राष्ट्रीय एकता की भावना को प्रोत्साहित करने के लिए विद्यालयों में आप जिस शैक्षिक कार्यक्रम को आयोजित करना पसन्द करेंगे, उसकी विवेचना कीजिए।
शिक्षा में राष्ट्रीयता का सन्दर्भ प्राचीन काल से चला आ रहा है। इस सन्दर्भ की व्याख्या भी अनेक प्रकार से की गई है, परन्तु राष्ट्रीय संकट के समय राष्ट्रीय रक्षा सम्बन्धी नगरों का बाहुल्य हो जाता है और देश के शिक्षा शास्त्री फिर एक बार राष्ट्रीयता की शिक्षा पर बल देने लगते हैं। राष्ट्रीयता एक भावना है, जो अपने देश के प्रति प्रेम तथा कर्तव्य का आभास कराती है। राष्ट्रीय लक्ष्यों की पूर्ति के लिए प्रत्येक सदस्य अपने प्राण पर जुटता है। शिक्षा इस भावना के विकास में अपूर्व योग देती है। बूबेकर ने राष्ट्रीयता की व्याख्या करते हुए कहा है- “राष्ट्रीयता एक शब्द है, जो कि पुनर्जागरण के समय विशेषकर फ्रांस की क्रान्ति से अस्तित्व में आया है। यह सामान्यतः देशभक्ति से अधिक है। इसके साथ जहाँ तक स्थान का प्रश्न है, राष्ट्रीयता का प्रजाति, भाषा, इतिहास, संस्कृति एवं प्रथाओं से भी सम्बन्ध है।”
“Nationalism is a term that has come into prominence since the Renaissance and particularly since the French Revolution. It ordinarily indicates a wider scope of loyalty than patriotism. In addition to tics, place, Nationalism evidenced by such other tics as race, language, history, culture and traditions.”
जब हम यह देखते हैं कि राष्ट्रीयता मानव जीवन से किसी न किसी रूप में बँधी है, ऐसी परिस्थिति में राष्ट्रीयता की शिक्षा देना राष्ट्र के निर्माण के लिए अत्यन्त आवश्यक हो जाता है। राष्ट्रीयता की शिक्षा का लक्ष्य क्या होना चाहिए इस सन्दर्भ में श्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा है- “यदि शान्त अहिंसात्मक क्रान्ति राष्ट्रीय एकता के आदर्श विकास के लिए ने उत्तम दशाओं का निर्माण नहीं कर सकती तो राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए दबाव और बल प्रयोग अपने आप दो अन्य उपाय हो जाएँगे, पर भारतीय एक्ट का आधार अहिंसा है। हमारी राष्ट्रीय एकता का लक्ष्य अहिंसात्मक दृष्टिकोण पर आधारित प्रेम, सहानुभूति और भ्रातृत्व के लगातार प्रयोग से प्राप्त किया जा सकता है।”
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राष्ट्रीयता की शिक्षा की आवश्यकता (Need of Education for Nationalism)
राष्ट्रीयता की शिक्षा की आवश्यकता क्यों है; इस पर कई शिक्षा-शास्त्रियों ने अपने विचार व्यक्त किए हैं। हम राष्ट्रीयता की शिक्षा को आवश्यक रूप से दिए जाने के सम्बन्ध में विचार करते हैं-
1. राष्ट्र का अस्तित्व उस समय तक नहीं हो सकता जब तक वह स्वतन्त्र न हो। स्वतन्त्र राष्ट्र को अपनी प्रभुसत्ता बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि वह अपने नागरिकों को राष्ट्रीयता की शिक्षा दे।
2. राष्ट्रीयता की शिक्षा से प्रेम की भावनाओं का विकास होता है। इसी भावना से प्रेरित होकर व्यक्ति जनहित तथा राष्ट्र हित के लिए अपने स्वार्थों का बलिदान कर देता है।
3. राष्ट्रीयता की शिक्षा से सदैव इस बात का बोध होता रहता है कि हमें स्वतन्त्र रहना है। अपनी स्वाधीनता को किसी प्रकार सुरक्षित रखना है।
4. देश के विकास एवं नव निर्माण का बोध भी राष्ट्रीयता की शिक्षा के कारण होता है।
5. राष्ट्रीयता की शिक्षा के कारण संस्कृति अपना विशिष्ट रूप धारण करती है। ज्ञान-विज्ञान का विकास होता है और इसी विकास को व्यक्ति अपना विकास समझता है।
