व्यावसायिक अर्थशास्त्र / BUSINESS ECONOMICS

सूक्ष्म तथा व्यापक अर्थशास्त्र की पारस्परिक निर्भरता एवं अन्तर

सूक्ष्म तथा व्यापक अर्थशास्त्र की पारस्परिक निर्भरता एवं अन्तर
सूक्ष्म तथा व्यापक अर्थशास्त्र की पारस्परिक निर्भरता एवं अन्तर

सूक्ष्म तथा व्यापक अर्थशास्त्र की पारस्परिक निर्भरता एवं अन्तर स्पष्ट कीजिए।

सूक्ष्म (व्यष्टि) तथा व्यापक (समष्टि) अर्थशास्त्र में अन्तर (Difference between Micro and Macro Economics)

सूक्ष्म (व्यष्टि) तथा व्यापक (समष्टि) अर्थशास्त्र में प्रमुख अन्तर निम्नलिखित हैं-

(1) सूक्ष्म अर्थशास्त्र में विभिन्न वस्तुओं व सेवाओं की कीमत निर्धारण प्रक्रिया का अध्ययन किया जाता है जबकि व्यापक अर्थशास्त्र में कुल रोजगार, कुल उत्पादन, कुल आय व सामान्य मूल्य स्तर आदि का अध्ययन किया जाता है।

(2) सूक्ष्म अर्थशास्त्र यह बताता है कि किसी वस्तु की कीमत अथवा उसके उत्पादन अथवा उसके उपभोग में क्यों और किस प्रकार परिवर्तन होता है जबकि व्यापक अर्थशास्त्र कुल रोजगार, कुल उत्पादन, कुल उपभोग आदि में विभिन्न समयों में होने वाले परिवर्तनों की व्याख्या करता है।

(3) सूक्ष्म अर्थशास्त्र ‘विशिष्ट’ और व्यापक अर्थशास्त्र ‘सामान्य’ अथवा ‘समग्र’ का अध्ययन करता है।

सूक्ष्म अर्थशास्त्र तथा व्यापक अर्थशास्त्र की पारस्परिक निर्भरता (Interdependence of Micro Economics and Macro Economics)

पूर्व विवेचन से यह निष्कर्ष नहीं निकालना चाहिए किं सूक्ष्म तथा व्यापक अर्थशास्त्र एक-दूसरे से सर्वथा पृथक हैं और परस्पर एक-दूसरे से प्रभावित नहीं होते। वरन् सत्य तो यह है कि दोनों विधियों में परस्पर बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध है और दोनों विधियाँ एक-दूसरे की प्रतियोगी न होकर पूरक हैं। इसके साथ ही साथ, अर्थशास्त्र के विधिवत् अध्ययन के लिए दोनों का ज्ञान परम आवश्यक है। इस तथ्य की पुष्टि कुछ सरल उदाहरणों द्वारा की जा सकती है-

(1) सूक्ष्म अर्थशास्त्र को समझने के लिए व्यापक अर्थशास्त्र का अध्ययन आवश्यक है – माना कि कोई उत्पादक इकाई उत्पादन के विभिन्न उपादानों-श्रम, कच्चा माल, उपकरण आदि को जुटाती है। अब जहाँ तक इन उपादानों के प्रतिफल का प्रश्न है चूँकि ये उपादान एक इकाई विशेष से सम्बन्धित हैं, अतः उनके प्रतिफल का निर्धारण सूक्ष्म अर्थशास्त्र के अन्तर्गत आयेगा, परन्तु वास्तव में इन उपादानों की कीमतें केवल उस उद्योग की माँग के द्वारा निर्धारित नहीं होंगी वरन् समस्त अर्थव्यवस्था की माँग के अनुरूप निर्धारित होंगी। अन्य शब्दों में, इसका अभिप्राय यह हुआ कि व्यक्तिगत इकाइयों की समस्याओं का समाधान प्राप्त करने हेतु हमें सूक्ष्म अर्थशास्त्र का ही नहीं वरन् व्यापक अर्थशास्त्र का भी आश्रय लेना पड़ेगा।

(2) व्यापक अर्थशास्त्र को समझने के लिए सूक्ष्म अर्थशास्त्र का भी अध्ययन आवश्यक है- माना कि किसी देश का तीव्र गति से आर्थिक विकास हो रहा है, फलतः लोगों की आय में वृद्धि होने से लोग अब अधिक मात्रा में वस्तुएँ तथा सेवाएँ खरीदते हैं। इसका सामान्य अभिप्राय यह हुआ कि सभी वस्तुओं की मांग बढ़ेगी। परन्तु वास्तव में सभी वस्तुओं की माँग नहीं बढ़ती, क्योंकि यदि पहले लोग साइकिलों का प्रयोग करते थे तो अब वे मोपेड या स्कूटर खरीदना पसन्द करेंगे। ऐसी दशा में साइकिलों की माँग में वृद्धि न होकर कमी होगी। इस प्रकार एक वस्तु स्थिति जानने के लिए व्यापक अर्थशास्त्र ही पर्याप्त नहीं होगा वरन् सूक्ष्म अर्थशास्त्र का भी सहारा लेना पड़ेगा।

इसलिए कहा जाता है कि सूक्ष्म तथा व्यापक अर्थशास्त्र एक-दूसरे के पूरक हैं, प्रतियोगी नहीं। यही कारण है कि लगभग सभी अर्थशास्त्री एकमत से दोनों को सर्वथा पूरक मानते हैं। प्रो० सेम्युल्सन के शब्दों में, “वास्तव में सूक्ष्म तथा व्यापक अर्थशास्त्र में कोई विरोध नहीं है, दोनों अत्यन्त आवश्यक हैं। यदि आप एक को जानते हैं, दूसरे को नहीं, तो केवल ‘अर्द्ध-शिक्षित हैं।”

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Anjali Yadav

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