राजनीति विज्ञान में प्रयुक्त दृश्य सहायक सामग्री को संक्षेप में बताइयें ।
Contents
राजनीति विज्ञान में प्रयुक्त दृश्य सहायक सामग्री
1. चित्र –
राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत ऐसे विषय है जिनके विषयांशों के तथ्यों को वास्तविक रूप से सीधा संपर्क नहीं किया जा सकता है। अतः फोटों चित्र अथवा चित्रण द्वारा प्रत्यक्षीकरण कराया जा सकता है। अध्यापन को प्रभावशाली करने के लिए चित्रों में कुछ विशिष्ट गुणों अथवा विशेषताएं होनी आवश्यक है।
- चित्र का आकार बड़ा हो जिसे टांगकर दिखलाया जा सकें।
- चित्र वास्तविकता को ठीक और सत्य रूप में प्रकट करता हो।
- चित्र स्पष्ट एवं आकर्षक हो।
- वह स्वाभाविक और साधारण का प्रतीक हो, अस्वाभाविक और असाधारण हो।
- चित्र बालकों की उत्सुकता और जिज्ञासा प्रवृत्ति को उत्साहित कर सकें।
- उनका रंग ठीक तरह का और स्वाभाविक हो ।
- उन पर स्पष्ट शीर्षक दिये हो ।
चित्रों का प्रदर्शन
- बड़े चित्र कक्षा के सम्मुख टांगे जिससे संपूर्ण कक्षा के छात्र देख सकें।
- छोटे चित्रों को प्लेन बोर्ड अथवा कार्डबोर्ड के तख्ते पर लगा दिया जायें। इन्हें बालक समीप से देख सकें।
2. नमूना
भौगोलिक वस्तुओं के नमूने का संग्रह विद्यालय में किया जावें। उन्हें दिखाकर वस्तु का बोध कराया जा सकता है, विभिन्न प्रकार की मिट्टी विभिन्न प्रकार की चट्टानों के टुकड़े, विभिन्न वनस्पति, खनिज पदार्थ, उपज औँजार, वस्त्र आदि का संकलन छात्रों के सहयोग से किया जावें। इन्हें सुरक्षित रखने की व्यवस्था शाला में हो। ऐतिहासिक महत्व की वस्तुओं के अन्तर्गत सिक्के एकत्रित किये जावें।
3. मॉडल –
मॉडल आकार प्रकार का अनुपात रखता हुआ वास्तविकता की एक प्रतिपूर्ति है। मॉडल का निर्माण शिक्षक छात्रों के सहयोग से करें। इससे उनकी क्रियाशील एवं अभिव्यंजना शक्ति का विकास होता है। खेती में काम आने वाले औंजार, सिंचाई के यंत्र, पंचायत घर, आदर्श ग्राम के मॉडल आदि तैयार किए जा सकतें है।
शिक्षक को चाहिए कि वह इन मॉडलों को स्वयं ही कक्षा में बालकों द्वारा बनवायें। इससे कई लाभ होंगे एक तो बालक हाथ और आंख के सामंजस्य स्थापित करने में समर्थ हो जायेंगे और दूसरे उनकी क्रियात्मकता को विकास मिलेगा। कक्षा में जिस समय उनकों वही मॉडल दिखायें जायेंगे वे रूचि के साथ उनका अवलोकन कर आत्म गौरव एवं आत्म विश्वास का अनुभव करेंगे ऐसा करने में बालक करके सीखों के सूत्र का निर्वाह कर सकेंगे।
4. रेखाचित्र
कार्डबोर्ड, कागज और श्यामपट्ट पर सरलता से रेखाचित्र बनाये जा सकतें हैं। रेखाचित्र द्वारा छात्रों का ध्यान आकर्षित कराया जा सकता है। किसी बन्दरगाह, नगर, प्रदेश की स्थिति सरल रेखाचित्र दिखाकर अध्यापन को प्रभावशाली बनाया जा सकता है। इससे बालकों की ग्राहय क्षमता दुगुनी हो जाती है। ग्राफपेपर पर उत्पादन, वर्षा, तापमान, औद्योगिक प्रगति आदि दिखलाने से बालक सरलता से ग्रहण कर लेते है।
