सेमिनार से क्या अभिप्राय है? इनका शिक्षण में क्या महत्व होता है।
सेमिनार से अभिप्राय:- सेमिनार शिक्षण के सन्दर्भ में एक लघु शैक्षिक बैठक का स्वरूप कहा जा सकता है जो प्रायः एक से तीन दिनों तक किसी विषय के प्रकरण (अथवा ज्ञान की एक शाखा) को लेकर उसके विषय अध्यापकों के बीच आयोजित किया जाता है। सेमिनार का उद्देश्य उस विषय अथवा आयोजित शीर्षक पर नवीन तथ्यों पर विचार विर्मश करते हुए संवाद की प्रक्रिया के साथ प्रकाश डालना होता है।
शिक्षा व शिक्षा सुधार संबंधी प्रत्येक समिति ने शिक्षा व संस्कृति के बीच प्राकृतिक अन्त सम्बन्धों पर विशेष बल दिया गया है। दो समान्तर क्षेत्रों को गठित करने के अलावा संस्कृति व शिक्षा भी परस्पर मिश्रित है और इन्हें सहजीवी के रूप में विकसित करना चाहिए ताकि संस्कृति अनुप्रमाणित हो सके और शिक्षा को विकसित कर सके। सांस्कृतिक तथा शैक्षिक विकास के सभी क्षेत्रों में कार्मिको के सतत् प्रशिक्षण की आवश्यकता पर बल देते हुए सांस्कृतिक जीवन के बड़े पैमाने पर लोगों की भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए सांस्कृतिक रूप से उत्तम प्रशिक्षित कार्मिकों के अस्तित्व का समर्थन करते हुए स्कूलों में सांस्कृतिक शिक्षा पर सेमिनार आयोजित करता है। सेमिनार में प्रतिभागी मुख्यतः प्रधानाचार्य शिक्षक तथा प्रशासक होते हैं जिनके शिक्षकों ने सांस्कृतिक स्त्रोत एवं प्रशिक्षण केन्द्र के कार्यक्रमों में भाग लिया तथा राज्य में शिक्षा से जुड़े अन्य प्रशासकों का भी सहयोग लिया।
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सेमिनार के लक्ष्य
किसी भी सेमिनार की आयोजित करने के पीछे कुछ वांछित लक्ष्य होते हैं जिनको प्राप्त करने के लिए इनका आयोजन किया जाता है।
(1) सेमिनार में विषय के विशेषज्ञों को आमंत्रित कर उनके अनुभवों को सेमिनार में उपस्थित लोगों के मध्य बांटना होता है।
(2) संवाद तथा विचार विमर्श की प्रक्रिया से नवीन तथ्यों को प्रकाश में लाने के उद्देश्य से सेमिनारों का आयोजन किया जाता है।
(3) सेमिनार के माध्यम से आपकी समन्वय व शैक्षिक प्रगति का वातावरण निर्मित होता है जिसमें विषय के प्रति एक नये दृष्टिकोण का प्रादुर्भाव होता है। यह संवाद की प्रक्रिया किसी नए सिद्धान्त अथवा अवधारणा की आधारशिला बनती है जिससे शिक्षा जगत का विस्तार होता है।
(4) सेमिनार सम्बन्धित विषय के नए ज्ञान के साथ जुड़ने का भी अवसर प्रदान करता है जिसके परिणामस्वरूप अध्यापन में ताजगी और उत्साह का वातावरण बना रहता है।
(5) सेमिनार से विषय की महत्ता को स्थापित कर विषय के प्रति जागरूकता का भाव पैदा करने का प्रयास किया जाता है।
सेमिनार का शिक्षण में महत्व
