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सुमित्रानन्दन पंत के काव्य की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताएँ

सुमित्रानन्दन पंत के काव्य की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताएँ
सुमित्रानन्दन पंत के काव्य की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताएँ

सुमित्रानन्दन पंत के काव्य की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए। 

विद्वानों ने छायावाद की परिभाषा और उसके स्वरूप को न जाने कितने रूपों में ग्रहण किया है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने छायावाद को एक शैली विशेष तथा रहस्यवादी गीतों की अभिव्यंजना माना है। डॉ. नगेन्द्र छायावाद को किसी सुदूर काल्पनिक जग को खोजने का प्रयास मानते हैं। इस छाया जग में सूक्ष्म सत्य के खोजने का प्रयास मानते हैं। पन्त के काव्य में छायावाद के सभी तत्त्व विद्यमान हैं पन्त छायावाद के प्रवर्तक कवि है। छायावादी वस्तु और कला सम्बन्धी नियामक तत्व जिस प्रौढ़ता और सुस्पष्टता से पन्त काव्य में मिलते हैं उतने शायद अन्य छायावादी कवियों में दुर्लभ है। छायावादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख अनेक विद्वानों ने किया है पन्त के काव्य का अध्ययन करते हुए स्पष्ट हो जाता है कि उनके काव्य में छायावाद की समस्त काव्य प्रवृत्तियों का दर्शन पूर्णरूपेण प्राप्त होता है।

(क) भावपक्षीय विशेषताएँ (छायावाद’ के गुण)

(1) सौन्दर्य दर्शन- पन्त के काव्य में सौन्दर्य का प्रधान गुण विद्यमान है। पन्त प्रकृति के सुर- वातावरण, पर्वतीय प्रान्त में जन्में। उनमें मन में सुन्दरता के लिए जो स्थान था वह अन्य किसी के लिए नहीं। पन्त की सौन्दर्यानुभूति के तीन प्रमुख केन्द्र हैं— प्रकृति नारी तथा कला सौन्दर्य । उनके काव्य जीव का प्रारम्भ ही प्रकृति-चित्रण से हुआ है। ‘वीणा’, ‘ग्रन्थि’, ‘पल्लव’ आदि प्रारम्भिक कृतियाँ प्रकृति कोमलता रूप को परिलक्षित करती है। पर्वतीय प्रदेश में पल-पल परिवर्तित प्राकृतिक रमणीयता ने पन्त जी को इतना प्रभावित किया कि वे प्रकृति में ही उलझ गए सौन्दर्यानुभूति प्रकृति की सौन्दर्यानुभूति हो गयी-

छोड़ द्रुमो की मृदु छाया को,
तोड़ प्रकृति से भी माया को,
बाले! तेरे बाल जाल में, 
कैसे उलझा दूँ लोचन?
छोड़ अभी से इस जग को।

(2) प्रेम और श्रृंगार भाव – छायावाद में नारी सौन्दर्य और प्रेम का चित्रण एक प्रमुख विशेषता के रूप में हुआ है। प्रसाद की ‘श्रद्धा’ और पन्त की ‘भावी पत्नी’ और निराला की कोमलता की साकार मूर्ति है जो माधुर्य, निश्छलता एवं पवित्रता से परिप्लावित है। पन्त की नारी की प्रेम के प्रादुर्भाव से लज्जा युक्त हो जाती है—

लाज की मादक सुरा-सी लालिमा
फैल गाँवों में नवीन गुलाब से
छलकती थी बाढ़-सी सौन्दर्य की
अधखिले मित गढ़ों-से, सीप-से।

(3) कल्पना के विविध रूप पन्त के काव्य में कल्पना का महत्त्व स्पष्ट करते हुए आचार्य नन्द दुलारे बाजपेयी ने लिखा है- “कल्पना ही पन्त जी की कविता का मेरुदण्ड हैं, उनकी काव्य सृष्टि का मानदण्ड है।” कवि पन्त व्यक्तिवादी कलाकार के समान अर्न्तमुखी बनकर अपनी कल्पना को असीम गगन में खुलकर विचरण करने के लिए मुक्त कर देता है-

