शिक्षा की परिभाषा दीजिए। शिक्षा के सामाजिक उद्देश्य को लिखिए।
अति प्राचीन काल से शिक्षा मानव के सर्वांगीण विकास का एक मात्र स्रोत रही है। शिक्षा के द्वारा असहाय शिशु को समर्थ बनाया जाता है और जन्म से उसमें जो दोष व्याप्त होते हैं उन्हें दूर किया जाता है। चूंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, उसे समाज में रहकर जीवन व्यतीत करना होता है, इसलिए उसे समाज के साथ अनुकूलन स्थापित करने की शिक्षा दी जाती है।
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शिक्षा की परिभाषा
“पौधों का विकास कृषि द्वारा और मनुष्य का विकास शिक्षा द्वारा होता है।” -लॉक
“शिक्षा का अर्थ संसार के उन सर्वमान्य विचारों को प्रकाश में लाना है, जो प्रत्येक के मन में विद्यमान होते हैं।” –सुकरात मनुष्य
“शिक्षा वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बालक अपनी जन्मजात व आन्तरिक शक्तियों को प्रकट या अभिव्यक्त करता है।”– फ्रोबेल
“शिक्षा से मेरा अभिप्राय बालक एवं मनुष्य के शरीर, मन एवं आत्मा के सर्वोत्तम गुणों के सर्वांगीण विकास से हैं।”- महात्मा गाँधी
“शिक्षा से मेरा तात्पर्य उस प्रशिक्षण से हैं जो बालकों के सद्गुण की मूल प्रवृत्ति के लिए उपयुक्त आदतों के निर्माण द्वारा प्रदान किया जाता है।” -प्लेटो
“स्वस्थ शरीर से स्वस्थ मस्तिष्क का सृजन ही शिक्षा है।” -अरस्तू
अतः शिक्षा मानव की जन्मजात शक्तियों का सामंजस्यपूर्ण एवं स्वाभाविक विकास करने वाली प्रक्रिया है जो उसके व्यक्तित्व को पूर्ण करके उसे वातावरण से सफल सामंजस्य स्थापित करने की योग्यता प्रदान करती है।
शिक्षा का सामाजिक उद्देश्य
इस मत के पोषकों का कथन है कि शिक्षा का उद्देश्य सामाजिक होना चाहिए। समाज से अलग व्यक्ति का कोई अस्तित्व नहीं है। व्यक्ति समाज के हित के लिए ही है। अतएव शिक्षा इस प्रकार होनी चाहिए कि समाज का अधिक से अधिक उत्थान हो सके। इस दृष्टिकोण से शिक्षा का उद्देश्य राष्ट्र के कल्याण हेतु नागरिकों को प्रशिक्षित करना है। प्राचीन यूनान में स्पार्टा नगर में राज्य द्वारा नागरिकों के सैनिक प्रशिक्षण पर अत्यधिक बल दिया जाता था। शिक्षा का उद्देश्य नागरिकों को राज्य के प्रति सब कुछ बलिदान करने की भावना उत्पन्ना करना था। हेगेल और काण्ड आदि विद्वानों ने भी राज्य को अत्यधिक गौरव प्रदान किया और उनके विचारों से भी यहीं ध्वनि निकलती है कि शिक्षा इस प्रकार की होनी चाहिए जो नागरिकों में राज्य के प्रति अपना सर्वस्व सदैव अर्पित कर देने की भावना उत्पन्ना कर दे।
आधुनिक युग लोकतन्त्र का युग है। इस लोकतन्त्र के युग में शिक्षा समाज के लिए और शिक्षा नागरिकता के लिए प्रदान करने की बात की जा रही है और विद्यालयों में अनेक क्रियाओं पर बल दिया जा रहा है। जार्ज एस० काण्ट ने ठीक ही लिखा है, जब तक स्कूल व समाज सामान्य प्रयोजनों द्वारा साथ संलग्न नहीं होते हैं शिक्षा के कार्यक्रम में सार्थकता और शान्ति का अभाव रहेगा। सामाजिक उद्देश्यों का समर्थन करते हुए स्मिथ महोदय ने लिखा है, स्कूल को व्यापक कार्य सम्भालना चाहिए एवं उसे निश्चित रूप से ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए जिससे कि सामाजिक कृतज्ञता और समुदाय भक्ति के उत्पन्ना तथा घोषित किए जाने का कार्य हो सके।
