शिक्षण की गुणवत्ता में सुधार क्यों आवश्यक है? गुणवत्ता में सुधार हेतु सुझाव लिखिये।
हमारे देश में प्राचीन अवधारणा रही है कि शिक्षक के गुण जन्मजात होते हैं, परन्तु आज जनसंख्या वृद्धि एवं शिक्षा प्रसार के साथ-साथ शिक्षकों की बढ़ती मांग को जन्मजात शिक्षकों द्वारा पूरा किया जाना सम्भव नहीं है। अतः प्रशिक्षण के माध्यम से शिक्षक तैयार करने की आवश्यकता है। शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम के द्वारा भावी शिक्षकों में ज्ञान, कौशल और व्यवहार में परिमार्जन कर शिक्षोपयोगी गुणों को विकसित किया जाता है। कार्य क्षमता एवं कुशलता में वृद्धि की भावना बढ़ जाती है।
यह सर्वविदित है कि शिक्षा सामाजिक पुनर्निर्माण का प्रभावी साधन है, जो काफी सीमा तक समाज की समस्याओं का समाधान करती है, परन्तु शायद आज यह अपने उद्देश्य में सफल नहीं है। आज भारतीय समाज में अनेक आर्थिक, सामाजिक सांस्कृतिक नैतिक समस्याएं व्याप्त है। भारत में विकास की धीमी गति है, जातिवाद क्षेत्रीयता साम्प्रदायिकता, हिंसा आतंकवाद, उपचार व्याप्त है, समाज में मूल्यों का निरन्तर विघटन हो रहा है। इन परिस्थितियों का जिम्मेदार भी शिक्षक ही है। समाज की नैतिक अवनीति के प्रति शिक्षक की जाबावदेही अपर्याप्त है।
अध्यापक में ‘अधि’ लगा है। जिसका अर्थ है कि निश्चित लक्ष्य तक ले जाने वाला। आज अध्यापक स्वयं ही लक्ष्यविहिन है। तो उससे क्या अपेक्षा की जा सकती है। अध्यापन के लिए सम्यक् ज्ञान एवं तथा उसके स्वरूप को निश्चित करने की जिम्मेदारी शिक्षक पर होती है। कोठारी आयोग का मानना है कि “भारत के भविष्य का निर्माण उसकी कक्षाओं में हो रहा है।” इन कक्षाओं का पूर्ण निर्देशन शिक्षक के हाथ में होता है।
ऐसे छात्र का निर्माण करता है, जिसमें स्वतंत्र निर्णय, तर्क एवं चिन्तन की क्षमता हो और नैतिक एवं चारित्रिक दृष्टि से श्रेष्ठ हो। इनके अलावा उसमें अपने राष्ट्र की संस्कृति में योगदान देने के साथ-साथ उसकी रक्षा कर सकने की क्षमता भी हो।
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शिक्षण का गिरता स्तर: कारण एवं निवारण
दो चीजें जरूरी है। आज के शिक्षक का उद्देश्य स्थायी नौकरी प्राप्त करना है और नियत समय पर प्राप्त होने वाली सुविधाओं को प्राप्त करना है। आज पढ़ाना पाप समझा जाता है। शिक्षक सोचता है। उसे पढ़ाने की क्या जरूरत है, लड़के खुद पढ़ते है। उन्हें अनेक सुविधाए मिली है, जिनका प्रयोग कर वे परीक्षा पास कर लेंगे हमारा काम केवल वेतन लेना है। शिक्षकों में दक्षता, प्रतिबद्धता एवं कार्य सम्पादन में कमी आई है। अधिकांश शिक्षक शिक्षण कौशलों में दक्ष नहीं होते। विषय में विशेषज्ञता के अतिरिक्त उनमें पढ़ाने की और छात्र मनोविज्ञान समझने की कला भी होनी चाहिए। आज अध्यापक हर कार्य में छोटा रास्ता अपनाता है। उससे विद्यार्थी भी यही करते है।
एन.सी.टी.ई. के क्रियान्वयन कार्यक्रम के तहत इन बिन्दुओं में निम्न कारण बताये है-
- अध्यापकों में व्यवसायिक प्रतिबद्धता व समग्रता दक्षता के विकास की स्थिति असंतोषजनक है।
- शैक्षणिक विज्ञान के अभिनव विकास के अनुरूप अध्यापक की सेवा पूर्ण शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट है।