मधुरिमा के मधुमास,
मेरा मधुकर का-सा जीवन,
कठिन कर्म है, कोमल मन,
विपुल मृदुल सुपनों से विकसित,
विकसित है विस्तृत जग-जीवन।

(4) व्यक्तिवाद- इसे आत्माभिव्यंजना के नाम से भी पुकारा जाता है। व्यक्तिवाद भी छायावाद की एक विशेषता हैं विनय कुमार शर्मा के अनुसार- “छायावाद काव्य में पाठक को ऐसा आभाष होता है कि कवि निर्वैयक्तिकता का समस्त आवरण हटाकर पाठक के साथ चिर-परिचित रूप में बातें करता है। कवि हृदय की अभिव्यक्ति अत्यन्त निश्छल रूप से करता है। अन्तर्मुखी पद्धति की प्रधानता होने के कारण कभी तो विषय पर विषयी का आलोप रहता है और कभी समष्टि के निरपेक्ष केवल व्यष्टि में लीन रहता है। ‘ताज’, ‘द्रुत झरो जगत के जीर्ण पुत्र’ आदि कविताएँ इस प्रकार की है।

(5) नारी का अतीन्द्रिय रूप – नारी के अतीन्द्रिय रूप के साथ-साथ प्रेम के अशरीर रूप की अभिव्यक्ति भी छायावाद की विशेषता है। ‘पल्लव’ और ‘गुंजन’ में इसका स्वरूप देखा जा सकता है। ‘भावी पत्नी के प्रति’ आज रहने दो गृह काज जैसी रचनाओं में यही भाव फूटा है।

(6) वेदना की विवृत्ति – पन्त के काव्य में वेदना की विवृत्ति के स्वर भी पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। वेदना की अभिव्यक्ति पन्त के काव्य में तीन रूपों में व्यक्त हुई हैं— (1) विरह-वेदना, (2) भौतिक प्रतिकूल स्थिति से उत्पन्न वेदना, (3) दार्शनिक चिन्तन के रूप में वेदना। यह उक्त वेदना की अभिव्यक्ति को स्पष्ट करती है—

आज वेदने ! आ तुझको भी
गा-गाकर जीवन दे दूँ
हृदय खोल के रो-रोकर।

(7) प्रकृति-चित्रण– छायावादी काव्य में प्रकृति एक महत्त्वपूर्ण करण बनकर आई हैं पन्त, प्रसाद, निराला तथा महादेवी ने अपने-अपने दृष्टिकोणों से उसे देखा है। कविवर पन्त की दृष्टि से इन सबसे भिन्न रही है। प्रकृति प्रेम तथा चिन्तन ये तीनों ही भाव उनमें अलग-अलग तथा स्पष्ट रूप से दिखायी पड़ते हैं। प्रकृति पन्त जी के काव्य प्रेरणा का स्रोत भी रही है।

(8) रहस्य-भावना – पन्त जी के काव्य में रहस्य भावना का पर्याप्त प्रयोग मिलता है। पन्त के काव्य में रहस्यवाद दो रूपों में मिलता हैं— प्रथम प्रकृति रहस्यवाद और द्वितीय प्रेम एवं सौन्दर्यमूलक रहस्यवाद।

(9) दार्शनिकता – चिन्तन और दर्शन का सहारा सभी छायावादी कवियों ने लिया है। पन्त जी के काव्य में समन्वयवाद, मार्क्सवाद, मानवतावदी दर्शन व्यक्त हुआ है। पन्त कवीन्द्र, रवीन्द्र व अरविन्दों तथा गाँधी-दर्शन से प्रभावित है। मानवतावादी दृष्टिकोण के कारण ही विश्व-प्रेम, लोक प्रेम तथा जाति प्रेम की उक्तियाँ भी दृष्टिगत हैं—

विश्व प्रेम का रुचिकर राग
पर सेवा करने की आग
इसको सन्ध्या की लाली-सी
माँ! ने मन्द पड़ जाने दे।

