व्यावसायिक अर्थशास्त्र / BUSINESS ECONOMICS

वितरण के आधुनिक सिद्धान्त | Modern Theory of Distribution in Hindi

वितरण के आधुनिक सिद्धान्त | Modern Theory of Distribution in Hindi
वितरण के आधुनिक सिद्धान्त | Modern Theory of Distribution in Hindi

वितरण के आधुनिक सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए। Discuss the Modern Theory of Distribution.

वितरण के आधुनिक सिद्धान्त ( Modern Theory of Distribution )

साधनों के मूल्य निर्धारण का ‘सीमान्त उत्पादकता सिद्धान्त’ अपूर्ण है क्योंकि यह साधनों के केवल माँग पक्ष की व्याख्या करता है, पूर्ति पक्ष पर यह कोई ध्यान नहीं देता । अतः आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने उत्पत्ति के साधनों के पारिश्रमिक निर्धारण हेतु एक अन्य सिद्धान्त प्रतिपादित किया जिसे माँग व पूर्ति का सिद्धान्त या आधुनिक सिद्धान्त कहते हैं। इसके अनुसा, जिस प्रकार किसी वस्तु का मूल्य उसकी माँग व पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों द्वारा निर्धारित होता है ठीक उसी प्रकार उत्पादन के विभिन्न साधनों (भूमि, श्रम, पूँजी, प्रबन्ध, साहस) का पुरस्कार भी माँग एवं पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों द्वारा निर्धारित होता है।

मान्यतायें (Assumptions) – वितरण का आधुनिक सिद्धान्त निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है—

  1. अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार की स्थिति का पाया जाना ।
  2. उत्पत्ति ह्रास नियम क्रियाशील रहता है।
  3. उत्पत्ति की सभी इकाइयाँ एकरूप हैं तथा वे एक-दूसरे के लिए पूर्ण स्थानापन्न हैं।
  4. उत्पत्ति के सभी साधन पूर्णतया गतिशील हैं।
  5. साधन की सीमान्त उत्पादकता को मापा जा सकता है और उसकी अवसर लागत दी हुई है।
  6. उत्पत्ति का प्रत्येक साधन पूर्णतया विभाजनीय है अर्थात् साधन विशेष को छोटी-छोटी इकाइयों में बाँटा जा सकता है।

सिद्धान्त की व्याख्या (Explanation of the Theory)

आधुनिक सिद्धान्त के अनुसार उत्पत्ति के साधनों की एक इकाई का मूल्य माँग एवं पूर्ति की सापेक्षिक शक्यिों द्वारा निर्धारित होता है अतः यह आवश्यक है कि यह जान लिया जाये कि साधन की माँग और साधन की पूर्ति क्या है-

साधन की माँग (Demand of Factor)

जिस प्रकार वस्तुओं की माँग उपभोक्ताओं के लिए उनकी उपयोगिता पर निर्भर करती है उसी प्रकार साधन की माँग इस बात पर निर्भर होती है कि वह साधन उत्पादन के लिए कितना उपयोगी है अर्थात् वह साधन उसके लिये कितना उत्पादन कर सकता है। दूसरे शब्दों में, किसी भी साधन की माँग उसकी सीमान्त उत्पादकता पर निर्भर करती है। एक फर्म उत्पत्ति के साधन को उस सीमा तक प्रयोग करेगी, जहाँ पर उसकी सीमान्त उत्पादकता (VMP) सीमान्त साधन की लागत (MPC) से अधिक होता है तो फर्म के लिये उस साधन की अधिकाधिक इकाइयों का प्रयोग करना लाभपूर्ण होगा। फर्म तब तक उस साधन की इकाइयों का प्रयोग करती जाएगी जब तक साधन की सीमान्त उत्पादकता का मूल्य सीमान्त साधन लागत के बराबर (VMP = MFC) नहीं हो जाता । कोई भी फर्म किसी साधन को उसकी सीमान्त उत्पादकता के मूल्य से अधिक पुरस्कार नहीं देगी। इस प्रकार सीमान्त उत्पादकता साधन की कीमत की उच्चतम सीमा को व्यक्त करती है।

साधन की पूर्ति (Supply of Factor)

एक वस्तु की पूर्ति उसकी उत्पादन लागत पर निर्भर होती है जबकि किसी साधन की पूर्ति उस साधन की अवसर लागत या हस्तान्तरण आय पर निर्भर होती है। साधन की हस्तान्तरण आय वह आय होती है जो वह दूसरे सर्वश्रेष्ठ वैकल्पिक प्रयोग से प्राप्त कर सकता है। एक साधन को अपने वर्तमान व्यवसाय से कम-से-कम उतनी आय अवश्य प्राप्त होनी चाहिये। जितनी कि वह दूसरे सर्वश्रेष्ठ व्यवसाय से प्राप्त कर सकता हो। इस प्रकार हस्तान्तरण आय साधन की उत्पादन लागत होती है जो उस न्यूनतम सीमा को निर्धारित करती है जिससे नीचे उसकी कीमत नहीं गिर सकती है।

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Anjali Yadav

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