राष्ट्रीय एकता समिति राष्ट्रीय एकता समिति ने राष्ट्रीयता की शिक्षा के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए हैं-
1. सभी छात्रों को देश का ज्ञान कराया जाए एवं स्वाधीनता प्राप्ति के लिए किए गए प्रयत्नों एवं सफलताओं से परिचित कराया जाए।
2. राष्ट्रीय एकता के विकास के लिए सभी जातियों, सम्प्रदायों और राज्यों में अधिक मेल उत्पन्न करने वाली पढ़ाई-लिखाई को प्रोत्साहित किया जाए।
इस सन्दर्भ में निम्नलिखित कार्यक्रम भी इस समिति ने सुझाये हैं-
- सभी स्तरों पर पाठ्य पुस्तकों की जाँच एवं पुनर्गठन किया जाए।
- पाठ्य पुस्तकों में, राष्ट्रीय एकता को विकसित करने वाली सामग्री हो।
- सभी जातियों और धर्मों के व्यक्तियों में आपसी सम्बन्ध उनके त्यौहारों में भाग लेकर गूढ़ किए जाएँ।
- साम्प्रदायिकता को समाप्त किया जाए।
- प्रचार साधनों का पूरा-पूरा उपयोग किया जाए।
भावात्मक एकता समिति
भावात्मक एकता समिति ने भी राष्ट्रीयता के विकास के लिए भावात्मक एकता के अस्तित्व पर बहुत जोर दिया है। समिति के अनुसार-
1. सांस्कृतिक विरासत परम्परा आदि के अवरोध के लिए अभिरुचियों, संवेगों एवं दृष्टिकोणों का उचित विकास करना शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए।
2. पाठ्यक्रम में इतिहास को विशेष स्थान दिया जाए। इतिहास में सांस्कृतिक तत्वों पर विशेष बल दिया जाए।
कोठारी शिक्षा कमीशन ने भी अपने प्रतिवेदन में शिक्षा का उद्देश्य राष्ट्रीयता का विकास करना बताया है। कमीशन के अनुसार “शिक्षा में महत्वपूर्ण सुधार यह है कि इसे जीवन और व्यक्ति की आवश्यकता तथा आकांक्षाओं के साथ जोड़ दिया जाए, जिससे सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिवर्तन हो सकें और हम राष्ट्रीय आदर्शों की प्राप्ति कर सकें।
इसके लिए कमीशन ने राष्ट्रीयता की शिक्षा के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए-
1. साहित्य, भाषा, दर्शन, धर्म, भारत का इतिहास, जिसमें भारत का स्थापत्य (Architecture), शिल्प (Sculpture), चित्रकला, संगीत, नृत्य तथा नाटक, आदि के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना लाई जा सकती है। भारत के दूसरे भागों की कला तथा संस्कृति की जानकारी होनी चाहिए। यथासम्भव अध्यापकों को एक-दूसरे क्षेत्रों में भेजना चाहिए, जिससे वे विविधता में एकता के दर्शन कर सकें।
2. भविष्य के प्रति विश्वास उत्पन्न होना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होगा तो विद्यार्थी नागरिकता के पाठ को हृदयंगम नहीं करेंगे। हमारे प्रजातांत्रिक समाजवादी समाज की रचना का यह मूल मन्त्र है। 3. अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना तथा राष्ट्रीय चेतना के लक्ष्यों में कहीं भी संघर्ष नहीं है।
राष्ट्रीय एकता की शिक्षा से देश तथा समाज को अनेक लाभ होते हैं-
- राष्ट्र में राष्ट्रीय एकता का विकास होता है। भेदभाव भूल कर सभी एक लक्ष्य के लिए क्रियाशील होते हैं।
- समाज में फैले अनेक दोष तथा अन्धविश्वास तथा सामाजिक बुराइयाँ राष्ट्रीयता की शिक्षा से दूर हो जाती हैं।
- राष्ट्रीय शिक्षा से राष्ट्र की आर्थिक उन्नति की धारणा का विकास होता है।
- राष्ट्रीय एकता, राष्ट्रीय संस्कृति का संरक्षण करती है।
- राष्ट्रीय एकता की शिक्षा से भ्रष्टाचार के समाप्त होने की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं।
- त्याग की भावना का विकास होता है।
- राष्ट्रीय भाषा की प्रगति होती है।