आधुनिक युग में जान डीवी आदि विद्वानों ने शिक्षा के सामाजजिक उद्देश्य का तात्पर्य सामाजिक दक्षता से लिया है और कहा है कि शिक्षा का उद्देश्य सामाजिक दक्षता को उत्पन्ना करना है।
सामाजिक शिक्षा के पक्ष में तर्क
शिक्षाशास्त्रियों ने शिक्षा के सामाजिक उद्देश्य के पक्ष में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए हैं-
(1) व्यक्ति समाज का एक अंग है। अतएव शिक्षा का उद्देश्य समाज कल्याण ही होना चाहिए।
(2) मनुष्य अपने अन्दर मानवीय और पाशविक दोनों ही प्रकार की प्रवृत्तियाँ लेकर जन्म लेता है। समाज में उसकी पाशविक प्रवृत्तियों का दमन होता है और मानवीय प्रवृत्तियों का विकास। सामाजिक पर्यावरण ही उसको यथार्थ मानव बना देता है, अतएव शिक्षा में समाज के हित का प्रमुख स्थान होना चाहिए।
(3) व्यक्तित्व का विकास वास्तव में सामाजिकता का विकास ही है। वाल्डविन ने लिखा है, “व्यक्तित्व सामाजिक शब्दों के अतिरिक्त किसी से भी पारिभाषित नहीं किया जा सकता है।” अतएव इस स्थिति में सामाजिक शिक्षा पर विशेष बल दिया जाना चाहिए।
(4) समाज संस्कृति एवं सभ्यता को जन्म देता है एवं उनका पोषक होता है और इस हेतु व्यक्ति को समाज के हित के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए तथा शिक्षा का उद्देश्य समाज का हित ही होना चाहिए।
(5) सामाजिक शान्ति और संगठन के हेतु यह आवश्यक है कि इस प्रकार की शिक्षा दी जाय जो विद्यार्थियों को समाज के हित के लिए प्रेरित करे।
(6) आधुनिक युग में समाजवाद एक ऐसा चारा है जिसने सभी को अपनी ओर आकर्षित कर लिया है। जिन देशों में समाजवादी विचारधारा को अपनाया गया है वे अत्यधिक समृद्धशाली एवं सुखी हैं और इस कारण हमारी शिक्षा भी समाजवादी विचारधारा से प्रभावित होनी चाहिए।
राष्ट्रीय जीवन में शिक्षा के उद्देश्य
राष्ट्रीय जीवन में शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य या कार्य निम्नलिखित है-
- सामाजिक सुधार और उन्नति
- योग्य नागरिकों का निर्माण
- सामाजिक भावना का विकास
- संस्कृति तथा सभ्यता की सुरक्षा
- सामाजिक तथा नागरिक भावना विकास
- भावात्मक एकता के आदर्शों का विकास
- व्यक्तिगत के साथ-साथ सार्वजनिक हित की भावना
- सामाजिक कुशलता का विकास
- निपुण कार्यकर्ताओं की पूर्ति
- नेतृत्व के लिए प्रशिक्षण
- राष्ट्रीय एकता
- राष्ट्रीय निधि |
शिक्षा के प्रमुख कार्य
शिक्षा के प्रमुख कार्य निम्नलिखित है-
- जन्मजात शक्तियों का विकास
- व्यक्तित्व का विकास
- बालक को भावी जीवन संघर्ष के लिए तैयार करना
- मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति
- बालक का चरित्र निर्माण करना
- व्यावसायिक कुशलता की उन्नति
- सामाजिक मूल्यों का विकास
- आत्मनिर्भरता की प्राप्ति
- राष्ट्रीय विकास को प्रोत्साहन देना।
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