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विद्यापति सौन्दर्य के कवि हैं। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
अथवा
“विद्यापति प्रेम और सौन्दर्य के कवि हैं।” इस कथन की सोदाहरण समीक्षा कीजिए।
विद्यापति शृंगार रस के कवि हैं। रसिकता, रूप और माधुर्य के इस कवि का रुझान सौन्दर्य की ओर होना स्वाभाविक ही था। इसमें भी उनकी भक्ति-भावना ने एक ओर उनको अपरूप सौन्दर्यप्रिय बनाया तो दरबारी वातावरण, रसिक प्रवृत्ति और आश्रयदाताओं की रुचि पूर्ववर्ती शृंगार परम्परा के मोह और समकालीन वातावरण ने उन्हें मांसल और मानवीय सौन्दर्य के प्रति उन्मुख किया था। इन सभी तत्त्वों ने मिलकर उनके सौन्दर्य चित्रण को प्रभावित किया होगा। डॉ० शिवप्रसाद कहते हैं, “विद्यापति वस्तुतः सौन्दर्य के कवि हैं और सौन्दर्य उनका दर्शन है, सौन्दर्य उनकी जीवन-दृष्टि है। इस सौन्दर्य को उन्होंने नाना रूपों में देखा था। इसे कुशल मणिकार की भाँति उन्होंने चुना, सजाया, सँवारा और आलोकित किया था। सौन्दर्य मन को कितना भाव-विहल कर देता है, इसे विद्यापति जानते थे।”
सौन्दर्य चित्रण के दो रूप- विद्यापति ने अपनी पदावली में सौन्दर्य का पूर्व एवं उत्कृष्ट निरूपण किया है। सौन्दर्य की दो प्रधान भूतियाँ-बाह्य और आन्तरिक हैं। यहाँ क्रमशः इन्हीं का विवेचन प्रस्तुत है—
- बाह्य सौन्दर्य का चित्रण- बाह्य सौन्दर्य चित्रण या शारीरिक रूप चित्रण के अनेक प्रकार हैं-नख शिख वर्णन अर्थात् शारीरिक क्रियाओं का अलग-अलग वर्णन, वेशभूषा का वर्णन, हाव-भाव, क्रिया प्रतिक्रिया का वर्णन, चेष्टाओं का वर्णन रूप-सौन्दर्य के विविध प्रकार विद्यापति की पदावली में विद्यमान हैं। महाकवि ने राधाकृष्ण दोनों का ही रूप सौन्दर्य चित्रित किया है किन्तु राधा का विशेष।
- वयःसन्धि वर्णन- विद्यापति के रूप में प्रथम झाँकी वयःसन्धि सम्बन्धी पदों में मिलती है। नायिका किशोरावस्था को त्यागकर यौवन की ओर अग्रसर है। उसमें शारीरिक और मानसिक परिवर्तन हो रहे हैं।
सौन्दर्य की अनिर्वचनीयता
युवती होने पर नायिका अनुपम सौन्दर्य की अधिकारिणी बन जाती है। विद्यापति ने इस सौन्दर्य को भली-भाँति पहचाना है और उसके आकर्षण की प्रबलता, व्यापकता आदि वेग को बार-बार वर्णन का विषय बनाया है। अनिर्वचनीय सौन्दर्य को अपरूप कहकर सम्बोधित करते हैं-
सजनी अपय पेखल रामा।
कनकलता अवलम्बन उअल हरिन हीन हिम-धामाना।।
नख-शिख वर्णन– नायिका के लगभग प्रत्येक अंग के सौन्दर्य का अनेकशः वर्णन किया गया है। इसमें से मुख तथा उरोजों का वर्णन विशेष रुचि के साथ किया गया है। इन अंगों के वर्णन में उनकी वाणी विशेष प्रबल हो उठती है। डॉ० आनन्दप्रकाश दीक्षित कहते हैं-विद्यापति के रूप-स्वरूप चित्रण की सबसे बड़ी विशेषता है उनकी शरीर विज्ञान और मनोविज्ञान की सूक्ष्म जानकारी साधारणतया नख शिख या नख-शिख वर्णन में कवि अंग-उपांग का क्रमिक वर्णन करते हैं किन्तु विद्यापति इसे अस्वाभाविक मानते हैं। अंगों का क्रमिक वर्णन नहीं करते बल्कि शरीर विज्ञान के आधार पर एक मनोवैज्ञानिक क्रम रखते हैं उसके स्तन यदि नारी के उरोज ही सौन्दर्य का कारण नहीं तो नारी का सौन्दर्य कैसा? बिना उरोजों के नारी न नारी है न नर ।
नख-शिख वर्णन में पहला पद ही पीन पयोधर से प्रारम्भ होता है। मनोहर मुख, रंगीन अधर और लोचन बाद में आते हैं-
पीन पयोधर दूबरि गता।
मेरू उपजल कनक लता।
पीन पयोधर सुमेरु पर्वत ही नहीं बिना नाल का कमल है। बिना नाल के यह मुरझा न जाय इसके लिए मणिमय हार सुरसरि की धारा बनकर उनका सिंचन कर रहा है-
मेरु उपर दुइ कमल फलायल नाल विना रुचि पाई
मनिमय हार धार बहु सुरसरि, न ओ नहि कमल सुखाई।।
यही नहीं, विद्यापति इन्हें ‘कनक-संभु’ तक कह डालते हैं-
गिरवर गुरुअ पयोधर परसित गिम गज मोतिक हारा,
काम कम्बु भरि कनक संभु परि टारति सुरसरि धारा ।।
चेष्टाओं का वर्णन- अंग-प्रत्यंग की सक्रियता एवं चेष्टा-प्रचेष्टाओं द्वारा विद्यापति अपूर्व रूप प्रदान करते हैं। राधा का मुख सुन्दर है। उसके नेत्र में अंजन लगा है। नेत्र खंजन पक्षी के नेत्रों को भी पीछे छोड़ने में समर्थ है। साथ-ही-साथ अपना जादू फेरने में सक्रिय है-
कनक कमल माझ काल भुजंगिनी सिरिभुत खंजन खेला।
कटाक्ष की इससे सुन्दर अभिव्यक्ति और क्या हो सकती है? नायिका के नेत्र कामदेव के बाण हैं जो रसिकजनों को वेधते हैं-
तिन वान मदन ते जल तिन भुवने अवधि रहल दयो बाने
विधि बड़ दारुन बधए रसिक जन सोपल तोहर नयाने।
यही नहीं नेत्रों की चपलता, चेष्टा और प्रभाव बोधकता का सफल अंकन भी हुआ-
सहजहि आनन सुन्दर रे भउह सुरेखलि आँखि
पंकज तथा पिवि मधुकर रे उड़ये पसारए पांखि है
तथा
नयन नालिनी दओ अंजन रजए बाँह विभंग विलासा
चकित चकोर जोर विधि बांधल केवल काजर पासा।
हाव-भाव वर्णन – डॉ० दीक्षित के अनुसार विद्यापति की राधा का सौन्दर्य सचेष्ट हाव-भाव युक्त और चपल है इसीलिए वह सप्राण और प्रभावशालिनी है। अंचल के वक्षस्थल पर से हट जाने पर अनावरण अनुभव करती हुई नायिका की लुभावनी चेष्टाएँ देखिए-
अम्बर विषदु अकामिक कामिनी कर कुच झापु सुछन्दा
कनक संभु सम अनुपम सुन्दर दुई पंकज दस चन्दा ।
निःसन्देह विद्यापति सौन्दर्य के अनुपम चितेरे हैं।
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