे का प्रासंगिक अन्तर्बोध, अन्तर्बोध परीक्षण तथा बाल अन्तर्बोध परीक्षण इसके प्रसिद्ध उदाहरण हैं।

पूर्ति तकनीक – पूर्ति तकनीक में किसी अधूरी रचना को उद्दीपन की तरह से प्रस्तुत किया जाता है तथा व्यक्ति को उस अधूरी रचना को पूरा करना होता है। व्यक्ति के द्वारा अधूरी रचना की पूर्ति में प्रयुक्त किये जाने वाले शब्द या भावों का विश्लेषण करके उसके व्यक्तित्व का अनुमान लगाया जाता । वाक्य पूर्ति या चित्रपूर्ति इस तकनीक के प्रयोग के कुछ ढंग हैं। रौड का ‘वाक्य पूर्ति परीक्षण’ तथा रोटर का ‘अपूर्ण वाक्य परीक्षण’ इसके उदाहरण हैं।

क्रम तकनीक – इस तकनीक में व्यक्ति के समक्ष उद्दीपन के रूप में कुछ शब्द, कथन भाव, विचार, चित्र, वस्तुएँ आदि रख दी जाती हैं तथा उससे उन्हें किसी क्रम में व्यवस्थित करने के लिए कहा जाता है। व्यक्ति के द्वारा बनाये क्रम के विश्लेषण से उसके सम्बन्ध में जानकारी मिलती है। सजोन्दी परीक्षण इसका उदाहरण है। जिसमें कुछ चित्रों को व्यवस्थित करना होता हैं।

अभिव्यक्ति तकनीक – इस प्रकार की तकनीक के अन्तर्गत व्यक्ति को प्रस्तुत किये गये उद्दीपन पर अपनी प्रतिक्रिया विस्तार में अभिव्यक्ति करनी पड़ती है। व्यक्ति के द्वारा प्रस्तुत की गई अभिव्यक्ति के विश्लेषण से उसके व्यक्तित्व व अन्य गुणों का पता चल जाता है। हर्मन रोशा का मसि धब्बा परीक्षण (Ink Blot Test) इसका प्रसिद्ध उदाहरण है। मनोनाटक तथा खेल भी इस तकनीक के उदाहरण हैं।

रोशा मसि लक्ष्य परीक्षण तथा मरे प्रासंगिक अन्तर्बोध परीक्षण, बाल अन्तर्बोध परीक्षण (CAT), शब्द साहचर्य परीक्षण, शब्दिक पूर्ति परीक्षण बहुतायत से प्रयोग किए जाने वाले मापने उपकरण हैं।

8. समाजमिति – समाजमिति एक ऐसा व्यापक पद है जो किसी समूह में व्यक्ति की पसन्द, अंतःक्रिया आदि का मापन करने वाले उपकरणों के लिए प्रयोग में लाया जाता है। अतः समाजमिति सामाजिक पसन्द के मापन की एक विधि है। इसमें व्यक्ति से कहा जाता है कि वह दिए गए आधार पर एक या एक से अधिक व्यक्तियों का चयन करे। जैसे कक्षा में आप किसके साथ बैठना पसन्द करेंगे, आप किसके साथ खेलना पसन्द करेंगे, आप किसे मित्र बनाना पसन्द करेंगे। व्यक्ति एक, दो, तीन या अधिक पसन्द बता सकता । इस प्रकार के समाजमितिय प्रश्नों के ऊपर प्राप्त उत्तरों से तीन प्रकार का समाजमितीय विश्लेषण किया जा सकता है। समाजमितीय मैट्रिक्स, सोशियोग्राम तथा समाजमितीय गुणांक। समाजमितीय मैट्रिक्स में समूह के सभी छात्रों के द्वारा इंगित की गई पसन्द को सारणी के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। सोशियोग्राम में समूह को पसन्द को चित्ररूप में प्रस्तुत करते हैं। समाजमितीय गुणांकों के द्वारा विभिन्न व्यक्तियों के सम्बन्ध में अन्य छात्रों द्वारा इंगित की गई पसन्द को अथवा समूह की सामूहिक सामाजिक स्थिति को अंकों के रूप में व्यक्त किया जाता है। समाजमितीय गुणांक अनेक प्रकार के हो सकते हैं। समाजमिति तकनीक को एक सरल उदाहरण की सहायता से स्पष्ट करना अधिक उपयुक्त रहेगा। उदाहरण के लिए माना कि पाँच छात्रों के एक समूह के प्रत्येक सदस्य से पूछा गया कि वे अपने समूह में किन दो छात्रों को सर्वाधिक पसन्द करते हैं। छात्रों के उत्तर निम्नवत् थे-

