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रूचि पत्रियों की सीमायें | Limitations of Letters of Interest in Hindi

रूचि पत्रियों की सीमायें

रूचियों को मापने की उपरोक्त सूचियों से निर्देशन सहायता मिलती है, परन्तु इन रूचियों में कुछ अपने दोष और सीमायें हैं जिनको ध्यान में रखकर ही इनसे कार्य लेना चाहिये। स्थूल रूप से ये सीमायें निम्नलिखित हैं-

(1) व्यवसाय का विवरण एकत्र करने में कठिनाई- जैसे कि पहले बतलाया जा चुका है, व्यवसाय सम्बन्धी सूचियों में व्यवसाय का विवरण दिया जाता है परन्तु वास्तव में किसी भी व्यवसाय का पूरा विवरण अर्थात् उसमें होने वाली समस्त क्रियायों, उनके लिए आवश्यक योग्यताओं तथा रूचियों आदि का विवरण एकत्रित करना अत्यन्त कठिन है। मनोवैज्ञानिक की तो बात ही क्या, स्वयं उस व्यवसाय में काम करने वाले लोग भी उस व्यवसाय का पूरा विवरण नहीं दे सकते।

(2) उत्तरों की विश्वसनीयता में सन्देह रूचि- पत्रियों में विभिन्न व्यवसाय, रूचि क्षेत्र अथवा कार्य के सम्बन्ध में व्यक्ति की परीक्षा ही नहीं ली जाती बल्कि उससे पूछा भी जाता है। स्पष्ट है कि यह सामग्री पूरी तरह वैज्ञानिक नहीं हो सकती क्योंकि व्यक्तियों के उत्तरों में पूरा सन्देह है। इसके अतिरिक्त यह जानने का भी कोई साधन नहीं है कि उत्तर सही दिया गया अथवा गलत ।

(3) रूचि की परिवर्तनशीलता रूचि पत्रियाँ- रूचि के विषय में जानकारी एकत्रित करती हैं परन्तु रूचि स्वभाव का स्थिर अथवा स्थायी गुण नहीं है। रूचियाँ बदलती रहती हैं और इसीलिये व्यक्ति की किसी विशेष समय की रूचियों से यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता कि उसको किस व्यवसाय में जाना चाहिये। हो सकता है कि उसकी सामर्थ्य किसी विशेष व्यवसाय के अनुकूल न हो और उसमें जाने के बाद उसकी उसमें भी रूचि हो जाये। वैसे भी किसी व्यक्ति की किसी विशेष कार्य में रूचि इसीलिये होती है क्योंकि उसको वह कार्य पूरा करने का अवसर मिलता है अथवा वह उस कार्य को करने वालों के सम्पर्क में आता है। उदाहरण के लिये जिस व्यक्ति ने कभी उपन्यास नहीं पढ़ा उसकी उपन्यास पढ़ने में रूचि हो ही कैसे सकती है? किसी व्यक्ति की उपन्यास पढ़ने में रूचि है या नहीं, यह प्रश्न तो उसी व्यक्ति के बारे में उठ सकता है जिसने कभी उपन्यास पढ़ा हो। व्यवसाय के सम्बन्ध में यह देखा गया है कि बहुत से लोग जो कि विशेष व्यवसाय को पसन्द नहीं करते थे, उसमें जाने के बाद उसको पसन्द करने लगे। दूसरी ओर कुछ ऐसे लोग भी हैं जो यह कहते थे कि उनको अमुक व्यवसाय में बड़ी रूचि है परन्तु जब उनको व्यवसाय करने को दिया गया तो उनको पता लगा कि उनकी उसमें रूचि नहीं थी। अत: केवल रूचि-पत्र को भरवाने से यह निश्चित नहीं किया जा सकता कि किस व्यक्ति को किस व्यवसाय में जाना चाहिये। यदि किसी व्यक्ति की इस समय किसी विशेष व्यवसाय के अनुकूल रूचि है तो इससे यह गारन्टी नहीं दी जा सकती कि भविष्य में भी उसकी उस विषय में रूचि अवश्य रहेगी। दूसरी ओर, यदि किसी व्यक्ति को इस समय किसी व्यवसाय में रूचि नहीं है तो इससे यह कहना ठीक नहीं होगा कि भविष्य में भी उसकी उस विशेष व्यवसाय में रूचि होगी क्योंकि रूचि जन्मजात तो है नहीं वह तो अर्जित है। अनेक चीजों में हमारी रूचि नहीं होती और बाद में हो जाती है।अनेक चीजों में हमारी रूचि होती है  और बाद में नहीं रहती। अनेक चीजों में हमारी रूचि नहीं होती और बाद में दिलाई जाती है।

