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शिक्षा और सामाजिक गतिशीलता में संबंध | सामाजिक गतिशीलता पर शिक्षा का प्रभाव | शिक्षा पर सामाजिक गतिशीलता का प्रभाव

शिक्षा और सामाजिक गतिशीलता में संबंध | सामाजिक गतिशीलता पर शिक्षा का प्रभाव | शिक्षा पर सामाजिक गतिशीलता का प्रभाव
शिक्षा और सामाजिक गतिशीलता में संबंध | सामाजिक गतिशीलता पर शिक्षा का प्रभाव | शिक्षा पर सामाजिक गतिशीलता का प्रभाव

शिक्षा और सामाजिक गतिशीलता में क्या सम्बन्ध है ? शिक्षा एवं सामाजिक गतिशीलता के एक-दूसरे पर प्रभाव की विवेचना कीजिए।

शिक्षा और सामाजिक गतिशीलता में संबंध (Relationship between Education and Social Mobility)

शिक्षा और सामाजिक गतिशीलता में अत्यन्त घनिष्ठ संबंध है। वास्तव में शिक्षा व्यक्तियों के स्तर को ऊँचा उठाने में सहायक होती है। वह अनेक प्रकार से व्यक्ति और समाज को प्रभावित करती है। उसका सबसे महत्त्वपूर्ण प्रभाव यह है कि शिक्षा प्राप्त करने के बाद व्यक्ति की सामाजिक गतिशीलता बढ़ जाती है, उसका समाज में स्थान ऊँचा हो जाता है। यही कारण है कि शिक्षा को सामाजिक गतिशीलता का एक महत्त्वपूर्ण आधार माना जाता है। जितने भी विकसित देश हैं उनमें शिक्षा और सामाजिक गतिशीलता का संबंध व्यापक रूप से देखने को मिलता है। अमेरिका में शिक्षा और सामाजिक गतिशीलता का संबंध अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माना गया है क्योंकि वहाँ शिक्षित व्यक्तियों को अच्छे व्यवसाय मिलने की अधिक संभावना रहती है। एक युग ऐसा था जब शिक्षा को वांछनीय तो माना जाता था परन्तु उसे आवश्यक नहीं माना जाता था किन्तु आज सभी प्रगतिशील समाजों में शिक्षा अनिवार्य मानी जाती है। वास्तव में शिक्षा एक सामाजिक सम्मान का प्रतीक बन चुकी है। यह मान्यता प्रचलित हो गयी है कि शिक्षा के द्वारा ही व्यक्ति ऊपर उठ सकता है और राजनीतिक एवं आर्थिक शक्ति प्राप्त कर सकता है। शिक्षा और सामाजिक गतिशीलता दोनों ही एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं। यहाँ सामाजिक गतिशीलता पर शिक्षा के प्रभाव और शिक्षा पर सामाजिक गतिशीलता के प्रभाव की विवेचना की जा रही है-

सामाजिक गतिशीलता पर शिक्षा का प्रभाव (Effect of Education on Social Mobility)

आधुनिक युग में सर्वत्र सामाजिक गतिशीलता के उदाहरण प्रचुर मात्रा में विद्यमान हैं। व्यक्तिगत गतिशीलता और सामूहिक गतिशीलता की प्रवृत्ति अत्यन्त तीव्र गति से बढ़ रही है अतएव शिक्षा पर भी उसका प्रभाव पड़ रहा है। प्रत्येक जाति, समूह और समुदाय अपने राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक स्तर में वृद्धि करना चाहता है। ऐसा वह उस समय तक नहीं कर सकता जब तक कि उसके अधिक-से अधिक लोगों की शिक्षा की सुविधाएँ उपलब्ध न हो जायें। कोई भी समाज विभिन्न क्षेत्रों में तभी उन्नति करता है जब उसके अधिक से अधिक सदस्य शिक्षित हों समाज के अधिकतर लोग इसीलिए उन्नति नहीं कर पाते क्योंकि वे शिक्षित नहीं होते। यह देखा जाता है कि यदि किसी समुदाय के अधिकतर व्यक्तियों को शिक्षा का लाभ मिलता है तो उस समुदाय के धनी लोग अपनी ओर से धन देकर शिक्षा संस्थाएँ, छात्रावास, छात्रवृत्तियों आदि की व्यवस्था करते हैं। यह भी देखने को मिलता है कि सामूहिक चन्दे के द्वारा ट्रस्ट अथवा संगठन बना लिए जाते हैं और शिक्षा संस्थाएँ चलाई जाती हैं। अनेक समाजों में धार्मिक संगठन भी शिक्षा संस्थाएँ स्थापित करते हैं। मध्यम श्रेणी के लोग अपने बलिदान द्वारा विद्यालयों और कॉलेजों को चलाने एवं शिक्षा के प्रसार में योगदान देते हैं।