राष्ट्रीय शिक्षा के कार्य में अनेक बाधायें उपस्थित होती हैं। भारत में ये तत्व राष्ट्रीय एकता की शिक्षा के मार्ग में बाधायें उपस्थित करते हैं- (1) जातिवाद, (2) साम्प्रदायिकता, (3) प्रान्तीयता, (4) राजनीतिक दल, (5) विभिन्न भाषायें, (6) सामाजिक भिन्नता, (7) आर्थिक भिन्नता (8) नेतृत्व का अभाव, (9) अनुचित शिक्षा।
राष्ट्रीयता की शिक्षा देते समय इन बातों पर ध्यान अवश्य देना चाहिए-
- संकुचित राष्ट्रीय भावना विकसित न हो।
- व्यक्ति की स्वतन्त्रता का हनन न हो।
- कट्टरता का विकास न हो।
- पृथकता की प्रवृत्ति से बचा जाये ।
- घृणा, द्वेष, भय तथा युद्ध की भावना विकसित न हो।
- सामाजिक जीवन में बाधक न हो।
राष्ट्रीयता की विभिन्न स्तरों पर शिक्षा (Education of Nationalism on Different Levels)
आज के सन्दर्भ में राष्ट्रीयता की शिक्षा न केवल उपयोगी ही है, अपितु राष्ट्र-रक्षा के सन्दर्भ में यह आवश्यक भी है। यद्यपि राष्ट्रीयता की शिक्षा पर आरोप यह लगाया जाता है कि राष्ट्रीयता की शिक्षा संकीर्णता उत्पन्न करती है, परन्तु अपनी सार्वभौमिकता की रक्षा करना तो नितान्त आवश्यक है।
1. प्राथमिक स्तर- प्राथमिक स्तर पर राष्ट्रीयता की शिक्षा देश-प्रेम की कहानियों के माध्यम से दी जा सकती है। देश के महान् व्यक्तियों का परिचय बालकों को दिया जाए। मानव भूगोल की जानकारी के साथ-साथ राष्ट्रीय गीत, राष्ट्र-घुन, राष्ट्रीय त्यौहार तथा पर्वों को मानने एवं उनका सम्मान करने पर बल दिया गया है।
2. माध्यमिक स्तर- इस स्तर पर बालक में चेतना का विकास होने लगता है। अतः राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रीय गीत तथा राष्ट्रीय पर्वो का आदर के साथ-साथ देश के सांस्कृतिक, सामाजिक वंशक्रम से इतिहास को माध्यम मानकर परिचय कराया जाए। भारत की बहुमुखी प्रगति से परिचित कराया जाए। राष्ट्रीय चेतना जाग्रत की जाए।
3. विश्वविद्यालय स्तर- यह स्तर बालकों के शारीरिक तथा बौद्धिक विकास का चरमोत्कर्ष होता है। इस स्तर पर परिचर्चा, विचार गोष्ठियों, अध्ययन मण्डलों, युवक समारोहों द्वारा राष्ट्रीय चेतना का विकास किया जाए।
राष्ट्रीयता की शिक्षा के दोष (Defects of Education for Nationalism)
राष्ट्रीयता की शिक्षा को राष्ट्र के लिए हितकारी मानते हुए भी कई विद्वान् राष्ट्रीयता की शिक्षा को मानव विकास के के लिए अहितकर मानते हैं। उनका कहना है-
- राष्ट्रीयता की भावना से पर-राष्ट्रों के प्रति द्वेष उत्पन्न होता है और संकुचित राष्ट्रीयता ही युद्ध की भूमिका का निर्माण करती है।
- संकुचित राष्ट्रीयता से न तो अपना हित होता है और न दूसरे का; ‘परिणाम यह होता है कि हम तो डूबेंगे सनम, तुमको भी ले डूवेंगे।’ चीन तथा पाकिस्तान इसके उदाहरण है।
- संकुचित राष्ट्रीयता सत्ता प्राप्ति के लिए संघर्ष उत्पन्न करती है।
- यह विश्व के लिए कभी भी खतरा बन सकती है।
अतः इन दोषों के मूल में संकीर्णता ही देखने को मिलती है। इसका परिणाम यह होता है कि राष्ट्रीयता लाभ के बजाय हानि अधिक रहती है।
निष्कर्ष (Conclusion)
राष्ट्रीयता के विकास के लिए शिक्षा दी जानी चाहिए, परन्तु उसमें संकीर्णता न हो। हमारे देश में जातिवाद, साम्प्रदायिकता, प्रान्तीयता, राजनीतिक दल, भाषा आदि की समस्याओं ने राष्ट्रीय एकता को छिन्न-भिन्न करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। राजनीतिक पार्टियाँ अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए कभी भाषा-समस्या को अपना हथियार बना लेती हैं तो कभी प्रान्तीयता को । चुनाव तो जातिवाद के आधार पर ही जीता जाता है।
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