विभेदकारी एकाधिकार से आप क्या समझते है ? मूल्य विभेद की विभिन्न दशाओं को बताइये।
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मूल्य-विभेद या विभेदकारी एकाधिकार का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Price Discrimination or Discrimination Monopoly)
जब वस्तु का उत्पादक या विक्रेता एक ही वस्तु के विभिन्न ग्राहकों से अलग-अलग मूल्य वसूल करता है तो इसे विभेदकारी एकाधिकार या मूल्य का विभेद कहते हैं ।
श्रीमती जॉन राबिन्सन के अनुसार, “एक ही नियन्त्रण में उत्पादित हुई एक वस्तु को विभिन्न क्रेताओं को अलग-अलग मूल्यों पर बेचने की क्रिया को भूल्य विभेद कहते हैं।”
प्रो० स्टिगलर – “समान वस्तु के लिए दो या दो से अधिक मूल्य प्राप्त करने को मूल्य विभेद कहा जाता है। “
मूल्य विभेद की दशाएँ या मूल्य विभेद कब सम्भव होता है ? (Conditions for Price Discrimination or when Price Discrimination is Possible)
निम्न दशाओं में मूल्य विभेद हो सकता है:
(1) बाजारों का पृथक्कीकरण- मूल्य विभेद के लिए आवश्यक है कि एकाधिकारी द्वारा प्रदान की जाने वाली वस्तु अथवा सेवा के लिए दो या दो से अधिक बाजार होने चाहियें। स्पष्ट है कि मूल्य विभेद की आधारभूत दशा यह है कि एक उपभोक्ता द्वारा दूसरे उपभोक्ता को पुनः बिक्री की कोई सम्भावना नहीं होनी चाहिए।
(2) माँग की लोच में अन्तर— मूल्य विभेद के लिये यह आवश्यक है कि विभिन्न बाजारों में वस्तु या सेवा के लिए माँग की लोच अलग-अलग हो। विभिन्न बाजारों में माँग की लोच विभिन्न होने की दशा में ही यह सम्भव होता है कि एकाधिकारी उस बाजार में वस्तु को ऊँची कीमत पर बेचे जिसकी माँग की लोच कम और उस बाजार में नीची कीमत पर बेचे जिसमें माँग की लोच अधिक है।
(3) पूर्ति पर पूर्ण नियन्त्रण – एक एकाधिकारी मूल्य विभेद करने में तभी सफल हो सकता है जबकि उसका वस्तु की पूर्ति पर पूरा नियन्त्रण हो ।’
(4) वस्तु या सेवा की प्रकृति- जब वस्तु की प्रकृति इस प्रकार की हो कि उसे पुनः हस्तान्तरित न किया जा सकता हो, तो ऐसी वस्तुओं के लिए कीमत विभेद आसानी से अपनाया जा सकता है। उदाहरणार्थ डॉक्टर तथा वकील अपनी सेवाओं के लिए मूल्य विभेद सरलतापूर्वक कर सकते हैं क्योंकि उनकी सेवाओं की पुनः विक्री सम्भव नहीं है।
(5) क्रय शक्ति में भिन्नता – क्रेताओं की क्रय शक्ति में भिन्नता होने पर मूल्य विभेद की सम्भावना बढ़ जाती है। उदाहरणार्थ, धन वितरण की असमानता के कारण ही डॉक्टर अमीर व्यक्ति से अधिक और गरीब व्यक्ति से कम फीस लेकर मूल्य विभेद करने में सफल हो जाता है।
(6) कानूनी स्वीकृति— कुछ दशाओं में स्वयं सरकार किसी एकाधिकारी को वस्तु या सेवा की विभिन्न कीमत रखने के लिए कानूनी स्वीकृति प्रदान कर देती है; जैसे- बिजली की दरों को घरेलू उपयोग के लिए नीची तथा व्यावसायिक उपयोग के लिए ऊंची रखना।
(7) आर्डर पर विक्रय- श्रीमती रॉबिन्सन के अनुसार यदि विशिष्ट आर्डर पर वस्तुएँ बनाई व बेची जाती हैं तो मूल्य विभेद अत्यधिक सफल होता है, क्योंकि उस दशा में एक क्रेता को यह पता नहीं लग पाता है कि दूसरे ग्राहक से कितनी कीमत ली जा रही है।
(8) प्रशुल्क व्यवस्था — दो देशों के बीच सीमा शुल्कों के कारण भी एक वस्तु के विभिन्न मूल्य पाये जा सकते हैं।
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