विगत कुछ वर्षों में भारत में सामाजिक गतिशीलता में अभिवृद्धि के फलस्वरूप शिक्षा का अत्यधिक प्रसार हुआ है। गाँवों से लोग शहरों में आकर बसने लगे हैं और ऐसे व्यक्तियों की कमी नहीं है जिन्होंने अपने साधनों और उत्साह से शिक्षा संस्थाओं की स्थापना की है। अनेक प्रकार की निजी संस्थाएँ शहर, कस्बों और गाँवों में देखने को मिलती हैं और इनकी संख्या निरन्तर बढ़ती जा रही है। शिक्षा का प्रसार सामाजिक गतिशीलता को बढ़ा देती है और व्यक्ति को समाज में उच्च स्थान प्रदान करने में सहायता प्रदान करता है। जो व्यक्ति शिक्षित होता है उनकी सामाजिक गतिशीलता काफी बढ़ जाती है। सामाजिक गतिशीलता ने व्यावसायिक शिक्षा के प्रसार में भी विशेष योगदान दिया है। व्यक्ति का सामाजिक स्तर और उसकी प्रगति का आधार उसकी आर्थिक स्थिति का सुदृढ़ होना और अच्छे व्यवसायों का उपलब्ध होना है। शिक्षा के माध्यम से ही यह संभव है। अच्छे व्यवसाय मिलने की संभावना शिक्षा पर ही निर्भर करती है। इस तरह शिक्षा सामाजिक गतिशीलता का प्रमुख आधार है। शिक्षा का व्यक्ति के व्यवसाय और उसकी आय पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। यह देखा जाता है कि अधिक पढ़े-लिखे लोग उच्च श्रेणी का व्यवसाय करने में समर्थ होते हैं और उससे उनकी आर्थिक स्थिति और भी सबल हो जाती है।

काल्विन स्मिथ ने अपने एक अध्ययन में यह पाया कि शिक्षा और व्यवसायों के मध्य धनात्मक सह-संबंध होता है। अमेरिका में उसने अनेक शहरों का अध्ययन किया और यह पाया कि जो जितने अधिक शिक्षित थे, उनका व्यवसाय उतना ही अच्छा था। एक दूसरे अध्ययन में नार्थ और हट ने यह पाया कि जितने भी उच्च श्रेणी के व्यवसाय थे उनके हेतु उतनी ही अधिक शैक्षिक योग्यताओं की आवश्यकता थी। इससे स्पष्ट है कि शिक्षा पर ही सामाजिक २३ तिशीलता की संभावनाएँ निर्भर करती हैं। शिक्षा पर ही यह निर्भर करता है कि व्यक्ति को कितना अच्छा व्यवसाय प्राप्त होगा। अमेरिका में अनेक अध्ययन किए गए और इन अध्ययनों के आधार पर यह सिद्ध करने का प्रयास किया गया कि ज्यों-ज्यों बालक का शैक्षिक स्तर बढ़ता जाता है त्यों-त्यों उसके व्यवसाय का स्तर भी बढ़ता जाता है। चूँकि व्यवसायों के स्तर पर ही व्यक्ति का समाज में स्थान एवं सम्मान निर्भर करता है, इसलिए यह कहा जा सकता है कि शिक्षा व्यक्ति और समाज की गतिशीलता और सामाजिक स्तरों में होने वाले परिवर्तनों की आधारशिला है।

