विद्यालय में शुद्ध वायु की व्यवस्था किस प्रकार की जाती है ? अथवा संवातन पर एक लेख लिखिए।
प्राकृतिक संवातन (Natural Ventilation)- यह छोटे कस्बों, विद्यालयों तथा ऑफिस के लिए सस्ता, सरल तरीका है। इस प्रकार के संवातन की सफलता वायु के कुछ प्राकृतिक गुणों पर निर्भर रहती है। इसके अतिरिक्त मकानों को खुले स्थानों पर तथा पर्याप्त दरवाजे एवं खिड़कियों युक्त बनाने से प्राकृतिक संवातन को बल मिलता है। वायु के प्राकृतिक गुण हैं—
(a) वायु प्रचलन (Perflation) – वायु एक शक्तिशाली संवातन स्वयं ही होती है, जब गतिशील होकर वायु कमरे में सक्रिय होती है, तो उस प्रचलन के सामने किसी वस्तु का अवरोध पड़ने पर उसे छोड़कर एक चूषण की क्रिया उत्पन्न करती है, जिसे वायु चूषण (Aspiration) कहते हैं। दरवाजे एवं खिड़कियाँ आमने-सामने होने पर क्रॉस या पारगामी संवातन (Cross Ventilation) होता है।
(b) घुलने-मिलने व विस्तृत होने की क्षमता (Diffusion) – वायु अत्यन्त छोटे छिद्र द्वारा भी प्रवाहित होती है, यद्यपि यह क्रिया धीमी होती है, तथापि यह संवातन की क्रिया में सहायक होती है।
(c) तापमान की असमानता – वायु उच्च घनत्व वाले प्रदेश से निम्न घनत्व (Low Density) की ओर जाती है। ताप के कारण वायु हल्की होकर ऊपर की ओर उड़ती है तथा कमरे में स्थित रोशनदानों (जो कि छत के पास सामान्यतः है होते हैं) द्वारा निकलती है। उसके स्थान को ग्रहण करने के लिए बाहर से खिड़कियों द्वारा ठण्डी, उच्च घनत्व वाली वायु कमरे में प्रवेश करती है। जितना अधिक कमरे के बाह्य व आन्तरिक तापमान में अन्तर होगा, वायु उतनी ही अधिक गतिशील हो जाती है। इसके लिए उचित स्थान पर एवं पर्याप्त संख्या में दरवाजे, खिड़कियाँ तथा रोशनदान का होना आवश्यक है। प्राकृतिक संवातन के दोष हैं-वायु की गतिशीलता पर नियन्त्रण पाने की अक्षमता तथा प्रवेश करने वाली वायु के तापमान व आर्द्रता को समायोजित करने में असफलता ।
ठण्डे प्रदेशों में खिड़कियाँ व दरवाजे सामान्यतः खुले नहीं रख सकते हैं, अतः संवातन की विशेष व्यवस्था की आवश्यकता होती है। शरीर पर वायु के सीधे आघात से बचने के लिए वायु प्रवेश मार्ग ऐसा बनाएँ कि हवा फर्श के पास कमरे के ऊपर तक प्रवेश कर पाए तथा तुरन्त फैल जाए। इसके लिए ठण्डे प्रदेशों में निम्नलिखित संवातकों को प्रयोग में लाते हैं-
1. टॉबिन की नली (Tobin’s Tube) – इस नली को कमरे में दीवार के सहारे ईंट, पत्थर, चूना व सीमेन्ट आदि से बनाते हैं, जिसकी ऊँचाई 4-6 फुट तक होती है। इस नली का निचला भाग बाहर की ओर खुलता है, जिस पर जाली का ढक्कन होता है। अन्दर का भाग 4 फुट ऊँचाई पर खुलता है। इस नली की चौड़ाई प्रवेश स्थान की अपेक्षा होती है, जिससे वायु फैल जाती हैं। इसमें एक वाल्व भी होता है, जिससे वायु नियन्त्रित रहती है।
2. दोहरी पटके वाली खिड़की (Double Sash Window)- इसमें दो पटके होते हैं, जिन्हें ऊपर-नीचे खिसका सकते हैं। नीचे के भाग में तथा नीचे वाली के ऊपरी भाग में लकड़ी के टुकड़े लगे होते हैं। जब वे आपस में मिल जाते हैं, तो उनके बीच तनिक भी स्थान नहीं बचता है तथा नीचे वाली खिड़की को ऊपर उठा देने से वायु का प्रवेश सरलता से हो जाता है। इस उठाने व गिराने की प्रक्रिया का प्रबन्ध एक पुली (जंजीर) द्वारा किया जाता है। वायु ऊपर की दिशा की ओर बहती है अतः कमरे के अन्दर स्थित व्यक्तियों के सिर के ऊपर से अन्दर वायु प्रवेश करती है। वायु के प्रवेश पर इस प्रकार के कपाटों द्वारा नियन्त्रण पा सकते हैं ।