  1. राकेश ने सोहन तथा कासिम को पसन्द किया
  2. सोहन ने राकेश तथा कासिम को पसन्द किया।
  3. विलियम ने सोहन तथा कासिम को पसन्द किया।
  4. सुरेश ने सोहन तथा विलियम को पसन्द किया।
  5. कासिम ने सोहन तथा विलियम को पसन्द किया।

समाजमितीय मैट्रिक्स – छात्रों के द्वारा दिये गये उत्तरों को निम्न ढंग से सारणीबंद्ध किया जा सकता है। सारणीबद्ध समँक अधिक उपयोगी प्रतीत हैं जिनमें समूह की पसन्द के सम्बन्ध में कई निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं इस प्रकार से सारणीबद्ध समंकों को ही समाजमितीय मैट्रिक्स कहा जाता है। पसन्द इंगित करने के लिए अंकों को भी प्रयोग में लाया जा सकता है।

सोशियोग्राम – समाजमितीय मैट्रिक्स को जब चित्र के रूप में प्रस्तुत किया जाता है तब इसे सोशियोग्राम कहते हैं। उपरोक्त वर्णित समाजमितीय मैट्रिक्स या समंकों से आगे दिया सोशियोग्राम बनाया जा सकता है। इसमें तीर () के निशान किसी छात्र की पसन्द को बताते हैं जबकि ← → निशान दो छात्रों की परस्पर पसन्द को इंगित करते हैं। सोशियोग्राम समूह में छात्रों की पसन्द को स्पष्ट करने में अत्यन्त सहायक होता है।

सामाजमितीय गुणांक समाजमितीय मैट्रिक्स तथा सोशियोग्राम में प्रस्तुत की गई सूचनाओं की सहायता से विभिन्न प्रकार के समाजमितीय गुणांकों की गणना करके समूह के आन्तरिक सम्बन्धों को आंकिक रूप से व्यक्त किया जा सकता है। जैसे उपरोक्त वर्णित मैट्रिक्स या सोशियोग्राम से विभिन्न छात्रों के लिए पसन्द गुणांक की गणना निम्न सूत्र से की जा सकती है-

पसन्द गुणांक (CS) = कुल पसन्द / n-1

इस सूत्र में n समूह के सदस्यों की कुल संख्या है। सूत्र से स्पष्ट है कि पसन्द गुणांक (CS) का मान शून्य से 1.00 के बीच हो सकता है। किसी छात्र के लिए पसन्द गुणांक (CS) का मान जितना अधिक होता है वह छात्र समूह में उतना ही अधिक पसन्द किये जाने वाला छात्र होता है। पसन्द गुणांक (CS) का मान शून्य का अर्थ है कोई पसन्द नहीं करता तथा 1.00 का अर्थ है सभी पसन्द करते हैं। गणना करने से स्पष्ट होगा कि राकेश, सोहन, रमेश, सुरेश व कासिम के लिए पसन्द गुणांक (CS) क्रमश: 25, 1.00, 50, 00, व .75 है जो समूह के सदस्यों के द्वारा उनको पसन्द किये जाने का परिचायक है।

समाजमितीय समंकों से समूह के सम्बन्ध में भी जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इसके लिए समूह गुणांक निकालने होते हैं। समूह गुणांक भी अनेक प्रकार के हो सकते हैं। जैसे उपरोक्त वर्णित समंकों के लिए समूह की परस्पर पसन्द के लिए समूह गुथन गुणांक निम्न सूत्र से ज्ञात किया जा सकता है-

समूह गुथन गुणांक (GC) = परस्पर पसन्द की संख्या / n-k/2

इस सूत्र में n समूह में छात्रों की कुल संख्या तथा k प्रत्येक छात्र से पूछी गई पसन्दों की संख्या के लिए प्रयुक्त किया गया है। गणना से स्पष्ट है कि समूह गुथन गुणांक का मान .60 है जो बताता है कि समूह में परस्पर काफी गुथन है।

