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सामाजिक गतिशीलता से आप क्या समझते हैं ? इसके प्रकार एवं कारण

सामाजिक गतिशीलता से आप क्या समझते हैं ? इसके प्रकार एवं कारण
सामाजिक गतिशीलता से आप क्या समझते हैं ? इसके प्रकार एवं कारण

सामाजिक गतिशीलता से आप क्या समझते हैं ? इसके प्रकारों एवं कारणों का वर्णन कीजिए। अथवा सामाजिक गतिशीलता क्या है ? वर्तमान समय में सामाजिक गतिशीलता के लिए कौन-कौन से प्रमुख कारक उत्तरदायी हैं ?

सामाजिक गतिशीलता का अर्थ (Meaning of Social Mobility)

सामाजिक गतिशीलता का सम्बन्ध मनुष्यों की स्थिति’ (Status) में होने वाले परिवर्तन से है। स्थिति सामाजिक प्रतिष्ठा (Social Prestige) का मापदण्ड है। प्रत्येक व्यक्ति एवं प्रत्येक समूह अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिये अपनी सामाजिक स्थिति (Social Status) को ऊँचा करने का प्रयत्न करता है। स्थिति को ऊँचा करना स्थिति की गतिशीलता है किन्तु प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा सदैव पूर्ण नहीं होती। उसकी स्थिति को उठाने-गिराने में अनेक बाह्य कारक भी योगदान करते हैं। इन कारणों के प्रभाव से व्यक्ति की स्थिति उठने के बजाय गिर भी सकती है। सामाजिक जीवन में ये उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। इसके अतिरिक्त समाज कुछ ऐसे समूहों में विभाजित रहता है जो एक-दूसरे के समान सामाजिक स्थिति रखते हैं या समान समझे जाते हैं। व्यवसाय बदलने से या जीवन के एक क्षेत्र से दूसरे में क्रियाशील हो जाने से भी मनुष्यों के सामाजिक स्थान बदल जाते हैं इस प्रकार अपनी वर्तमान सामाजिक स्थिति से दूसरी स्थिति में पहुँच जाना ही स्थिति गतिशीलता है, चाहे परिवर्तन की स्थिति ऊँची हो या नीची अथवा समान प्रत्येक समाज में अपनी भूमिकाओं और सामाजिक मूल्यांकन के आधार पर समाज के सदस्य ऊँची-नीची स्थितियों में विभाजित हो जाते हैं। थोड़ी-बहुत मात्रा में प्रत्येक समूह के सदस्यों की स्थिति में परिवर्तन होता रहता है। मुक्त संस्तरण (Open Stratification) में स्थिति परिवर्तन और अधिक और शीघ्र होता है जबकि बन्द समाजों में स्थितियों का परिवर्तन कम और देर से होता है।

सामाजिक गतिशीलता की परिभाषा (Definition of Social Mobility)

सामाजिक गतिशीलता को निम्न प्रकार परिभाषित किया जा सकता है-

(1) बोगार्ड्स – “सामाजिक पद में कोई भी परिवर्तन सामाजिक गतिशीलता है।”

(2) फिचर – “सामाजिक गतिशीलता व्यक्ति समूह या श्रेणी के एक सामाजिक दा स्तर से दूसरे में गति करने को कहते हैं।”

(3) सोरोकिन- “सामाजिक गतिशीलता का अर्थ सामाजिक समूहों तथा स्तरों में किसी व्यक्ति का एक सामाजिक स्थिति से दूसरी सामाजिक स्थिति में पहुँच जाना है।”

सामाजिक गतिशीलता की प्रकृति (Nature of Social Mobility)