- अध्यापक शिक्षा की अवमानक संस्थाओं में वृद्धि हुई है। तथा व्यवस्था में दुराचार व्याप्त है।
- सिद्धांत एवं व्यवहार में सामंजस्य के अनुरूप पाठ्यचर्या की जबावदेही पर्यास है।
- अध्यापक की व्यावसायिक प्रभावशीलता में विकास नहीं हो रहा है।
- अध्यापक प्रशिक्षण संस्थान शिक्षा कार्यक्रम पूर्ण हो जाने पर भी अध्यापक में व्यावसायिक दक्षता एवं प्रतिबद्धता विकसित नहीं कर पाये।
- अधिकांशतः सीखे गये शिक्षण कौशल तथा शिक्षण पद्धतियों का विद्यालय की वास्तविक परिस्थितियों में व्यावहारिक उपयोग यदा-कदा ही किया जाता है।
- अधिकांश विद्यालयों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव प्रभावी शिक्षण में बाधक है।
- विद्यालय में आये अनुदान का उपयोग भ्रष्ट्राचार के कारण पुस्तकालय समृद्धि और सुविधा वृद्धि में नहीं होता।
- शिक्षकों की नियुक्ति प्रदोन्नति में भी भ्रष्ट्राचार का बोलबाला है। शिक्षक नियुक्ति के विभिन्न स्तर के चयन बोर्ड इसका उदाहरण है।
- भौतिकता एवं बाजार बाद की अधिकता और नैतिकता की कमी भी इसका कारण है।
अध्यापक शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हेतु प्रयास
शिक्षण आज एक व्यवसाय बन गया है। परन्तु विद्यालय न तो कोई दुकान है और न ही फैक्ट्री जहाँ निर्जीव वस्तुओं का उत्पादन एवं लेन देन होता है। शिक्षा संस्थाओं में शिक्षक को प्रतिदिन अति संवेदनशील भावुक व प्रतिक्षण परिवर्तनशील बालकों के साथ अन्तः क्रिया करनी होती है।
शिक्षण वह प्रक्रिया है जिसमें अधिक परिपक्व व्यक्ति (शिक्षक) बहुत से कम परिपक्व व्यक्तियों (छात्रों) के सम्पर्क में आता है तथा उनके व्यवहार में परिमार्जन व व्यक्तित्व निर्माण का दायित्व लेता है अपने इस उत्तरदायित्व की पूर्ति के लिए अध्यापकों को अपनी शिक्षण क्षमता में विकास के साथ छात्रों के मनोविज्ञान का ज्ञान भी आवश्यक है।
राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् के सुझाव
राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद् के सुझाव निम्नानुसार है-
- अध्यापक शिक्षा की संकल्पना, शैक्षिक तथा सामाजिक व्यवस्था के साथ एकीकृत करनी होगी।
- अध्यापक शिक्षा में राष्ट्रीय मूल्य एवं स्पष्ट रूप से परिलक्षित होने चाहिए।
- सैद्धान्तिक एवं व्यवहारिक घटक यथेष्ट रूप से समन्वित किया जाना चाहिए।
- जीवन पर्यन्त सतत् अधिगम पर बल अध्यापक शिक्षा की अनिवार्य शर्त बन जानी चाहिए।
- NCTE एवं NCERT के द्वारा सेवारत् शिक्षकों प्रशिक्षण का समय-समय पर आंकलन होना चाहिए।
- NCTE के द्वारा मापदण्डों के अनुसार प्रशिक्षण संस्थान कार्य कर रहे है या नहीं, का समय-समय पर निरीक्षण करना चाहिए।
- शिक्षक को स्वयं भी अपनी अभिवृत्ति में और कार्य की प्रतिबद्धता में गुणात्मक में परिवर्तन लाना होगा। नैतिकता से अलग न होकर उसे अपनाना होगा।
- शिक्षण चयन प्रक्रिया में भी सुधार आवश्यक है। मात्र थोड़े समय में लिया गया साक्षात्कार शिक्षण योग्यता की परख नहीं कर सकता। उच्च स्तर पर सेवारत् एवं नवनियुक्त शिक्षकों के लिए एकेडमिक स्टाफ कॉलेज पुनश्चर्या पाठ्यक्रम और ओरियंटेशन पाठ्यक्रम इस दिशा में अच्छे प्रयास है। परन्तु इन पाठ्यक्रमों की गुणवत्ता में सुधार की आवश्यकता है।
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