शिक्षा के क्षेत्र में मापन तथा मूल्यांकन का अन्तर स्पष्ट कीजिए। मूल्यांकन शिक्षण, परीक्षा तथा परीक्षण से किस प्रकार सम्बन्धित है ? उल्लेख कीजिए।
मूल्यांकन एवं मापन एक-दूसरे से काफी भिन्न हैं। मापन किसी वस्तु, घटना या निरीक्षण का अंकात्मक (Quantitive) रूप है, जबकि मूल्यांकन मापन के साथ-साथ इन सभी का परिमाणात्मक (Quantitive) रूप प्रदान करता । मापन के द्वारा हम यह ज्ञात कर सकते हैं कि कोई वस्तु कितनी है ? जबकि मूल्यांकन यह बताता है कि कोई वस्तु अन्य वस्तुओं की तुलना में कितनी अच्छी है ? मापन से यह ज्ञात होता है कि कितने उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयत्न किया गया है। मूल्यांकन के द्वारा यह पता चलता है कि किस उद्देश्य की कितनी पूर्ति हुई है।
राइटस्टोन (Wrightstone) ने मापन और मूल्यांकन में अन्तर बताते हुए लिखा है कि, “मापन में विषयवस्तु के एक पहलू को लिया जाता है, जबकि मूल्यांकन हमें पूरे वातावरण के विषय में जानकारी देता है।”
मापन और मूल्यांकन के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिये मापन एवं मूल्यांकन का तुलनात्मक अध्ययन निम्न तालिका के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
Contents मूल्यांकन (Evaluation) |
मापन (Measurement) |
1. मूल्यांकन के द्वारा यह निश्चित किया जाता है कि किसी योग्यता अथवा गुण की संख्यात्मक तथा गुणात्मक मात्रा उपयुक्त है अथवा नहीं। | 1. मापन के द्वारा किसी योग्यता अथवा गुण की मात्रा को ज्ञात किया जाता है। मापन संख्यात्मक तथा गुणात्मक दोनों हो सकती है। |
2. मूल्यांकन में भविष्यवाणी सार्थकता के साथ कर सकते हैं, क्योंकि इसमें उसके समस्त पहलुओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया जाता है। | 2. मापन के आधार पर भविष्यवाणी सार्थकता के साथ नहीं की जा सकती है। |
3. मूल्यांकन निरन्तर चलता है। | 3. मापन का कोई निश्चित समय होता है। |
4. मूल्यांकन में श्रम, धन और समय की अधिक आवश्यकता होती है, क्योंकि इसमें अनेक परीक्षाओं का निर्माण, प्रशासन और विश्लेषण सम्मिलित रहता है। | 4. मापन में श्रम, धन तथा समय की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि इसमें परीक्षायें कम होती हैं। |
5. मूल्यांकन का कार्य साक्ष्यों के निष्कर्ष निकालना है। | 5. मापन का कार्य साक्ष्यों को एकत्रित करना है। |
6. मूल्यांकन एक साध्य है। | 6. मापन एक साधन है। |
7. मूल्यांकन में सम्पूर्ण व्यक्तित्व की परीक्षा ली जाती है। किसी का मूल्यांकन करने के लिये उसकी शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक तथा अन्य पक्षों की परीक्षा लेना पड़ेगी, तभी उसका मूल्यांकन किया जा सकता है। इसलिये मूल्यांकन में कई परीक्षाएँ सम्मिलित होती हैं। | 7. मापन में कुछ ही परीक्षाएँ ली जाती हैं, जिसका उद्देश्य केवल वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति करना है यथा व्यावसायिक रुचि की परीक्षा तथा गणित की परीक्षा। |
8. मूल्यांकन के आधार पर निश्चित धारणा बनाने में सफलता मिलती है। मूल्यांकन में सभी परीक्षाएँ सम्मिलित रहती हैं तथा इसके आधार पर हम किसी भी विद्यार्थी के विषय में निश्चित धारणा बना सकते हैं। उदाहरण के लिये मूल्यांकन में सभी परीक्षाओं के अंक उपलब्ध रहते हैं तथा इनका योग करके जो छात्र समस्त विषयों के योग के आधार पर सबसे अधिक अंक प्राप्त करता है, वह सबसे योग्य है तथा इसकी सार्थकता योग्य मानी जाती है, क्योंकि सभी पक्षों में परीक्षा देने के बाद उसका क्रम पहला आता है। | 8. मापन के आधार पर निश्चित धारणा नहीं बनाई जा सकती है। मापन में कुछ ही परीक्षाएँ सम्मिलित होती हैं तथा अधिकांश परीक्षाएँ इनमें सम्मिलित नहीं रहतीं। अतः इसके आधार पर हम निश्चित धारणा नहीं बना सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोई विद्यार्थी संस्कृत विषय में सबसे अधिक अंक प्राप्त करता है तो हम यह नहीं कह सकते हैं कि वह कक्षा का सबसे बुद्धिमान विद्यार्थी है। |