सामाजिक गतिशीलता की प्रकृति निम्नलिखित है-

  1. सामाजिक गतिशीलता में व्यक्ति एक सामाजिक स्थिति से दूसरी स्थिति में पहुँच जाता है।
  2. इसमें मुक्त संस्तरण के तत्त्व पाये जाते हैं।
  3. सामाजिक गतिशीलता की प्रकृति प्रस्थिति के उतार-चढ़ाव से सम्बन्धित है।
  4. सामाजिक गतिशीलता में विभिन्न समूहों की गतिशीलता की दर असमान रहती है।
  5. सामाजिक गतिशीलता की प्रकृति शिक्षा का प्रसार तथा ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि करना है।
  6. सामाजिक गतिशीलता दो तत्त्वों पर मूलतः आधारित होती है ये तत्त्व उदग्र एवं क्षैतिज गतिशीलता से सम्बन्धित हैं।
  7. सामाजिक गतिशीलता की प्रकृति व्यक्ति के उच्च या निम्न स्थिति में पहुंचने की होती है। इसमें व्यक्ति या तो ऊँची स्थिति प्राप्त कर लेता है अथवा नीची स्थिति में चला जाता है।
  8. सामाजिक गतिशीलता आकांक्षा, आकर्षण तथा प्रेरणा पर आधारित होती है।

सामाजिक गतिशीलता के स्वरूप अथवा प्रकार (Types of Social Mobility )

आन्द्रे बेतली (Andre Betellie) लिखता है, “सामाजिक गतिशीलता का शब्द विस्तृत अर्थ रखता है और उदग्र तथा क्षैतिज गतिशीलता को व्यक्त कर सकता है।” इस प्रकार सामाजिक गतिशीलता निम्नलिखित दो प्रकार की होती है- (i) उदग्र गतिशीलता (Vertical Mobility), (ii) क्षैतिज गतिशीलता (Horizontal Mobility)।

(i) उदग्र गतिशीलता (Vertical Mobility) – उदग्र गतिशीलता का अभिप्राय स्थितियों के उतार-चढ़ाव या श्रेणीक्रम से है। जब एक व्यक्ति अपनी वर्तमान सामाजिक स्थिति से ऊँची या नीची स्थिति में चला जाता है तो इसे उदग्र गतिशीलता कहा जाता है। सामाजिक संस्तरण में स्थितियों का एक श्रेणीक्रम या सोपान क्रम होता है। वर्गों या जातियों अथवा स्थिति समूहों की सामाजिक प्रतिष्ठा एक-दूसरे की तुलना में कम या अधिक होती है। ऐसी ऊँची-नीची स्थिति वाले मानव समूहों में यदि व्यक्ति का परिवर्तन होता है तो या तो वह ऊँची स्थिति प्राप्त कर लेता है अथवा नीची स्थिति में चला जाता है। इस वर्ग-परिवर्तन से उसकी प्रतिष्ठा में अन्तर पड़ जाता है। इस प्रकार ऊँची-नीची स्थितियों वाले समूहों में आना-जाना उदग्र गतिशीलता कहलाती है। उदग्र गतिशीलता की परिभाषा करते हुए सोरोकिन (Sorokin) लिखता है, “उदग्र गतिशीलता से मेरा अभिप्राय किसी व्यक्ति (अथवा सामाजिक वस्तु) के एक सामाजिक स्तर से दूसरे में परिवर्तन होने में उत्पन्न होने वाले सम्बन्धों से है।

उदग्र गतिशीलता के निम्नलिखित दो प्रकार होते हैं-

(1) आरोही गतिशीलता (Ascending Mobility)- आरोही गतिशीलता वह है जब कोई व्यक्ति नीची स्थिति वाले समूह को छोड़कर ऊँची स्थिति वाले समूह में प्रवेश करता है। आरोही गतिशीलता सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि करती है। यदि कोई क्लर्क सुपरिण्टेण्डेण्ट हो जाता है तो यह आरोही गतिशीलता कहलाती है। यदि कोई संसद सदस्य केन्द्रीय मन्त्री बन जाये, रेढ़ी पर सामान बेचने वाला बाजार की दुकान में बैठने लगे अथवा कोई दुकानदार उद्योगपति हो जाये तो यह आरोही गतिशीलता के उदाहरण होंगे।