(4) रूचि और सफलता में अनिवार्य सम्बन्ध नहीं है- व्यवसाय निर्देशन में रूचि-पत्रियों के आधार पर विशेष व्यवसाय में सफलता के विषय में भविष्यवाणी करना वैज्ञानिक नहीं है। किसी व्यक्ति की किसी व्यवसाय में रूचि होने से ही यह निश्चित नहीं होता कि उसको उस व्यवसाय में सफलता अवश्य मिलेगी। उदाहरण के लिए, विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले एम०ए० के अधिकतर विद्यार्थी पी०सी०एस० या आई0ए0एस0 के पदों में रूचि रखते हैं और जोर-शोर से उनकी प्रतियोगिताओं में भाग लेते हैं। रूचि रखने पर भी इन प्रतियोगिताओं में कितने सफल होते हैं और इन सफल व्यक्तियों में भी कितने सफल प्रशासक सिद्ध होते हैं, यह देखकर कोई भी व्यवसाय और रूचि को अनिवार्य रूप से सम्बन्धित नहीं मान सकता। व्यवसाय में सफलता व्यक्ति की रूचि से अधिक उसकी योग्यता पर आधारित है। बहुधा किसी विशेष कार्य में अरूचि के कारण उससे भागने की प्रवृत्ति, आलस्य, साहसहीनता आदि चारित्रिक दोष होते हैं। उदाहरण के लिये गांव से शहरों में पढ़ने आने वाले अधिकांश विद्यार्थी खेती करना पसन्द नहीं करते और सफेदपोश नौकरियों के पीछे भागते हैं अथवा उनमें रूचि दिखलाते हैं, परन्तु क्या इससे यह सिद्ध होता है कि उनकी खेती में अरूचि है? जब उन्होंने कभी खेती में रूचि रखने की कोशिश ही नहीं की, जब वे हाथ के परिश्रम से भागना चाहते हैं, जब उन्हें शहर का भड़कीला वातावरण ही पसन्द है, तब उन्हें खेती में रूचि हो ही कैसे सकती है? परन्तु इस अरूचि के आधार पर यह कहना एकदम गलत होगा कि उनको खेती के व्यवसाय में नहीं जाना चाहिये अथवा यह कि उनको कम सफलता मिलेगी।

(5) व्यवसाय का वर्गीकरण वैज्ञानिक नहीं है- इन पत्रियों में एक अन्य बड़ा दोष यह है कि इनमें व्यवसायों को अलग-अलग तथाकथित वर्गों में बाँटा गया है जो कि नितान्त अवैज्ञानिक हैं। सच पूछिये तो कोई भी दो व्यवसाय समान नहीं होते। हर एक व्यवसाय में उनकी विशिष्ट क्रियायें, उत्तरदायित्व तथा सफलता के लिए आवश्यक गुण होते हैं और इस प्रकार के स्वतन्त्र व्यसाय हजारों नहीं तो सैकड़ों अवश्य है। इतने व्यवसायों की विस्तृत सूची बनाना और उसमें प्रत्येक व्यवसाय का विस्तृत वर्णन देना असम्भव नही तो कठिन अवश्य है।

रूचि पत्रियों में उपर्युक्त दोषों से यह नहीं समझना चाहिये कि वे बिल्कुल बेकार हैं। वासतव में रूचि का विषय ही ऐसा है कि उस पर दिये हुए निर्णय से अधिक यथार्थता की आशा नहीं की जा सकती। काम चलाऊ रूप में ये रूचि-पत्रियाँ अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं परन्तु उनसे काम लेते समय उनकी उपरोक्त सीमाओं को अवश्य ध्यान में रखना चाहिये।

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Anjali Yadav

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