शिक्षाशास्त्र / Education

शिक्षा मनोविज्ञान की प्रयोगात्मक विधि | प्रयोगात्मक विधि के गुण या विशेषताएं | प्रयोगात्मक विधि के दोष एवं कमियां

शिक्षा मनोविज्ञान की प्रयोगात्मक विधि के विषय में आप क्या जानते हैं? इसकी विशेषतायें और गुण-दोष पर प्रकाश डालिये।

प्रयोगात्मक विधि एक वैज्ञानिक विधि है। इस विधि से प्राप्त परिणाम पूर्णतया वस्तुनिष्ठ अर्थात् आत्मनिष्ठता से परे माने जाते हैं। प्रयोग का अर्थ भी इसी ओर संकेत करता है। मानव मस्तिष्क में उपजे काल्पनिक विचार को सही / गलत सिद्ध करने के लिए उसे करके देखना और तथ्यों का पता लगाना ही प्रयोग है। अंग्रेजी शब्दकोश के अनुसार, ‘

इस प्रकार प्रयोगात्मक विधि एक प्रकार की नियन्त्रित निरीक्षण विधि है। इस विधि मे प्रयोगकर्ता अपने द्वारा पूर्व निर्धारित दशाओं का या वातावरण में मानव व्यवहार का अध्ययन करता है। मनोवैज्ञानिकों ने इस विधि का प्रयोग अन्य प्राणियों जैसे चूहो, बिल्लियों आदि के व्यवहार के अध्ययन में भी किया है।

मनोविज्ञान में विधि का सर्वप्रथम महोदय द्वारा 1879 ई. में – जर्मनी के विज्ञप्ति के क्षेत्र में इसर्पित की गयी प्रथम मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला से माना जाता है। इस विधि में मनोवैज्ञानिक समस्याओं को सुलझाने के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया जाता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह तात्पर्य है कि अध्ययन का प्रत्येक पद युक्तिसंगत, तार्किक एवं वस्तुनिष्ठ हो तथा इसके परिणामों का सत्यापन किया जा सके।

प्रयोग विधि के सोपान

वैज्ञानिक प्रयोगों में निम्नलिखित सोपानों का अनुसरण करना होता है –

  1. समस्या या समस्या का चयन
  2. परिकल्पना का निर्माण
  3. प्रयोग अभिकल्प
  4. प्रतिदर्श या न्यादर्श का चयन
  5. वास्तविक प्रयोग एवं प्रदत्तों का संकलन
  6. प्रदत्तों का विश्लेषण
  7. निष्कर्षों की व्याख्या एवं नियमीकरण

मनोवैज्ञानिक प्रयोगों एवं अनुसंधानों में भी इन्ही उपर्युक्त सोपानों का अनुकरण किया जाता है।

मनोवैज्ञानिक प्रयोग के तीन प्रमुख बिन्दु होते हैं प्रयोज्य समस्या एवं प्रयोगकर्ता या अध्ययन करने वाला। प्रयोग विधि के उपर्युक्त सोपानों का अनुसरण इस प्रकार किया जाता है, सर्वप्रथम अध्ययन कर्ता के मस्तिष्क में कोई समस्या या विचार उत्पन्न होता है। अथवा वह अध्ययन हेतु किसी समस्या का चयन करता है। इस समस्या के सम्भावित हल के रूप में वह अपने पूर्व अनुभवों के आधार पर किसी परिकल्पना का निर्माण करता है। इस परिकल्पना की सत्यता की जांच के लिए प्रयोग की एक रूपरेखा या अधिकल्प का नियोजन किया जाता है। अभिकल्प के आधार पर प्रतिदर्श का चयन तथा प्रदत्तों का संकलन करना होता है। मनोवैज्ञानिक प्रयोगों में सामान्यतया प्रयोज्य कोई एक व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह होता है। प्रयोज्य पर प्रयोग करके प्रदत्तों का संकलन किया जाता है। अध्ययनकर्ता द्वारा प्रयोग प्रारम्भ करने से पूर्व प्रयोज्य को प्रयोग के उद्देश्यों एवं क्रिया विधि के सम्बन्ध में स्पष्ट रूप से समझा दिया जाता है जिससे वह प्रयोग एवं उसके उपकरणों से परिचित हो जाता है। तत्पश्चात् प्रश्नावली, अनुसूची, स्तरमापनी आदि किसी प्रयुक्त किये गये परीक्षण के माध्यम से प्रयोज्य की प्रतिक्रियाओं (वांछित जानकारियों) को संकलित किया जाता है। परीक्षण के दौरान वातावरण एवं प्रयोज्य को प्रभावित करने वाले अन्य कारकों को नियन्त्रित रखा जाता है।

परीक्षण से प्राप्त सूचनाओं को संकलित करके उनका अंकन एवं विश्लेषण किया जाता हैं इस प्रकार अध्ययनकर्ता किसी परिणाम पर पहुंचता है। प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर उसके द्वारा निर्मित परिकल्पना की जांच की जाती है। इस जांच में या तो परिकल्पना की पुष्टि होती है अथवा वह निरस्त हो जाती है। इस दोनों स्थितियों में अध्ययनकर्ता एक नैश्चित परिणाम पर पहुंचता है। शिक्षा मनोविज्ञान में इस विधि का महत्त्वपूर्ण स्थान है। थार्नडाइक, पवलाव, स्किनर, कोहलर आदि मनोवैज्ञानिकों ने इस विधि का प्रयोग करके ही शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।

