श्रव्य साधन के रूप में रेडियों की उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
रेडियों एक महत्वपूर्ण श्रव्य साधन है जिसमें बोलने वाले को देखा नहीं जा सकता परन्तु उसके प्रभावशाली वक्ता को सुना जाता है यद्यपि रेडियों तक मनोरंजन का साधन रहा है परन्तु यह शैक्षणिक कार्यक्रमों के प्रसारण का एक बहुत बड़ा साधन रहा है। नेट से पूर्व यह श्रव्य साधन ज्ञान के विस्तार का परिचायक रहा है।
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श्रव्य साधन के रूप में रेडियों की उपयोगिता
रेडियों की उपयोगिता / लाभ का वर्णन इस प्रकार है-
(1) आधुनिक ज्ञान प्रदान करना:- रेडियों की सहायता से हमारे जीवन से सम्बन्धित आधुनिकतम ज्ञान दिया जा सकता है। यह समाज में घटित घटनाओं को प्रचारित करने में सहयोग देता है।
(2) कक्षीय अध्यापन की व्यापकता:- रेडियों प्रसारण कक्षीय अध्यापन की व्यापकता प्रदान करता है और छात्रों के दृष्टिकोण को व्यापक और उदार बनाने में सहायक होता है। यह छात्रों को वातावरण के प्रति सजग और सहानुभूति का प्रसारक बनता है।
(3) सह सम्बन्ध के लाभ:- रेडियों से राजनीति विज्ञान से सम्बन्धित ज्ञान एवं कुशलताओं को सामाजिक आवश्यकताओं तथा वातावरण के साथ सम्बन्धित करना संभव होता है अर्थात् पाठ्य पुस्तक तथा पाठ्यक्रम में निर्धारित प्रकरणों को नवीनतम सन्दर्भों में पढ़ा तथा समझा जा सकता है।
( 4 ) प्रत्यक्ष सम्बन्ध साधनों में समर्थ:- संसार के किसी क्षेत्र से महत्वपूर्ण व्यक्तियों के साथ तुरन्त सम्बन्ध उनके द्वारा प्राप्त ज्ञान को रेडियों के द्वारा श्रोताओं तक पहुँच जा सकता है।
(5) भाषा और उच्चारण रीति को सुधारना:- रेडियों शिक्षा के द्वारा भाषा, भाषण, उच्चारण रीति को सुधारा जा सकता है। रेडियों-ब्रॉडकास्ट, निर्णय की भावना, पक्षपात और आलोचनात्मक विचार का विकास करता है। यह छात्र के मानसिक ज्ञान के विकास में सहायता करते हैं।
(6) सम्बन्धित विषय के विशेषज्ञों के साथ वार्ता:- रेडियों द्वारा अनेक अवसरों पर शिक्षा विभाग से जुड़े हुए इनके बुद्धिजीवी लोगों के साथ वार्ता का प्रसारण करता है। आकाशवाणी द्वारा विभिन्न विषयों पर विचार व्यक्त करने वाले अपने अपने विषय पर विचार व्यक्त करने वाले अपने अपने विषय के विशेषज्ञ होते हैं। इस प्रकार रेडियों के माध्यम से विद्यार्थियों को विशेषज्ञों तथा विद्वानों के विचार जानने का अवसर प्रदान किया जा सकता है।
(7) रेडियों प्रसारण का विस्तृत क्षेत्र:- पढ़ने की अपेक्षा सुनना अधिक सुबोधत या प्रभावशाली होता है। रेडियों से हो रहे तत्कालिक प्रसारण में छात्रों की विशेष रूचि होती है। स्वतन्त्रता दिवस तथा लोकतन्त्र दिवस के कार्यक्रमों का तात्कालिक विवरण सुनना पढ़ने की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली और रोचक होता है। रेडियों का श्रवण विस्तार असीमित होता है। रेडियों पर मानवीय आवाज की गति 3,00000 किमी प्रति सैकेण्ड होती है, यह एक सैकेण्ड में संसार का तीस बार चक्कर लगाती है। इसका परिणाम यह होता है कि सम्पूर्ण पृथ्वी पर व्यक्ति कहीं भी इसका प्रसारण सुन सकता है।
( 8 ) अतिरिक्त समय का सदुपयोगः- छात्र के पास अध्ययन के पश्चात् बचा हुआ अतिरिक्त समय, अपने ज्ञान के विस्तार में सहायक बन सकता है। रेडियों खाली समय की क्रियाओं के लिए एक महत्वपूर्ण माध्यम की तरह प्रकट होता है।
(9) पुस्तकों का अस्थायी प्रतिस्थापन:- रेडियों पुस्तकों को एक अस्थायी माप पर प्रतिस्थापित कर सकता है। रेडियों पर अनेक बार किसी विषय विशेष का विशेष प्रसारण होता है जिसको छात्र ध्यानपूर्वक सुनकर उस विषय के सम्बन्ध में नवीन ज्ञान के साथ जुड़कर अपने ज्ञान को बढ़ा सकते है।
