लागत-व्यवहार के निर्धारक या प्रभावित करने वाले तत्व (Determinants or Forces Affecting of Cost Behaviour)
लागत व्यवहार को अनेक तत्व प्रभावित करते हैं तथा इन तत्वों और उनकी सापेक्षिक महत्ता के सम्बन्ध में एक फर्म से दूसरी फर्म तथा एक समस्या से दूसरी समस्या के बीच इतनी भिन्नता रहती है कि सभी के लिये कोई एक सामान्य नियम लागू नहीं होता है। फिर भी कुछ तत्व ऐसे हैं जिनका आधुनिक निर्माणी संस्थाओं में पर्याप्त महत्व है, ये तत्व निम्नलिखित हैं-
(1) संयंत्र का आकार (Size of Plant ) – लागत व्यवहार के दीर्घकालीन विश्लेषण में संयंत्र के आकार का बहुत महत्व होता है। लागत आकार सम्बन्ध का ज्ञान संयंत्र आकार (Plant Size) और संयंत्र स्थान (Plant Location) की विवेकपूर्ण नीति बनाने के लिये आवश्यक होता है। साथ ही यह ज्ञान आकार के कारण लागत में अनियन्त्रणीय स्तरों से समायोजित संचालन के स्तरों के निश्चित करने में सहायक होता है। दीर्घकाल में एक प्रबन्धक के समक्ष अनेक प्रकार के संयंत्र होते हैं तथा प्रत्येक की औसत उत्पादन लागत भी भिन्न-भिन्न होती है। अतः उनमें से वह अपनी नियोजित उत्पादन मात्रा के लिये न्यूनतम औसत लागत वाले संयंत्र का चयन करता है।
(2) उत्पत्ति दर (Rate of Output) — इसका आशय स्थिर संयंत्र के उपयोग की दर से होता है तथा इसका लागत-व्यवहार पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। लागत-उत्पादन प्रकार्य के निर्धारण में उत्पादन के विभिन्न स्तरों पर उत्पादन की लागत ज्ञात की जा सकती है। अल्पकाल में सामान्य नियम यह है कि फैक्ट्री के अधिक घण्टे कार्य करने और संयंत्र क्षमता के अधिक उपयोग से श्रम और प्रयुक्त पूँजी की उत्पादन कुशलता बढ़ती है और प्रति इकाई कुल उत्पादन लागत घटती है।
लागत-उत्पादन सम्बन्धों का ज्ञान व्यय नियंत्रण, लाभ पूर्वानुमान, मूल्य निर्धारण, प्रवर्तन आदि अनेक प्रबन्धकीय समस्याओं के लिये उपयोगी होता है ।
(3) साधनों (अर्थात् सामग्री और श्रम) की कीमत (Prices of Input Factors) – मजदूरी की दरों और सामग्री के मूल्यों में परिवर्तनों से लागत-व्यवहार प्रभावित होता है। ये परिवर्तन न केवल साधनों की प्रति इकाई लागत को प्रभावित करते हैं वरन् इनसे श्रम, सामग्री और पूँजी का न्यूनतम लागत मिश्रण भी प्रभावित होता है । अल्पकाल में इन परिवर्तनों के प्रभाव (impact) की उपेक्षा नहीं की जा सकती। उदाहरण के लिये मजदूरी दरों में वृद्धि से श्रमिकों के स्थान पर मशीनों के स्थापन को बढ़ावा मिलता है तथा लागत-रचना में परिवर्तन के फलस्वरूप उत्पादन की पद्धति में परिवर्तन किया जाता है।
(4) समग्र का आकार (Lot Size) – समग्र आकार लागत सम्बन्ध तब विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है जबकि बड़े समग्र की बचतें पर्याप्त हों। यद्यपि इस सम्बन्ध को समझना सरल है किन्तु बचतों के अनुमान और अनुकूलतम समग्र आकार के निर्धारण की विधियों में पर्याप्त अन्तर होने के कारण इसके निर्णयों में काफी भिन्नता रहती है। इस आकार का निर्धारण व्यक्तिगत उत्पादानों की विक्रय की मात्रा, स्थापित और पूर्वानुमान क्षमता पर निर्भर करता है। इस सम्बन्ध का ज्ञान उत्पादन नियोजन, मात्रा छूट और विभिन्न उत्पादों के बीच मूल्य-विभेद में पर्याप्त उपयोगी होता है।
(5) प्रबन्ध और श्रम की कुशलता (Efficiency of Management and Labour ) — श्रम की कुशलता अल्पकाल व दीर्घकाल दोनों में लागत व्यवहार को प्रभावित करती है किन्तु स्वयं श्रम की कुशलता सही प्रकार की मशीनों और कच्चे माल के संयोजन पर निर्भर करती है। प्रबन्ध की अभिप्रेरणा भी फर्म के सुचारु रूप से संचालन और संसाधनों के अनुकूलतम उपयोग में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।
(6) प्रौद्योगिकी (Technology) – प्रौद्योगिकी में परिवर्तन साधनों के मिश्रण, संयंत्र के आकार और प्रतिस्थापन लागत में परिवर्तन लाकर लागत व्यवहार को प्रभावित करता है। प्रौद्योगिक विकास और लगान के बीच सम्बन्ध का ज्ञान लागत पूर्वानुमान और तकनीकी प्रगति के फलस्वरूप पूँजीगत व्ययों के नियोजन की प्रबन्धकीय समस्याओं के लिये आवश्यक होता है।
(7) उत्पादन में स्थायित्व (Stability of Output ) — उत्पादन दर में स्थायित्व की सीमा से भी लागत-व्यवहार प्रभावित होता है। उत्पादन में स्थायित्व और उसकी आयोजनशीलता (planability) से उत्पादन-अवरोध और सीखने की विभिन्न प्रकार की गुप्त लागतों में कमी आती है।
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