महान विचारक अरस्तू ने कहा था, ‘एक सफल विद्यार्थी और एक सफल शिक्षक वो है जो कभी सीखना या जानना बंद नहीं करते शिक्षण में ताजगी और उत्साह सदैव बना रहे इसके लिए यह आवश्यक है कि सीखने अथवा जानने की प्रक्रिया अनवरत बनी रहे। सेमिनार भी इसी सीखने की प्रक्रिया का एक हिस्सा कहा जा सकता है जो अध्यापक को विषय के साथ जोड़े रखता है। सेमिनार की अवधि यद्यपि अल्पकालिक होती है लेकिन इसका महत्व बड़ा ही दीर्घ कालिक होता है क्योकि इसमें अध्यापक इन अनुभवी और वरिष्ठ विषय विशेषज्ञ के साथ संवाद की प्रक्रिया को स्थापित करता है जिनके शोध में उस विषय की अवधारणा को व्यापक और नवीन स्वरूप प्रदान किया है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि सेमिनार से अध्यापक अपने विषय के नवीन शोध और परिकल्पनाओं से जुड़ते है जो कालान्तर में उनके ज्ञान को बढ़ाने और नये करने के लिए प्रेरित करता है।
सेमिनार का महत्व इस रूप में भी है कि इससे उन विषयों के प्रति भी जानकारी प्राप्त होती है जो अब तक शोध से अछूते रहे हैं जिनका मानवीय जीवन में बड़ा महत्व होता है। यह राजनीति विज्ञान के नये आयामों को जानने में हमारी मदद करता है। यह अल्पकालिक शैक्षिक संगम विचारों की एक नयी धारा को पैदा करता है जो विषय को एक नये अर्थ और संकल्पना के रूप में समझने में मदद करता है। सेमिनार के दौरान अनेक विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों के ज्ञानी एवं प्रकांड पुरूषों महिलाओं के साथ विचार विमर्श का अवसर प्राप्त होता है। सेमिनार के दौरान ही पत्रवाचन की एक प्रक्रिया जुड़ी हुई है जो सेशन समाप्त होने के बाद उपस्थित लोगों के मध्य वितरीत किया जाता है। यह उपलब्ध साहित्य भी शिक्षक के ज्ञान एवं क्रियात्मक कौशल को बढ़ाने वाला होता है।
सेमिनार का एक महत्व इस रूप में यह विचारों के मध्य एक समुचित समन्वय का माध्यम बनता है। सेमिनार के आयोजन के दौरान भारतवर्ष के विभिन्न भूभागों से अलग-अलग संस्कृति के वक्ता आते हैं जिनका उन पर अपनी संस्कृति का भी काफी प्रभाव होता है। यह सांस्कृतिक विविधता विचारों में भी दिखाई पड़ती है लेकिन एक स्थान पर आने पर विचारों के मध्य एक सन्तुलित समन्वय का विकास होने लगता है जो समाज और राष्ट्र की प्रगति के लिए अति आवश्यक होता है। वर्तमान समय में भारतीय समाज जिस अविश्वास की खाई की ओर बढ़ रहा है इस अविश्वास की खाई को पाटने में इस तरह के आयोजक बड़े ही लाभप्रद होते हैं।
विचारों का यह समन्वय एक सभ्य विश्व के निर्माण में भी अपना प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष योगदान देता है। हर संस्कृति की अपनी कुछ मौलिक विशेषताएँ होती है, उसका अपना एक आदर्श, एक सुसभ्य भाषा, एक साहित्य होता है, जब आप किसी अन्य संस्कृति के बारे में जानने और समझने लगते हैं तभी उस संस्कृति के सही सन्दर्भ समझ में आते हैं। यह आपसी समझ और संवाद ही समन्वय को विकसित करने का सेतु बनता है। इस प्रक्रिया में सेमिनार का अपना बड़ा योगदान है।
अतः संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि सेमिनार विचारों को प्रकट करने का न केवल एक माध्यम बनता है अपितु समाज और राष्ट्र को जोड़ने वाली संवाद प्रक्रिया का भी माध्यम बनती है। अतः शिक्षण में सेमिनार का अति महत्वपूर्ण स्थान है।
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