(2) अवरोही गतिशीलता (Descending Mobility)- अवरोही आरोही गतिशीलता अवरोही गतिशीलता के विपरीत है। जब व्यक्ति का परिवर्तन उच्च स्थिति से निम्न स्थिति की ओर होता है तो यह कहलाती है। अवरोही गतिशीलता से सामाजिक प्रतिष्ठा कम हो जाती है। धनी से निर्धन हो जाना, विधायक से केवल वोटर रह जाना, अफसर से क्लर्क और प्रधानाचार्य से सहायक अध्यापक बन जाना इत्यादि अवरोही गतिशीलता के उदाहरण हैं।

(ii) क्षैतिज गतिशीलता (Horizontal Mobility)- क्षैतिज गतिशीलता को समतल गतिशीलता भी कहा जाता है। समाज में लोगों का विभाजन केवल ऊँची नीची स्थितियों वाले समूहों में नहीं होता। कुछ समूह समान स्थिति में होते हैं और कुछ ऊँची-नीची स्थिति में वकीलों का वर्ग या प्रोफेसरों अथवा डॉक्टर के वर्ग समान सामाजिक स्थिति में होते हैं। इस प्रकार के समान स्थिति वाले समूहों में व्यक्ति का परिवर्तन होना समतल तथा क्षैतिज गतिशीलता कहलाती है । समान वेतन या आय तथा समान सामाजिक सम्मान प्रदान करने वाले एक पद में चले जाना क्षैतिज गतिशीलता है। सेना का कोई पदाधिकारी यदि बदलकर समान श्रेणीक्रम में प्रशासनिक पद पर नियुक्त कर दिया जाये, अथवा किसी कृषि मन्त्रालय के सचिव को वित्त विभाग का सचिव बना दिया जाये तो यह क्षैतिज गतिशीलता कही जायेगी। क्षैतिज गतिशीलता में व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा, अधिकार अथवा सुविधा में कोई अन्तर नहीं पड़ता।

सामाजिक गतिशीलता के कारण (Causes of Social Mobility)

सामाजिक वसायिक गतिशीलता के कारणों का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है-

(1) प्रौद्योगिक विकास एवं वैज्ञानिक आविष्कार (Technological Development and Scientific Inventions) – इस बात से सभी अवगत हैं कि समाज में प्रौद्योगिक विकास के साथ-साथ गतिशीलता में वृद्धि होती है। आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है। बदलती हुई सामाजिक परिस्थितियों के अनुरूप नवीन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये प्रौद्योगिक आविष्कारों और वैज्ञानिक खोजों का सहारा लिया जाता है। उदाहरण के लिये मशीनों से उत्पादन आरम्भ किया जा सकता है। इसके परिणामस्वरूप ऐसी मशीनों का आविष्कार होगा जो अधिक उत्पादन में सहायक होगा। वैज्ञानिक आविष्कार एवं प्रौद्योगिक विकास, विकसित दशाओं और विकासशील देशों में अधिक देखने को मिलता है। विकासशील देशों में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिक आविष्कारों के फलस्वरूप मजदूर बेकार न हो जायें। इस सबका परिणाम यह होता है कि व्यावसायिक गतिशीलता में वृद्धि होती है। यातायात एवं परिवहन के साधनों में वृद्धि के फलस्वरूप व्यावसायिक गतिशीलता का उद्भव होता है।

(2) शिक्षा का प्रसार तथा ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि (Extension of Education and Growth of Knowledge and Skills) – सामान्य विकसित एवं विकासशील देशों में शिक्षा का प्रसार होता है। शिक्षा के प्रसार के परिणामस्वरूप, ज्ञान और कौशल में वृद्धि हो जाती है। ज्ञान एवं कौशल में वृद्धि के फलस्वरूप व्यावसायिक और सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि होती है। इस प्रकार की शिक्षा और ज्ञान इसलिये प्रदान किया जाता है, ताकि श्रमिकों में गतिशीलता की वृद्धि हो सके। सामाजिक शिक्षा द्वारा भी श्रमिकों और अन्य प्रौढ़ लोगों के ज्ञान और कौशल में वृद्धि की जाती है। इन सबके फलस्वरूप सामाजिक एवं व्यावहारिक गतिशीलता में वृद्धि होती है।

