शिक्षा के क्षेत्र में मूल्यांकन के प्रमुख कार्यों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
शिक्षा के क्षेत्र में मूल्यांकन विभिन्न प्रकार के कार्यों को करता है। मूल्यांकन के कार्यों को निम्न प्रकार विभाजित किया जा सकता है-
1. अनुदेशन सुधार हेतु सहायता प्रदान करना – शिक्षण के दौरान शिक्षक यदि मूल्यांकन का सही तथा विवेकपूर्ण प्रयोग करे, तो उसे अनुदेशन को आगे बढ़ाने और उसमें आवश्यक सुधार लाने में आसानी रहती है। किसी पाठ को पढ़ाने से पूर्व यह जान लेना आवश्यक होता है कि छात्रों को क्या आता है ? अथवा उनका प्रारम्भिक व्यवहार क्या है ? इन प्रश्नों का उत्तर शिक्षक छात्रों का मूल्यांकन करके ही दे सकता है तथा इस प्रकार के मूल्यांकन के द्वारा प्राप्त परिणामों को के आधार बनाकर किया गया अनुदेशन ही सहज तथा सुव्यवस्थित होता है। अनुदेशन के दौरान भी मूल्यांकन के द्वारा शिक्षक यह जानने की चेष्टा करता है कि उसके द्वारा किया गया प्रयास व्यर्थ तो नहीं हो रहा है अर्थात् जो कुछ भी वह पढ़ा रहा है, वह बालकों की समझ में आ भी रहा है अथवा नहीं। आवश्यकता पड़ने पर वह समझ न आने वाले पाठ्य-स्थलों की पुनरावृत्ति करता है, अथवा अपने पढ़ाने के ढंग में आवश्यक परिवर्तन लाता है। कक्षा में अनुशासनहीनता के कारण अनुदेशन की प्रक्रिया में जो गतिरोध उत्पन्न होता है, उसका निदान भी शिक्षकों को मूल्यांकन के द्वारा करता हुआ देखा गया है। शोर मचाने वाले, पढ़ने की ओर ध्यान न देने वाले तथा अपने को अधिक बुद्धिमान समझने वाले उद्यमी छात्रों को अनुशासित करने के लिए शिक्षक प्रायः ऐसे प्रश्न करते हैं, जिनका सामान्यतः वे उत्तर नहीं दे पाते हैं। मूल्यांकन द्वारा इस प्रकार परोक्ष रूप से प्रताड़ित छात्र प्रायः अनुशासित हो जाता है तथा इस प्रकार अनुदेशन-प्रवाह में उत्पन्न गतिरोध हल हो जाता है।
2. स्कूल संचालन में सहायता प्रदान करना- छात्रों का मूल्यांकन करके स्कूल के प्रशासक अनेक प्रकार से प्रशासन को सुनियोजित करते हैं। प्रत्येक सत्र के शुरू में अथवा कभी-कभी सत्र के बीच भी अनेकों छात्र विद्यालय में प्रवेश पाने के लिए प्रयत्न करते हैं, किन्तु विद्यालयों में सीमित स्थान होने के कारण इनमें से केवल कुछ ही छात्रों को प्रवेश दिया जा सकता है। यह छात्र किस प्रकार चुने जाएँ ? इस समस्या का निराकरण प्रवेश परीक्षण तथा साक्षात्कार की सहायता से करते हैं। अभिभावकों का स्थानान्तरण हो जाने पर पुराने स्कूल का मूल्यांकन पत्र ही नए स्कूल में प्रवेश पाने के लिए सहायक होता है। स्कूल में मेधावी तथा सामान्य विद्यार्थियों के लिए अलग-अलग शिक्षण व्यवस्था करने के लिए भी प्रशासक मूल्यांकन को ही आधार बनाते हैं। इसी के आधार पर ही वार्षिक उत्सव में कुछ पारितोषिक मेधावी छात्रों को दिए जाते हैं। उपचारी अनुदेशन हेतु योजना छात्रों के मूल्यांकन की सहायता से ही बनाई जाती है। छात्रों को एक कक्षा से अगली कक्षा में मूल्यांकन के आधार पर ही पदोन्नति दी जाती है। इतना ही नहीं सरकार से प्राप्त अनुदान का औचित्य प्रतिपादन भी विद्यालयी-अधिकारी मूल्यांकन के द्वारा प्राप्त परिणामों के सम्बन्ध में करते हैं।
3. शैक्षणिक तथा व्यावसायिक निर्देशन में सहायता प्रदान करना- छात्रों को शिक्षा तथा व्यवसाय से सम्बन्धित निर्देश देने के लिए उनका मूल्यांकन किया जाता है। छात्र की अधिगम क्षमता, बुद्धि, रुचि की जाँच परीक्षणों के द्वारा करने के बाद हो इस प्रकार का निर्देश देना सम्भव होता है। विभिन्न मनोविज्ञान केन्द्रों तथा निर्देशन सेवाओं के द्वारा स्कूल इस कार्य का सम्पादन करते हैं। अतः विद्यालय में छात्रों को ऐसे विषय चुनने में जो आगे चलकर उनके जीवन निर्माण में सहायक सिद्ध होंगे, मूल्यांकन शैक्षणिक तथा व्यावसायिक निर्देश के माध्यम से सहायता करता है।
4. अधिगम के लिए प्रेरणा प्रदान करना- यदि छात्रों की उन्नति को देखने के लिए समय-समय पर किसी प्रकार की जाँच न की जाए तो यह आशा करनी चाहिए कि वह अपनी क्षमता के अनुसार विभिन्न विषयों, कौशल आदि को सीखते चले जाएँगे, परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं होता है। प्रायः यह देखा गया है कि किसी भी प्रकार के मूल्यांकन के बिना केवल कुछ ही छात्र पूरी लगन से सीखने का प्रयत्न करते हैं, परन्तु यदि छात्रों को यह ज्ञात हो जाए कि जो कुछ वह सीख रहे हैं, उसका निकट भविष्य में मूल्यांकन होने वाला है तो अधिकांश समस्त छात्र पूरी कोशिश करके स्कूल में सिखाई जाने वाली बातों को सीखते हैं। इतना ही नहीं छात्रों के अधिगम का स्तर तथा प्रकार का निर्धारण भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मूल्यांकन के प्रकार तथा स्तर पर निर्भर होता है। इसी कारण प्रतियोगिता परीक्षाओं को उत्तीर्ण करने हेतु छात्रों को सामान्यतः परीक्षाओं की अपेक्षा अधिक परिश्रम तथा तैयारी करनी पड़ती है।
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