प्रयोगात्मक विधि के गुण या विशेषताएं

1. वैज्ञानिक विधि यह विधि पूर्णतया वैज्ञानिक विधि है। इसमें कल्पना या अनुमानों का सहारा नहीं लिया जाता है। अतः इस विधि से एकत्रित किये गये तथ्य एवं आंकड़े सही होते हैं।

2. निष्पक्षता इस विधि में अन्य विधियों की तुलना में पक्षपात की सम्भावना बहुत ही कम या नगण्य होती है।

3. निष्कर्षो की विश्वसनीयता इस विधि से प्राप्त निष्कर्ष सत्य एवं विश्वसनीय होते हैं. तथा निष्कर्षो की सत्यता की जांच भी की जा सकती है।

4. शैक्षिक समस्याओं के समाधान हेतु उपयोगी इस विधि का प्रयोग किसी भी शिक्षक द्वारा किसी भी विद्यालय में किया जा सकता है तथा इसके निष्कर्षों के आधार पर शिक्षा सम्बन्धी अनेक समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।

5. उपयोगी तथ्यों एवं नवीन ज्ञान की प्राप्ति इस विधि में नवीन ज्ञान की प्राप्ति सम्भव होती है तथा कुछ ऐसे तथ्यों का पता लग जाता है जो सभी परिस्थितियों में समान होते हैं तथा भविष्य के लिए अति उपयोगी होते हैं।

क्रो एवं क्रो के अनुसार, “प्रयोगात्मक विधि ने अनेक नवीन एवं उपयोगी तथ्यों पर प्रकाश डाला है, जैसे- शिक्षण हेतु किन उपयोगी विधियों को प्रयोग करना चाहिए? कक्षा में छात्रों की अधिकतम संख्या कितनी होनी चाहिए? पाठ्यक्रम का निर्माण किन सिद्धान्तों के आधार पर किया जाना चाहिए? छात्रों के सही मूल्यांकन हेतु किन विधियों को अपनाना चाहिए? आदि।”

6. सभी विषयों के लिए उपयोगी प्राकृतिक विज्ञानों के साथ-साथ इस विधि का प्रयोग सामाजिक विज्ञानों एवं भावनाओं के अध्ययन में भी सफलतापूर्वक किया जा सकता है।

प्रयोगात्मक विधि के दोष एवं कमियां

उपर्युक्त विशेषताओं एवं गुणों से युक्त होते हुए भी प्रयोगात्मक विधि में कुछ कमियां भी पाई जाती है जो इसके दोष हैं। इस विधि के कुछ दोष निम्नलिखित हैं-

1. प्रयोग विधि में नियन्त्रित वातावरण एक आवश्यक शर्त हैं किन्तु मनोवैज्ञानिक अध्ययनों में वातावरण पर पूर्ण नियन्त्रण रख पाना कभी भी सम्भव नहीं होता है। यह शर्त केवल विज्ञान सम्बन्धी प्रयोगों में ही सम्भव हो पाती है।

2. भौतिक वस्तुओं के साथ किये गये प्रयोगों परिणाम तो सत्य एवं विश्वसनीय होते हैं किन्तु मनुष्य एवं अन्य प्राणियों के व्यवहार अत्यधिक परिवर्तनशील होने के कारण उन पर किये गये प्रयोगों के परिणामों पर पूर्ण विश्वास नहीं किया जा सकता है। सामान्यतया कृत्रिम परिस्थितियों का निर्णय सम्भव नहीं होता है।

3. मनोवैज्ञानिक प्रयोगों में अधिकांश प्रयोज्यों की प्रयोग के प्रति कोई रूचि नहीं होती है तथा वे अस्वाभाविक या दिखावटी व्यवहार करने लगते हैं। वे प्रायः अध्ययनकर्ता को सहयोग भी नहीं प्रदान करते हैं।

4. प्रयोज्य की मानसिक दशा का ज्ञान बहुत कठिन होता है।

5. प्रयोज्य की आन्तरिक दशाओं पर नियन्त्रण एक असम्भव कार्य होता है। उसकी मानसिक दशा को प्रभावित करने वाले कारकों को जानना एवं उन पर पूर्ण नियन्त्रण कर पाना अध्ययनकर्ता के लिए दुःसाध्य होता है। अतः ऐसी स्थिति में किये गये प्रयोगों से प्राप्त निष्कर्षों पर विश्वास नहीं किया जा सकता है।

6. मनोविज्ञान के क्षेत्र में सभी प्रयोग प्रमापीकृत परीक्षणों एवं उपकरणों के माध्यम से किये जाने सम्भव नहीं होते हैं।

7. प्रयोगकर्ता के अकुशल होने पर इस विधि में गलत परिणामों की सम्भावना बहुत अधिक रहती है।

8. मनुष्यों पर सभी प्रकार के प्रयोग सम्भव नहीं होते हैं। अतः अधिकांश मनोवैज्ञानिक प्रयोग पशुओं (चूहे, बिल्ली, कबूतर आदि) पर किये जाते हैं तथा उनसे प्राप्त निष्कर्षों को मनुष्यों पर लागू करने का प्रयास किया जाता है जो उचित नहीं है।

अनेक दोषों के होते हुए भी प्रयोगात्मक विधि अधिक वैज्ञानिक है तथा सामाजिक विज्ञानों, विशेष रूप से मनोविज्ञान के अध्ययन में इस विधि का महत्त्वपूर्ण स्थान है तथा इसे अनुसंधान की सर्वोत्तम विधि माना जाता है।

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Anjali Yadav

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