5. मानचित्र –
भित्ति मानचित्र और बड़े मानचित्र भूगोल अध्ययन के अत्यंत आवश्यक अंग है। भौगोलिक वर्णन का संक्षिप्त सारांश देने में इनका उपयोग अमूल्य है। बिना इसके भूगोल अध्ययन अर्थहीन है। प्राथमिक और माध्यमिक शालाओं में सामाजिक विज्ञान के अन्तर्गत भूगोल के अध्यापन के लिए विश्व का रंगीन मानचित्र राजनैतिक सीमाओं के साथ अपने जिले, प्रदेश और देश के और विश्व के कुछ सीमांकित सादें मानचित्र और राज्यों के प्राकृतिक, राजनैतिक मानचित्र, जलवायु, वनस्पति, उत्पादन, जनसंख्या और भूमि वितरण के मानचित्रों का होना आवश्यक है। मानचित्र सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा प्रमाणित हो इसका ध्यान रखना आवश्यक है।
6. ग्लोब
पृथ्वी की आकृति, प्रतिपूर्ति ग्लोब है। अतः अनेक भौगोलिक संबंधों का उचित अध्यापन ग्लोब द्वारा ही हो सकता है। पृथ्वी भूखण्डों और जलखण्डों का वास्तविक स्वरूप और संबंध ग्लोब द्वारा ही प्रकट किया जाता है। अक्षांश और देशांतर दिन-रात सूर्य की स्थिति जैसे विषयों का उचित ज्ञान ग्लोब द्वारा ही दिया जाना संभव है।
7. श्यामपट्ट –
श्यामपट्ट शिक्षक का अभिन्न मित्र है। श्यामपट्ट के सही उपयोग पर ही शिक्षण में शिक्षक की सफलता निर्भर करती है। श्यामपट को दो भागों में बांटा जावें। एक हिस्से में श्यामपट्ट सार विकसित किया जावें तथा दूसरे भाग में क्रमिक अध्यापन के समय रेखाचित्र, विषयवस्तु का संक्षिप्त विश्लेषण, काठिन्य निवारण आदि कार्य करते रहना आवश्यक इससे छात्र एक ओर जहां विषयवस्तु को समझने में सक्षम होता है वहीं श्यामपट्ट सार को पाठ के अंत में अपनी पुस्तिका में उतार सकतें हैं। आवश्यकतानुसार लपेट श्यामपट्ट का उपयोग किया जा सकता है।
8. भ्रमण तथा शैक्षणिक यात्राएं
भ्रमण तथा यात्राओं से छात्र का सीधा संपर्क स्थापित किया जा सकता है। सामाजिक अध्ययन के शिक्षण में कक्षा के बाहर छात्रों को भ्रमण हेतु ले जाना चाहिए। स्थानीय परिवेश में जहां विषय से संबंधित प्रत्यक्ष वस्तुओं, स्थानों एवं प्रकृति का अवलोकन किया जा सकें वहां छात्रों को अवश्य ले जाया जावें। ग्राम में पंचायत, पोस्ट ऑफिस, थाना आदि शहरों में अस्पताल, अजायबघर, संग्रहालय, नगरपालिका तथा अन्य सामाजिक संस्थाएं प्रत्यक्ष अवलोकन कर छात्र कार्य प्रणाली को समझ सकेंगे। भूगोल के अन्तर्गत खेत, नदी, नहर, पहाड़, ऋतुओं का प्रभाव प्रकृति पर दिशा ज्ञान आदि की जानकारी सहजता से दी जा सकती है।
निरीक्षण योग्य बातों का चयन उन पर किये जाने वाले प्रश्न, समय का विभाजन, आदि बातों का पहले से ही सावधानी से विचार कर लेना चाहिए। प्रत्येक प्रकार की यात्रा के किये गये निरीक्षण कार्य को कक्षा में आने पर मानचित्र सूची लेख आदि के रूप में अर्जित ज्ञान को स्थायी करा देना आवयक है। इसके छात्रों में चारित्रिक एवं सामाजिक गुणों का समुचित विकास होता है।
9. टेलीविजन –
