स्वास्थ्य शिक्षा के क्या उद्देश्य हैं ? स्वास्थ्य रक्षा के उपायों का वर्णन कीजिए।
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स्वास्थ्य शिक्षा का उद्देश्य
राष्ट्र की उन्नति के लिए नवयुवकों का स्वस्थ रहना अत्यन्त आवश्यक है। यदि राष्ट्र के नवयुवकों का स्वास्थ्य अच्छा है तो उस देश के नागरिकों का बौद्धिक तथा नैतिक स्तर ऊँचा होगा। विद्यालय समाज का महत्त्वपूर्ण अंग है। आज के छात्र तथा नवयुवक भविष्य में राष्ट्र के कर्णाधार बनेंगे, यदि उनका बौद्धिक तथा नैतिक स्तर (जो कि अच्छे स्वास्थ्य पर निर्भर करता है) ऊँचा होगा तो राष्ट्र की उन्नति होगी। राष्ट्र की उन्नति के लिए विद्यालयों पर ध्यान देना भी बहुत आवश्यक है। इसके लिए छात्रों को स्वास्थ्य शिक्षा देना भी आवश्यक है।
विद्यार्थियों को स्वास्थ्य शिक्षा निम्नलिखित उद्देश्यों के आधार पर दी जानी चाहिए-
1. बुरी आदतों से बचाव – छात्र कई बार विद्यालय जीवन में अनेक बुरी आदतों तथा बुरे व्यसनों में फँस जाते हैं। इसमें कोई बुराई नहीं दिखाई देती, लेकिन कुछ समझ आने पर उनको अपनी गलती का अहसास होता है। अच्छे शिक्षक होने के नाते एवं स्वास्थ्य दृष्टिकोण के नाते प्रत्येक शिक्षक का यह पवित्र कर्त्तव्य है कि वह बालकों को इन बुरे व्यसनों एवं बुरी आदतों से परिचित कराके दूर रखने की कोशिश करे।
2. सर्वांगीण विकास – स्वास्थ्य शिक्षा का उद्देश्य छात्रों का सर्वांगीण विकास करना एवं राष्ट्रीय स्वास्थ्य में योगदान देना है।
3. स्वस्थ जीवन की आदत – छात्रों को स्वस्थ जीवन बिताने का अभ्यास डालने के लिए तथा उनको स्वास्थ्य रक्षा के उपाय बताने के लिए।
4. स्वस्थ वातावरण का निर्माण – विद्यालय में इस प्रकार के वातावरण को बनाना कि छात्र स्वयं ही शारीरिक स्वास्थ्य की ओर आकर्षित हों तथा इसे प्राप्त करने का प्रयास करें। इसके अन्तर्गत शारीरिक स्वास्थ्य प्रतियोगिताएँ आदि कराना तथा स्वस्थता का पारितोषिक देना भी विद्यालय का कार्य होना चाहिए।
5. स्वास्थ्य रक्षा के प्रति रुचि – छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को तो शिक्षक ज्ञान देकर तथा उनकी परेशानियाँ दूर करके बना सकता है, लेकिन मानसिक स्वास्थ्य के साथ-साथ शारीरिक स्वास्थ्य भी अत्यन्त आवश्यक है। शिक्षकों को बालक में शारीरिक स्वास्थ्य के प्रति रुचि पैदा करनी चाहिए। इस प्रकार बालक शारीरिक तथा मानसिक दोनों प्रकार के विकास की ओर ध्यान देंगे।
स्वास्थ्य रक्षा के उपाय
छात्रों को पूर्ण रूप से स्वस्थ बनाये रखने के लिए स्वास्थ्य रक्षा के कुछ महत्त्वपूर्ण उपाय अपनाने चाहिएँ। स्वास्थ्य रक्षा के अन्तर्गत निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जाना बहुत ही आवश्यक है-
1. विद्यालय में सफाई तथा स्वच्छता – विद्यालय में नियमित रूप से सफाई का होना भी बहुत जरूरी है। विद्यालय एक ऐसा स्थान है, जहाँ पर सभी प्रकार के छात्र आते हैं। छात्र चाहे कैसे भी क्यों न हों, यदि उनको स्वच्छ रहना एवं सफाई रखना सिखाया जायेगा तो वे निश्चित रूप से इसके प्रति सजग रहेंगे। इसके अतिरिक्त विद्यालय भवन की सफाई भी वहाँ के नौकरों द्वारा नियमित रूप से होनी चाहिए। विद्यालय के मूत्रालय को नियमित रूप से साफ करके उसमें फिनाइल डाला जाना चाहिए। विद्यालय का कोई भी स्थल गन्दा न रहे, इस बात की पूर्ण जानकारी छात्र एवं शिक्षकों को रखनी चाहिए।
