सीखने या अधिगम में अभिप्रेरणा की भूमिका का वर्णन कीजिए।
मानव के प्रत्येक कार्य एवं व्यवहार के पीछे कोई न कोई अभिप्रेरणा अवश्य होती है। अतः मानव जीवन में अभिप्रेरणा का बहुत अधिक महत्त्व है। चूँकि व्यक्ति के प्रत्येक व्यवहार का संचालन अभिप्रेरणा के द्वारा ही होता है इसलिए शिक्षा सीखने के क्षेत्र में अभिप्रेरणा का स्थान सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। मनोवैज्ञानिक गेट्स के अनुसार, सीखने की प्रक्रिया’ में अभिप्रेरक तीन तरह के कार्य करते हैं-
1. व्यवहार को शक्तिशाली बनाना- अभिप्रेरक व्यक्ति के अन्दर शक्ति का विकास करके उसे क्रियाशील बनाता है। अतः कक्षा में अध्यापकों द्वारा सहायक उत्तेजना के रूप में इनका प्रयोग किया जाना लाभदायक होता है। अभिप्रेरणा के द्वारा बालक एक निश्चित दिशा की ओर बढ़ने एवं कार्य करने को बाध्य होते हैं जिसके द्वारा सीखने की क्रिया दृढ़ एवं सुगम होती है। इस प्रकार वांछित व्यवहार की सम्भावना बहुत अधिक बढ़ जाती है।
2. व्यवहार को निश्चित करना- अभिप्रेरक, व्यक्ति को किसी उत्तेजना के प्रति निश्चित प्रतिक्रिया करने के लिए तैयार करते हैं तथा दूसरे व्यवहारों एवं वस्तुओं की अवहेलना करते हैं। उदाहरणार्थ समाचार पत्र के मिलते ही व्यक्ति अपने अन्दर निहित अभिप्रेरणा के अनुसार ही उसके विभिन्न खण्डों को पढ़ते हैं। खेल भावना से अभिप्रेरित व्यक्ति सीधे खेल सम्बन्धी पृष्ठ को पढ़ना चाहता है जबकि बेरोजगार व्यक्ति रोजगार सम्बन्धी विज्ञापन पर पहले ध्यान देता है। इस प्रकार अभिप्रेरणा के माध्यम से ही हमारा व्यवहार निश्चित होता है।
3. व्यवहार का संचालन- अभिप्रेरक, व्यक्ति के व्यवहार को चुनने एवं निश्चित करने के साथ-साथ उसका संचालन भी करते हैं। जब तक कार्य पूर्ण नहीं हो जाता, अभिप्रेरक लक्ष्य की ओर बढ़ने एवं शक्ति लगाने को प्रेरित करते रहते हैं। अभिप्रेरक हमें इस बात का अहसास दिलाते रहते हैं कि कार्य पूर्ण करना आवश्यक है। इस प्रकार अभिप्रेरक हमारी विभिन्न क्रियाओं का संचालन करते हैं।
अभिप्रेरकों के उपर्युक्त कार्यों कक्षा शिक्षण में भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। अध्यापक द्वारा बालकों के अन्दर अभिप्रेरणा उत्पन्न करने पर उनमें निम्नलिखित परिवर्तन स्पष्ट रूप से दिखायी पड़ते हैं- (क) शक्ति संचालन (ख) उत्सुकता (ग) निरन्तरता (घ) लक्ष्य प्राप्ति के लिए बेचैनी (ङ) ध्यान केन्द्रित होना
शिक्षा के क्षेत्र में अभिप्रेरणा के महत्त्व को निम्न रूप में भी व्यक्त किया जा सकता है-
(1) बालकों की शिक्षा उनकी आवश्यकता से सम्बन्धित कर देने पर वह उद्देश्य पूर्ण हो जाता है जिससे बालकों को सीखने की प्रेरणा मिलती है।
(2) सीखने की प्रक्रिया में सीखने की विधियाँ एवं नियम आदि अभिप्रेरक का कार्य करते हैं।
(3) अध्यापकों द्वारा अभिप्रेरणा प्रदान करने से बालकों में शिक्षा के प्रति रूचि उत्पन्न होती है।
(4) प्रशंसा पुरस्कार तथा निन्दा एवं दण्ड आदि अभिप्रेरकों के द्वारा बच्चों के व्यवहार को नियन्त्रित एवं अनुशासित किया जा सकता है।
(5) अभिप्रेरणा के द्वारा विद्यार्थियों में उत्तम चरित्र का निर्माण किया जा सकता है।
(6) अध्यापकों के समुचित निर्देशन द्वारा छात्रों को अच्छा व्यवहार करने के लिए अभिप्रेरित किया जा सकता है।
(7) उच्च एवं पवित्र जीवन लक्ष्य तथा समुचित आकांक्षा स्तर बनाये रखने के लिए शिक्षक बालकों को प्रेरणा प्रदान कर सकता है।
(8) शिक्षकों की अभिप्रेरणा से ही बालक समाजोपयोगी कार्यों को करने को अभिप्रेरित होता है।
इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि उचित अभिप्रेरणा के द्वारा शिक्षा एवं सीखने की प्रक्रिया को सरल एवं तीव्र बनाया जा सकता है।
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