टेलीविजन अध्यापन का सशक्त माध्यम विकसित हो रहा है। वर्तमान में टेलिविजन द्वारा विभिन्न विषयों के पाठ प्रसारित किये जाते हैं। कक्षा अध्यापन की तुलना में यह पाठ अधिक प्रभावशील होते है। छात्र टी.वी. के पाठ बड़ी रूचि से एकाग्रचित होकर देखते हैं। इससे उन्हें विषयवस्तु समझनें में सुविधा होती है।
टी.वी. द्वारा अध्यापन – इसके प्रमुख तीन चरण है –
- प्री. टेलीकास्ट (पूर्व प्रसारण)
- टेलीकास्ट (प्रसारण)
- पोस्ट टेलीकास्ट (प्रसारणोपरांत)
1. प्री. टेलीकास्ट ( पूर्व प्रसारण) – टेलीकास्ट होने से पहले शिक्षक विषयवस्तु की भूमिका प्रस्तुत करते हैं। इसका मुख्य लक्ष्य है कि बालक प्रसारण के समय विषवस्तु की बारीकियों को ध्यान से देखकर समझ सकें।
2. टेलीकास्ट (प्रसारण ) :- इसमें छात्र एकाग्रचित से टी.वी. में आ रहें पाठ को देखते हैं। आवश्यकतानुसार इस अवधि में आवश्यक टीप भी लेते हैं।
3. पोस्ट टेलीकास्ट (प्रसारणोपरांत) :- प्रसारणोपरांत शिक्षक प्रसारित विषयवस्तु पर कतिपय बोध प्रश्न करते है जिससे विषयवस्तु की ग्राहयता की जानकारी होती है। स्थल विशेष का मौखिक विवरण भी पूछा जाता है जिससे घटनाक्रम को क्रमिक रूप से अपने शब्दों में छात्र प्रस्तुत करते हैं।
वीडियो केसेट- आधुनिक समय में रेडियों पाठ के समान ही विभिन्न विषयों की इकाईयों पर वीडियों फिल्म तैयार की जा रही है। वीडियों कैसेट द्वारा पाठ कक्षा में प्रदर्शित किये जातें है। ये छात्रों को अत्याधिक प्रभावित करते है। चूंकि इनका निर्माण आदर्श परिस्थितियों में उच्च शिक्षक के सहयोग से किया जाता है।
10. रेडियों –
राजनीति विज्ञान के पाठों का प्रसारण उपयोगी एवं लाभकारी है। यात्रा विवरण, मौसम संबंधी जानकारी आदि सरलता से समझ में आती है। रेडियों मात्र श्रव्य होने के कारण अधिक प्रभावशाली नहीं हो पायें है।
11. पाठ्यपुस्तकें –
शिक्षक और विद्यार्थी दोनों के लिए पाठयपुस्तकें आवश्यक हैं वह अध्यापन के स्तर को निश्चित करती है। पुस्तक का आकार, प्रकार, छपाई, सुन्दर और आकर्षक होना चाहिए। पाठ्यपुस्तिका में विषयवस्तु का क्रमिक विकास होना चाहिए।
पाठ्यपुस्तकों का उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए ताकि बालक उनका लाभ उठा सकें। भाषा सरल सुबोध हो, वर्णन पूरे सजीव हो, शैली आकर्षक हो, मनोवैज्ञानिक संगठन हो, लाभप्रद सामग्री के रूप में यथास्थान चित्र, मानचित्र, रेखाचित्र, सूची आदि हो। पढ़ाए हुए पाठ और तथ्यों को समझने और विस्तृत करने में पाठ्यपुस्तकें सहायक होनी चाहिए। पाठ्यपुस्तक से प्राप्त ज्ञान के मूल्यांकन हेतु ज्ञान अवबोध एवं प्रयोग पर आधारित प्रश्न आवश्यक हैं साथ ही प्रश्नों के तीन रूप तथा वस्तुनिष्ठ लघुउत्तरीय एवं निबंधात्मक प्रश्नों का समावेश हो ।
12. वर्कबुक –
पाठ्यपुस्तक के पूरक के रूप में वर्क बुक का होना आवश्यक है। कार्यपुस्तिका के माध्यम से बालक के प्राप्त ज्ञान का दृढ़ीकरण होता है। वर्कबुक मूल्यांकन का सशक्त माध्यम है। अतः वर्कबुक तैयार करते समय मूल्यांकन के उद्देश्यों को तथा प्रश्नों के प्रकारों का ध्यान में रखना आवश्यक है।
