शिक्षाशास्त्र / Education

शिक्षा का चरित्र निर्माण का उद्देश्य | Character Formation Aim of Education in Hindi

शिक्षा का चरित्र निर्माण का उद्देश्य | Character Formation Aim of Education in Hindi
शिक्षा का चरित्र निर्माण का उद्देश्य | Character Formation Aim of Education in Hindi

शिक्षा के चरित्र निर्माण के उद्देश्यों का विस्तृत वर्णन कीजिए।

शिक्षा का चरित्र निर्माण का उद्देश्य ( Character Formation Aim of Education )

चरित्र निर्माण का एक प्रमुख उद्देश्य है। अनेक शिक्षाशास्त्रियों के मतानुसार शिक्षा का उद्देश्य सुन्दर और सुदृढ़ चरित्र का निर्माण करना है। चरित्र एक विवादास्पद शब्द है। इसके बारे में समाजशास्त्रियों, दार्शनिकों व शिक्षाशास्त्रियों में भिन्न-भिन्न धारणायें हैं। शिक्षा-जगत में चरित्र से तात्पर्य उन गुणों से है जिनके द्वारा मनुष्य अपना तथा समाज का हित करता है। यह गुण प्रेम, सहानुभूति, सहयोग, सत्य, त्याग, दया, सद्भावना, क्षमा, सहनशीलता व न्यायप्रियता है जिनका विकास शिक्षा के द्वारा होता है। चरित्र की परिभाषा स्वामी दयानन्द ने देते हुये कहा है कि, “प्रत्येक मनुष्य का चरित्र उसकी विभिन्न प्रवृत्तियों का समूह है। उसके मन की समस्त अभिवृत्तियों का योग है। हमारा कार्य हमारे शारीरिक क्रिया-कलाप, विचार, मन पर एक संस्कार छोड़ देते हैं। हमारी प्रत्येक क्रिया संस्कारों द्वारा संचालित होती है। मन के संस्कार ही चरित्र हैं। “

चरित्र के घटक- (1) सदाचार, एवं (2) नैतिकता।

सदाचार सामाजिक आचार-विचार से सम्बन्धित होते हैं तथा नैतिकता का सम्बन्ध आध्यात्मिकता से होता है। चरित्र के दो पक्ष होते हैं— प्रथम व्यक्तिगत पक्ष तथा द्वितीय सामाजिक पक्ष व्यक्तिगत व सामाजिक दोनों ही पक्षों की पवित्रता चरित्र हेतु जरूरी है। चारित्रिक विकास के उद्देश्य के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों द्वारा प्रकट की गई विचारधारा इस प्रकार है-

(1) जॉन डीवी के अनुसार– “चरित्र की स्थापना करना विद्यालयी शिक्षा व अनुशासन का मुख्य उद्देश्य है।”

(2) हर्बर्ट के अनुसार– “शिक्षा का उद्देश्य बच्चों को अच्छे आचरण की शिक्षा देना है। “

(3) स्पेन्सर के अनुसार– “मनुष्य की सबसे बड़ी आवश्यकता, सबसे बड़ा रक्षक चरित्र है, शिक्षा नहीं।”

(4) डॉ. राधाकृष्णन का विचार — “भारत सहित समस्त विश्व के कष्टों का कारण यह है कि शिक्षा केवल मस्तिष्क के विकास तक सीमित रह गई है और उसमें नैतिक तथा आध्यात्मिक मूल्यों का अभाव है।”

( 5 ) महात्मा गाँधी के अनुसार– “मैं अनुभव करता हूँ कि संसार के सभी देशों में केवल चरित्र की आवश्यकता हैं और चरित्र से कम किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं हैं। “