9. मूल्यांकन उद्देश्य पर आधारित होता है। | 9. मापन पाठ्य-वस्तु पर आधारित होता है। |
10. मूल्यांकन के लिये मापन अनिवार्य है, परन्तु भापन का शैक्षिक लाभ मूल्यांकन के द्वारा ही सम्भव है। | 10. मापन के बिना मूल्यांकन का कार्य वैज्ञानिक नहीं हो सकता है। |
मूल्यांकन तथा शिक्षण में सम्बन्ध
शिक्षण एक अन्तःक्रिया द्वारा एक अपेक्षाकृत पूर्ण व्यक्तित्व, एक अपूर्ण अव्यक्तित्व का विकास करने की कोशिश करता है। इस प्रक्रिया में शिक्षक ऐसी अधिगम परिस्थितियाँ प्रस्तुत करता है, जिनमें भाग लेकर विद्यार्थी अपेक्षित व्यवहार परिवर्तित करने में समर्थ हो जाते हैं। शिक्षण में उन विषय-सामग्री का चयन किया जाता है, जो वांछनीय व्यवहार हेतु अंति आवश्यक होती हैं। शिक्षक के द्वारा कुछ तथ्यों तथा सूचनाओं आदि को विद्यार्थियों तक पहुँचाने की क्रिया को ही शिक्षण कहते हैं।
मूल्यांकन शिक्षण का ही एक महत्वपूर्ण अंग है। मूल्यांकन के द्वारा शिक्षण की सार्थकता का बोध होता है। इसके द्वारा शिक्षण में पर्याप्त सुधार हेतु मार्ग प्रशस्त किया जाता है तथा इसी के द्वारा ही शिक्षक तथा के वांछनीय व्यवहारों को दृढ़ बनाने की कोशिश की जाती है।
मूल्यांकन तथा परीक्षा में सम्बन्ध
एक विशेष प्रकार की परीक्षण परिस्थिति का निर्माण करके विद्यार्थियों के एक विशेष प्रकार के व्यवहार के विषय में सूचनाएँ एकत्रित की जाती हैं। इसलिए विद्यार्थी के चहुँमुखी विकास के विषय में ज्ञान प्राप्त करने हेतु अनेक प्रकार की उपयुक्त परीक्षण परिस्थितियों का संकलन किया जाता है। इन परीक्षण परिस्थितियों के संकलन को ही परीक्षा कहते हैं। ये परीक्षाएँ विद्यार्थियों के बौद्धिक विकास से सम्बन्धित होती हैं।
ये परीक्षाएँ निम्न तीन प्रकार की होती हैं-
- मौखिक परीक्षा।
- प्रयोगात्मक परीक्षा ।
- लिखित परीक्षा।
परीक्षा के द्वारा विद्यार्थियों के व्यवहार से सम्बन्धित जानकारी आँकड़ों की भाषा में एक ही स्थान पर प्राप्त हो जाती है। यह जानकारी मूल्यांकन की प्रक्रिया के संक्षेप में आवश्यक सूचनाएँ तथा एक साथ उपलब्ध कराकर अपना सहयोगी देती है। मूल्यांकन के द्वारा इन आँकड़ों का शब्दों की भाषा में अनुवाद कराकर विद्यार्थी के विकास के विषय में खग-दृष्टि चित्र बनाया जाता है। इस चित्र के द्वारा ही के विकास में सहायक प्रक्रियाओं में आवश्यक सुधार लाने की कोशिश की जाती है।
मूल्यांकन तथा परीक्षण में सम्बन्ध
विद्यार्थियों के विषय में अधिगम से सम्बन्धित सूचनाएँ एकत्रित करने हेतु परीक्षण किया जाता है। परीक्षण के द्वारा विद्यार्थियों के व्यवहार का मापन किया जाता है। एक विशेष व्यवहार के मापन के लिए विशेष प्रकार के परीक्षण की आवश्यकता होती है। परीक्षण को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता. है –
- शिक्षक निर्मित परीक्षण |
- प्रामाणिक परीक्षण |
चूँकि मूल्यांकन विद्यार्थियों के चहुँमुखी विकास से सम्बन्धित हैं, इसलिए परीक्षण इस विकास के विषय में मापन द्वारा आवश्यक सूचना देने में सहायता प्रदान करते हैं। परीक्षण के द्वारा विद्यार्थी के विषय में विशेष प्रकार की सूचनाएँ एकत्रित की जाती हैं। मापन के द्वारा उनका अंकीकरण होता है तथा मूल्यांकन इन आँकड़ों की व्याख्या करके सुधार हेतु सुझावों को प्रस्तुत करने का प्रयत्न करता है।
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