3. लोवर के संवातक या झिलमिली (Louvre’s Ventilators) – यह भारत में कई स्थानों पर उपयोग में लाया जाता है। इसके अन्दर लकड़ी के पट्टे इस प्रकार लगा दिए जाते हैं कि यान्त्रिक व्यवस्था की सहायता से उन्हें बन्द या खुला रख सकते हैं। दरवाजे, खिड़कियाँ आदि पर भी इसे बना सकते हैं। कुछ ट्रेन, बस आदि की अन्दर की ओर की खिड़कियों पर भी इसे लगाते हैं।
4. शेरिंघम वाल्व (Sheringham’s Valves ) – यह लोहे का बना हुआ एक बक्सा होता है, जिसे दीवार में लगा दिया जाता है। इसमें एक ढक्कन-सा होता है, जिसे उठाकर या गिराकर द्वार बन्द कर या खोल सकते हैं। भीतर का भाग बाहरी भाग से बड़ा होता है और ऊपर को छत की ओर मुड़ा होता है। इससे वायु सीधी भीतर न जाकर ऊपर की ओर मुड़ जाती है। यह बॉक्स 45° पर तिरछा खुलता है।
5. एलीसन की इंटे (Ellison’s Bricks)- ये विशेष प्रकार की ईंटें होती हैं जिनकी मोटाई 42 होती हैं। इन्हें इस प्रकार लगा दिया जाता है कि उनके मध्य छेद रहता हो जो कि आर-पार होता है। इन ईंटों का बाहर की ओर का मुख भीतर के मुख की अपेक्षा छोटा होता है, जिससे कमरे में प्रवेश करती हुई वायु की गति में कमी आ जाती है। इस प्रकार की कई टि दीवार पर लगाई जाती है।
6. मेकिनेल संवातक (Mckinnel’s Ventilator) – इसमें लोहे की दो नलियाँ होती हैं, जिनमें एक चौड़ी होती है। दूसरी नली चौड़ाई में पहली की अपेक्षा आधी होती है। पतली नली को चौड़ी नली के भीतर कमरे के ऊँचे स्थान पर लगा देते हैं। पतली नली का सिरा छत से ऊपर निकला रहता है अर्थात् पतली नली चौड़ी नली की अपेक्षा ऊपर और नीचे दोनों ओर कुछ अधिक निकली रहती है। पतली नली द्वारा वायु का निकास तथा चौड़ी नली से वायु का प्रवेश होता है। पतली नली द्वारा कमरे की दूषित, विषाक्त, दुर्गन्धयुक्त वायु हल्की होकर ऊपर उठती है व निकल जाती है। ऊपर से जाली का ढक्कन होता है, जिससे जानवर, पक्षी आदि का प्रवेश नहीं हो सके। इस प्रकार के संवातक को स्कूल, चर्च, हॉल, थिएटर आदि के लिए गर्म देशों में प्रयोग करते हैं।
7. चिमनी (Chimneys) – भारत में इसका प्रयोग किया जाता है। काऊल (Cowl) का प्रयोग ट्रेन, बस, ट्राम (Tram) आदि के लिए किया जाता है, जिसमें छत पर छेद होते हैं। वायु की चूषण क्रिया गाड़ी की गतिशीलता के कारण नहीं हो पाती है।
यान्त्रिक व कृत्रिम संवातन (Artificial or Mechanical Ventilation)
थिएटर, सिनेमाघर, परीक्षा भवन, विद्यालयों के लिए प्राकृतिक संवातन पर निर्भर रहना कठिन होता है। अतः निम्नलिखित चार व्यवस्थाएँ मुख्य है-
(a) निःशेष संवातन (Exhaust Ventilation) – वायु की सक्रियता के लिए यान्त्रिक पंखे चलाए जाते हैं तथा गर्म वायु को निष्कासित करने के लिए निःशेष पंखों (Exhaust Fans) की व्यवस्था छत के पास होती है। निःशेष पंखों से सर्वप्रथम रिक्त शून्यता उत्पन्न होती है, जिससे ताजी हवा बाहर से प्रवेश करती है (खिड़कियों तथा दरवाजों द्वारा)। पंखों की गति को नियन्त्रित करके संवातन की क्षमता को कम या अधिक कर सकते हैं। औद्योगिक क्षेत्रों में इसका अधिक उपयोग होता है, क्योंकि इससे धुआँ, वाप्प तथा अन्य दूषित पदार्थ तुरन्त निकल जाते हैं।