आवश्यकतानुसार विभिन्न प्रकार की समाजमितीय मैट्रिक्स, सोशियोग्राम तथा समाजमितीय गुणांकों की गणना करके समाजमितीय समंकों को स्पष्ट किया जा सकता है।

9. संचयी अभिलेख विद्यालयों में संचयी अभिलेख के रूप में छात्रों से सम्बन्धित विभिन्न सूचनाओं को क्रमबद्ध रूप में एकत्रित किया जाता है। इन्हें संचयी अभिलेख के नाम से पुकारा जाता है। इनमें छात्रों की उपस्थिति, शैक्षिक प्रगति, योग्यता, प्रयोगात्मक कार्य, पाठ्य सहगामी क्रियाओं में सहभागिता, उनकी रूचियाँ, व्यक्तित्व आदि सूचनाओं का आलेख प्रस्तुत किया जाता है। किसी छात्र की प्रगति जानने तथा उनका मूल्यांकन करने में ये संचयी अभिलेख अत्यधिक उपयोगी होते हैं। संचयी अभिलेख वास्तव में किसी छात्र का शैक्षिक इतिहास होता है जो उसकी शैक्षिक उपलब्धि, उपस्थिति, बुद्धि, स्वास्थ्य, चरित्र, पसन्द-नापसन्द, समायोजन, शौक, व्यक्तित्व आदि की सूचना रखता है।

10. ऐनकडोटल अभिलेख – ऐनकडोटल अभिलेख वास्तव में छात्रों के शैक्षिक विकास से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण तथा सार्थक घटनाओं का वस्तुनिष्ठ प्रस्तुतीकरण है। ये घटनाएं अनौपचारिक या औपचारिक दोनों ही ढंग की हो सकती हैं। अध्यापक को इन घटनाओं का वर्णन घटना के घटित होने के बाद शीघ्रातिशीघ्र लिख लेना चाहिए, तथा इनमें घटना कब घटी, तथा किन परिस्थितियों में घटना हुई इसका विवरण लिखना चाहिए। घटना के आधार पर अध्यापक छात्र के सम्बन्ध में अपनी व्याख्या तथा सुझाव भी अलग से ऐनकडोटल रिकार्ड में लिख सकता है।

11. परीक्षण बैटरी – परीक्षण बैटरी वास्तव में परीक्षणों अथवा उपपरीक्षणों का – एक सम्बन्धित समूह होता है। परीक्षण बैटरी में सम्मिलित परीक्षणों या उपपरीक्षणों की संख्या कुछ भी हो सकती है। तीन-चार परीक्षणों से लेकर दस-बारह परीक्षणों से युक्त परीक्षण बैटरियाँ मिलती हैं। परीक्षण बैटरियों में सम्मिलित परीक्षणों में प्रश्नों की संख्या तथा समयावधि भी कम या अधिक हो सकती है। परीक्षण बैटरी किसी गुण या विशेषता जैसे शैक्षिक सम्प्राप्ति, बुद्धि, व्यक्तित्व, रूचि आदि के मापन के लिए एक व्यापक आधार का प्रयोग करती है। परीक्षण बैटरी के परीक्षण परस्पर एकीकृत होने के कारण व्यर्थ के दोहराने को कम करते हैं। परीक्षण बैटरी का उपयोग निदानात्मक कार्य के लिए भी किया जा सकता है। परीक्षण बैटरी की सहायता से छात्रों की परस्पर तुलना भी अधिक अच्छी तरह से की जा सकती है। सम्प्राप्ति परीक्षण बैटरी में शाब्दिक योग्यता, आंकिक योग्यता, स्मृति, तर्क, आदि पक्षों से सम्बन्धित अनेक परीक्षण रखे जा सकते हैं। अभिक्षमता परीक्षण बैटरी में विभिन्न अभिक्षमताओं के मापन के लिए अनेक परीक्षण सम्मलित किये जा सकते हैं। प्रवेश परीक्षण बैटरी में किसी कक्षा या पाठ्यक्रम विशेष के लिए आवश्यक योग्यताओं से सम्बन्धित अनेक परीक्षण रखे जा सकते हैं।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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