व्यावहारिक विकार से आप क्या समझाते हो? शैकिस प्रकार छात्रों के मानसिक स्वास्थ को विकसित करने में सहायक हो सकते हैं ?
आज के युग में औद्योगीकरण तथा मशीनीकरण के कारण मानसिक रोग अधिक हो रहे हैं। मानसिक रोग कुंठा के कारण होते हैं। व्यवहार में असामान्यता आ जाती है इसे ही व्यवहारिक विकार कहते हैं। सामान्यतः ये मानसिक बीमारियों अधिक प्रचलित हैं-
1. मनस्ताप (Psycho-neurosis) – इस बीमारी का मुख्य लक्षण संवेगात्मक अस्थिरता है। यह आन्तरिक तथा बाह्य, दोनों प्रकार को उत्तेजनाओं से होती है। व्यक्ति में ऊंचा स्थान, आप, पानी आदि विकार, मानसिक भय का उद्दीपन प्रस्तुत करते हैं। मनस्ताप के तीन रूप है-
(i) सॉइकोसवेनिक (Psychasthenic neurosis)- इस प्रकार के मनस्ताप में बहुत-सी संवेगात्मक अस्थिरताएँ विद्यमान रहती हैं। इसके अन्तर्गत (1) काल्पनिक भय (Phobia) अर्थात् अकारण भय, (2) आधारहीन तथ्ण (Obsession) अर्थात् अकारण हो चिन्ता व्याप्त होना, (3) बार-बार कार्य करना (Compulsion) अर्थात् एक ही कार्य को बार-बार करना आते हैं।
(ii) न्यूरोसथेनिक (Neurosthenic)- इस प्रकार के मानसिक रोगी शारीरिक क्रियाओं द्वारा सनाव को अभिव्यक्त करते हैं। (1) दुःख एवं सुख (Hepochodina) के द्वारा व्यक्ति को दुःख-सुख तथा बीमार समझने में आनन्द अनुभव करता है। (2) इन्सोमीनिया (Insominia) के द्वारा व्यक्ति थकान का अनुभव करता है। नींद न आना, कब्ज रहना आदि इसके विशेष लक्षण हैं।
(iii) हिस्टीरिया (Hysteristic neurosis) – यह रोग संवेगात्मक रूप से अस्थिर लोगों को होता है। इसमें अनेक प्रकार के रोग हो जाते हैं। कभी-कभी व्यक्ति अन्धा तथा बहरा भी हो जाता है। दौरे पड़ने आरम्भ हो जाते हैं। व्यक्ति में चिड़चिड़ापन आ जाता है।
2. अमनोविकृत व्यवहार (Nonpsychotic behaviour)- इस प्रकार के रोगी उम्र प्रतिक्रिया वाले नहीं होते। साधारण असामान्य व्यवहार इनकी विशेषता होती है। इस प्रकार के व्यक्तियों में (1) अहं होता है, दूसरों की बातों तथा कार्यों की परवाह नहीं करते, स्वयं ही बड़बड़ाते रहते हैं, (2) चिन्ताओं तथा तनाव को कामेच्छा पूर्ति से दूर करते हैं, (3) समलिगी भोग, पशुओं के साथ यौनाचार, विषम लिंगी वस्त्र धारण करने वाले व्यवहार करते हैं, (4) हीन भावना से पीड़ित होते हैं, (5) छोटे-छोटे कार्यों के लिए भी पराश्रयी होते हैं, (6) समाज विरोधी कार्य करते हैं।
3. मनोविकृत (Psychosis) – इस प्रकार के रोगी गम्भीर होते हैं एवं इनकी चिकित्सा मानसिक अस्पतालों में ही होती है। (1) ये रोगी यथार्थ के धरातल पर नहीं रहते। (2) इनका भावनात्मक तथा बौद्धिक संतुलन नहीं रहता (3) अपने आपको सम्राट तथा महान् समझने लगते हैं। (4) यह भय रहता है कि इन्हें कोई मारेगा। (5) इन्हें अनेक प्रकार की भ्रान्तियाँ रहती हैं।
मनोविकृति दो प्रकार की ही होती हैं—(1) जैविक (Organic) मनोविकृति मस्तिष्क तथा स्नायुमण्डल में चोट के कारण होती है। (2) कार्यात्मक (Functional) मनोविकृति का आधार शारीरिक नहीं होता। इसमें शोजोफ्रौनिया (Schizophrenia), इनवोलूस्नल मेलनकोलिया (Involutional melancholia), मैनिक डिप्रैसिव साइकोसिस (Manic depressive psychosis) आदि रोगों की गणना की जाती है।
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