13. अन्य –
एलबम, गाइड पुस्तिकाएं, पोस्टल टिकिट, विज्ञापन आदि अनेक उपकरणों का उपयोग शिक्षक अपनी सुविधानुसार अध्यापन को सजीव बनाने के लिए कर सकतें है।
14. सूचनापट्ट –
सूचनापट्ट कक्षा अथवा विद्यालय की सर्वकालीन पत्रिका के रूप में होना चाहिए, जिसमें वह छात्रों को उससे संबंधित प्रत्यक्ष जानकारी प्रदान कर सकें, साथ ही ज्ञान के प्रति छात्रों की जिज्ञासा एवं रूचि को जाग्रत कर सकें। सूचनापट्ट छात्रों का एक टोली के रूप में कार्य करने के लिए प्रदान करते हैं और कक्षा का वातावरण समृद्ध होता है। राजनीति विज्ञान का अध्यापन सूचनापट्ट का प्रयोग निम्नलिखित बातों के लिए कर सकता है:
- सामाजिक तथ्यों से संबंधित प्रमुख सूचनाओं को अंकित करना।
- पत्र-पत्रिकाओं की कतरन चिपकाने के लिए।
- आकर्षक चित्र एवं कारटून लगाने के लिए (संकलित व स्वनिर्मित) ।
- ग्रॉफ एवं चार्ट चिपकाने के लिए।
- छात्रों का रचनात्मक कार्यों को प्रदर्शित करने के लिए।
- प्रदर्शन का भार प्रायः छात्रों को दिया जावें
सामुदायिक साधनों का उपयोग
बालक का जीवन उनके सामाजिक वातावरण में बीतता है। परिवार, अड़ोस-पड़ोस, गांव उनके जीवन से गुथा रहता है। सामाजिक वातावरण में कई प्रकार के समूह, समितियां, संस्थाएं आदि होती हैं।
समाज में तरह-तरह की नीति प्रथाएं, चलन व्यवहार, उत्सव, त्यौंहार आदि प्रचलित रहते है। इनका उपयोग शिक्षक व्यावहारिकता प्रदान कर समुचित ढंग से कर सकता है। स्थानीय साधनों से शिक्षक सरल और आनन्दमयी होता है। छात्र खेल-खेल में ज्ञान प्राप्त कर पर्यावरण का उपयोग लेते हैं।
पर्यावरण का उपयोग
अध्यापन को रूचिकर और जीवंत बनाने के लिए कक्षा में प्रसंगानुसार सहायक सामग्री का प्रदर्शन आवश्यक है। छात्राध्यापक जो आगामी समय में शिक्षकीय कार्य हेतु अपनी-अपनी शालाओं में जब आयें तब उनमें यह पुष्टि होना चाहिए कि अध्यापन में पर्यावरण का उपयोग कैसे करें?
सहायक सामग्री का निर्माण
चित्र, रेखाचित्र, मॉडल, टी.वी., का प्रयोग कैसे करें? सैद्धांतिक ज्ञान के साथ ही व्यावहारिक कार्य का अनुभव होना आवश्यक है। अतः प्रत्येक विषय की इकाई के अनुसार छात्राध्यापकों से सहायक सामग्री निर्मित कराई जाना आवश्यक है।
अध्यापन अभ्यास के पाठों के साथ स्वनिर्मित अथवा संकलित सहायक सामग्री की अनिवार्यता हो इससे उनमें संकलन एवं निर्माण की दृष्टि विकसित होगी।
इकाई वार तथा प्रसंगानुसार चित्र नमूने, मॉडल, रेखाचित्र, नक्शे, मार्गदर्शक के •मार्गदर्शन में तैयार करवाए जावें। भूगोल के अध्यापन में आने वाली इकाईयों के लिए स्थानीय उपज मिट्टी, चट्टान आदि संकलन करवाया जाना आवश्यक है।
सहायक सामग्रियों का निर्माण निर्धारित मापदण्डों पर इसका पूर्व निरीक्षण कर लिया जाना चाहिए।
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