( 10 ) अन्य सहायक क्रियाओं में मददगार:- रेडियों प्रसारण कक्षीय अध्यापन को संजीवता सरलता और रोचकता प्रदान करता है, रेडियों प्रसारण पाठ्यक्रम के पूरक भी हो सकते हैं और परिवर्द्धक भी। रेडियों प्रसारण की विभिन्न विधियों गीत नाटक, फिल्म आदि से सम्बन्धित विषय को अधिक प्रभावशाली बनाया जा सकता है।
(11) सामूहिक शिक्षण:- रेडियों सामूहिक शिक्षण का भी एक महत्वपूर्ण साधन है उसके माध्यम से एक ही समय में और बहुत कम खर्च में छात्रों के एक बड़े समूह को शिक्षण लाभ प्रदान कर सकता है।
( 12 ) समसामयिक घटनाओं के साथ जोड़ना:- रेडियों छात्रों को समसामयिक घटनाओं के साथ भी जोड़ने में सहायक होता है। यह समाज में राजनीतिक जीवन में चल रही नवीनतम घटनाओं के बारे में समाचारों का प्रसारण कर राजनीति में घटित हो रही घटनाओं के बारे में सूचित करने में सहायक बनता है। रेडियों विशेष रूप से श्रोताओं के दिमाग में भावनाओं का प्रजातांत्रिक बदलाव लाता है। रेडियों प्रोग्राम की प्रजातान्त्रिक भावना बहुत महत्वपूर्ण है और व्यवहार के विकास में सहायक है।
(13) पाठ को अधिक प्रभावशाली बनाना:- रेडियों पर प्रसारित विभिन्न कार्यक्रम सामाजिक शिक्षा के अध्यापन को ज्यादा प्रभावशाली रूचिपूर्ण और प्रभावी स्वरूप प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए यदि हम जंगल के प्रयोग पढ़ रहे है तो जंगल पर प्रसारित रेडियों का कार्यक्रम उसे ज्यादा प्रभावशाली बना देगा।
(14) कई अध्यापन गुणों को प्रदान करना:- रेडियों कई अध्यापन गुण प्रधान करता है जैसे यथार्थवाद, प्रत्यक्षवाद, प्रमाणिकता आदि। रेडियों की उपयोगिता का वर्णन करते हुए श्री के. एन. श्रीवास्तव में लिखा है कि ‘यह अध्यापन प्रक्रिया और शैक्षणिक अभ्यास में एक सम्भावित बल बनाने का वचन देता है।
रेडियों प्रसारण की सीमाएँ
इसमें कोई सन्देह नहीं कि रेडियों एक प्रभावशाली तथा सशक्त शिक्षण सहायक साधन है। रेडियों की उपर्युक्त उपयोगिताए आकाशवाणी से प्रसारित कार्यक्रमों पर निर्भर करती है तथापि इस श्रव्य साधन की भी अपनी कुछ सीमाएँ अथवा दोष है जिनका विवरण इस प्रकार है-
(i) एक तरफ का संचार:- रेडियों प्रसारण एक तरफ का संचार है। आप प्रसारणकत्ता के साथ संवाद नहीं कर सकते, प्रसारण के दौरान आपके मन में उठी शंकाओं का समाधान नहीं कर पातें, न ही अपने मन में उठे हुए प्रश्नों को पूछ सकते हैं। आप प्रसारण के दौरान भ्रमों को दूर नहीं कर सकते हैं जब प्रसारण खत्म होता है तो अध्यापक केवल आपके समक्ष होता है और उससे उन प्रश्नों और शंकाओं पर संवाद किया जाता है।
(ii) व्यक्तिगत रूचि और पसंद के लिए स्थान नहीं:- रेडियों प्रसारण व्यक्तिगत रूचियों और पसंद को प्राथमिकता नहीं देता है, इसकी समय सारणी और प्रसारण पूर्व निर्धारित होते हैं। रेडियों प्रसारण में व्यवहार की एकरूपता है जो अमनोवैज्ञानिक है। (iii) छात्र के पाठ्यक्रम के अनुरूप प्रसारण नहीं:- रेडियों को प्रसारण बहुविषयक होता है, इसके प्रसारण की रूपरेखा छात्र के पाठ्यक्रम के अनुरूप नहीं होती है। यदि रेडियों के प्रसारण से पूर्व छात्र के पाठ्यक्रम के अनुरूप विषयों के विशेषज्ञों के साथ प्रसारण किया जाये तो यह अधिक सुबोध और प्रभावशाली रहेगा। इसके लिए यह आवश्यक है कि प्रसारण से पूर्व पाठ्यक्रम को ध्यान में रखा जावे, विषय विशेषज्ञों के साथ चर्चा कर सम्बन्धित विषय पर प्रसारण किया जावे।
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