(b) प्लीनम (Plenum) संवातन- इस पद्धति में ताजी, ठण्डी हवा को सेण्ट्रीफ्यूगल या अपकेन्द्री (Centrifugal) पंखों की सहायता से कमरे के भीतर दबावयुक्त प्रवेश कराया जाता (कृत्रिम संवातक) है, जिससे विधायक दबाव उत्पन्न होता है तथा दूषित वायु बाहर निकलती है। यह बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियों भवनों में प्रयोग में आता है। आजकल इसका प्रचलन कम हो रहा है।
(c) सन्तुलित संवातन (Balanced Ventilation)- यह उपर्युक्त दोनों विधियों का सम्मिश्रण है। प्रवेश एवं निकास के लिए प्रयुक्त पंखे सन्तुलित रूप से कार्य करते हैं, तब प्राकृतिक संवातन के तरीकों को पूर्णतः बन्द रखने की आवश्यकता होती है।
(d) वायु प्रतिबन्धन या वातानुकूलन (Air-Conditioning)- इस प्रकार के संवातन द्वारा निम्नलिखित कारकों का नियन्त्रण किया जाता है। यथा-तापमान, आर्द्रता वायु की गतिशीलता, वितरण, धूल, जीवाणु, दुर्गन्ध, विषाक्त गैसें आदि का निस्तारण आदि। एक साथ उपर्युक्त सभी कारकों पर नियन्त्रण करके मानव की सुविधा एवं स्वास्थ्य की वृद्धि में सहायक बनाने के तरीके को वातानुकूलन कहते हैं। यह अस्पताल, बड़ी-बड़ी संस्थाओं, औद्योगिक क्षेत्रों, मकानों, भवनों के लिए आजकल लोकप्रिय हो रहा है, इससे हानिकारक जीवाणुओं पर नियन्त्रण प्राप्त किया जा सकता है। इसमें वायु का सर्वप्रथम निस्यन्दन (Filteration) होता है तथा जलवाष्प के साथ संतृप्त (Saturate) किया जाता है। अतिरिक्त नमी को हटाकर उसे वांछित तापमान तक गर्म या ठण्डा किया जाता है तथा उसके बाद कमरे में प्रवेश कराते हैं। एयर-कूलर का प्रयोग भी किया जाता है।
इसका सिद्धान्त निम्नानुसार है-गर्म वायु को यन्त्र अपने अन्दर चूस कर महीन जल फव्वारों से गुजार कर नमी को सोख कर कमरे के भीतर प्रवेश करने देता है। यह प्रवेश छोटी-छोटी असंख्य नलिकाओं द्वारा होता है। मशीन में अन्दर गर्म वायु (प्रश्वासित) के निष्कासन का प्रबन्ध भी होता है।
वायु शीतन शक्ति (Cooling Efficiency of Air) को नापने के लिए जो उपकरण प्रयोग में आता है, उसे ‘कैटा’ (Kata) थर्मामीटर कहते हैं। यह दो प्रकार का होता है, शुष्क तथा आर्द्र या तर (Wet) कैटा। इसका निर्माण सर लियोनार्ड हिल (Sir Leonard Hill) ने किया था तर बल्ब थर्मामीटर पर मलमल का कपड़ा बन्धा रहता है। दोनों में हल्का गुलाबी रंग का एल्कोहॉल भरा रहता है।
प्रयोग से पहले उसे 150°F तक के गर्म पानी में तब तक रखते हैं जब तक एल्कोहॉल थर्मामीटर के ऊपरी सिरे के बल्ब तक न पहुँच जाए। इसके बाद बल्ब को पोंछकर सुखाएँ तथा कमरे में स्टैण्ड की सहायता से लटका दें। एल्कोहॉल के 100°F से 95°F तक नीचे आने का समय स्टॉप वॉच की सहायता से सेकण्ड्स में अंकित कर लें। इसे तीन बार दुहराएँ तथा मध्यमान (Mean) निकाल लें। जो अंक प्राप्त हो, उसका थर्मामीटर के घटक में भाग देने से वायु की शीतन की क्षमता का ज्ञान होता है। शुष्क थर्मामीटर संवहन (Convection) तथा विकिरण (Radiation) द्वारा और तर थर्मामीटर संवहन, वाष्पीकरण (Evaporation) तथा विकिरण द्वारा वायु की शीतन शक्ति के बारे में बताता है। उदाहरणार्थ, यदि शुष्क कैटा में 5 डिग्री एल्कोहॉल के गिरने से 89 सेकेण्ड लगे तथा थर्मामीटर के घटक 500° है तो वायु की शीतन दर होगी- 500 ÷ 80 = 6.25
कमरे के संवातन को तभी उचित कह सकते हैं जब शुष्क कैटा की दर 6 से कम नहीं हो। यदि कम है, तो कमरा जरूरत से ज्यादा गर्म होगा। यदि दर 15 से अधिक हो तो समझें कि कमरा अत्यन्त ठण्डा है।
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