केवल मात्र व्यवसाय ही सामाजिक स्तर का आधार नहीं होता बल्कि उसकी आर्थिक स्थिति और आय भी समाज में उसके स्थान को निर्धारित करती है। शिक्षा के क्षेत्र में किए गए अनेक अध्ययनों से यह स्पष्ट है कि आर्थिक स्थिति और शिक्षा का घनिष्ठ संबंध होता है। वाशिंगटन के एक अध्ययन में यह पाया गया कि 1961 में उन व्यक्तियों की आय जिन्होंने कॉलेज अथवा विश्वविद्यालय में 5 वर्ष तक शिक्षा प्राप्त की थी, ऐसे व्यक्तियों की आय से जो केवल 8वीं कक्षा तक शिक्षा प्राप्त कर सके थे, साढ़े तीन गुना अधिक थी। इससे स्पष्ट होता है कि अधिक पढ़े लिखे व्यक्तियों की आय भी अधिक होती है। शिक्षा और आय के मध्य अनेक व्यक्तियों ने सह सम्बन्ध निकालने का प्रयास किया है। अमेरिका, इंग्लैण्ड, जापान आदि अनेक देशों में शिक्षा और आय के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध पाया गया। भारत में भी ब्रिटिश काल में यह देखा जाता था कि जो व्यक्ति शिक्षित हो जाते थे वे अधिक आय प्राप्त करते थे। आधुनिक भारत में भी यह देखा गया है कि शिक्षा सामाजिक गतिशीलता को बहुत अधिक प्रभावित कर रही है। किसी व्यक्ति की अच्छी आय उसी स्थिति में होती है जबकि वह शिक्षित हो। शिक्षित व्यक्ति का सामाजिक स्तर भी ऊँचा उठता है। शिक्षा सामाजिक गतिशीलता को ऊर्ध्वाकार बनाने हेतु साधन का कार्य करती है। व्यापारिक, तकनीकी विद्यालय और पाठ्यक्रम व्यक्ति को समाज में अपनी स्थिति को ऊँचा उठाने का अवसर प्रदान करते हैं। उच्च और मध्य श्रेणियों के समाज में स्थान और श्रेणी प्राप्त करने के हेतु उच्च शिक्षा आवश्यक है। निम्न स्तर के प्रबंधक भी औद्योगिक इकाइयों में कॉलेज के स्नातक लेना पसंद करते हैं। अमेरिका में अनेक उद्योग अपने कर्मचारियों को विद्यालय का शुल्क स्वयं देकर उन्हें शिक्षित बनाने का प्रयास करते हैं और उन्हें ऐसे अवसर प्रदान करते हैं कि वे और अधिक शिक्षित हो जायें। उनका पाठ्यक्रम केवल उनके उद्योग की तकनीकों से ही संबंधित नहीं होता बल्कि वे दर्शन और इतिहास भी उसमें जोड़ते हैं जिस प्रकार व्यापार प्रशिक्षण में अर्थशास्त्र और व्यापार प्रबंध को रखते हैं। उद्योग स्वयं अपने कर्मचारियों का सामाजिक स्तर ऊंचा उठाने में सहायता प्रदान करते हैं और उन्हें ऐसी अनेक सुविधाएँ प्रदान करते हैं जो उनकी सामाजिक गतिशीलता को ऊर्ध्वाकार बनाते हैं। इस प्रकार शिक्षा सामाजिक गतिशीलता पर बहुत अधिक प्रभाव डालती है।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि शिक्षा का सामाजिक गतिशीलता पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। सामाजिक गतिशीलता को बहुत बड़े क्षेत्र में शिक्षा प्रभावित करती है। शिक्षा के आधार पर व्यक्तियों का सामाजिक स्तर ऊंचा उठता है अथवा नीचे गिरता है। लोगों के सामाजिक स्तर को ऊँचा उठाने में शिक्षा की महती भूमिका होती है। सामाजिक गतिशीलता पर शिक्षा के प्रभाव के हेतु अनेक अध्ययन किए गए जिनके निष्कर्षों से यह स्पष्ट हो गया है। कि सामाजिक गतिशीलता को बढ़ाने में शिक्षा एक प्रमुख साधन का कार्य करती है। शिक्षा प्राप्त कर लेने पर, चाहे वह कितने ही निम्न परिवार और स्थिति का ही ऊँचा उठता है और इससे समाज में उसका स्तर भी ऊँचा हो जाता है। भारत में पिछड़े और दलित वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था इसीलिए की गयी है कि वे शिक्षित होकर समाज में उच्च पदों को प्राप्त कर सकें जिससे समाज में उनका सम्मान हो ।

शिक्षा पर सामाजिक गतिशीलता का प्रभाव (Effect of Social Mobility on Education)

एण्डरसन ने लिखा है-“यद्यपि शिक्षा अवश्य ही एक मनुष्य के उत्थान और पतन को प्रभावित करती है, परन्तु संपूर्ण गतिशीलता का एक अपेक्षाकृत छोटा सा भाग ही शिक्षा से संबंधित होता है।” एण्डरसन ने यह निष्कर्ष अमेरिका और इंग्लैण्ड में किए अनेक अध्ययनों के आधार पर निकाला है। अमेरिका में उसने यह पाया कि अधिकतर धनी व्यक्ति इसलिए धनी बन सके हैं क्योंकि उनके माता-पिता के पास अधिक धन था न कि इसलिए कि उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त कर स्वयं को धनवान बनाया था। भारत में भी जैनियों, मारवाड़ियों, वोहरों आदि धनी समुदायों में हम शिक्षा के द्वारा सामाजिक गतिशीलता प्राप्त करने की स्थिति नहीं पाते बल्कि पैतृक सम्पत्ति और सम्मान अथवा प्रदत्त गतिशीलता के फलस्वरूप उनके समुदायों के अधिकतर निर्धन ऊपर उठ गये हैं और आज भी शिक्षा का प्राप्त होना अथवा न होना, उनके लिए महत्त्व नहीं रखता। इस तरह अनेक समुदाय और व्यक्ति ऐसे हैं जिनकी सामाजिक गतिशीलता में शिक्षा का योग नकारात्मक ही रहा है। वे अपने पैतृक सम्पत्ति के बल पर समाज में अपना स्थान बनाये हुए हैं।