(10) समन्वय भावना छायावादी काव्य में समन्वय भावना का पर्याप्त प्रयोग मिलता है। पन्त के काव्य में रहस्यवाद दो रूपों में मिलता हैं— प्रथम प्रकृति सम्बन्धी रहस्यवाद और द्वितीय प्रेम एवं सौन्दर्यमूलक रहस्यवाद ।

(11) रस-निरूपण– कविवर पन्त जी का प्रिय रस श्रृंगार हैं, परन्तु उनके काव्य में शान्त, अद्भुत, करुण, रौद्र आदि रसों का भी सुन्दर परिपक्व हुआ है।

(ब) कलापक्षीय विशेषताएँ

(1) नवीन अभिव्यंजना पद्धति – छायावाद नवीन शैली और अभिव्यंजना को लेकर हिन्दी साहित्य में अवतरित हुए है। भावना के क्षेत्र में महान् परिवर्तनों के साथ शैली और कला में अपेक्षाकृत अधिक क्रान्ति हुई। छायावादी कवि ने लाक्षणिकता और ध्वन्यात्मकता के साथ भाषा और शैली में नवीन अभिव्यंजना को प्रकट किया, ध्वनि चित्रण मानवीकरण अलंकार के साथ स्वच्छन्द कल्पना की मुक्त उड़ान के साथ भाषा का परिष्कार करके भावों को कल्पना और वक्रता के साथ आलंकारिक रूप पन्त अपने काव्य में प्रदान किया है- पन्त जी ने अभिव्यंजना के क्षेत्र में कई नए प्रयोग किए हैं।

(2) प्रतीकात्मकता- प्रतीकात्मकता छायावादी कलालक्षीय प्रमुख विशेषता है पन्त ने अपने काव्य में प्रतीकात्मकता का भी प्रयोग किया है-

करुण भौहों में था आकाश,
हास में शैशव का संसार।

(3) चित्रात्मक भाषा – पन्त खड़ी बोली के कवि हैं, उनकी कविता में भाषा के दो गुण विद्यमान है प्रथम चित्रात्मकता और द्वितीय संगीतात्मकता पन्त छायावादी कवि है। वे कविता को संगीत्मकता विचार मानते हुए कहते हैं— “कविता परिपूर्ण क्षणों की वाणी है।” पन्त जी ने कविता की भाषा और भाषों में पूर्ण सामंजस्य पर बल दिया है।

(4) नवीन अलंकार योजना- कविवर सुमित्रानन्दन पन्त ने अलंकारों की भाषा को सजावट का माध्यम मात्र नहीं माना वरन् उन्होंने अलंकारों को भावों की अभिव्यक्ति का द्वार भी माना है। छायावाद में अभिव्यक्ति की नयी शैली को अपनाया गया हैं नयी शैली के कारण अलंकारों में भी नवीनता आयी है। पन्त के काव्य में नवीन अलंकारों के दर्शन होते हैं।

(5) छन्द-विधान- पन्त जी का मत है मुक्तक छन्दों की अपेक्षा तुकान्त छन्दों के आधार पर ही काव्य संगीत की रचना हो सकती है। इसी कारण उन्होंने ‘पल्लव’ की भूमिका में निराला के मुक्त छन्द का विरोध किया। पन्त ने अपने काव्य में वर्णिक छन्दों की अपेक्षा मात्रिक छन्दों को अधिक महत्त्व दिया है। परन्तु प्रगतिवादी होने पर पन्त जी अलंकारों के समान छन्दों के बन्धन का भी विरोध करने लगे थे।

पन्त जी असाधारण प्रतिभा से सम्पन्न साहित्यकार थे। काव्य के भाव एवं कलापक्ष के वे महान् व सिद्ध कवि थे। वे युग दृष्टा और युग-सृष्टा दोनों ही थे। छायावाद के युग प्रवर्तक कवि के रूप में उन्हें अपूर्व ख्याति मिली है।

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Anjali Yadav

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