(3) श्रमिकों का शोषण (Exploitation of Labourers) – विकासशील देशों में और ऐसे देशों में जहाँ उत्पादन के साधनों और वितरण पर समाज का नियन्त्रण स्थापित नहीं हो पाया है, वहाँ श्रमिकों का शोषण होता रहता है। इस शोषण के कारण भी गतिशीलता को बढ़ावा मिलता है। मजदूर एवं किसान जो उत्पादन के लिये उत्तरदायी हैं उच्च वर्ग के लोगों द्वारा अनेक प्रकार से शोषित किये जाते हैं। शोषण से बचने के लिये वे लोग कभी-कभी बदल देते हैं और कभी-कभी स्थान अपने पेशों को भी बदल देते हैं। इन सबके कारण सामाजिक एवं व्यावसायिक गतिशीलता के दर्शन होते हैं।

(4) उच्च पद पाने की इच्छा (Desire of Attaining Higher Status) – व्यावसायिक एवं सामाजिक गतिशीलता में उच्च पद की इच्छा महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। जो लोग नीची स्थिति में हैं वे ऊँचे पद प्राप्त करने के लिये दृढ़ इच्छा से प्रेरित होकर आगे बढ़ते हैं। इस प्रकार उच्च पद पाने की प्रेरणा भी व्यावसायिक एवं सामाजिक गतिशीलता में योगदान देती हैं।

(5) अर्जित गुणों में वृद्धि (Growth of Acquired Traits) – यदि मनुष्य, अर्जित गुणों में वृद्धि करता है तो वह उच्च पद प्राप्त करने का प्रयास करता है। अर्जित गुणों के लोग समाज के विभिन्न पक्षों से सम्बन्धित हो सकते हैं। उदाहरण के लिये यदि भारतवर्ष में कोई बढ़ई का पुत्र एक विशिष्ट योग्यता अर्जित कर लेता है तो वह अपने व्यवसाय में ऊँची स्थिति प्राप्त कर सकता है। सम्भव है कि वह किसी कारखाने में ऊँचा पद प्राप्त कर ले। ऐसी स्थिति में दूसरे वर्ग के लोग भी उसका सम्मान करेंगे। इसका अर्थ यह है कि अर्जित गुणों में वृद्धि के फलस्वरूप व्यावसायिक कुशलता में वृद्धि होती है।

(6) कृषि कार्यों में अधिक जनसंख्या का लगा होना (More Population attached with Agriculture)- यदि किसी देश की जनसंख्या का अधिकांश भाग कृषि कार्य में लगा है तो वह औद्योगीकरण अथवा अन्य प्रकार की रोजगार की सुविधाओं में वृद्धि के होने पर कृषि कार्य को छोड़कर दूसरे पेशों को अपना लेते हैं। इसका प्रमुख कारण होता है, भूमि पर दबाव का बढ़ना। इसका अर्थ यह है कि जनसंख्या की वृद्धि के साथ भूमि पर अधिक लोग आश्रित हो जाते हैं। अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये वे दूसरे पेशों को ग्रहण करते हैं। भारतवर्ष में इस प्रकार की व्यावसायिक गतिशीलता बहुत अधिक देखने को मिलती है।

(7) राजनीतिक परिस्थितियों में परिवर्तन (Change in Political Conditions) – राजनीतिक परिस्थितियों में परिवर्तन के कारण व्यावसायिक और सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि होती है। यदि किसी गुलाम देश को आजादी मिल जाती है और वह विकास के मार्ग में बढ़ता है तो बहुत ऐसे कार्य लोग करने लगते हैं, जो इससे पहले वे नहीं करते थे।

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Anjali Yadav

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