2. विद्यालय का वातावरण – विद्यालय का वातावरण विद्यालय स्वास्थ्य के अन्तर्गत आने वाला महत्त्वपूर्ण विषय है। विद्यालय का वातावरण जैसा होगा छात्र भी निश्चित रूप से वैसे ही होंगे। गन्दी जगह स्थित तथा टूटे-फूटे भवन वाले विद्यार्थी प्रायः गन्दे ही देखे गये हैं। इसका भी एक मनोवैज्ञानिक कारण है। यदि बालक अच्छे समाज से सम्बन्ध रखता है और स्वस्थ दृष्टिकोण रखता है, किन्तु यदि विद्यालय गन्दा है, वहाँ का वातावरण दूषित है तो बालक अपने आपको उसके ही अनुकूल बनाएगा तथा बालक का स्वास्थ्य सम्बन्धी दृष्टिकोण भी बदल जायेगा। स्वास्थ्य रक्षा सम्बन्धी उपायों के अन्तर्गत यह बहुत जरूरी है कि विद्यालय का वातावरण दूषित न हो तथा विद्यालय अच्छी तरह एवं खुले हुए स्वास्थ्यवर्द्धक स्थान पर हो।
3. शुद्ध वायु तथा प्रकाश की व्यवस्था – स्वस्थ रहने और रखने के लिए शुद्ध वायु का होना बहुत जरूरी है। शुद्ध वायु के न होने पर दूषित वायु से बहुत से रोग हो जाते हैं। इसलिए विद्यालय में शुद्ध वायु का होना बहुत जरूरी है। विद्यालय में शुद्ध वायु का आवागमन तभी हो सकता है, जबकि विद्यालय अच्छी जगह स्थित हो, विद्यालय भवन के कमरों में पर्याप्त खिड़कियाँ तथा रोशनदान हों।
4. अच्छा फर्नीचर – शुद्ध वायु तथा प्रकाश के साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि छात्र जिस फर्नीचर को बैठने एवं लिखने के काम में लें वह अच्छा होना चाहिए। बैठने में सुविधाजनक तथा लिखने में भी सुविधाजनक फर्नीचर के होने से छात्रों का स्वास्थ्य अच्छा बना रहेगा। बहुत-से विद्यालयों में अन्य बातों का तो बहुत ध्यान रखा जाता है, किन्तु फर्नीचर पर किसी प्रकार का ध्यान नहीं दिया जाता। इससे छात्रों की रीढ़ की हड्डी तथा शरीर के अन्य अवयवों पर जोर पड़ता है। परिणामस्वरूप छात्रों का स्वास्थ्य खराब होने का भय बना रहता है।
5. छात्रों का स्वास्थ्य निरीक्षण – विद्यालय के उच्चाधिकारियों को चाहिए कि वे वर्ष में एक या दो बार छात्रों की डॉक्टरी जाँच कराएँ। विद्यालय में प्रवेश लेने के समय से लेकर प्रत्येक वर्ष छात्रों के स्वास्थ्य की जाँच होती रहनी चाहिए। यदि छात्र रोगी हो तो उनके माता-पिता को उनके रोग की सूचना शीघ्र दे दी जानी चाहिए। माता-पिता का यह कर्त्तव्य है। कि वे छात्रों के रोग का उचित उपचार कराएँ, उसके बाद उसे विद्यालय में भेजें।
6. आहार का सन्तुलित होना – विद्यालय में दोपहर में दिये जाने वाले आहार का सन्तुलित होना स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण है। आहार में दी जाने वाली वस्तुएँ ताजा तथा स्वास्थ्यवर्द्धक होनी चाहिए। सन्तुलित आहार से छात्रों के स्वास्थ्य में वृद्धि होगी एवं पूर्ण शारीरिक विकास होगा।
7. विद्यालय की समय-सारणी – विद्यालय की समय-सारणी (जेसी हो, जिससे छात्रों तथा अध्यापकों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव न पड़े। समय-सारणी बनाते समय इस बात का पूर्ण ध्यान रखा जाना चाहिये कि प्रत्येक विषय को सिलसिलेवार तथा छात्रों की रुचि के अनुसार रखा जाना चाहिए। इस बात का पूर्ण ध्यान रखा जाना चाहिए कि मानसिक थकान छात्रों तथा अध्यापकों में न आए।
विद्यालयों में समय-समय पर विभिन्न प्रकार की खेल प्रतियोगिताएँ भी होनी चाहिए। शरीर रक्षा के प्रति छात्रों में रुचि उत्पन्न करने के लिए उन्हें पारितोषिक भी वितरित किये जाने चाहिए। इस प्रकार की व्यवस्था से छात्रों के स्वास्थ्य में वृद्धि होगी।
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