विभिन्न शिक्षाशास्त्रियों का विचार है कि मानव योनि में जन्म देकर ईश्वर ने मानव को अकथनीय विभूतियों से सम्पन्न करने का प्रयास किया है और इन विभूतियों की सम्पन्नता उचित चारित्रिक व नैतिक विकास पर निर्भर करती है परन्तु यहाँ विचार करने योग्य बात यह है कि नैतिकता का पल्लवन शून्य में नहीं हो सकता वरन् नैतिक आचरण हेतु समाज की उपेक्षा होती है। चरित्र कारण ही तो मनुष्य में मनुष्यत्व विद्यमान रहता है व उसमें और पशु में अन्तर किया जा सकता है। चरित्र केवल आत्मा का उत्थान ही नहीं करता है जीवन को सफल भी बनाता है। चरित्रवान् व्यक्ति अपने लक्ष्य प्राप्ति की ओर जिस मार्ग पर उन्मुख होता है, वह पहले से ही निश्चित कर लेता है। मनुष्य के सदाचार उसके दुराचार को दबाये रखने में समर्थ होते हैं। इसलिये शिक्षा द्वारा मानव को सदाचारी व सद्गुणी बनने का प्रशिक्षण अवश्य ही दिया जाना चाहिये। इस सम्बन्ध में दिये ये विभिन्न तर्क इस प्रकार हैं-

पक्ष में तर्क

(1) यह उद्देश्य आदर्शवादी परिकल्पना पर आधारित है चूँकि इसमें भी शिक्षा द्वारा सत्यम् शिवम्, सुन्दरम् के विकास की बात कही गई है।

(2) मनुष्य को अच्छे-बुरे का ज्ञान कराकर स्वयं का आचरण सुधारने की प्रेरणा देता हैं।

(3) यह उद्देश्य मानवता को विनाश, पतन व संघर्षों से बचाने में मदद करता है।

(4) यह उद्देश्य मनुष्य में दृढ़ इच्छा का विकास करता है।

(5) मुदालियर शिक्षा आयोग के अनुसार- “शिक्षा प्रणाली को यह योगदान करना चाहिये कि वह शिक्षार्थियों में चरित्र के गुण, आदतें व अभिवृत्तियों का इस प्रकार विकास करे जिससे वे नागरिक के रूप में लोकतान्त्रिक नागरिकता के दायित्वों का योग्यता से निर्वाह कर सकें तथा वे उन सभी विघटनकारी प्रवृत्तियों का सामना करें जो उदार, राष्ट्रीय एवं धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण के विकास में बाधक हों।”

(6) कोठारी शिक्षा आयोग के अनुसार- “आधुनिक समाज को हमसे जो ज्ञान का विस्तार और बढ़ती हुई शक्ति मिली है, उसका संयोग इस कारण सामाजिक उत्तरदायित्व की सुदृढ़ और गहरी होती हुई भावना तथा नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों के उत्सुकतापूर्ण गुण ग्रहण के साथ होना चाहिये। हम इस बात पर जोर देना चाहते हैं कि शिक्षा के सभी स्तरों पर विद्यार्थियों के मन में उचित मूल्यों को बैठाने की ओर ध्यान देना आवश्यक है।”

(7) महात्मा गाँधी के अनुसार– “जब भारत स्वतन्त्र हो जायेगा, तब आपकी शिक्षा का क्या उद्देश्य होगा?” “चरित्र निर्माण ।” महात्मा गाँधी के यह शब्द भी चरित्र निर्माण पर बल दे रहे हैं।

विपक्ष में तर्क

(1) चरित्र निर्माण की सदैव बात करने से बालक की मूल प्रवृत्तियों का दमन हो जाता है व उसमें विकार उत्पन्न हो जाते है।

(2) यह उद्देश्य एक पक्षीय विकास की बात करता है। शिक्षा के अन्य महत्वपूर्ण पक्षों की इसमें अवहेलना होती है।

(3) चरित्र कोई सार्वभौमिक परिभाषित शब्द नहीं है। कहीं कोई विचार चरित्र में निहित होता है, कहीं कोई। अतः इस अनिश्चित परिभाषित शब्द को शिक्षा का उद्देश्य कैसे बनाया जा सकता है।

(4) यह उद्देश्य आदर्शवादी परिकल्पनाओं पर आधारित है और यथार्थ से बहुत परे है।

वास्तव में देखा जाये तो चरित्र निर्माण हेतु यदि हम बालक में अच्छी रुचियों का निर्माण कर दें तो बहुत सारी समस्याओं का समाधान हो जायेगा। चूँकि रुचि हमारे आचरण से सम्बन्ध रखती है व जैसा हमारा आचरण होगा, वैसा ही हमारा चरित्र होगा। परन्तु ही में यह भी कहना होगा कि, “नैतिकता सिखाई नहीं जा सकती किन्तु बीमारी की तरह उसे केवल पकड़ा जा सकता है। “

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Anjali Yadav

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