समाज के जो व्यक्ति धनवान होते हैं उनके बच्चे पढ़-लिखकर उच्च स्थान ग्रहण कर लेते हैं परन्तु जिनके पास धन नहीं होता उनके बच्चे बिना पढ़े-लिखे रह जाते हैं। जिन व्यक्तियों का सामाजिक स्तर ऊंचा होता है उनकी संतानों का स्तर भी ऊँचा होता है। अनेक अध्ययनों से यह स्पष्ट हो चुका है कि जब किसी देश के नागरिकों को अधिक शिक्षा प्राप्त होने लगती है तो उससे लोगों को अधिक लाभ नहीं होता। प्रगतिशील देशों में ऐसी स्थिति आ गयी है कि गरीब शिक्षित व्यक्ति पागल और बेरोजगार होने लगे हैं और इस तरह उनकी आय अधिक शिक्षा प्राप्त करने से नहीं बढ़ती बल्कि कम हो जाती है और वे बेकार घूमते रहते हैं। धनी व्यक्तियों के बच्चे पढ़-लिख जाते हैं और धन के बल पर सम्मानित पद प्राप्त कर लेते हैं और उनका स्तर समाज में उच्च ही रहता है जबकि गरीब विद्यार्थी के माता-पिता न जाने कितनी कठिनाइयों को सहन करके बच्चों का शिक्षा दिलाने में अपना बलिदान कर देते हैं, परन्तु उनके पास रिश्वत देने के लिए धन नहीं होता और ऐसे गरीब विद्यार्थी बेकार घूमते रहते हैं। उनके लिए शिक्षा प्राप्त करना अनुपयोगी होता है। इस तरह सामाजिक गतिशीलता शिक्षा को प्रभावित करती है।

जब समाज गतिशील होता है तो वह अपने समाज के सदस्यों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए उकसाता है क्योंकि सभी प्रकार की सम्मानित नौकरियाँ सभ्य और सुसंस्कृत समाजों में विवाह संबंध आदि के लिए शिक्षित होना आवश्यक है। यदि व्यक्ति के पास डिग्री है तो वह सबसे योग्य समझा जाता है चाहे वह झूठी ही क्यों न । समाज में जिन लोगों का स्तर ऊंचा होता है उन्हीं लोगों के द्वारा विद्यालय खोले जाते हैं। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि शिक्षा का प्रसार करने के लिए जिन लोगों के पास धन होता है वहीं सक्षम होते हैं। वे अपनी वाहवाही कराने के हेतु अन्य समाज के सदस्यों से चन्दा एकत्र कर विद्यालय आरंभ करा देते हैं और स्वयं उसके मालिक बन जाते हैं। चाहे वे स्वयं पढ़े-लिखे न हों परन्तु इन लोगों की सामाजिक स्थिति एवं गतिशीलता समाज की शिक्षा को प्रभावित करती है। शिक्षा को वास्तविक रूप प्रदान करने वाले उन प्रबंधकों की झूठी प्रशंसा करते हैं और उनकी खुशामद करते हैं तो उन्हें नौकरी प्राप्त हो जाती है। इस तरह हम अपने भारतीय समाज में विशेष रूप से देखते हैं कि सामाजिक गतिशीलता शिक्षा को अधिक प्रभावित कर रही है न कि शिक्षा गतिशीलता को अधिक प्रभावित कर रही है।

इस तरह स्पष्ट है कि सामाजिक गतिशीलता भी शिक्षा को प्रभावित करती है। इसमें किंचित् मात्र भी संदेह नहीं कि शिक्षा का व्यक्ति और समाज के जीवन के उन्नयन में बहुत बड़ा हाथ रहता है और समाज के अनेक वर्गों के सामाजिक उत्थान-पतन के पीछे शिक्षा का हाथ रहा है। भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् शिक्षा का व्यापक प्रसार होने के कारण अनेक पिछड़े वर्गों के बालकों ने शिक्षा प्राप्त की और उन्होंने अपने सामाजिक स्तर को ऊँचा उठाया है, परन्तु इसके बावजूद हमारे देश का पिछड़ापन कम नहीं हुआ है। शिक्षा के द्वारा ही व्यक्ति को अच्छे व्यवसाय, पर्याप्त धन, सामाजिक सम्मान और स्तरीय सामाजिक संबंध एवं ऊँचे दर्जे का जीवन बिताने की सुविधायें संभव होती हैं और ये सब मिलकर व्यक्ति के सामाजिक स्तर को निर्धारित करते हैं। इस तरह स्पष्ट है कि शिक्षा और सामाजिक गतिशीलता का अत्यन्त गहन संबंध है और इसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता।

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Anjali Yadav

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