व्यावसायिक अर्थशास्त्र / BUSINESS ECONOMICS

मूल्य विभेद के पक्ष में तर्क

मूल्य विभेद के पक्ष में तर्क
मूल्य विभेद के पक्ष में तर्क

मूल्य विभेद के पक्ष तथा विपक्ष में अपने तर्क दीजिए।

मूल्य विभेद की वांछनीयता या औचित्य या लाभदायकता (Justification or Desirability of Price Discrimination) या मूल्य विभेद के पक्ष में तर्क

निम्नलिखित परिस्थितियों में मूल्य-विभेद उचित है—

(1) सार्वजनिक सेवायें – रेल, डाक, तार आदि सार्वजनिक सेवाओं में मूल्य-विभेद उचित माना जाता है। उदाहरण के लिये, डाक विभाग मनीआर्डर, रजिस्ट्री, पार्सल आदि की दरें ऊंची रखकर सामान्य जनता को सस्ती दर पर पोस्टकार्ड प्रदान करता है तो यह उचित ही है क्योंकि इससे आर्थिक कल्याण में वृद्धि होती है।

(2) अतिरिक्त उत्पादन- यदि कोई उत्पादक अपने अतिरिक्त उत्पादन को विदेशी बाजार में बेचने के लिए मूल्य-विभेद करता है तो इसे उचित कहा जायेगा क्योंकि इससे उसके उपयोग का विस्तार होता है, बड़े पैमाने के उत्पादन की मितव्ययितायें प्राप्त होती हैं, देश के साधनों का अधिक गहनता से प्रयोग सम्भव होता है तथा समाज को अधिक रोजगार और आय की प्राप्ति होती है। यह मूल्य-विभेद तब तो और भी अधिक लाभदायक सिद्ध होता है जबकि उद्योग में घटती लागतों का नियम लागू हो रहा हो।

(3) वस्तु या सेवा उपलब्ध कराना कुछ परिस्थितियों में वस्तु या सेवा उपलब्ध कराने के लिये मूल्य- विभेद किया जाता है, जैसे देश के रेगिस्तानी भागों में ऊँचा किराया लेकर बस या रेल सेवा प्रदान की जाती है तो इसे उचित माना जायेगा क्योंकि ऐसा न करने पर देश का वह भाग इस सेवा से वंचित रह जायेगा।

(4) आर्थिक असमानता – यदि मूल्य-विभेद द्वारा धनवानों से अधिक और निर्धनों से कम मूल्य लिया जाता है तो यह समाज के लिये हितकर होगा क्योंकि इससे व्यक्तिगत आयों की असमानता कम करने में सहायता मिलती है।

(5) उत्पादन क्षमता- यदि मूल्य-विभेद द्वारा उत्पादन क्षमता का पूर्ण उपयोग होता है तो यह सामाजिक दृष्टि से उचित ही होगा।

मूल्य विभेद के विपक्ष में तर्क

निम्नलिखित परिस्थितियों में मूल्य-विभेद अनुचित है :

(1) साधनों का अनुचित वितरण- यदि मूल्य-विभेद के कारण देश के साधनों का प्रयोग अहितकर प्रयोगों (जैसे शराब बनाने) में बढ़ जाता है तो इस दशा में यह हानिकारक व अनुचित माना जाता है।

(2) एकाधिकारी शक्ति में वृद्धि — मूल्य-विभेद से एकाधिकारी शक्ति को बढ़ावा मिलता है, यह सामाजिक दृष्टि से अवांछनीय है।

(3) उत्पादन में कमी – यदि मूल्य विभेद के कारण एकाधिकारी का उत्पादन घटता है तो यह उचित नहीं माना जा सकता। इससे साधनों की हानि होती है, रोजगार घटता है तथा उपभोक्ताओं को अपेक्षाकृत ऊँची कीमतें देनी पड़ती हैं।

(4) राशिपातन-यदि मूल्य- विभेद राशिपातन का रूप धारण कर लेता है तो यह उचित नहीं माना जा सकता, क्योंकि इससे दूसरे देश की अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न हो जाती है।

(5) उपभोक्ताओं को हानि- मूल्य-विभेद उन उपभोक्ताओं के लिये हानिकारक है जिनसे वस्तु का अधिक मूल्य लिया जाता है।

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Anjali Yadav

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